Thursday, April 11, 2024

चन्दगी राम निभोरिया -भाग 6

 

द्दड निश्चय 

इन्हीं दिनों प्रथम विश्व युद्ध का माहौल बनता जा रहा था | दिल्ली कैन्ट में इसकी तैयारियां शुरू हो गयी थी | वहां एक सैन्ट्रल आर्डिनैंस डिपो बनाई गयी थी | उसमें कलर्क, खजांची, इंजीनियर तथा मजदूरों इत्यादि की भर्ती की जा रही थी | प्रत्येक किस्म की नौकरी के लिए अलग अलग मापदंड रखे गए थे | डिपो में भारी सामानों का आवागमन होने की वजह से मजदूरों के लिए उच्च शारिरीक क्षमता रखने वालें नौजवानों को ही भर्ती किया जा रहा था | चन्दगी पढ़ा लिखा न होने के कारण मजदूर में अपनी किस्मत आजमाने भर्ती होने के लिए वहां पहुँच गया | वहां शारिरीक क्षमता नापने का एक अजीब ही मापदंड रखा हुआ था | एक भारी भरकम पत्थर सामने पड़ा था और जो जवान उस पत्थर को अपने सिर से ऊँचा उठा लेता था उसे भर्ती कर लिया जाता था |

हालांकि चन्दगी ने अखाड़े में अच्छे अच्छे नामी पहलवानों को चित्त करके इलाके में अपना नाम बनाया हुआ था | उसे अपने ऊपर पूरा विशवास था कि वह सामने पड़े पत्थर को बड़ी आसानी से उठा लेगा | उसने अपनी कमीज उतारी, मन में यह सोचता हुआ कि यह क्या चीज है मैनें तो बड़े बड़े पहलवानों को सिर से ऊपर उठाकर जमीन पर पटका है, इत्मीनान से पत्थर के पास आया, हाथ बढाए और जोर लगाया परन्तु उसे यह समझते हुए देर न लगी कि वह पत्थर तो भगवान शिव के उस धनुष की तरह पृथ्वी से चिपका है जो सीता जी के स्वंम्बर के लिए रखा गया था और उसे बड़े बड़े योद्धा भी टस से मस न कर सके थे | थक हार कर चन्दगी अपना सा मुंह लेकर वापिस आ गया | उसे इस बात से बहुत आघात लगा कि उसकी जवानी जिसके मद में वह हमेशा चूर रहता था किसी काम न आई |

इससे आसपडौस वालों को खासकर जो चन्दगी की जवानी से जलते थे मजाक उड़ाने का मौक़ा मिल गया बल्कि उसकी खुद की माँ ने तो यहाँ तक कह दिया कि काम का न काज का दुश्मन अनाज का’ |

अपनी इस असफलता से वह निराश तो हो गया था परन्तु उसने अपना धैर्य नहीं खोया | उसकी यह समझ नहीं आ रहा था कि जब वह अपने जितने वजन के पहलवान को उठाकर जमीन पर पटक सकता है तो फिर वह अपने वजन से हलके पत्थर को क्यों नहीं उठा पाया था | जब उसने समझ लिया कि एक जानदार और एक बेजान वस्तु को उठाने में बहुत फर्क होता है तो उसने पत्थरों को उठाने की कोशिश शुरू कर दी और जब उसे भरोसा हो गया कि वह उस पत्थर को जो डिपो में भर्ती का मापदंड रखा गया था उठा सकता है तो एक बार फिर अपनी किस्मत आजमाने पहुँच गया | इस बार उसने एक झटके में ही उस पत्थर को सिर के ऊपर उठा कर अपनी नौकरी पक्की कर ली

चन्दगी की नौकरी तो लग गयी थी परन्तु मासिक पगार महज 15 रूपये ही थी | उसकी नौकरी लगने की खबर जंगल में लगी आग की तरह आसपास के गावों में एकदम फ़ैल गयी | उसके रिश्ते आने शुरू हो गए परन्तु उसने यह सोचकर कि इतनी कम पगार में परिवार का खर्चा चलाना बहुत मुश्किल होगा शादी के लिए फिलहाल मना कर दिया | क्योंकि उसने अपने पिता जी की गरीबी से सबक ले लिया था कि सुखमय जीवन यापन के लिए पैसा कितना महत्त्व रखता है | वह नहीं चाहता था कि अपने पिता जी की तरह वह भी सारी जीन्दगी पैसों के लिए खटता रहे | 

चन्दगी को लगन थी आगे बढ़ने की इसलिए उसने काम के साथ अपनी पढाई भी शुरू कर दी | दूसरों की सहायता से पहले तो उसने अंग्रेजी के अक्षर सीखे फिर उसने अंग्रेजी के अक्सर पहचानने शुरू कर दिए | जो सामान के डब्बे आते थे उन पर अन्दर रखी वस्तु का नाम लिखा होता था | चन्दगी अक्षर जोड़ जोड़ कर उस सामान का नाम पढ़ने की कोशिश करने लगा | उसकी मेहनत रंग लाई और उसे सामान का नाम पढ़कर सही जगह लगाने के काम पर लगा दिया गया | अब उसकी पगार 30 रूपये प्रतिमाह कर दी गयी थी

उन्नति के मार्ग में ईर्षावश टांग खीचने वाले बहुत मिल जाते हैं | चन्दगी को अभी मुश्किल से तीन महीने ही हुए होंगे कि उसके एक साथी की शिकायत पर कि चन्दगी तो पढ़ा लिखा है ही नहीं उसे वहां से हटा कर फिर मजदूरों में लगा दिया गया | इससे चन्दगी की उन्नति की आशाएं निराशाओं में तबदील हो गयी |

 

चन्दगी जानता था कि गरीबी एक प्रकार का अभिशाप होती है | उसने अपने बचपन में महसूस किया था कि दरिद्रता से बढ़कर दुःख देने वाली कोई चीज नहीं होती | धन की कमी के कारण अपने भी पराए हो जाते है तथा सब उसे दीन भावना से देखते हैं | तभी तो उसके बुजूर्ग कहा करते थे तथा उसने भी महसूस किया था कि धनवान की जोरू सबकी चाची/ ताई, गरीब की जोरू सबकी भाभी’ | उसने अपनी माँ के बहकते कदमों से इसका नजारा भी देख लिया था | जब मनुष्य के पास सारे गुण हों परन्तु धन न हो तो उसके गुणों का बखान कोई नहीं करता | जैसे सूर्य की रोशनी से सारा जहां प्रकाशमान हो जाता है उसी प्रकार मनुष्य के पास लक्ष्मी का निवास होने से उसके गुण अपने आप प्रदर्शित हो जाते हैं |

अगर किसी ने बचपन से ही धन की कमी के कारण अच्छे दिन न देखें हो तो वह उतना दुखी नहीं होता जितना एक बार धनसंपत्ति को अर्जित करके तथा उसका स्वाद चख-भोग लेने के बाद निर्धन हो जाने पर दुखी होता है | क्योंकि कमाई के साथ मनुष्य का रहन सहन, सामाजिक रूतबा तथा जीवन यापन का नजरिया भी बदलता है |  

तीन महीने में ही चन्दगी भी काफी कुछ बदल गया था | इतने अल्प समय में ही उसने जान लिया था कि सजीली वेशभूषा क्या होती है, इत्र और चन्दन की सुगंध कैसी होती है, गले में माला और उँगलियों में अंगूठी पहन कर कैसा लगता है तथा पान चबाकर उसकी पीक की पिचकारी मारने में कितना मजा एवं मस्ती का आनंद मिलता है | परन्तु शायद उसकी किस्मत में ही अधिक सुख भोगना नहीं था तभी तो इतनी जल्दी उसकी पदोन्नति वापिस चली गयी थी | परन्तु वह हार मानने वालों में से नहीं था | अपने मन में जहां चाह वहां राह के मन्त्र की गाँठ बांधकर, चाहे वह नैतिक हो या अनैतिक रास्ता हो, उसने पैसा कमाने की मन में ठान ली |      

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