Monday, October 2, 2023

उपन्यास - भगवती ( 8 )

 

अनिल के इस प्रोग्राम के कारण बारात को अपने गंतव्नय स्थान नजफ़गढ़ पहुँचने में काफी देर हो गई | जब हम नजफ़गढ़ पहुंचे तो चाँदनी  के पिताजी के चेहरे का रंग गिरगट की तरह बार बार बदल रहा था | हमें सामने पाकर उसने आव देखा न ताव तथा समय की नाजुकता को न परखते हुए बिफर पड़ा

उन्होंने राकेश के बड़े भाई साहब के सामने लाल पिला होकर आग उगलते हुए कहा, "यहाँ अब आप क्या अपनी इसी-तीसी कराने आए हो |"

संतोष का शरीफ, भोला भाला और शांत स्वभाव वाले इंसान की  जबान शोले उगल रही थी | उनकी बात सुनकर राकेश के भाई सकते में आ गए परन्तु अपना बडप्पन और संयम दिखाते हुए उन्होंने केवल इतना ही कहा, "लाला जी ऐसे मौकों पर देरी हो ही जाती है |" और आगे बढ़ गए |    

राकेश के भाई राकेश को अपने साथ लेजाना न भूले थे क्योंकि वे जानते थे कि राकेश किसी की बदतमीजी बर्दास्त नहीं कर सकता था | अपने बड़े भाई साहब के कहने के अनुसार  धर्मशाला में राकेश अपने लड़के की शादी के हर नेग टहले तो निपटा रहा था परन्तु उसका  मन शांत न था | जब चढत शुरू हुई तो राकेश ने श्याम   लाल के बड़े लड़के को बुलाकर अपने मन का गुब्बार निकालना शुरू कर दिया, "शंकर, क्या आप वहां थे जब हम धर्मशाला पहुंचे थे | "

"नहीं मौसा जी मैं वहां नहीं था | मैं बर्फ का इंतजाम करने गया था |"

"तुम्हे पता है जब हम वहां थोड़ी देरी से पहुंचे तो आपके पिता जी ने हमारा कैसे अभिवादन किया था ?"

"मौसा जी क्या बात हुई क्या उनसे कोइ त्रुटि हो गई ?"

"किसी सामान की त्रुटि होती तो कोई कहना नहीं था परन्तु उनकी जबान इतनी कड़वी है कि कुछ कहा नहीं जाता तथा सहन हो नहीं रहा | उन्होंने तो हद ही कर दी |"

शंकर अपने पिताजी के द्वारा किसी अनहोनी घटना को जन्म देने की आशंका से हाथ जोड़कर बोला, "मौसा जी क्या बात हुई ?"   

“जब हम कुछ देरी से जनवासे में पहुंचे तो तुम्हारे पिताजी ने बिफर कर जैसे वह किसी ऐरे गेरे से कह रहे हों कहा, “ईब के यहाँ अपनी इसी-तीसी कराने आए हो |”

“मौसा जी राकेश पिता जी थोड़ी सी बात में ही गुस्सा खा बैठते हैं |”

“परन्तु यह कहाँ की शराफत है कि सभी को एक ही लाठी से हांकने लगें ?”

“नहीं मौसा जी मैं उनको समझा दूंगा |”

“केवल समझाने से बात नहीं बनेगी उन्हें अच्छी तरह से बता देना कि सामने वाला किसी मायने में कम नहीं है तथा वह किसी की बदतमीजी बर्दास्त नहीं करता |”

“मौसा जी आपसे मैं  उनकी तरफ से माफी मांगता हूँ |”

“आपके माफी माँगने से कुछ हल नहीं होता | उन्हें अगर रिश्ता निभाना है तो अपने को काबू में रखें | नहीं तो अभी भी कुछ नहीं बिगडा है |”

राकेश की बातों का आशय समझकर शंकर गिडगिडाकर बोला, “नहीं मौसा जी ऐसा मत करना |मैं आपको आशवासन देता हूँ कि उनकी तरफ से फिर ऐसा नहीं होगा |”

“आप बहुत भाग्यवान हो कि  मेरे साथ मेरे बड़े भाई साहब थे अन्यथा यह तो अब तक हो चुका होता |” 

इसके बाद आगे के कार्यक्रम सुचारू रूप से चल रहे थे कि फेरों के समय बैठने की उचित व्यवस्था न् होने के कारण मुकेश जी ने अपना आपा खो दिया | उनके द्वारा कुछ गुस्से में बोलने के कारण इंतजाम तो ठीक कर दिया गया परन्तु मुकेश जी का व्यवहार मेरे बड़े भाई साहब जी के उसूलों के खिलाफ था |

शादी संपन्न हो गई और विदाई का समय आ गया | विदा लेते समय राकेश के बड़े भाई साहब चाँदनी के पिता जी श्री श्याम लाल जी के पास गए और बड़े ही कोमल शब्दों में बोले, लाला जी हम यहाँ जो करने आए थे उसे पूरा करके जा रहे हैं | अब आप जानो कि यह आपकी ईसी-तिसी थी या कुछ और |

राकेश के  बड़े भाई साहब के सवाल का श्याम लाल के पास कोई जवाब नहीं था | वे बस अपनी आँख व् गर्दन नीची करके रह गए |

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