Sunday, November 26, 2023

उपन्यास - भगवती (19)

 

समय निर्बाध गती से चला जा रहा था | चाँदनी की लड़की अब छठी कक्षा में पढ़ रही थी तथा लड़का चौथी में था | संसार में चहूँ और उन्नती हो रही थी | मोबाईल फोन के जरिए एक स्थान पर बैठे बैठे एक सेकेंड में विश्व के किसी भी कौने में बैठे इंसान से बात की जा सकती थी | चंद घंटों में ही भारत से अमेरिका पहुंचा जा सकता था अर्थात नाश्ता देहली में तो दोपहर का खाना अमरीका में लिया जा सकता था | छोटे कच्चे पक्के मकानों की जगह ऊंची ऊंची इमारतें ले रही थी | शिक्षा के साथ नौकरियों की भी बाढ़ सी आ गई थी | इसके साथ ही लोगों के रहन सहन, खाने-पीने, पहनने और विचारों में बहुत बड़ा बदलाव नजर आने लगा था | पुराने जमाने के लोगों की तरह अधिक से अधिक रूपया बचाकर रखने की प्रवर्ति अपना वर्चस्व खोती जा रही थी | इन्हीं विचारों के चलते प्रभात ने अपना पैतृक मकान जिसमें वह रह रहा था एक किस्म से नए सिरे से बनवाने का विचार बना लिया | काम  शुरू करने से पहले उसने राकेश से पूछा, पापा जी मैं मकान में कुछ तबदीली करवाना चाहता हूँ |

राकेश के विचार में मकान बिल्कुल ठीक बना था इसलिए जानना चाहा, मसलन |”

संगमरमर के दानों के फर्श की बजाय पत्थर लगवाना, बिजली के तारों तथा पानी के पाईपों को दीवारों में लेना, छतों तथा दीवारों पर प्लास्टर आफ पेरिस लगवाना इत्यादि |

राकेश  ने अंदाजा लगाते हुए बताया, इस काम को पूरा होने में लगभग छह: महीने तो लग जाएंगे |

प्रभात ने हामी भरी, हाँ पापा जी सो तो है |
अपनी दुकान का सामान कहाँ रखेगा ?

मैंने साथ वाले मकान मालिक से बात कर ली है वह अपनी नीचे वाली बैठक मुझे किराए पर दे देगा |

घर का सामान कहाँ रखेगा तथा बच्चे कहाँ रहेंगे ?

मैं एक एक मंजिल ठीक कराऊंगा अत: जो मंजिल ठीक रहेगी उसमें रह लेंगे |

मकान की रूप रेखा सवारने का काम शुरू कर दिया गया परन्तु प्रभात के ख्यालो के अनुसार कुछ न हो सका | मकान का पिछला हिस्सा पूरा गिराना पड़ा | सारा मकान खंडहर सा प्रतीत होते हुए भी प्रभात ने उसमें रहना न छोड़ा |राकेश सुबह से शाम तक वहाँ की देखभाल करता और शाम को वापिस गुडगांवा आ जाता था | चाँदनी को हर दिन अपनी रसोई का स्थान बदलना पड़ता था | न नहाने का स्थान था न सोने का | दिन भर धूल मिट्टी से जूझना पडता था | रात को तो वह भूतिया महल सा प्रतीत होता था | उस खँडहर में रहते रहते चाँदनी के व्यवहार में कुछ तबदीली दिखाई देने लगी | चाँदनी की सेहत पहले से ही कमजोर रहती थी अब जब से मकान बनना शुरू हुआ था वह दिन प्रतिदिन और भी कमजोर होने लगी थी | एक दिन उसे तेज बुखार आया और कुछ से कुछ बड़बबड़ाने लगी |

चाँदनी की स्थिति को देखते हुए उसे कल्याणी अस्पताल-गुड़गावां में भर्ती करा दिया गया | बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उनकी बुआ को संभालनी पड़ी | चाँदनी को अपना कुछ होश न था | वह घर वालों को भी ठीक से नहीं पहचान पाती थी | किसी से कुछ भी बातें करने लगती थी | वह मुहं फट हो गई थी | वैसे तो घर में वह घूंघट जैसी प्रथा निभाती थी परन्तु एक दिन उसने राकेश को अस्पताल के कमरे के दरवाजे पर खड़ा देखकर हाथ के इशारे से अपने पास आने को कहा |राकेश ज्योंही उसके नजदीक गया उसने दोनों हाथ राकेश की गर्दन में डालकर पूछा, पापा जी आपने मुझे यहाँ क्यों डाल रखा है |

राकेश ने उसके हाथों की पकड़ छुड़ाकर कहा, आपकी सेहत ठीक नहीं है इसलिए |

क्यों मुझे क्या हो गया है ?

कुछ नहीं थोड़ा बुखार हो गया था |

पापा जी आपको एक बात बताऊँ, आप की आँखे बड़ी अच्छी लगती हैं, बड़ी बड़ी और सुरमेंदार |

इससे पहले की चाँदनी कुछ और बेतुकी बातें करती राकेश कमरे से बाहर आ गया | उसको स्वस्थ होने में लगभग एक महीना लग गया |

 

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