Monday, January 15, 2024

उपन्यास - भगवती (32)

 

वर्तमान युग में संयुक्त परिवार में अक्सर देखा गया है कि छोटी बहू के आते ही घर में तनाव का वातावरण बन जाता है | कारण होता है देवरानी-जेठानी का आपसी विवाद तथा मधुर सम्बन्ध न बन पाना | जेठानी देवरानियों के आपसी विवाद के कई छोटे छोटे कारण ही होते हैं | पंजाबी में कहावत है, लस्सी और लड़ाई को अपने मन मुताबिक़ चाहे जितना बढ़ा लो |जैसे पानी और तेल का मिलना बहुत मुश्किल है उसी प्रकार देवरानी और जिठानी का एक ही छत के नीचे घी शक्कर की तरह घुलना ना-मुमकिन होता है |

राकेश ने गाँव के घुटन वाले माहौल से निकल कर गुडगांवा के खुले वातावरण में दो मंजिला मकान बनवाया था | राकेश का विचार था कि उसके दो लड़के हैं, अगर उनमें संयुक्त परिवार न निभ सका तो दोनों ऊपर नीचे रह लेंगे | पंकज की शादी के बाद एक दिन चाँदनी ने बड़े ही साफ़ एवम विवेकशील शब्दों में राकेश को जो कहा उसे सुनकर राकेश का पारिवारिक मोह एकदम धराशाही हो गया | उसने राकेश के सामने वर्त्तमान युग में खुशी से जीवन जीने का मूल मन्त्र बयान कर दिया |उसने कहा, पापा जी, देवरानी जब परिवार में आती है तो उसका पारिवारिक, शैशिक स्तर और जीवन जीने का तौर तरीका घर के सदस्यों से भिन्न होता है | वह चाहती है कि घर में उसकी भी कुछ अहमियत हो | हमेशा जिठानी के विचारों से  घर न चले | यदि जिठानी की कुछ गुणों के कारण तारीफ़ होती है तो उसके भी अन्य गुणों का गुणगान किया जाए | यही खींचातानी तनाव पैदा करने लगती है और घर में कलह का कारण बन जाती है | फिर एक दूसरे को नीचा दिखाने का सिलसिला शुरू हो जाता है | अंतत: परिवार बिखर जाता है |

चाँदनी थोड़ी देर  के लिए रूकी | उसने राकेश के चेहरे की भाव भंगिमाओं को पढ़ा, राकेश को मन्त्र मुग्ध पाकर आगे बढ़ी, पापा जी मैं घर की बड़ी बहू हूँ | मैं कितनी भी सहनशीलता और जिम्मेदारियां निभाऊं परन्तु देवरानी की किसी एक गल्ती पर उसे टोका टाकी पसंद नहीं आएगी और उसका रवैया प्रतिस्पर्धात्मक हो जाएगा | इस प्रतिस्पर्धा में मेरी कही अच्छी बातें या अच्छा व्यवहार भी ईर्षावश देवरानी को आडम्बर या षड्यंत्र का हिस्सा नजर आएगा | अत: मेरा तथा उनका (प्रभात ) विचार है कि अगर हमारी देवरानी गुडगांवा रहती है तो हम आपके पूर्वजों के स्थल पर ही रहना पसंद करेंगे | आगे आप जैसा विचार बनाएँ मुझे मंजूर है |

चाँदनी ने वर्त्तमान युग की जीवन शैली की हकीकत बयान कर दी थी परन्तु मेरी दिली इच्छा थी कि मेरा पूरा परिवार साथ रहे | इस बारे में अपनी पत्नी से सलाह मशवरा करने के बाद हम इस निषकर्ष पर पहुंचे कि प्रभात की नौकरी, बच्चों की पढाई तथा और काम काज के चलते प्रभात अपने परिवार के साथ नारायणा ही रहे तो उसके लिए हितकर रहेगा |

चाँदनी की देवरानी अपने सास ससुर के साथ रहने लगी | इसका मतलब यह नहीं की सास ससुर गुडगांवा के ही होकर रह गए थे | वे महीने में दस बारह दिन अपनी मर्जी के मुताबिक़ चाँदनी के पास भी रह लेते थे | उन पर किसी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं थी कि उन्हें कहाँ रहना है | थोड़े दिन तो वातावरण बहुत ही सौहार्द पूर्ण रहा इसके बाद देवरानी, अनीता  ने अपनी सास के साथ वैसा ही सलूक करना शुरू कर दिया जैसा चाँदनी ने अपनी देवरानी से अलग रहने के अपने निर्णय में दर्शाया था |

सास बहू के बढ़ते आपसी मन मुटाव के कई कारण सामने आए | जिनमें पीहर से मौसी, माँ तथा दादी का अनीता की शादी शुदा जिंदगी में बहुत दखलंदाजी करना, अनीता के पति, पंकज को नकारा समझकर अनीता को सर्वोपरिय मानना, अनीता को गुडगांवा वाले मकान की मालकिन समझना, अनीता के अलावा परिवार के सभी सदस्यों को फालतू समझना  इत्यादि | जब राकेश ने अनीता के पीहर वालों के ऐसी सोच रखने का कारण ढूढना चाहा तो उनकी कई आश्चर्य जनक बातों का पता चला |

उनका इलाका इस बात के लिए प्रसिद्द था कि उन्होंने अपने रिश्तेदारों को रिस्ता बनने के बाद कभी कोई अहमियत नहीं दी | रिस्तेदार तो दूर की बात है उन्होंने अपने दामाद को भी अपने अंगूठे के नीचे रखा | जिस घर में भी उनकी लड़की गई उस घर में कलह का वाश हो गया | जो लड़की उनके घर गई वह कभी चैन से न रह सकी | उन्होंने अपनी गल्ती होते हुए भी कभी नहीं स्वीकारा बल्कि पूरा कुनबा इकट्ठा होकर अपने रिश्तेदार को ही दोषी ठहराने की कोशिश की और वे इस बात में सफल भी रहते थे क्योंकि हुजूम के सामने दो चार कोई मायने नहीं रखते |

राकेश के साथ भी अनीता  तथा उसके पीहर वालो ने वही हथकंडे अपनाने की कोशिश की परन्तु उन्हें यह पता नहीं था कि अबकी बार उनका सामना एक फ़ौजी से हो रहा था जो बीस पच्चीस तो क्या सामने पूरी फ़ौज देखकर भी नहीं घबराता | उनका मुकाबला डटकर करता है | जब वे इकट्ठा होकर आए और राकेश भी पूरी तैयारी के साथ पाया तो अनीता  तथा उसके हिमायतियों के होश ठिकाने आ गए | अब उन्होंने हेकड़ी न दिखाकर शालीनता से बातचीत करके ही समस्या, जो थी ही नहीं, का हल ढूँढना उचित समझा |

इस सारे प्रकरण में पंकज की स्थिति भी संदिग्ध रही थी इसलिए उसकी बहन ने उसे संज्ञान देते हुए कहा, देख भाई, अनीता  और माँ के बीच तालमेल बैठाना तेरा काम है | क्योंकि अनीता  माँ के रुझान को अभी नहीं समझती | तू समझता है इसलिए तूझे ही प्रयत्न करना पड़ेगा | यह बात ध्यान से सुन कि तू और तेरी बहू इस उम्र के अनुभवी लोगों को बेकार की चीज बिल्कुल मत समझना और न ही इनके स्वाभिमान को कम आंकना | याद रखना उम्र बढ़ने के साथ साथ स्वाभिमान की भावना भी तीव्रतर होती जाती है | अधिकतर बच्चे बुढापे में अपने माँ बाप की तरफ तवज्जो नहीं देते तही कारण है कि माता पिता बच्चों से कटकर रह जाते हैं | अरे जिसे तुम दोंनो उनकी टोकाटाकी कहते हो वह तो उनका अधिकार है | अगर आने वाले समय में तुमने मेरे इस व्याखान को अमल में ले लिया तो देखना तुम्हारे सामने ही इस पृथ्वी पर स्वर्ग उतर आएगा |

सेर को सवा सेर टकरा चुका था | सभी को, जिनको सबक मिलना चाहिए था मिल चुका था | इसलिए सभी के जीवन में खुशहाली का संचार प्रारम्भ हो गया था |   

 

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