Tuesday, January 9, 2024

उपन्यास - भगवती (31)

 

समय बीतते देर नहीं लगती | राकेश का छोटा लड़का पंकज भी जवान हो गया था उसका रिश्ता भी पक्का हो गया | एक बार फिर से मुकेश जी ने काम की बागडोर संभाल ली और एक एक करके पूरे करने लगे | सभी काम पहले की तरह थे परन्तु इस बार सभी काम करने वाली एजेन्सीयां बदली गई थी | जैसे साडियों की दुकान, गहने वाला, बाजे वाला, शहनाई वाला, शादी के कार्ड वाला तथा कार्ड का डिजाइन, हलवाई इत्यादि | बदला नहीं था तो केवल मुकेश जी का रात देर तक काम करने का तरीका तथा होने वाला वार्तालाप |

पिता जी इस बार कार्ड कैसे छपवाओगे ?

शादी के कार्ड तो पहले जैसे ही छपवा लेंगे |

पिता जी, प्रभात की शादी में हमने लम्बे कार्ड छपवाए थे परन्तु अब तो चौड़े कार्डों का ज़माना है |

क्या फर्क पड़ता है चौड़े ही छपवा लेना परन्तु मजबून वही प्रभात की शादी वाला रखना |

हाँ ठीक है, पिता जी, उसमें नाम तथा तारीख बदल देंगे |

वह तो करना ही पडेगा |”, कहकर राकेश ने अपने बेटे प्रभात  से उसकी शादी का एक कार्ड लाने को कहा | और जब प्रभात निमंत्रण कार्ड ले आया तो उसे मुकेश जी को देकर कहा, लो मुकेश जी इसमें नाम और तिथि वगैरह बदल दो |    

कार्ड हाथ में लेकर मुकेश जी ने एक अजीब ही प्रश्न किया, पिता जी क्या बाबा जीका नाम भी आना चाहिए ?

राकेश ने मुकेश जी की तरफ ऐसे देखा जैसे कह रहे हो कि यह कैसा बेहूदा सवाल है | यह भी कोई पूछने की बात है | फिर अपने को संयम में रखते हुए केवल इतना ही कहा, बिलकुल उनका नाम तो आना चाहिए और जरूर  आएगा |

मुकेश जी कुछ सकुचाकर धीरे से बोले, परन्तु...? और उनकी जबान अटक गई |

राकेश उनके परन्तु के कारण से अनभिज्ञ, परन्तु क्या, मुकेश जी ?

प्रभात की शादी के कार्ड में तो उनका नाम ही नहीं था |, मुकेश ने फ़टाफ़ट ऐसे कहा जैसे धीरे धीरे कहने से उनसे पूरा वाक्य कहा नहीं जाएगा और राकेश सुन नहीं पाएगा |

राकेश को मुकेश की इस बात पर विश्वास न होना लाजमी था | अत: कहा, आप क्या बात करते हो मुकेश जी | राकेश के लड़के की शादी के कार्ड में राकेश के पिता जी का नाम न हो यह हो ही नहीं सकता |

आपको पक्का विशवास है कि कार्ड में बाबा जी का नाम है ?

विशवास हो भी क्यों न | देखो न इस डायरी में उस कार्ड का मजबून लिखा है जो हमने छपवाए थे |

पिता जी इसमें तो बाबा जी का नाम लिखा है परन्तु छपे हुए कार्डों में नहीं था |

राकेश को मुकेश जी की बात पर अभी भी विशवास नहीं हुआ, क्यों मजाक करते हो ?

मुकेश इस बार थोड़ा सीरियस होकर, पिता जी यह मजाक नहीं हकीकत है कि प्रभात की शादी के निमंत्रण कार्ड में आपके पिताकी का नाम नहीं था |

इस बार मुकेश जी की बातों का असर राकेश के चेहरे पर साफ़ दिखाई दिया | उसने जल्दी से अपने लड़के प्रभात को कहा, प्रभात लाना तो अपनी शादी का कार्ड |

प्रभात अपनी शादी का एक कार्ड लाकर राकेश को पकड़ा देता है | वह जल्दी से उसे खोलने की चेष्टा करता है | उसे अपने शरीर में कुछ अजीब सी कम्पन्न महसूस हो रही थी | कार्ड को खोलते हुए उसके हाथ भी काँप रहे थे | हालाँकि उसे पक्का विश्वास था कि प्रभात की शादी के कार्ड में उसके पिता जी का नाम अवश्य होगा परन्तु मुकेश जी के कहने ने उसके मन में आशंका ने घर कर लिया था | राकेश ने कार्ड खोलकर ऊपर से नीचे तथा फिर नीचे से ऊपर पूरा देखा परन्तु उसे वह नाम कहीं लिखा हुआ नहीं दिखाई दिया जो उसकी नजरें खोज रहीं थी | राकेश का शरीर सुन्न सा हो गया | वह मूक नज़रों से मुकेश जी की तरफ एकटक देखने लगा |मुकेश जी के चेहरे पर धीमी मुस्कान जो कभी राकेश के ह्रदय को मन्त्र मुग्ध करके खुशियों से भर देती थी आज बहुत कटु प्रतीत हो रही थी | उसे ऐसा लग रहा था कि उसके ऊपर व्रजपात किया जा रहा है | उसके मुहं से केवल इतना निकला कि यह कैसे हो गया और अपना माथा पकड़ कर बैठ गया |

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद मुकेश ने कहा, देख लिया | कार्ड में आपके पिता जी का नाम नहीं है |

परन्तु कार्ड का जो मजबून हमने बनाया था उसमें तो राकेश पिता जी का नाम था फिर उनका नाम क्योंकर छपाई में नहीं आया ?

पहली बार जब राकेश  देखा था तोराकेश हैरत में आ गया था परन्तु तब तक ठीक कराने के लिए देरी हो चुकी थी |

आपको यह कब पता चल गया था |

पिता जी अब छोड़ो इन बातों की चिंता और लग जाओ नए विवाह की तैयारियों में |

राकेश को मुकेश जी का ऐसा कहना कुछ अटपटा सा लगा | वे तो ऐसे कह गए जैसे नाम से कुछ नहीं होता | परन्तु राकेश का दिल रो रहा था | लाला राम नारायण का नाम नजफगढ में बड़े से बड़े आढती से लेकर छोटे से छोटा मजदूर भी जानता था |और आज जब उनके पोते की शादी नजफगढ में हो रही है तो कोई नहीं जानता कि दुल्हे से लाला राम नारायण का कोई रिश्ता है |

आज छ: वर्ष बाद हालाँकि यह अब पछताय क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेतकी कहावत को चरितार्थ करने वाली बात थी फिर भी राकेश के मन में कई प्रश्न घुमने लगे कि आखिर यह हुआ कैसे |

यहाँ तक कि राकेश को इस त्रुटि के बारे में न तो उसके किसी भाई ने टोका और न ही उसके किसी रिश्तेदार ने | राकेश जितना सोच रहा था उतना ही उलझ रहा था | वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाया कि किसी का क्या मकसद हो सकता था तथा यह त्रुटि कैसे हो गई |

इस त्रुटि को राकेश अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल मानता है जो त्रुटि उसे छ: वर्ष बाद पता चली | उसने प्रभात  की शादी के समय हुई इस भूल को अपने छोटे बेटे पंकज की शादी के कार्ड में ठीक करके अपने स्वर्गीय पिता जी से माफी मांगकर प्रायश्चित पूरा कर लिया | 

 

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