Saturday, February 10, 2024

उपन्यास - भगवती (38)

 

संदेह, विश्वास और अविश्वास के मिलन बिंदु पर उपजता है | संदेहास्पद मन बड़ा आक्रांत और दुखी रहता है तथा चैन से बैठने नहीं देता | संदेह का दंश हरपल चुभता रहता है तथा कई मानसिक समस्याओं का जन्मदाता बन कर उभरता है | संदेह रिश्तों में दरार की जड़ होता है क्योंकि जिस पर शक होता है मन में उसके प्रति अनायास ही नकारात्मक सोच पैदा हो जाती है | संदेह मनुष्य के मन और मस्तिषक को संकुचित बना देता है | परन्तु कभी कभी संदेह परदे के पीछे छिपे रहस्यमय सत्य को प्रकट करने का साहस भी बन जाता है | अगर यह लक्ष्य प्राप्त करने का मार्ग बन जाए तो एक असाधारण घटना बन जाती है |

चाँदनी ने जिस टेलीफोन से सन्देश आया था उसका नंबर लिख लिया | प्रभात के आफिस जाने के बाद उसने वह नंबर मिलाया | दूसरी तरफ हैलो की आवाज एक औरत की थी | चाँदनी ने पूछा, यह नंबर आपका ही है ?

हाँ कहिए किस से मिलना है ?

मिलने की चाहत तो आपको है |

क्या मतलब ?

मतलब आप अच्छी तरह जानती हैं |

क्या पहेलियाँ बुझा रही हो | साफ़ साफ़ कहो ?

साफ़ बात यह है कि कल आपका एक सन्देश पढ़ा था, आन मिलो......सजना |

क्या बेतुकी बात कर रही हो उसमें सजना का तो जिक्र ही नहीं था |

तो फिर किससे मिलने का इरादा था |

आपसे मतलब, आप होती कौन हो |

मैं उसकी पत्नी हूँ जिसे आपने सन्देश भेजा था |

इस बार दूसरी तरफ की आवाज कुछ कांपती नजर आई परन्तु शीघ्र ही वह संभली और बोली, दूसरों पर इल्जाम लगाने से बेहतर है अपना घर संभालो |

वे तो संभल जाएंगे अगर तुम उनका पीछा छोड़ दो |

मैं उनका पीछा नहीं करती बल्कि वही मेरे पीछे पड़े हैं |

तुम बड़ी बेशर्म मालूम पड़ती हो जो निर्भीकता से ऐसे बोल रही हो |

मैं आपके मुंह नहीं लगना चाहती, कहकर फोन कट गया |

चाँदनी ने एक दो बार नंबर मिलाने की और कोशिश की परन्तु व्यर्थ | अब चाँदनी सोचने लगी कि उस औरत तक कैसे पहुंचा जाए | क्योंकि उसकी बातों से यह साबित हो गया था कि वह प्रभात का पीछा आसानी से छोडने वाली नहीं है | चाँदनी ज्यों ज्यों सोच रही थी उसकी उस औरत को सबक सिखाने की इच्छा प्रबल होती जा रही थी | उसने अपने मन में जल्दी ही कुछ करने का सकल्प ले लिया |

और लक्ष्य प्राप्ति का संकल्प या प्रण एक ऐसा बीज है जो पड़ते ही अंकुरित होने लगता है और समस्त परिस्थितियों को अपने अनुरूप परीवर्तित कर लेता है | संकल्प के पीछे सभी बरबस चलने लगते हैं | संकल्प निर्धारीत करता है कि हमें करना क्या है ? पाना क्या है ? कैसे करना है | संकल्प ही जीवन को निर्दिष्ट लक्ष्य तक पहुंचाता है |

जैसे आग अपनी जलन नहीं छोड़ सकती तथा चंद्रमा अपनी शीतलता नहीं छोड़ सकता उसी प्रकार एक मनुष्य अपना स्वभाव नहीं छोड़ पाता | किसी के मन में शंका या संदेह से जो अंधेरा पैदा होता है वह न तो चाँद से दूर होता है न अंनज से, न सूर्य की रोशनी से न ही दीपक से तथा न ही कोई हकीम या दवा उसे मिटा सकती है |

अपना उल्लू सीधा करने के लिए मनुष्य साम, दाम, दंड और भेद का रास्ता अपनाता है | समझदार व्यक्ति को सबसे पहले साम अर्थात समझाने बुझाने का रास्ता अपनाना चाहिए | जो काम साम के माध्यम से पूरे हो जाते हैं उनसे दिलों में कोई दुर्भावना पैदा नहीं होती | चाँदनी ने रेखा पर यह आजमाँ कर देख लिया था | जब उसे सफलता नहीं मिली तो उसने भेद निकाल रेखा तक पहुँच कर अपनी जाट भाषा में दंड देने की चेतावनी देने  की सोची | 

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