Wednesday, October 25, 2023

उपन्यास - भगवती (12)

 

राकेश की माँ तुल्य बड़ी बहन इन्द्रा जो सब कुछ देख और सुन रही थी कमला एवम श्याम लाल के कटु वचनों को पचा नहीं पाई और बड़े सयम से उन दोनों को लताड़ा, देखो जी आपकी यह भाषा एवम बोलने का तरीका बिलकुल गलत है |  लड़के ने आपसे ऐसे शब्द कहे तो हैं नहीं | मान लो अगर कहे भी हैं तब भी आपका यह फर्ज नहीं बनाता कि आप इतनी बेहूदगी से पेश आओ | आप सुनी हुई बातों पर इतना तैश दिखा रही हो क्या यह जायज है | आप पहले चाँदनी को बुलाते तो सही | अगर वह बाद में लिवालाने में आनाकानी करता तब भी आपको थोड़ा नरमी से पेश आना बनता है | आप ने तो सूत न कपास कोरिया से लठा लठी वाली कहावत चरितार्थ कर दी |

राकेश की बड़ी बहन की बात सुनकर दोनों बगलें झाकने लगे | परन्तु कमला को अपने दामाद तथा अपने लड़के प्रभात के लिए बेकार में तू-तड़ाक के शब्दों का इस्तेमाल सुन राकेश का पारा चढ गया और कहा, अरे बेशर्मों कुछ तो शर्म करो | सीख लो कुछ मेरी बहन जी के शब्दों से कि व्यवहार व इंसानियत क्या होती है |

राकेश ने कमला की और इशारा करके कहना आरम्भ रखा, इस औरत ने अपनी तीसरी लड़की की शादी की है और इसे इतनी तमीज नहीं है कि अपने दामाद के लिए कैसी भाषा का इस्तेमाल किया जाता है | ऊपर से दादागिरी सी दिखा रही है कि हम भी देखते हैं कि लिवाने कैसे नहीं आएगा | लो अब मुझे भी इसकी दादागिरी ही देखनी है | यह अपने पूरे घोड़े दौडाले देखें हमारा क्या बिगाड़ती है |

फिर राकेश  अपने लड़के प्रभात की तरफ देखकर कहा, अरे तू देखता नहीं बेबी की शादी को 5-6 साल बीत गए हैं हम मुकेश जी को कैसे संबोधित करते हैं | इसने औरों से भी बदतमीजी की होगी करती रहे परन्तु हम बर्दास्त नहीं करेंगे | हम इनकी दबेल में नहीं बसते | अगर मेरे साथ मेरी ससुराल वालों की तरफ से ऐसा व्यवहार हो जाता तो मैं जीवन भर उनकी दहलीज...........|

इतने में ही श्याम लाल जो शायद राकेश की बातों का आशय समझ गए थे कि वह क्या कहने वाला था, उठ कर राकेश को रोकते हुए हाथ जोड़कर बोले, बस बस अब आगे कुछ न कहना |      

चाँदनी भी रोकर बोली , पापा जी शांत हो जाईये |

राकेश ने अपने गुस्से को बरकरार रखकर कहा, शांत, यह तुम्हारी मम्मी जी इतनी बदतमीजी कैसे दिखा रही हैं | क्या तुमने इनसे कहा है कि तुम यहाँ किसी प्रकार से भी दुखी हो ?

पापा जी मेरी भी कुछ समझ नहीं आ रहा कि ये किस बिना पर ऐसा कह रहे हैं | आज आप सबके सामने मैं  अपने मन की बात बताना चाहती हूँ | मैं बचपन से अपनी शादी तक अपने मम्मी पापा के मुहं से अपने लिए अपने नाम चाँदनीके अलावा बेटा या बेटी का शब्द कभी नहीं सुना | मैं इन शब्दों को सुनने के लिए तरस गई थी | परन्तु यहाँ आपने जब मुझे बेटा कहकर बुलाया तो मेरा मन गदगद हो उठा था | मैं खुशी के कारण इतनी भाव विभोर हो उठी थी कि बहुत देर तक मैं अपनी आंखों के अश्रु थाम नहीं पाई थी | आप सब इसी से अंदाजा लगा लो कि मैं यहाँ दुखी हूँ या सुखी |

चाँदनी का यह तर्क एवम गूढ़ वाक्य राकेश के मन के उमड़ते उफान को रोकने के लिए एक रामबाण की दवा बन गया |राकेश एकदम शांत हो गया | चाँदनी के मम्मी पापा पर भी मानो घडों पानी पड़ गया था | अपनी बेटी के शब्द सुनकर वे कुछ बोलने लायक नहीं रहे तथा उनकी गर्दन जो अभी तक अकड़ी हुई थी, झुक गई | उनका अब वहाँ बैठना दुशवार होने लगा था इसलिए वे दोनों, बिना चाँदनी को ले जाने की कहे, चुपचाप उठे और वापिस चल दिए | हालाँकि राकेश का मन उनके व्यवहार से घृणा का एहसास करने लगा था फिर भी उनका उसके घर से अकेले तनहा जाना राकेश को कुछ जंचा नहीं | अत: राकेश ने अपने लड़के प्रभात को उन्हें बस स्टैंड तक विदा करने के लिए साथ भेज दिया |

 

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