Tuesday, November 7, 2023

उपन्यास - भगवती (15)

 

इन घटना क्रम के कुछ दिनों बाद श्याम लाल जी के मंझले लड़के की शादी हुई | राकेश ने भरसक प्रयत्न किए कि प्रभात एवम चाँदनी दोनों उसमें शरीक हों परन्तु प्रभात अपनी सास के वचन हम भी देखते हैं कि यह कैसे लेने नहीं आता के मद्देनजर शादी में नहीं गया तथा न ही बाद में चाँदनी को लिवाने गया |

तनाव के चलते प्रभात के लड़के नयन का छूछक नौतने भी राकेश न गया | इस पर शायद श्याम लाल के दिमाग से भूत उतरने लगा था कि उनकी अपनी धारणा के विपरीत चाँदनी के ससुराल वाले पैसों के भूखे नहीं बल्कि इज्जत एवम इंसानियत को ज्यादा तवज्जो देते हैं | उन्हें अपनी गलतियों का एहसास होने लगा था | इसी वजह से राकेश ने प्रयास करके प्रभात को उनके छोटे लड़के गोविन्द की शादी में, उसकी मंशा के विपरीत जबरदस्ती भेजा था |

कुछ ही समय बाद श्याम लाल के मंझले लड़के महेश की पत्नी का अचानक देहावशान हो गया | लड़की के घर वालों ने इलजाम लगा दिया कि उनकी लड़की को ढंग से रखा नहीं जा रहा था तथा इलाज भी ठीक से नहीं कराया गया है | इसी वजह से उसकी मौत हुई है | श्याम लाल पूरी तरह से पुरानी परिपाटी के अनुसार चलते थे तभी तो अपनी पुत्र वधू की अर्थी सजाने के लिए उन्होंने पुरानी टूटी चारपाई की बाहियों को लाकर रख दिया था | इसको देखकर लड़की वालों का पारा गर्म हो गया और उन्होंने हंगामा शुरू कर दिया | उन्होंने शादी पर जो खर्च हुआ था उसे वापिस लौटाने की बात रख दी | आए हुए रिश्तेदारों द्वारा किसी तरह बीच बचाव करके लड़की वालों का हिसाब कर दिया गया |

श्याम लाल का स्वास्थ्य कुछ बीमारियों की वजह से गिरता जा रहा था | अब इस घटना ने उन्हें बहुत आघात पहुंचाया जिसकी वजह से उन्होंने शैया पकड़ ली | उनका इलाज कई बड़े अस्पतालों में अच्छे काबिल डाक्टरों की देखरेख में कराया गया | इस दौरान प्रभात तथा राकेश  उनकी सेवा सुश्रा में कोई कमी न छोड़ी | एक बार अस्पताल से छुट्टी मिलने पर श्याम लालजी ने राकेश के घर पर आने की इच्छा जाहिर की | वे राकेश के घर के दरवाजे तक तो आ गए परन्तु अपने स्वास्थ्य के कारण वे कार से बाहर निकलने में असमर्थ रहे | इस पर राकेश स्वयं उनके लिए चाय नाश्ता लेकर गया | अपने प्रति राकेश की निश्छल सेवा भाव महसूस करके उनकी आँखों से अश्रु बह निकले | शायद वे उनके पश्चाताप के आसूं थे तभी तो उन्होंने अपने दोनों हाथ जोड़कर कहा था, लगता है आप हमारी गलतियों को माफ करके हमारे घर नहीं आओगे ?

राकेश  उनके जुड़े हाथों को अपने दोनों हाथो में लेकर उनके मन की सी बात कही, आऊँगा जरूर आऊँगा पहले आप स्वस्थ हो जाओ |

शायद वे आज अपना मन राकेश के सामने खोल देना चाहते थे | आखों में पानी लिए उन्होंने राकेश के साथ अपने रूढ़ व्यवहार के बारे में बताया, लाला जी, इंसान के जीवन की परिस्थितियाँ उसे बहुत कुछ गलत करवाने कि लिए प्रेरित करती हैं | मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ है | मेरी शादी के एकदम बाद मेरे पिता जी का स्वर्गवास हो गया था | अपनी दो बहनों के साथ पूरे परिवार का भार मेरे कन्धों पर आ गया था | मुझे कमाई का कुछ तजुर्बा नहीं था | खर्चा पूरा था इसलिए आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह सेराकेश चिडचिडा होने लगा | हिम्मत तथा मेहनत करके मै किसी तरह घर का खर्चा चलाने में कामयाब हो गया तथा कुछ बचत भी करने लगा | हाथ में पीसे आ जाने के साथ साथ मेरा अहंकार बढता गया | पैसा जो कभी मेरी कमजोरी था अब मेरी ताकत बनता जा रहा था | परन्तु पैसों को इकट्ठा करने की लालसा में मैं अपनी इंसानियत को ही भूल गया | मेरे लिए सब कुछ पैसा होकर रह गया था | मेरे पास पीसे बढ़ते गए और  सम्बन्ध, सहन शीलता तथा सेहत घटती चली गई | जिसका फल मैं आज भोग रहा हूँ |

श्याम लाल जी के कथन से राकेश को एक संत की वाणी स्मरण हो आई | उन्होंने कहा था, निराकार परमेश्वर इस धरा पर सभी प्राणियों के लिए प्रक्रति में सभी वस्तुएँ उपलब्ध कराता है | पशु पक्षी उन्हीं वस्तुओं से संतुष्ट रहते हैं | परन्तु मनुष्य नहीं रह पाता | इसका कारण है भविष्य के लिए संग्रह की चिंता | यही संग्रह की प्रवर्ति दुख का कारण बनती है और जैसे जैसे झोली भरती जाती है मनुष्य ओर प्राप्त करने के चक्कर में अपने तन, मन, रिस्ते नाते की सुध भूलता चला जाता है | और अपने आख़िरी समय में पछताने तथा खाली हाथ जाने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं होता |  

श्याम लाल जी मूक दृष्टि से राकेश की ओर निहार रहे थे | राकेश ने उनका आशय समझ आखों ही आखों में आश्वासन दिया, जरूर आऊँगा |

परन्तु राकेश का उनके घर जाना उस दिन हुआ जब श्याम लाल जी की आत्मा यह संसार छोड़कर परमात्मा में विलीन हो चुकी थी |   

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