Friday, October 6, 2023

उपन्यास - भगवती (9)

 

हालाँकि राकेश अपने बड़े भाई साहब जी को अपना पूजनीय मानकर उनकी हर बात मानने का प्रयत्न करता था | परन्तु कभी कभी राकेश उनका रवैया अपने फायदे से प्रेरित एवम अपने तथा अपने बच्चों को हर प्रकार से समर्थ दिखाने का ढंग पसंद नहीं आता था | इन्हीं विचारों के चलते कभी कभी राकेश उनके विचारों से टकराव हो जाता था |

इस टकराव का मकसद यह कभी नहीं होता था कि राकेश मन में उनके प्रति स्नेह, श्रद्धा या आदर कम हो जाता था | बस उनके ऐसे व्यवहार के लिए राकेश बच्चे की तरह थोड़ी देर के लिए तड़प कर रह जाता था तथा जल्दी ही सब भूल जाता था | और उनसे कोई शिकायत न कर अपना रास्ता चुन लेता था | प्रभात की शादी के समय भी उनके बीच एक ऐसा ही विचारों का टकराव हो गया था |

प्रभात की  शादी के समय चारों भाईयों में से कार केवल राकेश के बड़े भाई साहब जी के पास ही थी | इसलिए राकेश ने सोचा था कि प्रभात की शादी की विदाई के बाद दुल्हन को उनकी गाड़ी में ही लिवाकर लाया जाए | उसने  जब अपने बड़े भाई साहब जी के सामने अपने मन की इच्छा जाहिर की तो उन्होंने कहा, भाई ऐसा है, गाड़ी के लिए तो तुम्हें बच्चों से पूछना पड़ेगा |

राकेश उनका जवाब सुनकर हैरत से सन्न रह गया | राकेश की समझ में नहीं आया कि आखिर उनके ऐसा कहने का मतलब क्या था ? क्या वे चाहते थे कि राकेश उनके बच्चों के सामने फ़रियाद करे क्योंकि वे खुद मजबूर थे | परन्तु राकेश नहीं चाहता था कि उनको मजबूर देखे  | शायद वे मजबूर नहीं थे बल्कि अपने बच्चों का रूतबा राकेश से ऊपर दिखाना चाहते थे | उनके कहने का राकेश ने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप उठकर वापिस आ गया | रास्ते में ही उसने एक दृड निश्चय कर लिया कि अपने लड़के की दुल्हन को अपनी खुद की गाड़ी में ही विदा करके लाऊंगा और इसे निभाया भी |   

इन दिनों नवदम्पतियों का हनीमून पर जाने का एक प्रचलन सा हो गया था | राकेश ने भी अपने नव विवाहित बच्चों को कुल्लू मनाली भेजने का निश्चय कर लिया तथा उनके लिए जाने के लिए वोलवो गाड़ी में सीट तथा वहाँ ठहरने के लिए कमरे बुक करा दिए | उनके वहाँ पहुँचने पर जब राकेश ने अपने लड़के से जानना चाहा कि कोई परेशानी तो नहीं हुई तो राकेश के लड़के ने जवाब दिया, पापा जी मैं सब इंतजाम कर लूंगा आप परेशान न हों |

उसके ऐसा कहने पर राकेश के मन में यह विचार आया कि मैंने तो साढ़े सत्तरह वर्ष की आयु में ही अपने आप को संभाल लिया था फिर मैं चिंता क्यों कर रहा था, उनकी जो व्यसक हो गए हैं तथा अपने गृहस्थ जीवन की शुरूआत करने में हर प्राकार से क्षसम हैं, राकेश के मुख पर अचानक हंसी छा गई |

शादी हुए लगभग तीन महीने सुचारू रूप से व्यतीत हो गए | दुल्हन ने ससुराल के सभी रस्मों रिवाज पूरे कर लिए थे | अब वह घर के काम काज में अपनी सास का हाथ बंटाने लगी थी | एक दिन राकेश ने अपनी पत्नी से जानना चाहा, चाँदनी ने सब काम ठीक से संभाल लिया ?

हाँ क्यों क्या बात है ?

नहीं बस ऐसे ही पूछ लिया |

आपके मन में कुछ तो बात है जो ऐसा पूछ रहे हो |

मन की कह रही हो सोच रहा था कि चाँदनी को आए तीन महीने होने जा रहे हैं वह अपने पीहर नहीं गई ?

घर वालों को फुर्सत नहीं मिली होगी |

नहीं, उनका लिवाले जाने का फोन तो दो तीन बार आ चुका है परन्तु लिवाने कोई नहीं आया |

आ जाएंगे |

सो तो ठीक है परन्तु एक नई नवेली का दिल तो करता ही होगा, तुम्हारा तो अभी तक करता है ?

क्या क्या ?

वही जो मैं कह रहा हूँ |

आप ठीक कह रहे हैं, लडकी को अपने पीहर जाकर वैसी खुराक मिल जाती है जैसी झुलसती गर्मी में वर्षा से सूखते पेड़ों और फूलों को मिलती है |    

यही तो मै बताना चाह रहा था कि चाँदनी को अभी तक अपने पीहर हो आना चाहिए था |

संतोष ने मजबूरी दिखाते हुए कहा, इसमें हम क्या कर सकते हैं ?

वार्तालाप समाप्त हो गया और दिन व्यतीत होने लगे | चाँदनी कभी छटी-चमासे अपने घर हो आती |

इसी प्रकार एक वर्ष बीत गया | इस दौरान चाँदनी को २४ अप्रेल को एक लड़की की माँ बनने का सौभाग्य भी प्राप्त  हो गया |

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