Tuesday, April 23, 2024

चन्दगी राम निभोरिया - भाग 7

 

ममत्व का आभाष

अपनी पहली पगार मिलने पर चन्दगी बहुत खुश था और अपनी यह खुशी वह अपने परिवार के साथ बांटना चाहता था, खासकर अपने पिता जी के साथ | उसने बहुत सोच समझकर हलवाई की दूकान से मिठाई का एक दोना खरीदा और आकर अपने पिता जी के हाथों में सौंप दिया | दोने में से आ रही शुद्ध देशी घी की खुशबू ने उसका रोम रोम पुलकित कर दिया | पिता ने पुत्र की और प्रशन वाचक द्रष्टि से देखा तो उसके मुख पर मुस्कान देखकर पिता का ह्रदय भी गदगद हो उठा, इसमें क्या है?

चन्दगी ने चेहरे पर वही मुस्कान लिए, खोलकर देख लो |

बहोड़ू राम ने दोना खोला तो उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी | वह अपने अतीत के बारे में सोचने लगा जब वह छोटा था तथा गाँव में रहता था | उनके घर एक गाय थी | कभी कभी ख़ास मौकों पर दूध बचाकर माँ खोया बना लेती थी और पेडे बनाकर खिलाती थी | ऐसा लगा जैसे ज़माना बीत गया | अब तो वह एक छोटा सा बुनकर है | सारा दिन जी तोड़ मेहनत करने के पश्चात मुश्किल से अपने परिवार के लिए दो जून की सूखी रोटी का इंतजाम कर पाता हूँ | जितनी उसकी कमाई नहीं थी उससे ज्यादा उसकी जरूरतें थी | लुगाई की जरूरते पूरी न करने का खामियाजा भी तो भुगत रहा हूँ | उसकी थोड़ी सी दूसरे ने जरूरते पूरी क्या कर दी कि वह बेशर्म तथा बदचलन बन गई थी | उससे थोड़ा इंतज़ार नहीं किया गया कि १२ वर्ष बाद तो कूड़ी के भी दिन बदलते हैं | उसने ऐसा मुहं बनाया जैसे उसके गले में कोई कड़वी चीज आ गयी थी | अपने पिता जी को विचारों में खोया देख चन्दगी ने उसकी तंद्रा तोड़ी, पिता जी क्या सोचने लगे, खाओ न |

दोने में रखी मीठी, शुद्ध देशी घी से निर्मित, मेवा डली बर्फियों जैसी मीठी आवाज ने बहोड़ू राम को जैसे मूर्छा से जगा दिया हो, उसने एक बर्फी का टुकड़ा उठाया और अपने मुहं में डाल लिया |

शुद्ध देशी घी से निर्मित मेवा डली बर्फी मुंह में जाकर जैसे ही पिघलनी शुरू हुई बहोड़ू राम का रोम रोम प्रफुल्लित हो गया | यह प्रफुल्लता कहीं बाहर न निकल जाए शायद इसी वजह से स्वाद लेते लेते बहोड़ू राम की आँखें भी बन्द हो गई | ऐसा लगने लगा था जैसे वह बर्फी के रस में डूबे रहना चाहता हो | उसका तन मन ही नहीं आज तो उसकी आत्मा भी तृप्त हो गयी थी | अपने जीवन के विलुप्त होते माधुर्य को वापिस लौटते जान बहोड़ू राम की नजरें तथा दोनों हाथ भगवान की स्तुति के लिए ऊपर उठ गए और उसने बुदबुदाया, हमारे बुजूर्ग सही कहते थे कि बच्चे हुए सयाने तो दिलद्दर हुए पुरानेऔर उसने उठकर चन्दगी को अपने गले लगा लिया | इसके बाद चन्दगी ने अपनी पगार के रूपये जेब से निकाल कर अपने पिता जी की तरफ बढ़ा दिए | बहोड़ू राम की खुशी का पारावार न था परंतु उसने चन्दगी को यह कह दिया कि वह रूपये अपनी माँ को दे दे | क्योंकि बहोड़ू राम जानता था कि माँ- बेटे के आपसी रिश्ते में थोड़ी खटास रहती थी और यही मौक़ा है जब न तो चन्दगी उसे मना करेगा तथा न ही नानकी उससे बातचीत करने से कतराएगी | पहले तो अपने पिता जी के सुझाव पर चन्दगी कुछ ठिठका, फिर यह सोचकर कि अपनी माँ को सुधारने का आज जैसा मौक़ा शायद वह फिर नहीं पा सकेगा, उसने मान लिया | अपने मन में एक दृड निश्चय करके वह अपनी माँ से मिलने चला आया |   

चन्दगी मिठाई का दोना लेकर अपनी माँ के पास पहुंचा | माँ के मुंह में मिठाई का टुकड़ा उसके मुंह में डालते हुए कहा, माँ आपकी दुआ से मुझे आज पहली तनखा मिली है  और उसने पगार के रूपये उसके आगे कर दिए |

नानकी आँखों में सर्मिन्दगी के साथ खुशी के आंसू लिए बाहें फैलाकर चन्दगी को अपने सीने से लगाने के लिए आगे बढ़ी | वह शर्मिन्दा थी कि उसने चन्दगी को, उसके छोटे भाई के पैदा होने के बाद कभी दिल से प्यार नहीं किया था | वह पढ़ना चाहता था उसे पढ़ने नहीं दिया | उसके खाने पीने का कभी ध्यान नहीं रखा | फिर भी आज चन्दगी ने अपनी माँ के हाथ में पहली पगार रख कर यह साबित कर दिया कि उसे अपनी माँ से कोई द्वेष भाव नहीं है | जब माँ, यह कहते हुए मेरा कमाऊ पूतआगे बढ़ी तो चन्दगी अचानक पीछे हट गया तथा अपनी माँ को रोकते हुए बोला, माँ मैं आपके गले तभी लगूंगा जब आप मेरी एक बात मान जाओगी ?

चन्दगी ने अपनी माँ के चाल-चलन के बारे में मौहल्ले में प्रचलित बातों के बारे में सब कुछ जानते हुए भी उसके सामने आजतक कभी अपना मुंह नहीं खोला था क्योंकि वह उनकी समस्या का हल निकालने में अब तक असमर्थ था | वह मानता था कि यदि किसी का कोई वश न चले तो उसे एक कछुए की तरह सिकुड़ कर थोड़ी बहुत पिटाई भी झेल लेनी चाहिए | और मौक़ा मिलने पर सामने वाले को सही राह दिखा देनी चाहिए | आज चन्दगी को ऐसा ही अवसर मिला था जब वह अपनी माँ के सामने निडरता से अपने मन में बसी वर्षों की टीस को मिटा सकता था |  

चन्दगी की इच्छा सुनकर नानकी के बढ़ते कदम रूक गए वह असमंजस में पड गई | वह सोचने लगी कि ऐसी क्या बात हो सकती है जिसका वचन यह मेरे से भरवाना चाहता है | उसकी कुछ समझ नहीं आया तो उसने उसकी बात मानने की हामी भर ली | हालांकि नानकी ने हामी भर ली थी परन्तु अब उसका दिल जल्दी से यह जानने के लिए कि वह क्या बात है जोर जोर से धड़कने लगा| वह उतावली होकर चन्दगी का चेहरा निहारने लगी | उधर चन्दगी भी जल्दी से अपनी माँ को वह बात बताने में अपने को असमर्थ पा रहा था | देर होते देख नानकी अधीर होकर बोली, बोल चन्दगी मुझे क्या बात माननी होगी?

चन्दगी बड़ी मुश्किल से, जैसे उसकी जबान उसके गले में अटक रही हो, अपनी गर्दन नीची करके, हकलाते से बोला, माँ, मैं.. जानता हूँ ..कि मेरा भाई अर्जुन .....दो..दो....ला है |

नानकी को अपने बेटे की बात सुनकर अचानक ऐसा लगा जैसे उस पर कोई व्रजपात हो गया हो | वह सुन्न होकर शर्म से पानी पानी हो गयी | उससे खडा रहना मुश्किल हो गया | उसकी जबान तो जैसे गले के अन्दर ही धंस गयी थी | नानकी की यह हालत उसके ऊपर इतने दिनों  से लगाए जा रहे इलाजामों को जानकर नहीं हुई बल्कि इस लिए हुई कि नाहक ही उसके बेटे ने अपने दिल पर इतने सालों तक अपनी माँ के प्रति अनर्गल झूठी बातों का एक बोझ अपने दिल पर लादे रखा | पल भर बाद ही वह उठी और बड़े संयम से पूछा, दलीप, तू अपने दिल पर हाथ रख कर बता, क्या मैं ऐसा कर सकती हूँ ?

कुछ देर पहले जो नजरें अपनी माँ को निहार रही थी अब जमीन में गड गयी थी | नानकी को जब कोई उत्तर नहीं मिला तो उसने चन्दगी को झकझोर कर कहा, चन्दगी तू तो अपने घर की हालत जानता था | हमें दो वक्त की रोटी जुटाने के लाले पड़े रहते थे | अगर तू गोबर के उपले न बनाता तो हमें कई बार भूखों ही सोना पड़ता | तन ढकने के लिए कपड़ा पहनना भी जरूरी था | इसकी पूर्ती के लिए मैनें अपने जमीर का सौदा कभी नहीं किया | दरजी के साथ यह एक भाभी-देवर किस्म का नाटक मात्र था तथा अपनी मर्यादाओं का कभी उल्लंघन नहीं किया | विश्वास करो कि अर्जुन तुम्हारा ही भाई है |यह सब मुझे केवल अपनी गृहस्थी को फांके की स्थिति से बचाने के लिए मजबूरन ऐसा कदम उठाना पड़ा था |

अपनी माँ की बातें सुनकर चन्दगी नीचे झुका और चरण पकड़कर बोला, माँ मुझे माफ़ कर दो, आप धन्य हो |

बेटा, मैं भी इन सारी अफवाहों से अनभिज्ञ नहीं थी परन्तु यह जानकर कि तुमने इतने सालों तक इस विषाद को अपने दिल में ही दबाए रखा और किसी प्रकार का घर में कोई कलह नहीं उठाया तो सबसे बड़ा बलिदान तो तुमने किया है |अत: तुम महान हो |

चन्दगी ने अपनी दोनों बाहें फैलाकर, परन्तु अब आपका बेटा एक कमाऊ पूत बन गया है, माँ  अत:........|

नानकी आगे बढी और सिसक-सिसक कर रोते-रोते चन्दगी को अपने सीने से लगा लिया | आज कई वर्षों बाद चन्दगी ममत्व का असली स्पर्श पाकर धन्य हो गया था | माँ के साथ वह भी अपने आंसू रोक न पाया | दोनों की वर्षों से चली आ रही आपसी ग्लानी आसुओं के रास्ते दिलों से बाहर आ गई थी |

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