Friday, February 16, 2024

उपन्यास - भगवती (39)

 

चाँदनी के पति कभी कभी अपने आफिस  के काम की फाईलें घर ले आया करते थे | अक्सर यह मार्च अप्रैल के महीनों में ज्यादा होता था क्योंकि कर्मचारियों की तनखा में से सालाना खाते बंद करने के लिए इनकम टैक्स काटना पडता था | वह पढ़ी लिखी तो थी ही इसलिए इस काम में वह भी अपने पति का हाथ बटा देती थी | जो कागज़ भरे जाते थे उनमें सभी कर्मचारियो का पूरा विवरण होता था अर्थात नाम, पता, टेलीफोन नंबर, ब्रांच और तनखा इत्यादि | 

प्रभात के साथ काम करते करते चाँदनी के मन में हमेशा एक द्वन्द चलता रहता था कि किसी तरह उस औरत का पता मिल जाए जो इतनी निर्ल्लज और बेहया है जो मेरे से ही मेरे पति पर पूरा इल्जाम थोप रही है | उसके दिमाग में उस औरत का टेलीफोन नंबर जैसे खुद चुका था | एक दिन टैक्स के कागजों को भरते हुए एक फ़ार्म पर चाँदनी को वही नंबर दिखाई दे गया | चाँदनी का पूरा शरीर कम्पायमान हो गया | माथे पर पसीने की बूँदें उभर आई | उसकी ऐसी हालत देख प्रभात ने घबरा कर पूछा, क्यों क्या बात हुई |

चाँदनी अपने को संभालते हुए, कुछ नहीं, कुछ नहीं शायद अपचन के कारण हो गया है |

प्रभात चाँदनी के माथे पर हाथ लगाकर, जाओ जाकर आराम करलो | मैं खुद कर लूंगा |

नहीं नहीं ऐसी चिंता की कोई बात नहीं है | मैं ठीक हूँ |

चाँदनी ने उड़ती नजर से उस औरत का नाम, रेखा तो जान लिया था परन्तु इतनी जल्दी घर का पूरा पता याद करना मुश्किल था | रेखा का पता पता करने का यह मौक़ा वह हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी | अत: हिम्मत बाँध कर अपने को सम्भाला और काम में लग गई | मौक़ा पाकर और अपने पति से आँख बचाकर उसने उसका पूरा विवरण ले लिया | अब वह अपने मकसद में कामयाब होने के लिए कुछ आश्वस्त हो गई थी | चाँदनी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में पहली सीढ़ी चढ गई थी |

एक दिन चाँदनी यह सोचकर की रेखा को हतोत्साहित करने के लिए उसे कठोर कदम उठाने के साथ साथ अपनी जबान भी कड़वी करनी पड़ेगी | इसकी के मद्देनजर चाँदनी ने रेखा का फोन मिलाया | दूसरी तरफ से आवाज आई, हैलो कौन बोल रहा है ?

मैं वह बोल रही हूँ जिसकी तुम सौत बनना चाह रही हो |

क्या बकवास कर रही हो ?

अभी तो मैं बकवास नहीं कर रही बल्कि तुम्हारे दिल की खावाहिस बयाँ कर रही हूँ |

क्या मतलब है तुम्हारा क्यों मेरे ऊपर झूठे लांछन लगा रही हो ?

यह लांछन नहीं हकीकत है |”

तू किस बिना पर यह कह रही है ?

अरी ओ मैडम तू यह मत सोच कि तू ही पढ़ी लिखी है | मैं भी तेरे से किसी मायने मैं कम नहीं हूँ | मै भी जानती हूँ कि मोबाईल पर कैसे अंगुली चलाई जाती हैं |

तो तू क्या कर लेगी ?

अबकी बार चाँदनी अपने बचपन के रंग में आ गई तथा एक जाटनी के पुट में रेखा को चेतावनी दी, तू जानती नहीं मैं जाटान के बीच रहण आली सूं |

जाटनी जानकर रेखा की आवाज में थोड़ी कम्पन्न महसूस हुई तभी उसने छोटा सा जवाब दिया, तो ?

गर तन्ने अपना रवैया ना बदला तो समझ ले मुझ तै बुरा कोय ना होगा |

 तू क्या कर लेगी ?

तन्ने फाड़ क रख दूंगी |

मुझे फाड़ने की धमकी दे रही है पर अपने आदमी को नहीं समझाती ?

आदमी त अपने आप समझ जागा गर तू उसे ना उकसावे ओर ना बुलावे |

तेरा आदमी कोई बच्चा तो है नहीं जो मेरे बहकावे में आ जाता है ?

ओ अकल की मारी गर वो बच्चा होता तो ना मैं कुछ कहती, ना तू बुलाती और ना वो जाता |

तो मैं आने वाले को कैसे रोक सकती हूँ |

बेशर्म तू तो ऐसे कह रही है जैसे तू चकला चलाती है |

खबरदार |

खबरदार तो ईब तन्ने रहण की जरूरत सै | मन्ने पता चल गया तू राजी खुशी ना मानन आली | तेरा तो तीया पांचा करना ही पड़ेगा | 

अपने आदमी को वश में कर | मेरे पास आईन्दा फोन मत करना, कहकर रेखा ने फोन काट दिया |

कुलटा स्त्रियों को अपने पति से संतोष हो ही नहीं सकता |पर पुरूष का चस्का लगने पर उन्हें न कुल की मर्यादा, न जग हंसाई का डर, न किसी का बंधन और न ही किसी रोकटोक का असर पड़ता है | वे जान पर खेलने को तैयार हो जाती हैं | इसके विपरीत कुलीन कुटुम्ब की नारी अपने कुल की मर्यादा एवम अपने सम्बंधों को बचाने के लिए बड़े से बड़ा जोखिम उठाने को तत्पर हो जाती है |

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