Wednesday, October 11, 2023

उपन्यास - भगवती (10)

 

मई का महीना था | दिन में सुबह से ही बदन को झुलसाने वाली लू चलने लगी थी | घर से बाहर निकलना दुस्वार प्रतीत होता था | सुबह के दस बजे ही बाजारों की सड़कें सुनसान हो जाती थी | बिजली की कटौती से हर व्यक्ति परेशान था | एक घंटे के नाम पर तीन चार घंटे बिजली गुल रहना आम बात थी |

23 मई 1998 को राकेश के घर की बिजली को गए लगभग दो घंटे व्यतीत हो चुके थे | घर में लगा जनरेटर भी थक हार कर शांत होकर सो गया था | घर के सारे व्यक्ति हाथ का पंखा झलते झलते थक चुके थे | इसकी वजह से सभी के स्वभाव एवम बोलने में चिड-चिडेपन का आभाष हो रहा था | शुक्ल पक्ष चल रहा था अत: चारों और गुप्प अन्धेरा व्याप्त था | यह सोचकर घर में मोमबत्ती भी नहीं जलाई गई थी कि ऐसा करने से गर्मी और बढ़ जाएगी | आस पडौस में किसी का भी कूलर न् चलने से चारों और सन्नाटा था |

रात के लगभग दस बजे होंगे | राकेश के घर के टेलीफोन की घंटी टनटना उठी | इस सन्नाटे के माहौल में राकेश डाईलिंग वाले टेलीफोन की बजती घंटी ने सभी के दिमाग पर हथौड़े मारने जैसा काम किया | राकेश  बुदबुदाते हुए कि न् जाने इस समय किस का फोन होगा, टेलीफोन का चौगा उठाया और बोला, हैलो |

दूसरे छोर से, हैलो कौन बोल रहा है ? गुप्ता जी हैं क्या ?

हाँ बोल रहा हूँ | आप कौन हैं ?

राकेश नजफगढ से श्याम लाल बोल रहा हूँ |

लाला जी नमस्ते ! कहिए कैसे याद किया ?

श्याम लाल कुछ उखड़े से अंदाज में, याद क्या ! बस मैं कल चाँदनी को लेने आ रहा हूँ |

एक बार को राकेश चाँदनी के पिता जी द्वारा अचानक कहे इस वाक्य से अवाक रह गया | फिर संभल कर उनका वाक्य ही दोहराया, कल चाँदनी को लेने आ रहा हूँ |

हाँ मैं कल चाँदनी को लेने आ रहा हूँ |

राकेश ने अपने मन में उधर किसी अनहोनी घटना के घटित होने की सोचकर, वहाँ सब कुशल तो है ?

हाँ यहाँ सब ठीक है | मैं कल लेने आ रहा हूँ |

राकेश को उनके कल लेने आ रहा हूँकी रट से कुछ अटपटा सा लगा फिर भी संयम रखते हुए कहा, चाँदनी को अस्पताल से आए अभी तो एक महीना भी नहीं हुआ ?

श्याम लाल उसी उखड़े अंदाज में, एक महीना तो बहुत होता है | वैसे कल एक महीना भी पूरा हो जाएगा |

परन्तु लाला जी चाँदनी के जापे के लिए मेरी लड़की जो आई हुई है हमने उसे भी अभी तक विदा नहीं किया तो चाँदनी को आपके साथ भेजना क्या उचित लगेगा ?

श्याम लाल अपनी आवाज ऊंची करके तथा लांछन लगाकर बोला, उचित अनुचित मुझे नहीं पता | मैं कल लेने आ रहा हूँ | क्योंकि हमारी लड़की वहाँ रोती है | जब से वह वहाँ गई है दुखी है |

शायद यह राकेश का कसूर था कि वह पहले भी दो तीन बार श्याम लाल की बदतमीजी बर्दास्त कर चुका था | आज तो उन्होंने राकेश परिवार पर झूठा लांछन लगाकर हद ही पार करने की कोशिश की थी जो राकेश किसी भी हालत में पार करने नहीं दे सकता था | इसलिए उन्हें रोकने के लिए राकेश को मजबूरन अपनी आवाज बुलंद करके कहना पड़ा, अपनी ये बेहूदा बकवास बंद करो और आवाज नीची करके इज्जत से बात करो |

अबकी बार श्याम लाल कुछ नरमाई से बोले, क्या बात करूँ ?

जो भी आपको करनी है | परन्तु ध्यान रखना कि ऊंची आवाज में बोलना केवल आपके हिस्से में ही नहीं लिखा है | हमें भी ऊंची आवाज में बोलना आता है | मैं किसी भी तरह तुम्हारी दबेल को बर्दास्त नहीं करूँगा | और कान खोलकर सुन लो चाँदनी यहाँ गठड़ी बांधे आपके आने का इंतज़ार नहीं कर रही है | बहू बेटी को भेजने के लिए वक्त चाहिए | समझे |

राकेश की ऊंची आवाज सुनकर सभी घर वाले परेशान से हो गए तथा इशारों से राकेश को फोन रख देने का आग्रह करने लगे | राकेश  श्याम लाल को जो सुनाना था वह कह चुका था अत: घर वालों की बात मानना ही उचित समझ फोन रख दिया |

दिमाग में थोड़ी शान्ति आ जाने पर राकेश ने अपने जीजा जी श्री श्याम कुमार जी को, जिनकी थोड़ी मध्यस्थता के वशीभूत होकर अपने लड़के प्रभात की शादी चाँदनी से कर दी थी, सारी बातों से अवगत कराना उचित समझ उन्हें टेलीफोन किया, जीजा जी नमस्ते |

श्याम कुमार जी अपने चिरपरिचित अंदाज में बोले, नमस्ते साले साहब नमस्ते |

रात के ग्यारह बजने को थे अत: उनसे माफी माँगते हुए राकेश बोला, आपको देर रात में जगाने के लिए माफी चाहता हूँ |

कैसी बात कर रहे हो साले साहब अभी तो हम सोए ही नहीं हैं | कहो कैसे याद किया?

राकेश ने शुरू से आखिर तक जो भी श्याम लाल से बातें हुई थी और हकीकत थी ब्यान करते हुए पूछा, जीजा जी अब आप ही बताईये कि कोई आदमी बार बार किसी की बदतमीजी कैसे सहन कर सकता है ?

क्यों क्या पहले भी कोई ऐसी बात हुई है ?

हाँ जीजा जी एक दो ऐसी बातें और हो चुकी हैं जो राकेश  आपको क्या किसी को भी नहीं बताई |

वह क्या थी | अपने मन का बोझ हल्का करने के लिए अब बता दो |

जीजा जी बोझ तो क्या हल्का होना है फिर भी आप पता ही करना चाहते हैं तो बता ही देता हूँ

एक दिन लग्न से पहले मैनें शंकर को यह याद दिलाने के लिए फोन करना चाहा कि चढत के समय रास्ते में एक जगह पानी का इंतजाम हो जाए तो अच्छा रहेगा | परन्तु शंकर मिला नहीं | मुझे आफिस भी जाना था अत: सोचा कि फिर कभी शंकर को याद दिला दूंगा | शाम को जब मैं घर पहुंचा तो बताया गया कि नजफगढ से फोन आया था | फोन पर जो शब्द कहे गए थे उन्हें सुनकर दिमाग पर एक हथौड़े का प्रहार सा महसूस हुआ | मेरा शरीर गुस्से से काँप कर रह गया | 

ऐसा क्या कहा था नजफगढ वालों ने ?

उन्होंने बिना किसी से कुछ पूछे ही कहा, शंकर को किस लिए ढूंढ रहे हो पीसे वहाँ से नहीं पीसे तो मेरे पास से मिलेंगे जबकि मैनें पैसों के बारे में कभी उनसे कोई बात नहीं की है |

इतनी तो मुझे परख है कि आप में पैसों का लालच नहीं है | वैसे सचमुच उन्होंने बहुत गलत बात कही है |

अपने जीजा जी को आगे याद दिलाते हुए राकेश ने बताया, नजफगढ में जनवासे का ड्रामा तो आपने देखा ही होगा ?

हाँ वहाँ तो मैं खुद मौजूद था”, फिर वे कुछ सोचकर बोले,अब आप बताएं कि मैं क्या करूँ ?

जीजा जी मैं आपको सुझाव नहीं दे सकता | आप जैसा उचित समझें करें | श्याम लाल जी तो मेरी शराफात का नाजायज फ़ायदा उठाने की सीमा लांघ चुके हैं | आगे मुझ से बर्दास्त नहीं होगा तभी मैनें आपको सूचित करना उचित समझा कि कहीं बाद में आप यह न कह दें कि आपको कुछ पता नहीं था, और राकेश ने शुभ रात्री कहकर फोन रख दिया |

 

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