Saturday, November 4, 2023

उपन्यास - भगवती (14)

 

बातों का सिलसिला चल ही रहा था कि इतने में मुकेश जी भी आ गए | उन्होंने पूरे माहौल का जायजा लेने के बाद चाँदनी से प्रश्न किया, क्या अपने मम्मी पापा जी के बात से तुम्हें कभी ऐसा लगा वे ठीक कह रहे थे ?    

जीजा जी वे तो मेरे दुःख के बारे में, जो मुझे कभी हुआ ही नहीं, सोचकर दुखी थे | ऐसे में उनका उचित बात करने का सवाल ही कहाँ उठता है |

मुकेश जी ने खंगालने के लिए चाँदनी से एक और प्रश्न किया, उन्होंने कुछ ऐसी बातें अवश्य कही होंगी जो आपको तर्क संगत लगी हों ?

राकेश ने मुकेश जी की बात को आगे बढाते हुए कहा, हाँ चाँदनी हो सकता उन बातों से हमें हमारी कमियों का पता चल जाए और हम उन्हें सुधार सकें | इसलिए अगर कोई बात है तो बे झिझक साफ़ साफ़ बता दो |

पापा जी मुझे आप लोगों की तरफ से कोई शिकायत नहीं है परन्तु मैं यह भी समझने में असमर्थ हूँ कि उन्हें ऐसा आचरण करने की क्या आवश्यकता आन पड़ी थी |

चाँदनी के ऐसा कहने पर राकेश ने कुछ सोचकर पूछा, क्या तुम्हारे मम्मी पापा तुम्हारी बड़ी बहन के यहाँ भी कभी गए थे ?

हाँ पापा जी, एक बार मेरी मम्मी वहाँ गई थी | अनीता की सास से लड़कर आई थी |

राकेश ने तपाक से पूछा, किस बात पर लड़ी थी ?

यही कि वहाँ अनीता को खाना ढंग से नहीं दिया जाता |

राकेश ने अपना निर्णय सुनाकर कहा, इसका मतलब तुम्हारी मम्मी कान की कच्ची हैं तथा  इतना अरसा तुम्हारे पिताजी के साथ बिताने के बाद भी उनका मथन हींग लगे न फटकडी रंग भी चोखान समझ सकीं | तुम्हारे पिता जी तुम्हें बुलाने के लिए कहते जरूर हैं परन्तु खर्चे की सोचकर आज तक लिवाने के लिए भेजा किसी को भी नहीं | तुम्हारी मम्मी जी उनके बहकावे में आकर अपनी लड़की की जिंदगी में बेकार का हस्तक्षेप करने लगती हैं | मेरा मतलब तो तुम समझ ही गई होगीं | अगर वे इस ख्याल में हैं कि उनकी तूती यहाँ बोले यह मेरे रहते ना मुमकिन है | मैं ऐसा कभी न सहन करूँगा तथा न होने दूंगा | अब अपने मम्मी पापा के प्रति अपना मार्ग तुम्हें खुद तय करना है |

इसके बाद सभी अपने अपने शयन कक्षों में चले गए | राकेश भी अपने बिस्तर पर लेट गया परन्तु नींद आखों से कोसों दूर थी | राकेश अपने ख्यालों में उलझता चला गया फिर भी इस समय इस बात का कोई सिर पैर न समझ सका कि आखिर चाँदनी के मम्मी पापा किस बात से दुखी थे और क्यों ? अंत में राकेश इतना ही बुदबुदाया कि वास्तव में दुखिया कौन है राम जाने और सो गया |
अगले दिन शाम को जब राकेश आफिस से घर पहुंचा तो बताया गया कि ढांसा (नजफगढ) से किसी नरेश का फोन आया था | वह चाँदनी के बारे में मुझ से कुछ बात करना चाहता था | फुर्सत पाकर राकेश ने नरेश को फोन मिलाया, हाँ नरेश जी , मैं राकेश बोल रहा हूँ | कैसे फोन किया था ?

नरेश ने मुझ से सीधा प्रश्न किया, आप चाँदनी को क्यों नहीं भेजते ?

राकेश  संयम बरत कर कहा, पहले आप अपना परिचय देवें कि आप हो कौन ?

चाँदनी मेरी भतीजी है |

मतलब आप चाँदनी के भाई हो ?

हाँ हूँ |

अबकी बार राकेश ने सीधा प्रश्न किया, क्या आप चाँदनी को लिवाने कभी आए हो ?

मतलब ?

राकेश मतलब साफ़ है | चाँदनी के तीनों भाईयों में से कोई भी कभी भी उसे लिवाने के लिए नहीं आया | अब आप भी मुझ पर इल्जाम सा लगा कर पूछ रहें हैं कि हम चाँदनी को क्यों नहीं भेजते |

नरेश ने एक बार फिर पूछा,मतलब ?

जब आपको मेरी किसी बात का मतलब ही नहीं पता तो क्यों अपना तथा मेरा वक्त बर्बाद कर रहे हैं | पहले अपने प्रिय चाचा जी से इस मुद्दे की पूरी जानकारी हासिल करलें फिर मेरे से बात करना |

मुझे तो यही बताया गया था कि....... |

और आपने मान लिया | क्या ढांसा में सभी ऐसी ही प्रवर्ति के लोग बसते हैं जो चौदराहट तो दिखाते हैं परन्तु समझते या जानते कुछ नहीं |

नरेश ढीला पड़कर, माफ करना मौसा जी मैं वास्तव में ही सारी बातों से अनभिज्ञ हूँ |

क्या अभी तक आप इस बात से भी अनभिग्य थे कि आप अपने मौसा जी से बातें कर रहे थे और उनसे कैसे बातें शुरू करनी चाहिएं ?

नरेश झेंपकर, मौसा जी माफी चाहता हूँ | अच्छा नमस्ते, और फोन कट गया |

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