Thursday, January 4, 2024

उपन्यास - भगवती (29)

 

अचानक राकेश को ख्याल आया कि चाँदनी के दुल्हन बनकर खुशियों के शोर शराबे के बीच हमारे घर में प्रवेश करने के साथ एक और वस्तु ने चुपके से हमारे घर में प्रवेश करना शुरू कर दिया था | वह किसी के लिए कोई महत्त्व नहीं रखती थी क्योंकि वह बेजान वस्तु आती और कमरे के एक कोने में पड़कर सो जाती थी | राकेश तथा चाँदनी के अलावा शायद ही किसी ने कभी उसकी सुध ली हो | यह एक पत्रिका थी | अपनी पढने की रूची के कारण राकेश कभी कभी उसके पन्ने पलट कर देख लिया करता था | यह पत्रिका युवा साधना केन्द्रनजफगढ से प्रकाशित होती थी | इसका संचालन सत्य देव शास्त्रीकर रहे थे जिन्होंने निशुल्क विद्या दान का संकल्प लिया हुआ था | शास्त्री जी हमारे राष्ट्र पिता महात्मा गांधी जी के पक्के अनुयायी थे | इसलिए इस पत्रिका के लेखों में बताया जाता है कि आज का युवा अहिंसा, सत्य और अनुशासन का मार्ग अपनाकर किस प्रकार देश के उत्थान में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान कर सकता है |  

राकेश ने चाँदनी से जानना चाहा, युवा साधना केन्द्र का उद्देश्य क्या है ?

युवाओं में सत्य, अहिंसा, देश भक्ति और अनुशासन की भावना पैदा करना |

परन्तु निशुल्क विद्या दान किस प्रकार संभव है ?

पापा जी, शास्त्री जी के पास एक जमीन का टुकड़ा है | उसमें उन्होंने बच्चो के बैठने का प्रबंध किया हुआ है |?

खाली बैठने के प्रबंध से तो विद्या नहीं दी जा सकती ?

पापा जी, वे ब                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      च्चों को खुद पढ़ाते हैं |

अकेले ?

उनका साथ देने के लिए हमारे जैसे बड़े बच्चे हैं जो छोटी कक्षा के बच्चों को पढ़ा देते हैं |

और भी तो खर्चे होते होंगे |

पापा जी वे सब खुद ही सहन करते हैं | अगर कोई अनुदान देना चाहे तो भी नहीं लेते | हाँ अगर आप निशुल्क कुछ शारीरिक सहायता करना चाहते हैं तो आपका स्वागत है |

शास्त्री जी में समर्पण की पक्की भावना है ?

हाँ पापा जी, इतना ही नहीं वे समय समय पर भाषण, लेख, कविता इत्यादि प्रतियोगिताओं का भी आयोजन कराते रहते हैं |

क्या तुम्हारे घर वालों ने भी इस संस्था को कोई योगदान दिया है ?

इस बार चाँदनी का मुख मंडल कुछ जीत हासिल करने जैसा मुस्कराता महसूस हुआ | उसने धीरे से कहा, हाँ पापा जी मैं स्कूल से आने के बाद रोज शाम को वहाँ जाकर छोटी कक्षा के बच्चों को पढाती थी |

तुम्हें पढ़ाना अच्छा लगता है ,मैंने अचानक प्रशन करके चाँदनी के चेहरे को निहारा | उस पर ऐसी चमक और ताजगी आ गई थी जैसे सुबह के सूरज की किरणे पड़ते ही फूलों  पर पड़ी ओस की बूंदे मोतियों की तरह चमकने लगती हैं |  

 

राकेश को ख्याल आया कि पत्रिका के एक प्रष्ट पर एक भावभीनी विदाई का लेख छपा था | लिखा था, गृहस्थ जीवन एक सुखमय अहसास होता है | जिसका सुख संसार का हर प्राणी भोगना चाहता है | हमारी संस्था की, चाँदनी जो देवी भगवती की तरह  निडर, साहसी और कर्मठ सदस्या है का पाणिग्रहण संस्कार होने जा रहा है | इस संस्था का हर सदस्य भगवान से प्रार्थना करता है कि उनका गृहस्थ जीवन सुखमय रहे तथा उनसे अनुरोध करता है कि संस्था से दूर रहकर भी पत्रिका के लिए अपने मूल्यवान लेखों को भेज कर इससे जुड़ी रहें |    

राकेश अपने विचारों में खोया था उसने अभी तक चाँदनी के प्रशन “मैं आगे पढ़ना चाहती हूँ” का उत्तर नहीं दिया था कि राकेश के कानों में आवाज पड़ी, पापाजी, कोई बात नहीं अगर कोई दुविधा है तो मेरा इस उम्र में आगे पढ़ना इतना जरूरी भी नहीं है | शायद चाँदनी ने राकेश को विचारों में खोया व चुप देख यह भ्रम पाल  लिया था कि राकेश उसके फैसले से खुश नहीं था | 

हो न हो राकेश ने अंदाजा लगा लिया था कि यह वही लड़की है जिसको उसने आज से लगभग १५ वर्ष पहले देखा था तथा बड़ी तत्परता तथा आतुरता से अपनी टीचर जी के आने की प्रतीक्षा करते देख राकेश को आभाष हो गया था कि वास्तव में ही उसकी वाणी जहां चाह वहाँ राहएक दिन रंग लाएगी और उसके टीचर बनने के सपने को साकार अवश्य करेगी | अत: अपना संशय दूर करने के लिए चेहरे पर एक द्रद्द विश्वास लिए उसकी तरफ उंगली का इशारा करते हुए पुकारा, भगवती |

चाँदनी आश्चर्य चकित राकेश की और निहारती रह गई | किंकर्तव्यमूढ़ वह असमंजस में थी कि उसके ससुर उसका बचपन का नाम कैसे जानते थे |    

उसे चुप एवम सकते में देख राकेश ने फिर पूछा, क्यों मैं सही हूँ न ?

चाँदनी के चेहरे पर मंद मुस्कान उभरी और उसने हाँ में अपनी गर्दन हिला दी |

अपना संशय दूर करने के बाद राकेश  ने चाँदनी से पूछा क्या तुम्हें कुछ याद आया कि हम पहले कहाँ मिले थे ?

शायद चाँदनी को कुछ याद नहीं था तभी तो वह मूक द्रष्टि से राकेश को देखती रह गई थी | खैर कोई बात नहीं कहकर राकेश ने उससे जानना चाहा कि वह भगवती से चाँदनी कैसे बन गई |

चाँदनी ने बताया कि जब वह ढांसा छोडकर नजफगढ आई तो यहाँ के लोगों के रहन-सहन, बोल-चाल, खाना-पीना, व्यवहार कुशलता, पढाई-लिखाई, पहनावा, दिनचर्या यहाँ तक की नामों में भी सब कुछ बदला बदला सा नजर आया | ढांसा में लड़कियों के नाम अधिकतर फलों या देवियों के नाम पर थे जैसे पिस्ता देवी, अंगूरी, अनारा, राबड़ी, जलेबी, भगवती, दुर्गा, या सरस्वती इत्यादि | वहाँ पाँचवी पास से आगे कोई बिरली ही हो परन्तु यहाँ बारहवीं पास बहुत मिल जाती थी | ढांसा में गरारा-जम्फर चलता था तो यहाँ सलवार और कहीं कहीं  जींस पहने हुए लडकियां दिखाई दे जाती थी | घूँघट की प्रथा तो जैसे नदारद हो चुकी थी | बोलचाल में ठेठ एवम अक्खड बोली का स्थान कोमलता एवम रस भरे उच्चारण ने ले लिया था | सिर पर पानी से भरे मटकों या टोकनियों को ढोकर ले जाती औरतो की कतार कहीं दिखाई नहीं देती थी | कपड़े धोने के लिए कोई कुआं या तालाब मौजूद नहीं था | घर में पानी नलों द्वारा पहुँच जाता था | सभी मकान पक्के थे | गलियों में नालियां होने की वजह से कहीं गन्दगी नहीं थी | आने जाने के लिए रिक्सा, साईकिल, टांगा, बस, स्कूटर तथा कार इत्यादि उपलब्ध थी | घरों को रोशन करने के लिए बिजली थी | संसार के किसी भी हिस्से की खबर पल भर में मिलनी शुरू हो गई थी क्योंकि टेलीवीजन का प्रचलन प्रारम्भ हो गया था | उस समय चहूँ और प्रगती का दौर था | जब मैनें नजफगढ के स्कूल में दाखिला लिया तो मेरे नाम की अखबारों में चर्चा होने की वजह से बुद्धिजीवों ने गाँव और शहर के जीवन के अंतर को देखते हुए विचार बनाया कि जैसे गाँव और शहर के जीवन में बहुत अंतर है उसी प्रकार यहाँ के नाम उच्चारण में भी  अंतर होना चाहिए | भगवती नाम यहाँ गवाँरु लगा इसलिये स्कूल में बदल कर वर्तमान समय के अनुसार चाँदनी रख दिया गया |

 

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