Sunday, February 18, 2024

उपन्यास - भगवती (40)

 

अब चाँदनी के पास कोई चारा नहीं बचा था केवल इसके की वह रेखा से आमने सामने बात करे | परन्तु रेखा के सामने जाने से पहले वह आज के अपने वार्तालाप का असर अपने पति पर महसूस करना चाहती थी |

एक दो दिन चाँदनी ने महसूस किया कि उसके पति उसके सामने आकर कुछ विचलित से नजर आने लगे थे | ऐसा लगता था जैसे वे कुछ कहना चाहते थे परन्तु हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे | चाँदनी अपनी समस्या का समाधान शीघ्र करना चाहती थी | वह जानती थी कि जितनी देरी होगी समस्या उतनी ही गंभीर बनती जाएगी | छोटी सी फुंसी को नासूर बनने से पहले ही दबा देने में ही बुद्धिमानी है यही सोचकर चाँदनी ने ही पहल करते हुए अपने पति से पूछा, क्या बात है आजकल आप खाना ठीक से नहीं खा रहे |

क्यों मुझे क्या हुआ है ?

पता नहीं मैं ऐसा महसूस कर रही हूँ |

अगर महसूस कर रही हो तो तुम्हें इसका कारण भी पता होगा ?

आप ऐसा क्यों कह रहे हो ?

क्योंकि तुम अंतरयामी जो हो |

आप ऐसा क्यों कह रहे हो ?

जैसा मैनें महसूस किया और.... और तुम्हारे कारण भोग रहा हूँ उससे |

मेरे कारण क्या भोग रहे हो ?

आफिस में जिल्लत |

मेरे कारण नहीं अपने कारनामों के कारण भोग रहे हो |

मैनें कुछ नहीं किया | यह केवल तम्हारा भ्रम है |

एक पराई औरत का आपके फोन पर आन मिलो....सजना का सन्देश क्या दर्शाता है ?

प्रभात को जब कोई उत्तर न सूझा तो वह झुंझला कर बोला, तुम्हारी तो बाल की खाल निकालने की आदत पड़ गई है |

अगर मुझे यह आदत पड़ी है तो उसका  कारण भी आप ही हैं |

वो कैसे ?

अगर आप धीरे धीरे छुप छुपकर फोन पर बातें न करते तो मुझे कोई शक नहीं होता | न मुझे आपकी उस प्रेयसी का पता चलता | ना मुझे रेखा के इस झंझट में पडने की जरूरत पड़ती | ना आपको, जैसा आप कह रहे हैं,  जिल्लत उठानी पड़ती |

चाँदनी के बेबाक शब्दों से प्रभात ने समझ लिया कि अब चाँदनी को बहकाना मुश्किल होगा फिर भी उसने एक कोशिश और करने की सोच कहा, देखो तुम जो समझ रही हो ऐसा कुछ नहीं है |

तो कैसा है ?

रेखा का पति भी हमारी दूसरी शाखा में काम करता है |

करता होगा |

वह बहुत नेक, रहम दिल, बुद्धिमान और दयालू इंसान है |

तभी तो रेखा उसका नाजायज फ़ायदा उठा रही है |

ओ हो तुम समझती क्यों नहीं हो ?

विश्वासघात करने वाले की मुझे कोई बात नहीं समझनी |”

तुमने बेकार का बखेडा खड़ा कर दिया है और कर रही हो |

जब तक आप अपना रवैया नहीं बदलोगे मैं भी नहीं बदलूँगी अपना रवैया |

तुमने जब मैं अपनी एक महिला आफिसर का घर गुडगांवा में बनवाने के लिए उसकी मदद कर रहा था तब भी मेरे ऊपर ऐसा ही इल्जाम लगाया था |

उस समय मैनें आप से केवल इतना ही तो पूछा था कि आपको इतनी भागदौड करने की क्या आवश्यकता है |

अपने शक के चलते ही तो पूछा था परन्तु क्या मिला, बाबा जी का ठुल्लू |

जब मुझे पता चला कि वह औरत रिटायर हो रही है तथा उसका आदमी बाहर सर्विस कर रहा है तो उसके बाद मैनें आपको उसके किसी काम को नहीं टोका था |

इसकी भी सहायता करने के अलावा मेरा कोई और मकसद नहीं है, मेरा यकीन करो |

उसका आदमी यहाँ है, रेखा खुद जवान है, उसका अपना घर है, फिर भला फोन पर चोरी छुप्पे उससे बातें करने तथा प्रेमी प्रेमिका की तरह आपस में सन्देश भेजने का क्या मकसद हो सकता है |

ओहो तुम मुझे बदनाम करके ही दम लोगी | मैं सच कह रहा हूँ कि मेरा उससे कोई नाजायज सम्बन्ध नहीं है |

अब तो मुझे तभी यकीन आएगा जब मैं उससे मिल लूंगी |

उससे मिलकर क्या करोगी ?

तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी, समझी |

उससे बात करने से महसूस हुआ है कि न तो वह बदलने वाली है और न आप | इसलिए अपने परिवार को बचाने के लिए मुझे ही कुछ करना पड़ेगा |

ऋषि तथा महात्माओं का शाश्त्रों का ज्ञान स्त्रियों की बुद्धि के आगे बहुत तुच्छ माना जाता है और अगर स्त्री अपने पर आ जाए तो उसे कोई नहीं रोक सकता, कोई उसकी रक्षा नहीं कर सकता | इसीलिए प्रभात ने जब देख लिया कि उसकी पोल खुल गई है तो वह अपनी पत्नी के द्रद्द निश्चय को भांपकर लड़खडाते हुए पैर पटकता हुआ कमरे से बाहर निकल गया |

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