Sunday, January 7, 2024

उपन्यास - भगवती (30)

 

शायद भगवान ने चाँदनी की सच्ची लगन से की गई मनोकामना को राकेश के माध्यम से पूर्ण कराने की ठान रखी थी तभी तो पहले उसने राकेश को प्रभावित किया कि भगवती एक होनहार बालिका है | उसने राकेश को उससे दो बार मिलवाया और अब राकेश की पुत्र वधु के रूप में उसे राकेश के ही घर भेज दिया | भगवान को भरोसा था कि जैसे राकेश को उच्च शिक्षा प्राप्त करने का शौक था उसी प्रकार राकेश को अपने परिवार के हर सदस्य को अपने रंग में रंगने की इच्छा थी | इसलिए चाँदनी की खुशी का पारावार न रहा जब अप्रत्याशित एवं आश्चर्य ढंग से उसकी आशाओं के विपरीत उसका धैर्य तथा साहस बढाते हुए कहा, बेटा, मेरी तो हमेशा से दिली इच्छा रही है कि इस घर में सभी उच्च शिक्षा ग्रहण करें |

राकेश के शब्दों ने मानो चाँदनी के कानों एवं दिल में अमृत घोल दिया था | वह भाव विभोर हो उठी और राकेश के चरण छूकर बोली, पापा जी मैं अपने को दुनिया की सबसे भाग्यवान पुत्र वधू समझने लगी हूँ | आपने मेरी  रोम-रोम में बसी मनोभावनाओं को समझ कर मारी उच्च शिक्षा प्राप्त करने की भूख और लगन को पंख लगा दिए हैं |

 

चाँदनी ने पहले स्नातक की फिर उसने अपने मकसद में कामयाब होने के लिए स्नातकोत्तर की डिग्री भी हासिल कर ली | परन्तु वर्त्तमान युग में केवल स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल कर लेने से कोई बात बनती नहीं यही सोच चाँदनी ने बी.एड.की डिग्री प्राप्त करने का मन बना लिया | इस समय चाँदनी के बच्चे छठी और चौथी कक्षा में पढ़ रहे थे | चाँदनी चौतीस बसंत देख चुकी थी | उसका पति प्रभात सरकारी मुलाजिम था | घर में सुविधा का हर सामान मौजूद था | किसी प्रकार की कोई कमी न थी | उसकी गृहस्थी सुचारू रूप से चल रही थी | ऐसे में चाँदनी का बी.एड. करने की बात उसके सगे सम्बन्धियों के गले नहीं उतर रही थी | चाँदनी के पीहर वाले, उसकी नन्द का परिवार, उसकी बहनें तथा उसकी ससुराल के कुछ लोग भी चाँदनी के ऐसे माहौल में beबी.ed.करने को निरर्थक बता रहे थे |

राकेश ने अपने जीवन में पढाई करने को सर्वोपरिय माना है | यही सोचकर कि पढाई करने की लग्न में उम्र आड़े नहीं आती उसने भारतीय वायु सेना में नौकरी करते हुए भी तीस साल की उम्र में जोधपुर यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने में कामयाबी पाई थी | अपने इन्हीं विचारों के कारण सभी की नाराजगी सहन करते हुए, घर का मुखिया होते हुए, राकेश ने चाँदनी को हताश नहीं होने दिया | इसके साथ साथ जब मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी वाली कहावत तो प्रभात की सहमती से चरितार्थ हो ही रही थी | राकेश के सगे सम्बन्धियों ने भी चाँदनी के पढाई के प्रति विरोधाभास छोड़ यह सोचकर किनारा कर लिया कि हाथी के पैर में सब का पैर’ |

चाँदनीने भाग दौड़ कर गुडगांवा में स्थित एक टीचर ट्रेनिंग संस्थान में दाखिला ले लिया | उसे अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी | वह सुबह अँधेरे उठती, बच्चों के स्कूल जाने का इंतजाम करती, अपने पति के आफिस ले जाने के लिए पूरा सामान  जुटाती, अपनी तैयारी करके फ़टाफ़ट बस पकड़ कर सुबह साढ़े आठ बजे अपने कालेज के लिए निकल जाती | शाम को चार बजे थकी हारी घर पहूँचती और घर का चूल्हा चौका संभाल लेती | उसे अपने कालिज का काम निबटाते रात का एक तो बज ही जाता था | इस प्रकार उसे आराम करने के लिए मुश्किल से चार घंटे मिलते थे | चाँदनी की रोजमर्रा की जिंदगी को देखकर राकेश आश्चर्य चकित था कि इतनी व्यस्त रहने के बावजूद उसके माथे पर थकावट की एक शिकन भी नहीं दिखाई देती थी | वह काम करती हुई हमेशा तरोताजा एवम खुश दिखाई देती थी | ऐसा महसूस होता था जैसे शिकायत शब्द उसके शब्द कोस में है ही नहीं | फिर अपने आप से कहकर धैर्य रख लेता कि यही दर्शाती है लक्ष्य प्राप्ति की लगन |  

बच्चे को जब स्कूल में भर्ती कराया जाता है तो उसके माता-पिता या घर का कोई और बड़ा व्यक्ति इस प्रकिर्या को पूरा करता है | परन्तु चाँदनी ने यह सारा जोखिम खुद ही उठाया | उसे ट्रेनिंग करते दो वर्ष बितने जा रहे थे परन्तु घर के किसी भी सदस्य ने यहाँ तक कि उसके पति ने भी, एक बार झूठ को भी झांककर देखने की प्रवाह नहीं की थी कि चाँदनी का पाठ्यक्रम कैसे चल रहा है | चाँदनी पूरी मेहनत, लगन, बिना किसी शिकायत लेने व करने के साथ बिना रुके अपना ध्येय पाने में जुटी थी | कभी कभी चाँदनी के मन में राकेश को कुछ उदासीनता, कुछ कहने की चाहत का आभाष होता था | एक दिन उसने पूछ ही लिया, बेटा आपकी टीचर ट्रेनिंग कब खत्म हो रही है ?

पापा जी अगले महीने |

आपकी फाईनल परीक्षाएं हो गई?

हाँ पापा जी |

परिणाम कब घोषित होंगें ?

अगले महीने की १५ तारीख को |

राकेश को चुप देख चाँदनी ने अपना दिल खोला, पापा जी बी.एड. की डिग्री मिलने वाले दिन हमारे कालेज में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है |

बहुत अच्छी बात है होना भी चाहिए |

उन्होंने निमंत्रण पत्र भी भिजवाया है |

ठीक है प्रभात को जाना चाहिए |

चाँदनी थोड़ा ठिठकते हुए बोली, पापा जी वे तो कह रहे हैं कि उन्हें समय नहीं है |

राकेश ने कुछ जोर देकर कहा, दो साल में क्या तुम्हारे लिए वह एक दिन भी नहीं निकाल सकता |

पापा जी मैंने काफी कहा अब उन पर जोर न देना | कोई बात नहीं |

राकेश महसूस कर रहा था कि चाँदनी का अंतर्मन रो रहा था | शायद वह सोच रही थी कि उसने इतनी मेहनत की और उसकी सफलता पर जलसे में तालियाँ बजाने उसका साहस बढाने वाला उसके अपने परिवार का कोई नहीं होगा | राकेश के सामने से हटते हुए वह अपने पैर ऐसे उठा रही थी जैसे वे बेजान हैं तथा कभी भी उसके बोझ को सहन करने से इनकार कर देंगे | उसकी दशा देखकर राकेश ने अपने दिल पर हाथ रखकर बुदबुदाया राज करेगा खालसा जब बाकी रहे न कोयअर्थात कोई नहीं पहुंचेगा तो मैं हूँ न |

चाँदनी के कालिज में प्रोग्राम शुरू होने वाला था | सभी अथितिगण विराजमान हो चुके थे | उत्तीर्ण विद्यार्थियों के नाम पुकारे जाने लगे | चाँदनी बार बार कालेज के गेट की तरफ अपनी नजर दौड़ा रही थी कि शायद घर का कोई सदस्य उसकी हौसलाफजाई के लिए आए | उसका नाम पुकारा गया | वह थकी हारी सी स्टेज की तरफ बढ़ी | लग रहा था जैसे उसे अपनी डिग्री जिसे उसने इतनी लगन, मेहनत और अपना शुख चैन गवांकर प्राप्त किया था लेने की कोई उत्सुकता नहीं थी | इतने में उसके कानों में एक चिपरिचित आवाज सुनाई दी, बेटा बधाई हो , मैं हूँ न |

इस एक आवाज ने चाँदनी को सारे ब्रह्माण्ड का सुख एवम खुशी एक साथ प्रदान कर दी थी तभी तो वह हर प्रकार से एकदम चेतन हो गई और एक पल में ही स्टेज पर चढ गई | आज एक साथ दोनों चाँदनी एवम उसके ससुर की आखों में खुशी के आंसू छलछला आए थे | 

इस प्रकार ईशवर के आशीर्वाद, अपने ससुर की जीवनी से प्रेरणा पाकर और उनके तथा अपने पति के सहयोग से चाँदनी अपनी ललक, भूख, लक्ष्य और मन की मुराद को पाने में कामयाब हो गई | आज एम..-बी.एड. करने के बाद उसे मन की मुराद मिल गई है और टीचर जीकहलाने का सौभाग्य प्राप्त हो गया है |

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