संदेह,
विश्वास और अविश्वास के मिलन बिंदु पर उपजता है | संदेहास्पद
मन बड़ा आक्रांत और दुखी रहता है तथा चैन से बैठने नहीं देता | संदेह
का दंश हरपल चुभता रहता है तथा कई मानसिक समस्याओं का जन्मदाता बन कर उभरता है | संदेह
रिश्तों में दरार की जड़ होता है क्योंकि जिस पर शक होता है मन में उसके प्रति
अनायास ही नकारात्मक सोच पैदा हो जाती है | संदेह मनुष्य के मन और
मस्तिषक को संकुचित बना देता है | परन्तु कभी कभी संदेह परदे के पीछे छिपे
रहस्यमय सत्य को प्रकट करने का साहस भी बन जाता है |
अगर यह लक्ष्य प्राप्त करने का मार्ग बन जाए तो एक असाधारण घटना बन जाती है |
चाँदनी ने जिस टेलीफोन से
सन्देश आया था उसका नंबर लिख लिया | प्रभात के आफिस जाने के बाद उसने वह
नंबर मिलाया | दूसरी तरफ हैलो की आवाज एक औरत की थी | चाँदनी
ने पूछा, “यह नंबर आपका ही है ?”
“हाँ
कहिए किस से मिलना है ?”
“मिलने
की चाहत तो आपको है |”
“क्या
मतलब ?”
“मतलब
आप अच्छी तरह जानती हैं |”
“क्या
पहेलियाँ बुझा रही हो | साफ़ साफ़ कहो ?”
“साफ़
बात यह है कि कल आपका एक सन्देश पढ़ा था, आन मिलो......सजना
|”
“क्या
बेतुकी बात कर रही हो उसमें सजना का तो जिक्र ही नहीं था |”
“तो
फिर किससे मिलने का इरादा था |”
“आपसे
मतलब,
आप
होती कौन हो |”
“मैं
उसकी पत्नी हूँ जिसे आपने सन्देश भेजा था |”
इस बार दूसरी तरफ की आवाज
कुछ कांपती नजर आई परन्तु शीघ्र ही वह संभली और बोली, “दूसरों
पर इल्जाम लगाने से बेहतर है अपना घर संभालो |”
“वे
तो संभल जाएंगे अगर तुम उनका पीछा छोड़ दो |”
“मैं
उनका पीछा नहीं करती बल्कि वही मेरे पीछे पड़े हैं |”
“तुम
बड़ी बेशर्म मालूम पड़ती हो जो निर्भीकता से ऐसे बोल रही हो |”
“मैं
आपके मुंह नहीं लगना चाहती”, कहकर
फोन कट गया |
चाँदनी ने एक दो बार नंबर
मिलाने की और कोशिश की परन्तु व्यर्थ | अब चाँदनी सोचने लगी कि उस औरत तक कैसे
पहुंचा जाए | क्योंकि उसकी बातों से यह साबित हो गया
था कि वह प्रभात का पीछा आसानी से छोडने वाली नहीं है | चाँदनी
ज्यों ज्यों सोच रही थी उसकी उस औरत को सबक सिखाने की इच्छा प्रबल होती जा रही थी | उसने
अपने मन में जल्दी ही कुछ करने का सकल्प ले लिया |
और लक्ष्य प्राप्ति का
संकल्प या प्रण एक ऐसा बीज है जो पड़ते ही अंकुरित होने लगता है और समस्त
परिस्थितियों को अपने अनुरूप परीवर्तित कर लेता है | संकल्प
के पीछे सभी बरबस चलने लगते हैं | संकल्प निर्धारीत करता है कि हमें करना
क्या है ? पाना क्या है ? कैसे
करना है | संकल्प ही जीवन को निर्दिष्ट लक्ष्य तक
पहुंचाता है |
जैसे आग अपनी जलन नहीं छोड़ सकती तथा
चंद्रमा अपनी शीतलता नहीं छोड़ सकता उसी प्रकार एक मनुष्य अपना स्वभाव नहीं छोड़
पाता |
किसी के मन में शंका या संदेह से जो
अंधेरा पैदा होता है वह न तो चाँद से दूर होता है न अंनज से, न सूर्य की रोशनी से न ही दीपक से तथा
न ही कोई हकीम या दवा उसे मिटा सकती है |
अपना उल्लू सीधा करने के लिए मनुष्य
साम, दाम, दंड और भेद का रास्ता अपनाता है | समझदार व्यक्ति को सबसे पहले साम अर्थात समझाने बुझाने का रास्ता
अपनाना चाहिए | जो काम साम के माध्यम से पूरे हो जाते
हैं उनसे दिलों में कोई दुर्भावना पैदा नहीं होती | चाँदनी ने रेखा पर यह आजमाँ कर देख लिया था | जब उसे सफलता नहीं मिली तो उसने भेद
निकाल रेखा तक पहुँच कर अपनी जाट भाषा में दंड देने की चेतावनी देने की सोची |
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