Sunday, April 7, 2024

चन्दगी राम निभोरिया (भाग-5)

 

माँ का सौतेला सा व्यवहार  

चन्दगी अब लगभग 6 वर्ष का हो गया था | उसके अधिकतर साथी स्कूल जाने लगे थे | उसकी भी प्रबल इच्छा थी कि वह भी पढ़ने जाए परन्तु उसके माँ बाप इस और ध्यान ही नहीं दे रहे थे | थक हारकर एक दिन उसने अपनी रुचि अपने पिता जी के सामने रख दी, पिता जी मुझे स्कूल जाना है |

चन्दगी की बात सुनकर बहोड़ू राम बहुत खुश हुआ | उसने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, ठीक है बेटा मैं तेरी माँ से कह दूंगा कि चन्दगी कल से स्कूल पढ़ने जाएगा |

चन्दगी बहुत खुश था परन्तु शाम होते होते उसकी खुशियों को ग्रहण लग गया | जब बहोड़ू राम   ने नानकी से चन्दगी के बारे में बात की तो वह बिफर पड़ी और हाथ नचाते हुए बोली, लो जी सुन लो इनकी बात | घर में नहीं दाने और अम्मा चली भुनाने | 

बहोड़ू राम   ने अपनी पत्नी के जूमले का सिर पैर न समझ पूछा, तुम्हारा क्या मतलब है?

अपनी आवाज में कड़की लाते हुए नानकी बोली, घर में खाने के दानों की तो कमी रहती ही है चन्दगी के स्कूल चले जाने से पकाने के लिए ईंधन की कमी भी हो जाएगी |

बहोड़ू राम ने फिर पूछा, क्या मतलब?

इस बार नानकी का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ कर बोला,तुझे किसी चीज का मतलब भी पता है, हर बात में यही कहता है क्या मतलब, क्या मतलब |

बहोड़ू राम पता नहीं किस मिट्टी का बना था | उसने नानकी से कभी ऊंची आवाज में बात की ही नहीं थी | जबकि उसकी पत्नी नौकरों से बदतर उससे पेश आती थी | पहले तो नानकी चन्दगी से बहुत प्यार करती थी परन्तु कुछ दिनों से उसका व्यवहार चन्दगी के प्रति भी रूखा हो गया था | जैसे वन में छोटे -छोटे पौधे समय के साथ बिना किसी सिचाई, नलाई, गुडाई, खाद तथा देखभाल के विशाल वृक्ष बन जाते हैं उसी प्रकार अब नानकी ने चन्दगी के खान-पान, नहाने धोने इत्यादि का ख्याल भी रखना छोड़ दिया था | चन्दगी अब ऊपर वाले के रहमों कर्म पर बड़ा होने लगा |

चन्दगी की माँ सुबह सवेरे उसे उठाकर जंगल मैदान में गोबर चुगने के लिए भेजने लगी | गोबर चुगते हुए जब वह अपने साथियों को हसंते खेलते स्कूल जाते देखता तो अपना मन मसोस कर रह जाता | एक दो बार जब उसने अपनी माँ के सामने अपने पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो उसकी माँ ने कहा, देख चन्दगी तेरा बाप इतना ही कमाता है कि हम दो वक्त का आनाज ही खरीद सकते हैं | उसे पकाने के लिए भी तो कुछ चाहिए | अगर तू स्कूल चला जाएगा तो गोबर के उपले कैसे बनेंगे | और अगर उपले नहीं बने तो खाना कैसे पकेगा |

चन्दगी की छोटी बुद्धी में यह बात समा जाती और वह कुछ दिनों के लिए शांत हो जाता परन्तु जैसे उपले में दबी आग हवा का झोका आने से सुलग जाती है उसी प्रकार अपने साथियो को स्कूल जाते देख चन्दगी के मन में पढ़ने की चाहत बार बार अपना सिर उठाने लगती थी | परन्तु अपनी माँ के सामने उसकी एक न चलती | एक बार गाँव के ही किसी भद्र पुरूष ने जब एक सुन्दर और सुडौल लडके को गोबर बीनते देखा तो उसे बहुत तरस आया | उसने लडके से पूछा, बेटा, तुम किसके लडके हो?

पहले तो चन्दगी ने किसी अनजान के सामने अपनी जबान न खोलने का विचार कर उत्तर नहीं दिया | परन्तु उस व्यक्ति द्वारा आग्रह करने पर बताया, बहोड़ू राम का?

वही जो बुनकर है?

हाँ वही |

स्कूल नहीं जाते क्या?

चन्दगी ने छोटा सा जवाब दिया, नहीं |

क्यों, पढ़ना अच्छा नहीं लगता?

अच्छा लगता है |

तो फिर स्कूल क्यों नहीं जाते?

चन्दगी ने अपना दिल खोल दिया, माँ कहती है पैसे नहीं हैं |

इस पर उस भद्र पुरूष ने चन्दगी को ले जाकर स्कूल में भर्ती करवा दिया तथा स्कूल की फीस भी भरने का वायदा कर लिया |   

चन्दगी स्कूल में तो भर्ती हो गया और उसकी फीस का भी इंतजाम हो गया था परन्तु फिर भी वह पढ़ न सका क्योकि उसकी माँ ने साफ़ कह दिया कि अगर वह गोबर चुग कर नहीं लाएगा तो उसे खाना नहीं मिलेगा | चन्दगी मरता क्या न करता | उसे स्कूल जाना छोड़ना पड़ा | इन्हीं दिनों नानकी अब एक बार फिर गर्भवती हो गयी | वास्तविकता न जानते हुए गाँव में अफवाहों का बाजार इस बात से फिर चहक उठा कि नानकी के पेट में दरजी का बच्चा पनप रहा है परन्तु किसी की हिम्मत न थी कि नानकी से कोई कह सके | क्योंकि कोई भी बिल्ली के गले में घंटी बांधने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था | चन्दगी को भी इस बात की सुरसरी मिल गई थी परन्तु उसमें भी अभी इतना दम न था कि कुछ कर पाता | इस नाजुक दौर का फ़ायदा उठाकर मजा लेने वालों ने चन्दगी के दिलो दिमाग में उसकी माँ के प्रति उसके दिल में जहर घोलने में कोई कसर न छोड़ी जिससे चन्दगी की सोच में उसकी अपनी माँ के व्यवहार में  सौतेली माँ बनने की भावना का असर प्रतीत होता दिखाई देने लगा था |

कहते हैं बेकार से बेगार भली | चन्दगी अपनी दो वक्त की रोटी के चक्कर में सुबह तो गोबर बिनता, उनके उपले बनाता फिर दोपहर में अपने पिता जी का हाथ बटाता | यही उसकी जिन्दगी की दिनचर्या रह गयी थी | हालांकि उसे यह सब पसंद न था परन्तु एक किशोर अवस्था वाला गरीब लड़का उन दिनों कर भी क्या सकता था | उसका ध्येय था ऊँची उड़ान भरने का | उसके पास समय का इंतज़ार करने के अलावा कोई चारा नहीं था | वह उन दिनों का बेसब्री से इंतज़ार करने लगा जब वह व्यस्क हो जाएगा | गिरते पड़ते वह दिन भी आ गया | इस समय चन्दगी एक गबरू जवान हो गया था तथा उसके उम्दा स्वास्थ्य की चर्चा पूरे इलाके में होने लगी थी |

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