Wednesday, February 7, 2024

उपन्यास - भगवती (37)

 

इन देवियों के अलावा बहुत सी ऋषि पत्नियों ने भी अपनी पवित्रता को बचाए रखने के लिए अपनी आत्मिक शक्ति का प्रयोग करके बहुत सराहनीय कार्य किए हैं | इनमें अहिल्या, अनुसुईया और ब्राह्मिन कौशिक की पत्नी का नाम उल्लेखनीय है | गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या को एक बार इन्द्र देवता ने छल से अपने सानिध्य में लेने की कोशिश की थी | इसी आरोप के कारण उसके पति ने अहिल्या का त्याग करते हुए उसे पत्थर बन जाने का शाप दे दिया था | त्रेता युग में भगवान श्री राम चन्द्र जी के कर कमलों से छू जाने पर अहिल्या का उद्धार हुआ और उन्होंने वापिस नारी देह पाई थी |

अनुसुईया ऋषि अत्री की पत्नी थी | एक बार नारद जी ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश जी की पत्नियों के सामने अनुसुईया की बहुत प्रशंसा कर दी | इस पर तीनों देवियों को अनुसुईया से ईर्षा हो गई | अनुसुईया को नीचा दिखाने के लिए उन्होंने अपने पतियों का सहारा लिया तथा कहा कि वे कैसे भी एक जुट होकर अनुसुईया की शाख एवम पवित्रता को भंग कर दें | इसके तहत तीनों ने साधूओं का भेष बनाकर अनुसुईया के दरवाजे पर अलख जगाते हुए निर्वस्त्र होकर खाना परोसने का आग्रह किया | अनुसुईया ने उनकी इच्छापूर्ति के लिए अपनी शक्ति से पहले सभी को बच्चा बना दिया और निर्वस्त्र होकर खाना परोस दिया | अंत में अपने पतियों को वापिस पुरानी अवस्था में पाने के लिए तीनों को अनुसुईया से माफी मांगनी पड़ी थी |

इसी तरह ब्राह्मण कौशिक की पत्नी सर्वगुण सम्पन्न एक पतिव्रता नारी थी परन्तु उसके पति को एक पतिता से प्रेम हो गया | उसके संपर्क में आने से वे एक लाईलाज बिमारी से ग्रस्त हो गए परन्तु फिर भी उनका उस औरत के प्रति मोह भंग न हुआ और अपनी पत्नी से उससे मिलवाने का आग्रह किया | पत्नी ने अपने पति की आख़िरी इच्छा की पूर्ति करने हेतू उसकी बात सहस स्वीकार कर ली | जब वे एक जंगल से गुजर रहे थे तो कौशिक एक घायल मुनि से टकरा गया | गुस्से वश मुनि ने श्राप दे दिया कि कौशिक अगली सुबह का सूरज देखते ही मर जाए | जब  कौशिक की पतिव्रता स्त्री ने अपनी शक्ति से अगली सुबह का सूरज उगने ही नहीं दिया तो चारों ओर हा-हा कार मच गया | इस पर अनुसुईया ने उसे समझाया तथा अपनी शक्ति से उसके पति कौशिक की जान भी बचाई | अनुसुईया की दिलेरी से खुश होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने उसके गर्भ से पैदा होने का वचन दिया और चन्द्र रात्री, दुर्वासा तथा दतात्रेय के रूप में अवतरित हुए |  

इन्हीं देवियों एवम ऋषि पत्नियों के अदम्य साहस से प्रेरित होकर बहुत सी साधारण स्त्रीयों ने भी दुर्लभ कार्य किए | इनमें सत्यवान सावित्री की कहानी बहुत प्रचलित है | राजा अशवपति देवता सवित्र के पक्के भक्त थे | उन्होंने अपने इष्ट देवता से अपने वशं को चलाने के लिए एक पुत्र की कामना की परन्तु उन्हें एक पुत्री का वरदान मिला | वह बहुत सुन्दर और होनहार लड़की थी | राजा अशवपति  ने उसका नाम सावित्री रखा | विवाह योग्य होने पर राजा ने उसे खुद अपना जीवन साथी ढूँढने की आज्ञा दे दी |

एक बार जब इस काम के लिए सावित्री जंगल से गुजर रही थी तो उसे एक नौजवान लड़का दिखाई दिया जो अपने बीमार और अंधे पिता, जो वास्तव में एक राजा था, की बड़े लगन से सेवा कर रहा था | सावित्री ने लड़के, सत्यवान, से प्रभावित होकर उससे शादी कर ली और उनके साथ जंगल में रहना शुरू कर दिया | सत्यवान को एक श्राप मिला हुआ था कि वह शादी के एक साल बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा | होनी वाले दिन सावित्री अपने पति के साथ जंगल में लकड़ी काटने साथ गई | जब यमदूत सत्यवान की आत्मा लेकर चलने लगा तो सावित्री ने उसका अनुशरण करते हुए धर्म, कर्तव्य, निष्ठा और यमदूत की निष्पक्ष कार्य शैली इत्यादि कई बुद्धिमता के विषयों पर अपने विचार प्रकट करने लगी | यमदूत सावित्री के विचारों से बहुत खुश हुआ और उसने, सत्यवान की आत्मा वापिस लौटाने के अलावा कोई और वरदान माँगने को कहा | बिना समय गवाएं सावित्री ने अपने लिए सौ पुत्रों की माता बनने का आशिर्वाद मांग लिया | इस पर यमदूत असमंजस में पड़ गया और उसे सत्यवान को नई जिंदगी देनी पड़ी | सावित्री की सूजबूझ से प्रभावित होकर यमदूत ने उसके ससुर को स्वस्थ करके उसका राज्य भी वापिस दिलवा दिया | 

माँ भगवती ने चाँदनीको सपने में ही आवाहन किया कि जैसे सावित्री ने अपनी सूजबूझ एवम विवेक से अपने पति को यमदूत के शिकनंजे से बचाया था उसी प्रकार तू भी धैर्य, विवेक और अपने परिश्रम से अपने पति को पराई स्त्री के साथ कामरूपी दलदल से छुटकारा दिलाने की हिम्मत दिखा | मेरा तूझे  आशीर्वाद है तू भी अवश्य सफल होगी | चाँदनी सोकर उठी तो वह अपने को तरोताजा महसूस कर रही थी | उसके मन में अपने पति के कारनामें से जो कष्ट और पीड़ा का स्थान बन गया था वह पटता नजर आया | उसने अपने सपने को माँ भगवती का आशीर्वाद समझ कर दिल में एक संकल्प और प्रण लिया, जब सावित्री कर सकती है तो मैं क्यों नहीं | और उसके दुखी चेहरे पर एक विजयी मुस्कान फ़ैल गई |  

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