समय व्यतीत होने लगा | नजफगढ से कई बार कहा गया कि राकेश उनके यहाँ आए परन्तु बिना किसी
काम या जाने का कोई बहाना न बनने के कारण राकेश कभी नहीं गया | सन २०१० की सर्दियों की बात होगी कि अचानक नजफगढ से एक फोन आया जिससे
पता चला कि चाँदनी के भाई गौतम की दुकान की तिजोरी से लगभग ग्यारह लाख रूपयों की
चोरी हो गई है | अब तो राकेश को जाना ही था क्योंकि गौतम के बड़े भाई शिव का
स्वर्गवास हो चुका था | मंझला भाई दिमाग से थोड़ा कमजोर था | और कोई बड़ा व्यक्ति ऐसा था नहीं जो
पूरा समय उसके साथ रह सकता हो तथा पुलिस वगैरह की कार्यवाही को संभालने के साथ साथ
गौतम को सान्तवना दे सके |
नजफगढ के पुलिस थाने पहुँच कर राकेश को
यह पता चला कि उस दिन गौतम के साथ वाली
दुकान में भी चोरी हुई थी | हालाँकि दूसरे का कोई खास नुकसान नहीं हुआ था फिर भी उसने रिपोर्ट
में लिखवाया था कि उसके ढाई लाख रूपये गए हैं | राकेश को यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि
गौतम ने भी थाने में केवल ढाई लाख रूपये चोरी होने की रिपोर्ट लिखवाई है
जबकि उसका ग्यारह लाख रूपया चोरी हुआ था | राकेश को उसका ऐसा करना जंचा नहीं अत: राकेश ने उससे पूछा, “आपने ग्यारह लाख न लिखवा कर ढाई लाख
रूपये ही क्यों लिखवाए हैं ?”
वह इधर उधर देखते हुए जैसे कोई सुन न
ले धीरे से बोला, “मौसा जी ज्यादा लिखवा दूंगा तो आयकर विभाग वाले पूछेंगे कि इतना पैसा
आया कहाँ से |”
“तुम्हें यह सलाह किसने दी ?”
“बाजार वाले ही कह रहे थे |”
राकेश ने उसे समझाया, “मान लो चोरी किया हुआ पैसा मिल जाता है
तो तुम तो ढाई लाख के हकदार ही रहोगे ?”
“मौसा
जी एक बार गया हुआ पैसा मिलता कहाँ है और अगर मैं ग्यारह लाख लिखवाता हूँ तो आयकर
का झंझट अलग गले पड़ जाएगा |”
“तुम
अभी आयकर की चिंता छोड़ो वह तो तब भी आ सकती है जब पैसा मिल जाएगा | वैसे
आजकल के जमाने में दस लाख की रकम कोई बड़ी भारी रकम नहीं मानी जाती |”
गौतम
डरता सा बोला, “मौसा
जी सोच लो बाद में कहीं कोई लफड़ा न खड़ा हो जाए |”
राकेश
ने आशवासन दिया, “चिंता मत करो कोई लफड़ा
नहीं पडेगा |”
राकेश
तथा एक दो और के कहने से गौतम अपना बयान
बदलने के लिए हमारे साथ पुलिस इन्सपेक्टर के पास जाकर बोला, “साहब
मैं आपको एक सच्चाई बताना चाहता हूँ |”
“कैसी
सच्चाई ?”
“यही
कि मेरा ढाई लाख नहीं बल्कि ग्यारह लाख रूपया चोरी हुआ है |”
गौतम
की बात सुनकर पुलिस इन्सपेक्टर का मुहं
आश्चर्य से खुला का खुला रहा गया, “क्या ! फिर
पहले तुमने ऐसा क्यों किया ?”
राकेश
ने जब इंस्पेक्टर को बताया कि गौतम ने डर
की वजह से सही नहीं बताया था तो वह मुस्कराए बिना न रह सका और उसने अपनी कच्ची
डायरी में फेर बदल कर ली |
शाम
के तीन बजे सूचना मिली कि रूपयों से भरा एक थैला खांडसा रोड़ पर एक स्कूल के बाहर
उसके गेट के पास लावारिस पड़ा मिला है | थैला थाने लाया गया तो गौतम ने उसे पहचान लिया कि वह उसी का थैला था जो चोरी
हुआ था | गिनने से पता चला कि उस थैले में कुल
साढ़े नौ लाख रूपये थे | पुलिस वालों के पूछने पर गौतम ने अपने द्वारा बनाई नोटों की गद्दियों के निशान
बता दिए परन्तु दूसरा व्यक्ति (जय भगवान) कुछ
नहीं बता पाया क्योंकि शायद उसका कुछ गया ही नहीं था | इससे
यह तो साफ़ जाहिर था कि बरामद किए गए सारे रूपये गौतम के थे परन्तु उसी थैले में जय भगवान की दुकान से
चोरी हुई चाँदी के छोटे से लक्ष्मी गणेश के जोड़े ने उसे भी मिले हुए पैसों में
भागीदार बनने का हक दे दिया था |
बाजार के आस पडौस के दुकानदार एक दूसरे
की नीयत, रहन सहन, तौर तरीके, चाल चलन एवम औकात के बारे में सब जानते हैं | सभी की सलाह मशवरा से रूपये के बंटवारे
की सीमा तय कर दी गई | हांलाकि सभी गौतम के हक में
थे कि सारा पैसा उसी का है परन्तु जय भगवान की लिखवाई गई रिपोर्ट के अनुसार उसे भी
हिस्सा देना पड़ा |
पुलिस एवम समझौता करते करते थाने में
ही रात घिर आई थी | गौतम के घर वालों द्वारा
आग्रह करने पर राकेश उनके घर चला गया | खाने का समय हो चुका था | राकेश ने चाँदनी के घर आज पहली बार खाना खाया था | | जब राकेश उनके घर से विदा हो रहा था तो चाँदनी की मम्मी जी ने अपने लड़के से कहा, “तेरे मौसा जी जा रहे हैं भगवती से कह
कि एक गिलास पानी ला दे |”
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