Sunday, November 19, 2023

उपन्यास - भगवती (17)

 

नजफगढ में भगवती का नाम सुनकर राकेश को यह वहाँ से जुडा एक जाना पहचाना सा नाम लगा | हालाँकि पानी चाँदनी ने लाकर दिया  परन्तु इस पर राकेश ने ज्यादा सोच विचार नहीं किया और अपने घर आ गया |  

इस घटना को लगभग दो महीने बीते होंगे कि राकेश की बहन पार्वती का राकेश के पास फोन आया, भाई एक बात कहनी थी |

हाँ बहन जी ! ऐसी क्या बात है जो पूछकर कहना चाहती हो ?

मुझे दीपक की बहू ने बताया है कि प्रभात उसके भाई को अपशब्द कह कर बोल रहा था |

परन्तु दीपक की बहू को कैसे पता चला ?

जय भगवान ने उसे फोन पर बताया था |

बहन जी प्रभात ने ऐसा कब और क्यों कहा ?

वो गौतम  और उसके यहाँ चोरी हुई थी और पैसे मिल गए थे तब |

बहन जी उस समय तो मैं भी वहाँ था |

पता नहीं वह ऐसा ही कह रही है |

बहन जी जब आपने बात छेड़ी ही है तो पूरी कहानी सुन लो कि वहाँ कैसे, कब, क्यों और क्या हुआ था, मैं  जब नजफगढ पहुंचा तो पता चला कि गौतम  की दुकान की तिजोरी से ग्यारह लाख की चोरी हो गई थी | उसी रात को जय भगवान की दुकान से भी चोरी हो गई थी | शाम के तीन बजे नोटों से भरा थैला मिल गया था | जो नोटों की गड्डियाँ मिली थी उन सभी पर गौतम  के दस्तखत थे | ऐसा देखते हुए बाजार वालों का विचार था कि सारा पैसा गौतम  को मिलना चाहिए | परन्तु जय भगवान की लिखवाई गई रिपोर्ट, कि उसके ढाई लाख रूपये चोरी हुए हैं, के अनुसार वह भी उन रूपयों का भागीदार था | यही सोच कर मैनें तय कराया कि:-

जय भगवान को डेढ़ लाख रूपया दिया जाए |

पुलिस वालों के जलपान पर जो भी खर्चा करना होगा वह गौतम  के माध्यम से होगा तथा दोनों को आधा आधा खर्चा वहन करना होगा |    

जय भगवान ने अपनी दुकान की इंश्योरेंस करा रखी थी इस लिए यह तय हुआ कि जब भी उसे इन्शोरेंश का एक लाख रूपया मिलेगा तो वह आधा (५०,०००/-) गौतम  को देगा |

इस समझौते के अनुसार जय भगवान को डेढ़ लाख रूपया मिल गया परन्तु बाद में वह इन्शोरेंश के पचास हजार रूपये देने से मुकर गया | उसने गौतम  से ढाई हजार यह कहकर भी ले लिए कि उसने पुलिस वालों पर पांच हजार रूपये खर्च किए हैं | इतना ही नहीं उसने चौदह सौ रूपये और झटक लिए क्योंकि उसके अनुसार उसे जो नोटों की गड्डियाँ मिली थी उनमें से एक गड्डी में केवल बहात्तर नोट ही थे |

इस सारे प्रकरण में मैं शामिल था तथा मेरे सामने प्रभात अपना मुहं कैसे खोल सकता था तथा उसने खोला भी नहीं | फिर भी यह उल्टी सीधी बात कहकर प्रभात के ऊपर, जिसका बोलने का कोई मतलब ही नहीं था, इलजाम लगाने का क्या कारण हो सकता है | शायद जय भगवान अपनी कमजोरियों को छिपाना चाहता है परन्तु ऐसा होगा नहीं क्योंकि मैं खुद वहाँ मौजूद था |         

पूरी कहानी सुनकर मेरी बहन केवल इतना कह पाई, भाई मुझे जो बताया गया था मैंने तो वही आपसे कह दिया |

सो तो ठीक है बहन जी परन्तु जय भगवान को अगर कोई शिकायत थी तो नजफगढ में ही मुझे बताता उसे बात को इतना लंबा खींचने की क्या जरूरत थी ? उसके ऐसा रूख अपनाने से उसकी सारी खामियां सबके सामने आ गई अन्यथा यह मेरे तक ही सीमित रहती |

आपकी बात ठीक है | अच्छा भाई नमस्ते | और फोन कट गया |

इसके बाद फिर कभी इस बारे में कहीं भी कोई चर्चा नहीं हुई |

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