Friday, January 19, 2024

उपन्यास - भगवती (33)

 

प्रभात में एक बनिए के गुण पूरी तरह विद्यमान थे | उसके साथ साथ वह एक सरकारी मुलाजिम की निति में भी परिपक्व था | वह जानता था कि आफिसर के अगाडी तथा घोड़े के पिछाड़ी कभी नहीं चलना चाहिए | दो नावों में पैर रखकर दोनों को अच्छी तरह खेने में भी वह माहिर था |

वर्तमान युग में दलित वर्गों के लोगों की तरह लड़कियों तथा औरतों को भी बहुत सुविधा प्रदान की गई हैं | वे उच्च शिक्षा प्राप्त करके हर महकमें में उन्नति कर रही हैं | प्रभात के आफिस में भी कई औरतें काम करती हैं | उसकी शाखा की प्रबंधक भी एक औरत ही है |

प्रभात अपनी नौकरी के साथ साथ एक जनरल स्टोर की दुकान भी सम्भालता है | उसने अपने आफिस में दिखा रखा है कि वह गुडगांवा में रहता है जबकि वास्तव में वह देहली में ही रहता है | प्रबंधक की नज़रों में दूर से आने के कारण उसे आफिस में देरी से आने तथा जल्दी जाने की छूट मिल जाती है | इस समय का सदुपयोग वह अपने स्टोर के लिए सामान खरीदने में इस्तेमाल कर लेता है | परन्तु जैसे ताली एक हाथ से नहीं बजती उसी प्रकार प्रभात को अपनी छूट के एवज में अपने सीनियर के कुछ काम, जो गुडगावां के होते थे जैसे टेलीफोन बिल, बिजली के बिल इत्यादि निपटाने पड़ते थे | एक बार प्रबंधिका ने अपनी रिटायरमैंट के पहले प्रभात को अपने गुडगावां वाले मकान को दुरूस्त कराने का काम सौंप दिया | प्रभात ने यह काम बखूबी निभाया था |

आफिस में ही नहीं बल्कि अपने मौहल्ले में भीं जहां उसका घर था, राकेश की तरह, प्रभात ही ऐसा लड़का था जो किसी भी तरह के फ़ार्म मसलन कहीं भर्ती होने के फ़ार्म, राशन कार्ड का फ़ार्म, नौकरी का फ़ार्म इत्यादि बखूबी भर सकता था | इस कारण उसके पास और लोगों की तरह कुछ जवान लड़कियां भी फ़ार्म भरवाने या कुछ और सूचना लेने आ जाती थी |     

बीच बीच में दुकान के काम से फुर्सत पाकर प्रभात उनका काम कर देता था | इस लिए उन्हें वहाँ खड़े हुए थोड़ा वक्त लग जाता था | प्रभात उन लड़कियों से बहुत धीरे एवम प्यार से बातें करता था | घर से दुकान में देखने ओर जाने के लिय एक खिड़की थी | चाँदनी अपने घर का काम करते हुए कभी-कभी दूर से अपनी निगाह दुकान में हो रहे कामकाज पर भी डाल लेती थी | कुछ समय से वह किसी जवान लड़की को दुकान पर ज्यादा देर खड़ा पाकर असहज सी महसूस करने लग गई थी | एक दो बार उसने चुपके से खिड़की के पास जाकर यह जानने की कोशिश की कि आखिर जवान लडकियां वहाँ इतनी देर खड़ी होकर करती क्या हैं | चाँदनी को उन लड़कियों से तो कुछ शिकायत नहीं मिली अलबत्ता एक नई कहानी ने जन्म ले लिया |

खिड़की के पास चुपके से जायजा लेने जाती चाँदनीको कई बार किसी से उसके फोन पर बहुत धीरे धीरे एवम चोर दृष्टि से चारों और देखकर बातें करने के अंदाज ने प्रभात की गृहस्थी में कलह पैदा कर दी | उसके इस व्यवहार ने चाँदनी के मन में शक का बीज बो दिया | यह बात संतोष के माध्यम से राकेश तक आई | फिर एक दो बार राकेश ने भी उसकी इस हरकत को देखा | राकेश ने अपने लड़के से जब इस बारे में उससे बात की तो वह अपनी सफाई देने लगा, पापा जी, ऐसा कुछ नहीं है |

परन्तु मैंने भी तुम्हें संदिग्ध हालत में किसी से फोन पर बात करते हुए सुना है

राकेश की बात सुनकर उसके चेहरे की हवाईयां उड़ने लगी परन्तु वह शातिर खिलाड़ी की तरह संभल कर बोला, पापा जी मेरे चालचलन पर विश्वास करो मै किसी भी गलत काम में लिप्त नहीं हूँ |

राकेश ने ताकीद दी, अच्छा आईन्दा से तुम फोन पर धीरे-धीरे छुपकर बात नहीं करोगे बल्कि सबके सामने ढंग से बात करोगे |

ठीक है पापा जी ऐसा ही होगा |औरराकेश आश्वस्त हो गया |

परन्तु राकेश के मन के किसी कौने में प्रभात के प्रति ऐसी भावना ने भी जगह बना ली थी कि वह जरूर किसी न किसी अपवाद का शिकार होकर रहेगा | उसका आफिस में औरतों के साथ काम करना, निर्मलता से बातें करना, यदाकदा सहायता करके उनकी जरूरतों को पूरा करके उनकी सहानुभूति बटोरना, उनके घर से बाहर के काम निपटाना इत्यादि को देखकर मन में शंका होती थी कि कहीं उसके कदम बहक न जाएँ | राकेश का इस शंका का विषेश कारण यह था कि चाँदनी की बीमारी के ठीक होने पर हॉस्पिटल से छुट्टी देते समय डाक्टरों ने ताकीद कर दी थी कि अब चाँदनी अपने पति के साथ शारीरिक सम्बन्ध न बनाए अन्यथा वह इस बीमारी का शिकार फिर से हो सकती है तथा अबकी बार वह लाईलाज बीमारी बनने का अंदेशा हो सकती है | प्रभात अभी जवान था तथा उसके पहले रवैये से लगता था कि वह आगे ब्रम्हचर्य बन कर जीवन निर्वाह नहीं कर सकता |

अचानक एक दिन राकेश के पास उसके एक पडौसी ने फोन पर बताया कि नारायणा में एक साजिस जन्म ले रही है उसके तहत आज रात को आपके लड़के की पिटाई करने का इरादा है | और फोन कट गया | राकेश सकते में  आ गया | कई सवाल मन में उठने लगे | उसकी हाल ही के व्यवहार के चलते यह शंका सबसे महत्त्व वाली थी कि कहीं प्रभात ने किसी मौहल्ले की लड़की के साथ गलत व्यवहार तो नहीं कर दिया |

मन में अनेकों शंकाएं लिए राकेश अपने घर पहुंचा तो यह जानकर शांति मिली की राकेश के लड़के के खिलाफ किसी को कोई सिकायत नहीं थी इसके विपरीत राकेश के कारनामें के कारण उसको बली का बकरा बनाने का ध्येय था | उससे पता चला कि राकेश की एक किताब मन की उड़ानछपी थी | उसमें कहानी के पात्रों के नाम आजकल के प्रचलित नाम थे | हमारे मौहल्ले में भी कोई न कोई उस नाम का था | राकेश के भतीजे ने, जो मुझ से ईर्षा रखता था, इस किताब के मजबून से यह माहौल बना दिया कि राकेश ने उन सभी की खिल्ली उडाई है | उन्होंने कहानियों का मजबून जाने बिना केवल अपना नाम पढकर एकजुट होकर राकेश खिलाफ मोर्चा खोल लिया था | हालात यहाँ तक बिगड गए थे कि पूरे मौहल्ले की औरतों ने राकेश के लड़के की दुकान का बहिष्कार कर दिया था | राकेश ने वहाँ का जायजा लिया तो पाया कि भोले भाले गाँव वालों के साथ अन्धों में काना राजा की कहावत चरितार्थ हो रही थी | उनसे बात करने पर उनकी समझ में आया, उन्होंने अपनी गल्ती मानी और सब कुछ पहले की तरह माहौल हो गया | 

एक शारीरिक बल होता है एक मानसिक बल होता है | शारीरिक बल की सीमा होती है परन्तु मानसिक बल की कोई सीमा नहीं होती | यह चंद मिनटों में ही पृथ्वी, आकाश ओर पाताल का भ्रमण कर लेता है | विचार और मन एक साथ मनुष्य की कार्यशैली एवम उसकी दिनचर्या निर्धारित करते हैं | रिस्ते जोड़ने का काम भी मनुष्य का मन करता है | रिस्ते जोड़ना उतना ही आसान है जैसे मिट्टी पर मिट्टी से मिट्टी लिखना परन्तु रिस्ते दिल को निभाने पड़ते हैं और दिल से रिस्ते निभाना उतना ही कठिन होता है जितना पानी पर पानी से पानी लिखना | हमारे संतों ने भी कहा है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ | अर्थात जिन लोगों का मनोबल बुलंद रहता है वे निश्चित रूप से सफलता प्राप्त करते हैं |

एक लड़की शादी के बाद जब अपनी ससुराल आती है तो मन में बहुत से अरमान लेकर आती है | विवाह के बंधन में बंधने के बाद वह अपने पति से ही सारी अपेक्षाएं करती है | किन्तु जब उसका पति ही उससे विश्वासघात करने लगे तो आपसी बंधन टूटने लगते हैं और छाने लगता है असाध्य मौन | ऐसे में नई नवेली दुल्हन के अरमान धरे के धरे रह जाते हैं और घर में कलह, अविश्वास बसेरा कर लेती है तथा ऐसे में दिल में कुछ कर गुजरने की तमन्ना जन्म ले लेती है | फिर अबला कही जाने वाली नारी, झांसी की रानी की तरह वीरांगना बन कर अपने सम्मान को बचाने के लिए, एक भगवती का रूप धारण करके मैदान में डंट जाती है |

No comments:

Post a Comment