Thursday, February 29, 2024

उपन्यास - भगवती (42)

 

चाँदनी ने रेखा के घर आधा घंटा इंतज़ार किया | इस बीच शांत स्वभाव दीपक ने चाँदनी को आशवासन दिलाया कि वह अपनी तरफ से इस समस्या का समाधान करने का भरसक प्रयत्न करेगा | जब रेखा नहीं आई तो दीपक के वचनों से आश्वस्त चाँदनी वापिस अपने घर आ गई |

थोड़े दिनों बाद नजरें झुकाए और दोनों हाथ जोड़े प्रभात अपनी पत्नी के सामने खड़ा होकर बोला, चाँदनी  मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ | तुमने रेखा के घर जाकर सबके सामने जिस साहस से अपना पक्ष रखा तथा मुझे वासना भरे दलदल में डूबने से समय पर बचा लिया वह काबिले तारीफ़ है | मेरे कदम बहक गए थे | जिसके कारण तुम्हें बहुत कष्ट उठाने पड़े | मुझे माफ कर दो |

चाँदनी के साहस, दिलेरी, द्रद्द निश्चय, और सूझबूझ के कारण  अब उसका परिवार बिखरने से बच गया था |    

एक दिन सुबह काम से फुर्सत पाकर और सारे रहस्य को बेनकाब करने के बाद चाँदनी अकेली बैठ कर सोचने लगी | ढांसा में प्रत्येक प्रभात का आगमन बहुत सुहावना, लुभावना एवम स्फूर्तिदायक महसूस होता था | ब्रह्म मुहर्त में मुर्गे की बांग, कन्धों पर हल रखे आते जाते किसानों का आपस में राम-राम शब्द का उच्चारण, चलते बैलों के गले में बंधी घंटी की टन-टन और चिड़ियों का चहचहाना ऐसा माहौल बना देता था जैसे किसी मंदिर में आरती हो रही हो | ऐसे में जब मंद मंद बहती समीर शरीर में ताजगी भर देती थी तो सारा वातावरण संगीतमय सा लगने लगता था | इसके साथ माँ का झाडू पकड़ कर प्यार से गुनगुनाना उठ नारी दे बुहारी तेरे घर आए कृष्ण मुरारीसभी को खुशी खुशी अपने काम पर लगा देता था | यहाँ सभी को प्रभात का इंतज़ार रहता था |   

परन्तु चाँदनी को अपनी ससुराल में पता ही न चलता था कि दिन कब ढला, कब रात हुई और कब प्रभात | क्योंकि यहाँ न बांग देने वाले मुर्गे थे, न किसानों तथा बैलों की आवाजाही तथा न ही चिड़ियों की चहचाहट | समय का पता करने के लिए घड़ी का सहारा था और सुबह उठाने के लिए उसकी कान फाड़ देने वाली टर्न-टर्न की आवाज | ऐसा लगता था जैसे यहाँ प्रभात की किसी के लिए कोई अहमियत ही न थी | सभी को रात के बारह बजे के बाद बिस्तर पर जाने की आदत थी तो उठने में भी अपनी मर्जी के मालिक थे |

चाँदनी, अपने बचपन में पाए हुए संस्कारों के अनुसार, सुबह सवेरे उठ जाती और काम में लग जाती थी |प्रकृति   की प्रभात खत्म होती तो अपने प्रभात के सोकर उठकर बाहर उदय होने का इंतज़ार करने बैठ जाती | उसने अपने को अपनी ससुराल के वातावरण में पूरी तरह ढाल लिया था | सुबह-सुबह अपने ससुर को चाय का एक प्याला पकड़ा कर वह फुर्सत के क्षणों में  सोच में डूब गई  | खुशहाल गृहस्त जीवन के १५ वर्ष और कुछ अभिशप्त दिन कैसे बीत गए उसे पता ही न चला | उस मनहूस दिन की याद आते ही, जब उसने पहली बार अपने पति पर संदेह किया था, उसका पूरा शरीर काँप उठा | फिर शायद यह सोचकर कि उसने बहुत कुछ सहने के बाद अपने पति को सदमार्ग पर लाकर अपनी मंजिल पा ली है उसका मायूस चेहरा खील उठा और उस पर संतुष्टी के भाव उभर आए | चाँदनी के ससुर का मन, दूर से चाय की चुस्की लेते हुए अपनी पुत्र वधु के चेहरे के बदलते भावों को पढने के बाद, मन ही मन श्रद्धा से भर गया और बुदबुदाया वास्तव में तुम माँ भगवती की तरह निडर और साहसी हो |

नमन है तुम्हें भगवती’ |

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