Tuesday, December 5, 2017

जीवन के रंग मेरे संग (मेरी आत्मकथा- 34) आख़िरी भात

लाला राम नारायण के चार लड़के तथा छह लड़कियां थी | उनके १५ नातिन तथा १० नाती थे | परन्तु वे अपने किसी भी नाती या नातिन की शादी न देख सके थे | अर्थात उनके लड़कों ने अपने पिता जी के सामने किसी भी भांजे या भांजी का भात नहीं भरा | लाला राम नारायण जी के स्वर्गवास सिधारने से पहले उनका परिवार एक संयुक्त परिवार था | हालाँकि उनके बाद उनके सभी बेटों ने राजी खुशी अपने अपने परिवार का कार्य भार अलग अलग संभाल लिया था परन्तु आपस में एकता बनाए रखना बहुत जरूरी था | भाईयों में सबसे बड़ा होने के नाते शिव चरण ने यह फर्ज बखूबी निभाया |
भात भरने शुरू हुए तो एक के बाद एक सिलसिला चलता ही रहा | शिव चरण भात भरने का सारा प्रबंध खुद करते | यह तो तर्क संगत, व्यावहारिक एवं जायज बात थी कि वे भात का पूरा खर्चा चार हिस्सों में बाँट कर अपने भाईयों से उनका हिस्सा वसूल लेते थे | उनकी देख रेख में तेईस भात हंसी खुशी निबट गए | अब तक उनकी पांच बहनों के सभी बच्चों की शादियाँ हो चुकी थी | अब केवल उनकी छोटी बहन अनीता (सुशीला) के दो बच्चों की शादियाँ होनी रह गई थी कि अचानक वे स्वर्ग सिधार गए |
समय व्यतीत होने लगा | अनीता के बच्चे भी शादी लायक हो गए | वह दिन भी आया जब उनकी लड़की राशि का रिस्ता भी पक्का हो गया | अनीता ने, बड़ा भाई न रहने के कारण, अपने बाकी तीनों भाईयों से जानना चाहा कि वह भात नौतने कहाँ आए | वैसे तो उसका फर्ज बनता था कि वह इस बारे में शिव चरण से छोटे भाई ज्ञान चन्द से सलाह लेती और शायद उसने ऐसा किया भी होगा परन्तु उनके निराशा जनक रवैये तथा उससे छोटे भाई की आकांशाओं को भांपकर उसने सभी से पूछना उचित समझा होगा |
मैनें समय की नजाकता को देखते हुए उचित समझा कि सभी भाईयो को एक साथ बिठाकर इस बारे में फैसला लिया जाए कि भात कहाँ नुतवाया जाए, उसकी रकम कितनी हो तथा किस दिन नुतवाना ठीक रहेगा | इसके लिए भाई ज्ञान चंद के यहाँ बैठक हुई जिसमें औंम प्रकाश एवं राकेश भी शामिल हुए |
बैठते ही औम प्रकाश ने अपनी महत्त्वकांशाओं को उजागर करते हुए अपना मत प्रकट किया, यह हमारे यहाँ से आख़िरी भात है इसलिए हमें पूरे रंग चाव से करना चाहिए |
अपने चाचा जी के उतावलेपन को देखकर राकेश ने पूछा, भात नौतने जैसे छोटे से कार्यक्रम को रंग चाव से करने से आपका क्या मतलब है ?
बस तुम देखते रहो कि मैं क्या करता हूँ |
औम प्रकाश का आख़िरी भात कहना मुझे कुछ अटपटा सा लगा अत: पूछा, आप इसे आख़िरी भात क्यों कह रहे हैं जबकि राशि का भाई वरुण अभी कुंवारा है ?
वरुण का क्या भरोसा पता नहीं उसकी शादी होगी भी या नहीं |
क्यों ?”
उसके लक्षणों के कारण |
बातों ही बातों में पता चला कि कुछ दिन पहले अनीता औम प्रकाश से मिलने उनके घर आई थी क्योंकि उन दिनों उनकी तबीयत खराब चल रही थी | मैनें औम प्रकाश से पता करने के लिए पूछा, क्या अनीता कुछ कह रही थी?
वह कह रही थी लड़का अच्छा है, उसका काम बढ़िया है तथा परिवार भी सभ्य एवं पढ़ा लिखा है |
ज्ञान ने कुरेदा, भात के बारे में कुछ बात हुई ?
हाँ पूछ रही थी कि भात नौतने कहाँ आऊँ |
राकेश ने, जिसके मन में खर्चे को लेकर जिज्ञासा बनी हुई थी पूछा, वह तो हो जाएगा पहले यह तय करलो कि भात कितने का देना है |
औम ने अपने अकेले का फैसला सुनाते हुए कहा, देखो भाई बात साफ़ है | मैनें अनीता से कह दिया है कि हम भात पचास हजार का देंगे |
औम प्रकाश की बात सुनकर बाकी सभी के मुहं से अचानक निकला, पचास हजार ?
हाँ पचास हजार|
ज्ञान: तुमने अपने मन से ऐसे कैसे कह दिया | इस बारे में हमसे तो कोई जिक्र किया नहीं ?
राकेश: इससे पहले तो १२-१३ हजार से ज्यादा का कोई भात दिया नहीं | अब अचानक इतना ज्यादा कैसे तय कर दिया ?               
औम: आज से दस साल पहले दिए भात में और अब दिए जाने वाले भात में बहुत फर्क है |
राकेश: वो क्या ?
औम: अब महंगाई कितनी बढ़ गई है | आजकल दस हजार में होता ही क्या है ?
ज्ञान: पहले तो तुम दस हजार के नाम पर ही बिदक उठते थे कि इतना ज्यादा |
राकेश: मानलो महंगाई बढ़ भी गई है तो इतनी तो नहीं कि पांच गुना हो गई है ?
औम अगर दबता था तो अपने बड़े भाई शिव चरण से | उनके बाद औम के मन में बहुत दिनों से दबी महत्वकाशाओं ने बाहर निकलना शुरू कर दिया था | अब वह अपने से बड़े भाई ज्ञान चंद को दरकिनार करके अपने को परिवार का मुखिया समझने लगा था तभी तो बिना किसी से सलाह लिए उसने अपना रूतबा दिखाने के लिए अनीता से पचास हजार का भात भरने को कह दिया था | औम के पास ज्ञान तथा राकेश द्वारा पूछे गए सवालों का कोई जवाब नहीं था इसलिए उसने झल्लाकर कहा, देखो मैनें कह दिया सो कह दिया | आगे आप जानो | अब आगे बात करो कि कैसे करना है |
थोड़ी देर को चुप्पी व्याप्त हो गई | अपने भाई औम की बात सुनकर मेरे मन में अचानक शंका उपजी कि हो न हो उनके कथन में कोई गहरी शतरंज की चाल का समावेश जन्म ले चुका है | क्योंकि हमेशा से ही उनकी चाल सोची समझी दूरगामी परिणाम देने वाली होती थी |
बातों का सिलसिला जारी करते हुए ज्ञान ने सुझाव दिया, इससे पहले बड़े भाई साहब एवं मैनें ही अपने यहाँ भात नुतवाए हैं अत: इस बार अगर तुम दोनों में से किसी के यहाँ भात नुत जाए तो अच्छा रहेगा |
औम: अनीता पहला भात नौतने आएगी इसलिए अपने साथ अपनी नन्द नन्दोईयों एवं अन्य रिश्तेदारों को भी अवश्य लाएगी |         
ज्ञान: हाँ कम से कम १२-१४ व्यक्ति तो हो ही जाएंगे |
राकेश: फिर तो इस काम के लिए चाचा जी का गुडगांवा वाला मकान ही ठीक रहेगा |
ज्ञान: हाँ तू ठीक कह रहा है |
औम ने बुझे दिल से अपनी सहमति जताकर मुझ से पूछा, क्यों तुझे कोई एतराज तो नहीं है ?
मुझे क्या एतराज होगा | जैसा आप सभी का विचार हो मैं उसी से सहमत हूँ |
ज्ञान: तो ठीक है यह निश्चित हो गया है कि भात चरण के घर गुडगांवा में ही नुतेगा |
औम: फिर अपना अपना खर्चे का हिस्सा देने का कैसे रहेगा ?
राकेश: देखो बात साफ़ है | वैसे तो इस खर्चे में मेरा हिस्सेदार होना ही जायज नहीं है | क्योंकि बाबू जी ही नहीं हैं | फिर भी मैं भाभी जी (मम्मी जी) से सलाह करके जो देना होगा दे दूंगा |
औम: भाई साहब नहीं हैं तो क्या भाभी जी तो अभी हैं ?
राकेश: तभी तो कह रहा हूँ कि उनसे सलाह करके ही कुछ कह सकता हूँ | हाँ अगर पहले की तर्ज पर खर्चे का रुझान होता तो मैं अभी देने की हामी भर लेता |
ज्ञान: मुझे जो देना था मैं तो अनीता को पहले ही दे चुका हूँ |
औम: आप ने भात से पहले ही क्या दे दिया ?
ज्ञान: एक टेलीवीजन और दो तीन सामान और |
औम: क्या ये वस्तुएँ भात के नाम की दी थी ?
ज्ञान: इस बात से कोई मतलब नहीं | मैं उन पर खर्च कर चुका हूँ |
औम, जिसके मनमें अपने से बड़े भाई के प्रति कोई सम्मान नहीं था गुस्से में बोला, अरे तू रहने दे इन बातों को | मैं तेरी रग रग से वाकिफ हूँ | वैसे जो तूने उन पर खर्च किया है वह किस लिए किया था ?
ज्ञान: मैं बताना जरूरी नहीं समझता |
औम: इसका मतलब तू अपना हिस्सा नहीं देगा ?
ज्ञान: जो जायज होगा मैं अपने आप दे दूंगा |
हम भाई ज्ञान चंद के यहाँ लगभग एक घंटा बैठने के बाद उलटे पाँव वैसे ही लौट आए जैसे गए थे | अर्थात उनके यहाँ तीन तीन बहुएँ होने के बावजूद चाय नाश्ता तो क्या पानी भी नसीब नहीं हुआ | इस पर औम प्रकाश, अपनी भाभी जी को सामने खड़ा देखकर, वहाँ से उठते हुए व्यंग कसना न भूला, भाभी जी चाय के साथ काजू बादाम खिलाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
भाभी जी केवल खिश्यानी मुस्कराते हुए ही रह गई |    
कुछ दिनों बाद हमारी बहन काँता के यहाँ किसी प्रोग्राम में सभी इकट्ठा हुए थे | उन दिनों काँता मेरे से कुछ नाराज चल रही थी | मेरा उनके यहाँ आना जाना नहीं था तथा न ही नन्द किशोर जी की तरफ से मेरे पास कोई निमंत्रण आया था जो मैं जाने की सोचता | इन्हीं दिनों औम प्रकाश जी ने अपने मकान में फेर बदल करके १५-२० आदमियों के बैठने का स्थान बना लिया था | इसको भांपते हुए औम प्रकाश के मन में, जो बड़े भाई साहब के गुजरने के बाद अपने को एकमात्र निर्णायक फैसला लेने वाला समझने लगा था भाईयों की सामूहिक विचार धारा को दरकिनार करते हुए, अपनी वाह वाही लूटने के अंकुर फूट गए |
शतरंज की एक गोटी, वह अनीता को ५००००/- का भात भरने का वायदा करके, पहले ही चल चुके थे | कांता मेरे से नाराज चल ही रही थी इसलिए उसका अनीता के साथ मेरे मकान पर आना मुश्किल था | सदा से ही औम प्रकाश की मसालेदार चटकारों वाली बातों से फिसल जाने वाली बहनें एक बार फिर फिसल गई | जानते हुए भी उन्होंने औम प्रकाश की जालसाजी वाली बातों का समर्थन किया तथा अंदर ही अंदर बिना किसी को कुछ बताए उनके घर पर भात नौतने का निशचय कर लिया |
एक दिन अनीता का मेरे पास फोन आया, भईया जी मैं भात नौतने आ रही हूँ |
बहुत खुशी की बात है | वैसे कब आ रही हो ?
दस तारीख को आऊँगी |
कौन कौन आ रहा है ?
कुल मिलाकर १४-१५ के लगभग हो जाएंगे |
कितने बजे तक आओगी ?
दोपहर बारह बजे तक नारायणा पहुँच जाएंगे |
नारायणा”, सुनकर मैं अचंभित हो गया |
हाँ, नारायणा |
क्या मतलब, गुडगांवा की जगह नारायणा कैसे हो गया ?
उस दिन कांता के यहाँ भाई औम प्रकाश ने इतना कुछ कहा कि मुझे उनकी बात माननी पड़ी |
बहन जी आपको तो पता था कि हम सभी ने मिल बैठकर फैसला लिया था कि भात गुडगांवा नुतेगा ?
भईया जी मुझे सब पता था परन्तु भाई औम ने मुझे मजबूर कर दिया |
और उनकी दबंगई से आप डर गई ?
भईया जी....ही...ही...ही..|
खैर कोई बात नहीं | मुझे जायजा है कि आपने किस दबाव में आकर ऐसा निर्णय लिया होगा | परन्तु एक बात मैं भी साफ़ कर देना चाहता हूँ कि अगर भात औम के यहाँ नुता तो मैं शामिल नहीं हूँगा |
भईया जी ऐसा मत करना |
बहन जी जब आप सब कुछ जानते हुए, हमारे बीच सहमति से बने निर्णय को, अपना एक पक्षीय निर्णय ले कर बदल सकती हो तो इसका मतलब निकलता है कि आपके लिए मैं कोई अहमियत नहीं रखता |
भईया जी ऐसी बात नहीं है |
बहन जी चिंता मत करो | आप मेरी जितनी भी उपेक्षा करो मैं अपना फर्ज अवश्य निभाऊंगा |
और वार्तालाप बंद हो गया |      
औम प्रकाश ने, बिना किसी और से सलाह लिए और अपनी वाह-वाही लूटने के लिए, अपने घर पर भात नुतावाने का पूरा बंदोबस्त कर लिया | अनीता एवं उसके साथ आने वाले मेहमानों का स्वागत करने हेतु गाँव के बाहर पूरा इंतजाम किया गया | इसके बाद बैंड बाजे के साथ उन्हें घर तक लिवाकर ले जाया गया | पूरे समारोह की वीडियो रील बनवाई गई | घर पर खाना बनाने के लिए हलवाई का इंतजाम था | घर के बाहर टैंट लगवाए गए थे | सब मिलाकर ऐसा वातावरण बनाया गया जो एक भात नौतने के छोटे से कार्यक्रम के लिए जरूरी न होते हुए भी यह दिखे कि केवल मुझे आता है कि मेहमान नवाजी कैसे होती है | और अगर मेरा राज होता तो अब तक के दिए सभी भातों में ऐसा ही नजारा देखने को मिलता |
विदा लेते समय आए हुए मेहमानों ने औम प्रकाश के आचरण के तारीफों के पुल बाँध दिए | विदा होने से पहले अनीता भी बहुत खुश थी | क्योंकि उसके भाई ने उनका भावभीना स्वागत करके उसकी इज्जत में चार चाँद जो लगा दिए थे | इसी वजह से पूरे प्रकरण के दौरान उसे अपने छोटे भाई का ख्याल ख्यालों में भी नहीं आया था | परन्तु अपने भाई की दहलीज पार करते हुए अनीता के कदमों में स्थिलता दिखाई देने लगी थी | शायद उसने महसूस किया कि उसकी खुशी को ग्रहण लग गया है जब उसने पाया कि उसके भाई ने इतना आडम्बर रचाने के बावजूद अपनी जबान के अनुसार अपनी भांजी का सामान जुटाने के नाम पर उसके हाथ पर एक अठ्ठनी भी नहीं रखी |
इसके दो दिनों बाद अनीता मेरे घर आई | वह मेरे यहाँ भात नौतने का सामान लेकर आई थी क्योंकि औम प्रकाश के यहाँ मैं उसके प्रोग्राम में शामिल नहीं हुआ था | वह काफी परेशान व् उदास लग रही थी | उसका चेहरा पढकर मैंने पूछा, क्या बात है बहन जी खुशी के माहौल में आप कुछ चिंतित नजर आ रही हो ?
भईया जी राशी के ब्याह की ही चिंता है |
सब हो जाएगा | आप अपने सिर पर बोझ क्यों समझ रही हो | आपके घर में तो संभालने वाले बहुत लोग हैं |
हाँ भईया जी आप वजा फरमा रहे हैं |
और बताओ मामाजी की तरफ से उसकी भांजी के लिए क्या गढ़वा रही हो ?
अनीता जो शायद अभी तक अपनी दुखती रग को दबाने की कोशिश कर रही थी झिझकते हुए बोली, भईया जी क्या बताऊँ वैसे तो औम भईया ने मेरे मेहमानों के प्रति प्रशंसात्मक रवैया दिखाया था परन्तु अपनी भांजी के लिए तो अभी तक कुछ दिखाया नहीं |
परन्तु उन्होंने तो पचास हजार खर्च करने की हामी भरी थी ?
कहा तो था परन्तु आज मिले तो उन्होंने मेरे हाथ में एक चिट्ठा थमा दिया है |
कैसा चिट्ठा ?
आप ही देख लो, अनीता ने एक कागज़ मेरी और बढ़ा दिया |
मैनें पढ़ा तो पता चला कि वह उनके यहाँ भात नौतने के खर्चे का हिसाब था | उसमें सब मिलाकर लगभग १८०००/- रूपये का खर्चा दर्शाया गया था | पूरा पर्चा पढकर जब मैनें अनीता की तरफ प्रश्न वाचक दृष्टि से देखा तो उसने बताया, औम भईया कह रहे थे कि पचास हजार में उनका हिस्सा १२५००/- बनता है |
तो ?
उनका कहना है कि जब और भाई अपना हिस्सा दे देंगे तो वे मुझे बाकी रकम दे देंगे |
इसका क्या मतलब जब उन्होंने किसी से सलाह लिए बिना ही आप से वायदा किया है तो उसे पूरा करने की जिम्मेवारी भी तो खुद उठानी चाहिए | बड़े भाई साहब ऐसा ही करते थे |वे पूरा खर्च करके सब भाईयों से बराबर बराबर लेते थे |
अनीता ने अपने मन को खोला, हाँ होना तो ऐसा ही चाहिए |
अगर किसी ने नहीं दिए तब ? क्योंकि मेरा संशय है कि अगर किसी को देना होता वे भात नौतने वाले दिन ही दे देते |
मेरा प्रश्न सुनकर अनीता मेरे मुहं की तरफ टुकर टुकर देखने लगी | वह विचारों में खो गई क्योंकि शायद उसे भी महसूस हो रहा था कि कुछ ऐसा ही होने वाला है | उसको उसके विचारों के मंथन से बाहर करने के लिए मैनें दिलासा दी, बहन जी मैं राशी के भात पर १५०००/- रूपये खर्च करने का विचार रखता हूँ | आप दस हजार में राशी की इच्छानुसार कुछ बनवा लेना बाकी पांच हजार मैं भात वाले दिन नकद थाली में रख दूंगा |
मेरे कहने से अनीता के मुरझाए चेहरे पर एक मुस्कान एवं संतुष्टि की झलक उभरती दिखाई दी | अभी तक जो  भाईयों की तरफ से आगे का रास्ता धूमिल सोचकर अंदर ही अंदर कुढ़ रही थी बुदबुदाई, इतना आडम्बर रचकर फिजूलखर्ची करने की क्या जरूरत थी जब असली काम के लिए तुम कुछ नहीं कर सकते | अब मुझे पछतावा हो रहा है कि उनके बहकावे में आकर मैनें बहुत बड़ी गल्ती की है |
अनीता की मन: स्थिति को समझकर मैनें उसे उकसाया, बहन जी अभी भी गल्ती को सुधारा जा सकता है |
वह कैसे ?
मैं आपको जितना हिसाब इस पर्चे में लिखा है वह तथा पचास हजार रूपये अभी दे देता हूँ परन्तु आपको हिसाब के पैसे थाली में रखकर बा-इज्जत औम भाई को लौटाने की हिम्मत दिखानी होगी |
अनीता कांपकर झट से बोली, नहीं भईया जी यह मेरे से नहीं होगा |
मैं जानता हूँ कि यह काम आप से नहीं होगा क्योंकि आप मुझे छोड़ सकती हैं उनको......|
नहीं भईया जी ऐसा नहीं है |
ऐसा क्यों नहीं है, क्या एक हफ्ता पहले मुझे छोड़ा नहीं ?
अनीता मेरी बात का कोई जवाब न देकर चुपचाप आँखे नीची करके बैठ गई | मैनें उसकी तरफ दस हजार रूपये बढाते हुए कहा, बहन जी आप चिंता मत करो | मैं आपको नहीं छोडूंगा तथा अपना फर्ज पूरा निभाऊंगा और अगर जरूरत पड़ी तो जो मैनें कहा है उससे भी ज्यादा खर्च करने से पीछे नहीं हटूंगा |
अनीता ने दस हजार रूपये पकड़ते हुए कहा, भईया जी कांता के यहाँ मुझे सभी द्वारा बहुत मजबूर कर दिया गया  था कि मैं गुडगांवा भात न नौतुं |
बहन जी मुझे अंदाजा है कि गुडगांवा भात न नौतने के क्या क्या कारण बने हैं“, फिर अनीता को उसकी शर्मिंदगी से बाहर निकालने के लिए तथा उसका साहस बढाने के लिहाज से उसके मन की सी बात कही, बहन जी सभी मैजोरिटी का साथ देते हैं | आपने भी वैसा करके कोई गलत नहीं किया है |
और अनीता मेरे यहाँ से खुशी खुशी विदा हो गई |
भात वाले दिन सभी युसूफ सराय पहुँच गए | भाई ज्ञान ने बात छेड़ते हुए मुझ से पूछा, अब आगे कैसे क्या करना है ?
इस बारे में मैं आपको क्या सलाह दे सकता हूँ क्योंकि आप तीनों के तो अलग विचार हैं ?
ऐसी बात नहीं है | अनीता के भात नौतने वाले दिन तक मुझे पता ही नहीं था कि तुम शामिल नहीं हो रहे हो |
उस दिन से आजतक तो काफी दिन व्यतीत हो गए हैं | इस बीच आपकी तरफ से कोई बात उठी ही नहीं |
बीच में समय ही नहीं मिला इस लिए आज पूछ रहा हूँ |
मैं अब भी भात देने में आप सभी के साथ सम्मिलित हो सकता हूँ बशर्ते सारे कार्यों की बागडोर आप अपने हाथों में ले लो तभी |     
मेरी शर्त ने भाई ज्ञान की बंद जबान एवं मूक दृष्टि ने उनकी असमर्थता बयाँ कर दी | उनकी स्थिति देखकर मैं समझ गया कि उन तिलों में तेल नहीं है और मुझे उन तीनों से अपना फर्ज अलग निभाना होगा |
अनीता द्वारा आरते की रस्म निभाने के बाद भात देने का कार्यक्रम शुरू हुआ | जब औम प्रकाश ने अपने से बड़े भाई ज्ञान चंद की उपेक्षा करते हुए मेहमानों को खुद टीका करने की प्रक्रिया शुरू कर दी तो मौसा चन्द्र भान ने कटाक्ष किया, भई वाह, औम लगता है बड़े भाई के न रहने से खुद घर की चौधराहट संभाल ली है ?
नहीं मौसा जी बड़ा भाई तो आपके सामने बैठा है |
तभी तो मैं कह रहा हूँ |
मौसा जी का कटाक्ष समझते हुए ज्ञान चंद ने उड़ते गुब्बार को दबाने के लिए दलील दी, हाँ मैं बड़ा भाई हूँ और मैनें ही औम से कहा है कि मान के टीके वही कर दे |
टीकों का काम निबटाने के बाद औम ने एक परांत मंगाकर अपने भाईयों के सामने सरका कर कहा, जिसे जो देना है इसमें रख दो |
औम का कथन सुनकर वहाँ बैठे हुए अधिकतर लोगों के चेहरे पर प्रश्न वाचक रेखाएं उभर आई | वे सभी एक दूसरे की तरफ ऐसे देखने लगे जैसे पूछ रहे हों कि क्या आपने भी वही सुना है जो हमने सुना है | औम प्रकाश द्वारा  यह जताने की कोशिश कि अभी तक जो होता आया था वह बेकार तथा हमारी हैसीयत और औकात से बहुत छोटा होता था कामयाब न हो सकी | उसके इरादों का किला ताश के पत्तों के महल की तरह धराशाही होकर रह गया जब उसने पाया कि परांत खाली ही रह गई | जिसने भात के नाम पर कुल बारह हजार को भी हमेशा ज्यादा माना था आज खुद की चौदराहट दिखाने के लिए ५००००/- की बात करके हंस बनने की कोशिश कर रहा था |
इस समय पूरी बिरादरी के सामने अपने परिवार की साख बचाना बहुत आवश्यक समझ मैनें उस खाली परांत में वह सोने का सेट, जो अनीता ने मेरे दिए रूपयों में बनवाकर मुझे सौंप दिया था, तथा पांच हजार रूपये नकद रखकर परांत सबके सामने रख दी | और बिरादरी के लोगों ने बहुत बढ़िया बहुत बढ़िया कहते हुए विदा ली |
राशी की शादी सुचारू रूप से सम्पन्न हो गई |
एक दिन अनीता मिलने के लिए मेरे घर आई | कुशलक्षेम पूछने के बाद मैनें उससे पूछा, क्या औम भाई ने अपनी जबान के अनुसार आपको भात की पूरी रकम दे दी है ?
अनीता कुछ सकुचा कर बोली, भईया जी जो आपने किया था हाथ में बस वही आया है |
बाकी पैसों के लिए क्या कह रहे हैं ?
अनील ने बताया है कि राशन का ५५००/- रूपये का सामान उसके यहाँ से गया था जिसके पैसे उसे अभी तक नहीं मिले हैं | ज्ञान भाई का कहना है कि जितना उन्हें लगाना था वे लगा चुके हैं | बड़ी भाभी जी कह रही थी कि उन्हें जो देना होगा अपने हिसाब से दे देंगी |
औम अपने हिस्से का खर्चा भात नौतने वाले दिन कर चुका था | मैनें भात वाले दिन अपना फर्ज अदा कर दिया था | ज्ञान भाई ने कह दिया था कि वे अपना हिस्सा लगा चुके हैं और बड़ी भाभी जी ने कहा था वे अपने अनुसार  दे देंगी | इस परिस्थिति को जानकर मेरा मन व्यथित हो उठा | लगा हमारे भाईयों की राम, भरत, लक्षमन एवं शत्रुघ्न जैसी मजबूत चौकड़ी ने, बड़े भाई साहब (राम) शिव चरण के स्वर्गवास के बाद, बिखर कर चांडाल चौकड़ी, अब तिकड़ी, का रूप ले लिया है | जहां आपस में वर्त्तमान युग के लोगों के विचारों की तरह स्वार्थ एवं अहंकार के अलावा कुछ नहीं रह गया है |
अपनी सोच से बाहर निकलकर मैं बुदबुदाया, बहन जी शायद यह वर्त्तमान युग की प्रथा का असर है जहां हर वस्तु किश्तों पर उपलब्ध है | तभी तो यह (आख़िरी) भात भी किस्तों में भरा जा रहा है |
पता नहीं मेरी बात अनीता ने सूनी या नहीं तथा मेरे बोल के मायने समझ सकी या नहीं वह चुपचाप उठी और नमस्ते करके बाहर निकल गई |      


Friday, December 1, 2017

जीवन के रंग मेरे संग (मेरी आत्म कथा-33) कलियुग का असर

जीवन के रंग मेरे संग (मेरी आत्म कथा-33) कलियुग का असर
राजा दशरथ के समान राम, भरत लक्ष्मण और शत्रुघ्न, जैसे सेठ राम नारायण के भी चार पुत्र थे, | शिव चरण, ज्ञान चन्द, औम प्रकाश तथा चरण सिंह | सेठ ने यह तो सोच लिया था कि बड़े होकर उसके पुत्र भी त्रेता युग के पुरूषोत्तम राम तथा उनके भाईयों की तरह उसका नाम रोशन करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे | परन्तु सेठ यह न सोच सका कि अब कलियुग चल रहा था और त्रेता युग तथा कलियुग में बहुत अंतर है |
त्रेता युग में आपसी प्रेम, सदभावना, सत्यता, आदर-सत्कार, विश्वास, इंसानियत और भाई चारा इत्यादि बहुत महत्त्व रखते थे | प्राण जाए पर वचन न जाई को निभाने में अपना गर्व समझते थे | परन्तु कलियुग में आपसी अविश्वास, घृणा, झूठ, निरादर, धोखा, फरेब तथा अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की अपकीर्ति का प्रचलन शुरू हो गया था |
इतनी गनीमत थी कि कलियुग का अभी आगमन हुआ ही था इस वजह से सेठ राम  नारायण के लड़कों पर इस युग का अधिक असर नहीं हो पाया था परन्तु वे कलियुग की तरंग अर्थात लहर से अछूते भी नहीं रह पाए थे |
जैसे राजा दशरथ को राम प्यारे थे उसी तरह सेठ राम  नारायण को अपना बड़ा बेटा शिव चरण बहुत प्यारा था | सेठ निस्वार्थ भाव से कोई भी काम करने से पहले शिव चरण  की सलाह जरूर लेता था | परन्तु शिव चरण  ‘बाप बड़ा न भईया सबसे बड़ा रूप्पया’ को ध्यान में रखकर ही कोई कदम बढाता था | अमूमन  शिव चरण  बहुत ईमानदारी से काम करता था परन्तु कभी कभी वे अपने फायदे के लिए अपने अंदर से निकलती तरंग के वशीभूत नाजायज तथा अपने असूलों के खिलाफ भी कदम उठाने से नहीं चूकते थे |     
ऐसी ही विचार धारा के चलते शिव चरण  ने सेठ की कई सलाह को नकार दिया जिससे वे परवान न चढ सकी | राम  नारायण द्वारा सुझाई गई कई जमीन के सौदों को शिव चरण  ने अलग अलग बहाने बनाकर जैसे यह सैयद की है, यह शमशान के पास है, यह सर्प मुंह वाली है इत्यादि बताकर लेने से इनकार कर दिया क्योंकि उनमें उंसके भाई हिस्सेदार बन जाते | इसके विपरीत अपने भविष्य की कल्पना से उन्होंने एक मकान का सौदा करने में कोई आनाकानी नहीं की जब राम  नारायण ने पूछा, बेटा वह सामने वाला अपना मकान गिरवी रखने को कह रहा है |
शिव चरण  एकदम बोला, जैसे वह ऐसे किसी सौदे का इंतज़ार ही कर रहा था, रख लो गिरवी रखने में कोई हर्ज तो है नहीं |
राम  नारायण को मकान मालिक द्वारा बताई गई कीमत कुछ ज्यादा ही लग रही थी अत: कहा, वह १००००/- मांग रहा है |
शिव चरण  ने भी अपने पिता जी के दिल की बात का समर्थन किया, यह तो बहुत ज्यादा रकम है |
राम  नारायण ने अपने तजुर्बे से बताया, गिरवी क्या इतनी तो इस मकान की कीमत भी नहीं होगी |
शिव चरण  ने इस बारे में अपने स्वार्थी मन के वशीभूत सलाह दी, पिता जी वैसे गिरवी के लिए ज्यादा पैसा देना भी हमारे पक्ष में ही रहेगा |
शिव चरण  की सोच राम  नारायण की सोच से बहुत ऊपर की थी | उसे कुछ समझ न आया इसलिए आशचर्य से पूछा, वह कैसे ?
मकान मालिक की माली हालत दर्शा रही है कि वह हमारा पैसा समय पर चुकता नहीं कर पाएगा |
बेटा फिर भी इस मकान की कीमत छह हजार से ज्यादा की नहीं है |
पिता जी बात करके देख लो शायद वह मान जाएगा |
मकान मालिक से बात हो गई वह छह हजार में मान गया | रजिस्ट्री कराने के समय राम  नारायण ने पूछा, रजिस्ट्री किसके नाम कराई जाए ?
शिव चरण  ने अपनी मंशा न बताते हुए जवाब दिया, देख लो |
राम  नारायण ने अपने दिल की बताई,
चरण सिंह के नाम करा देते हैं |
अपनी आशा को निराशा में परिवर्तित होते जान शिव चरण  बोला, पिता जी अभी तो गिरवी रख रहे हैं जब रजिस्ट्री की बात आएगी तो देखा जाएगा |
फिर ?’
पिता जी आप अभी तो अपने नाम से बयाना करा लो |
राम  नारायण अपने बेटे शिव चरण  की बात से सहमत होकर, ठीक है |
और मकान का बयाना हो गया | समय पर पैसा चुकता न करने पर मकान मालिक को राम  नारायण के हक में मकान बेचना पड़ा | समय व्यतीत होने लगा | राम  नारायण का स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन बिगडने लगा था | इसलिए समय पर अपनी दिनचर्या के लिए उन्होंने अपने बेटे ज्ञान चन्द  को दुकान की ऊपरी मंजिल पर ही रख लिया था | अब शिव चरण  और औम प्रकाश  पुराने मकान पर रह गए थे | फिर भी यह एक संयुक्त परिवार ही था |
अचानक राम  नारायण का स्वर्गवास हो गया | उनके जाते ही घर में लड़कों के बीच स्वार्थ सिद्धी की होड मच गई | अचानक घर के शांत वातावरण में तूफ़ान आने की सम्भावनाएं मुहँ उठाने लगी | शिव चरण  के अंदर से निकली तरंग ने अपनी दबी आकांशाओं को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया | ज्ञान चन्द  तो पहले से ही अपने पिता जी की देखभाल के नाम पर अपनी रसोई अलग कर चुका था | अब शिव चरण  ने भी मन बना लिया कि उसे भी औम प्रकाश  से अपनी खिचड़ी अलग पकानी शुरू कर देनी चाहिए | मौक़ा भी अच्छा था | राम  नारायण के तीन मकान थे | चरण सिंह बाहर सर्विस करता था | सब भाई यही सोच रहे थे कि वह तो जीवन भर अब यहाँ आकर बसने से रहा | इस बात को ध्यान में रखकर शिव चरण  ने अपनी पुरानी रिहाइस को छोड़कर लिए गए नए मकान में डेरा जमाने का मंसूबा बना लिया |
इसके तहत एक दिन शिव चरण  ने बिना अपने मन की इच्छा जाहिर किए तथा अपने भाईयों के मन की टोह लेने के लिए उनसे पूछा, अब क्या करना है ?
छोटे भाईयों ने शिव चरण  की बात न समझ उल्टा प्रश्न किया, किस बारे में ?
पिता जी के न रहते अब सम्मिलित परिवार चलाना तो मुश्किल है |
औम प्रकाश  ने हामी भरी, हाँ यह तो सही है |
ज्ञान चन्द  ने असमंजसता दिखाई, हमारे पास तीन मकान हैं परन्तु हम भाई चार हैं |
औम प्रकाश  अधीरता से एक दम बोला, चरण सिंह तो बाहर नौकरी करता है और उसके वापिस आने का भी नामुमकिन लगता है |
शिव चरण  बनते हुए जो पहले से ही दूसरे के कंधें से बन्दूक चलाना चाहता था, ने पूछा, तो ?
हम तीनों एक एक मकान ले लेते हैं |
औम प्रकाश  की बात से शिव चरण  को बहुत शकुन मिला | क्योंकि वह यही चाहता था तथा उसकी मनोइच्छा को औम प्रकाश  ने जाहिर कर दिया था | ज्ञान चन्द  पहले से ही एक अलग मकान में रह रहा था अत: उसे कोई आपत्ति क्यों होनी थी | इस प्रकार तीनों भाई ने एक एक मकान के मालिक बनने की ठान ली |
चरण सिंह जो बाहर रहता था उसका कुछ सामान राम  नारायण के पुराने मकान में रखा था | जब कभी वह घर पर छुट्टी आता था तो उसका इस्तेमाल करता था | जब उसकी माँ को अपने तीनों बड़े बेटों की मनशा पता चली तो उन्होंने साफ़ कह दिया कि उस मकान के नीचे का हिस्सा जिसमें चरण सिंह का सामान रखा था वह खाली नहीं करने देगी तथा वह चरण सिंह के लिए ही रहेगा | इतने बड़े मकान में से थोड़ा सा हिस्सा चरण सिंह के लिए सुरक्षित रखने में किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई |
चरण सिंह के अपने पिता जी की तेरहवीं के जाने के बाद कुछ ही दिनों में संदेशा मिला कि उसके सब भाई अलग रहने लगे थे | राम  नारायण की अन्य संपत्ति का निपटारा भी भाईयों ने आनन् फानन में चरण सिंह की अनुपस्थिति में कर दिया | उसका हिस्सा उसकी माँ के सुपुर्द कर दिया गया | चरण सिंह को अपने बड़े भाई शिव चरण  पर पूर्ण विश्वास था कि हिस्सा बाँट में वे किसी प्रकार की कोई बेईमानी नहीं होने देंगे | इसी वजह से उसने इस बारे में कोई आपत्ति नहीं उठाई तथा जैसा उन्होंने किया उस को मान लिया |
चरण सिंह ने जब अचानक बाहर से नौकरी छोड़कर अपने घर बसने की कोशिश की तो उसके  जीवन में एक तरह का भूचाल सा आ गया था | पहले वह जब भी कुछ दिनों के लिए छुट्टियों पर आता था,तो उसके भाई यह कहते नही थकते थे कि  बाहर की नौकरी में क्या रखा है उसे छोड़कर यहीं आ जा यहाँ करने को बहुत काम है अब उसे कोई काम कराने के नाम पर कन्नी काटते नजर आए |
यह तो भगवान ने उसकी माता जी को सदबुद्धी दे दी जिसकी वजह से वह अपने घर में घुसने का मौक़ा पा सका अन्यथा उसके तीनों भाई, उसे भूल कर एक एक मकान के मालिक बन बैठे थे | जब चरण सिंह नौकरी छोड़कर आया था तो उसके तीनों भाई हर प्रकार से संपन्न थे | उनके पास सुख पूर्वक जीने के हर साधन मसलन गाड़ी, टेलीवीजन, कूलर, सोफा,, फ्रिज इत्यादि  सभी कुछ था परन्तु उसके पास इनमें से एक भी नहीं था |
इन्हीं सभी बेजान वस्तुओं के कारण भाई के परिवार के बड़े सदस्यों के माध्यम से बच्चों के बीच ईर्षा फैलाने का काम शुरू हो गया | चरण सिंह के बच्चे अपने ताऊ जी के घर जब टेलीवीजन देखने जाते तो उन्हें कुर्सी या चारपाई पर न बैठाकर नीचे जमीन पर बैठा दिया जाता | गर्मियों में अगर प्यास लगती तो ठंडा पानी नहीं दिया जाता | अगर वे अकेले कमरे में रह जाते तो कूलर बंद कर दिया जाता | वे ईर्षावश आपस में ऐसी बहुत सी बाते करते जो चरण सिंह की हीनता दर्शाती थी |
धीरे धीरे चरण सिंह को महसूस होने लगा कि उसके पास इन भौतिक वस्तुओं की कमी के कारण दो भाईयों के बीच, जो कभी एक थाली में रोटी खाए बिना नहीं रहते थे एक गहरी खाई बनती जा रही है | यह खाई दिन पर दिन इतनी चौड़ी होती गई कि एक दिन ऐसा आया जब चरण सिंह को साफ़ कह दिया गया, तेरा इस मकान में रहने का कोई हक नहीं है तू अपना कही और इंतजाम करले |
घर में कलह का वातावरण व्याप्त होने लगा था | चरण सिंह के परिवार को घर से बाहर खदेड़ने कि लिए हर कदम पर उन्हें तंग करना शुरू कर दिया गया था | चरण सिंह किसी प्रकार का कोई फिसाद खड़ा करना नहीं चाहता था | उसने निजात पाने के लिए अपना मन बना लिया था कि वह गुड़गांवा में अपने एक जमीन के टुकड़े पर मकान बना कर चैन से रहेगा | परन्तु   उसके  भाई औम प्रकाश  को शायद उसका सुख चैन मंजूर न था एक दिन उन्होंने माँ से कहा, माँ मैनें एक मकान बनवा लिया है मैं उसमें जाकर रह लूंगा तू मुझे इस मकान के एवज में चरण सिंह का प्लाट दिलवा दे |
कहाँ बनवा लिया है ?
चलो दिखा लाता हूँ |
और वास्तव में ही वे माँ को एक मकान दिखा लाए जो बनकर पूरा होने वाला था | चरण सिंह ने माँ के कहने पर वह अपना प्लाट भाई के नाम कर दिया | औम प्रकाश  ने वह प्लाट बेचकर ठेंगा दिखाए हुए कहा, न तो मैं यह घर छोड़कर जाऊंगा तथा न ही प्लाट बेचे के पैसे लौटाऊंगा | जिसे जो करना है कर ले |
यही नहीं दो तीन और ऐसे प्लाट जो उन दोनों भाईयों ने मिलकर खरीदे थे उनका भी तिकड़म भिड़ाकर मुनाफ़ा वे खुद ही हड़प कर गए | चरण सिंह जब बाहर नौकरी करता था तो घर आकर कैसे जीवन व्यतीत करना बेहतर रहेगा अधिकतर इनसे ही सलाह लेता था परन्तु नौकरी छोद्दने के बाद ये ही सबसे ज्यादा उसके खिलाफ रहे | अपनी भाभी जी को, जब उनके रिस्ते अपने भाई औम प्रकाश  के साथ ठीक नहीं चल रहे थे तो, चरण सिंह ने ही उन्हें सान्तवना देने का फर्ज निभाकर उनके जीवन की खुशियाँ लौटाने का काम किया था परन्तु न जाने क्यों ये भी  उसके  तथा उसके परिवार के प्रति भाई औम प्रकाश  के व्यवहार से दो कदम आगे ही दिखाई देती थी | चरण सिंह उनके इस घर्णात्मक रवैये का राज उनके आख़िरी दम तक समझ न पाया  फिर भी उसने अपनी तरफ से कभी भी उनका प्रतिरोध नहीं किया तथा उन्हें हमेशा अपने बड़े भाई का दर्जा दिया |
बेकार से बेगार भली को ध्यान में रखकर चरण सिंह ने अपने घर में एक दुकान खोलने का मन बना लिया | ज्ञान चन्द  ने उसे थोड़ा सामान का सहारा देते हुए जनरल मर्चेंट की दुकान खुलवा दी | जिस पर औम प्रकाश  ने टोंट कसते हुए कहा था, कुर्सी पर बैठना सभी की किस्मत में नही होता नमक मिर्च की चुटकी उड़ाने वाले तो बहुत मिल जाते हैं | परन्तु भगवान की दया से चरण सिंह की दूकान का काम किसी की भी सोच से दस गुना ज्यादा फायदेमंद रहा | उसकी दुकान अच्छी चल रही थी | भगवान ने चरण सिंह को छप्पर फाड़ कर पैसा दिया कुछ ही दिनों में  उसके पास भी ग्रहस्थी का हर प्रकार की सुविधा का सामान आ गया था |
चरण सिंह की दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की ने उसके भाई औम प्रकाश  के परिवार के सदस्यों में उसकी तरक्की के अनुपात में ईर्षा बढ़ा दी | जो जिस प्रकार से चरण सिंह के परिवार को नुकसान तथा तंग कर सकता था करने लगा | चरण सिंह की भाभी जी की ईर्षा तो इस हद तक पहुँच गई कि उसने चरण सिंह की दुकान का काम बंद कराने के मकसद से उसकी दुकान की छत को ही मुस्ली की चोट से तोडना शुरू कर दिया | 
अपने बड़े भाई साहब शिव चरण  को चरण सिंह अपने तथा औम प्रकाश  के बीच पनप रहे तनाव से अवगत करा देता था परन्तु  उसे सुलझाने का उन्होंने कभी कोई कारगर कदम नहीं उठाया | चरण सिंह को उनका ऐसा रूखापन कई बार बहुत खटकता था परन्तु यही सोचकर चुप रह जाता था कि शायद वे केवल अपने परिवार में ही उलझे रहना चाहते थे |वैसे जन भी कभी ऐसा मौक़ा आता था जहां चारों भाईयों को मिल कर खर्च करना पड़ता था तो वे बड़े कायदे से उस काम को अंजाम देते थे हांलाकि चरण सिंह  के दूसरे भाई उनके काम की नुक्ताचीनी कर भी देते थे परन्तु उसने कभी भी उनसे किसी प्रकार का विरोध नहीं किया तथा अपनी हैसियत न होते हुए भी जो उन्होंने खर्चे का हिस्सा माँगा उन्हें चुकता कर दिया | चरण सिंह उन्हें अपने पिता के समान समझता था |
चरण सिंह के दोनों बड़े भाई सुख चैन से अलग अलग अपने मकानों में रह रहे थे | इधर औम प्रकाश  तीसरे मकान पर अपना पूरा मालिकाना हक समझते हुए चरण सिंह  को परेशान करता रहता था | एक बार दोनों छोटे भाईयों के मकान को दुरूस्त कराने के लिए दोनों बड़े भाईयों ने हमदर्दी जताते हुए महज पांच पांच हजार सहयोग देने का ऐलान किया | औम प्रकाश  ने तो वे पांच हजार शिव चरण  ये पकड़ लिए परन्तु चरण सिंह ने हाथ नहीं फैलाए | वैसे चरण सिंह आज तक नहीं समझ पाया कि औम प्रकाश  जैसा व्यक्ति जो जमीनों एवं मकानों के बड़े बड़े फैसले कराता हो वह भला अपने मकान का आधा हिस्सा महज पांच हजार में कैसे छोड़ सकता है | चरण सिंह के विचार से ऐसा केवल एक साजिस के तहत ही हो सकता है |
चरण सिंह को अपने ईश्वर पर भरोसा था वह अपने हिस्से का घर ठीक करवा रहा था | मकान का काम धीरे धीरे रेंग रहा था जितनी कमाई होती थी उसी अनुसार उसे थोड़ा थोड़ा बनवाया जा रहा था | एक दिन चरण सिंह  के बड़े भाई आए और बीच गली में खड़े होकर जोर से चिल्लाए, चरण सिंह तू बेईमान है |
चरण सिंह शिव चरण  की इस अप्रत्याशि उपाधी से सकते में आ गया | उसकी समझ में नहीं आया कि  आखिर उसने ऐसा क्या कर दिया था जो आज वे मुझे यह उपाधी दे रहे हैं | उसने उनसे पूछने की कोशिश की परन्तु जवाब न देकर वे वापिस मुड़े और चले गए |
दिन प्रतिदिन लक्षमन एवं भाभी जी का चरण सिंह के परिवार के प्रति घर्नात्मक एवम ईर्षालू  रवैया बढता जा रहा था, उसके मन का गुब्बार भी भारी एवं असहनीय होता जा रहा था | समझ नहीं आ रहा था कि वह अपना मन हल्का कैसे करे | वह लड़ाई झगड़े एवें कोर्ट कचहरी से कोसों दूर रहना चाहता था |  
जब घर के भाईयों में मन मुटाव होता है तो भेडिये की तरह मौके की तलाश में ऐसे कई लोग होते हैं जो अपनी पुरानी रंजिस या ईर्षा को भुनाने की कोशिश करते हैं | जब चार भाईयों के बीच मन मुटाव चल रहा था तथा चरण सिंह के बड़े भाई साहब ने उसे सरे आम बेईमान कहा था तो उसके चाचा के लड़के ने अपना उल्लू सीधा करने के लिहाज से उसके प्रति सहानुभूति दिखाते हुए कहा, मेरा एक रिश्तेदार बहुत नामी वकील है तुम्हें तुम्हारा हक दिला देगा |
कौन सा हक, कैसा हक, भाई साहब  मैं कुछ समझा नहीं ?
चाचा के लड़के ने ऐसे कहा जैसे चरण सिंह एक बहुत बड़ा मूर्ख था, अरे यही बाप की जमीन जायदाद का हक |
परन्तु वह तो मुझे मिल गया है |
मिल गया, अपनी चाल सफल न होते देख उसने फिर कोशिश की, परन्तु आपको पूरा कहाँ मिला है ?
चरण सिंह नें बड़े संयम से कहा, भाई साहब जो मिल गया मैं उसी में खुश हूँ अगर मैं ज्यादा के लिए मुकदमें बाजी करूँगा तो तो सालों बाद जितना मुझे मिलेगा उतना तो मैं बर्बाद कर चुका हूँगा | ऊपर से मन की शांति भंग रहेगी |  किस्मत में होगा तो ईश्वर मुझे और किसी रास्ते से दे देगा | यह किसी गैर ने नहीं बल्कि मेरे भाईयों ने ही तो लिया है जिन्हें इसकी जरूरत है |
चरण सिंह के विचार सुनकर उसके चाचा के लड़के को उठना भारी पड़ गया और उसने हताश सा होकर यह कहते हुए, मैं तो आपकी मदद करना चाहता था आगे आपकी मर्जी कहकर अपने घर की राह पकड़ी |
थोड़े दिनों बाद चरण सिंह को अपने बड़े भाई शिव चरण  की इस हीन भावना तथा उसके प्रति स्वार्थ भरी ईर्षा का पता चल गया |  कुछ दिनों पहले वे एक राजी नामे का पत्र लाए थे | पत्र को चरण सिंह की तरफ बढ़ाकर कहा था, इस पर अपने दस्तखत कर दो |
यह क्या है ?
पढ़ ले |
चरण सिंह ने पढ़ा | लिखा था, राम  नारायण के चार पुत्रों की सहमती के अनुसार शिव चरण  और ज्ञान चन्द  अलग मकानों में रहेंगे तथा औम प्रकाश  और चरण सिंह पुराने मकान में आधे आधे के हकदार होंगे |
चरण सिंह ने अपनी खोजी नजर अपने बड़े भाई की तरफ देखकर पूछा, इसकी क्या जरूरत है ?
बस ऐसे ही कि बाद में बच्चों के बीच आपस् में कोई तकरार न हो |
चरण सिंह ने उन्हें याद दिलाने के लहजे में जवाब दिया, तकरार तो मैंने तब भी नहीं करी थी जब आपने मेरे बिना पिता जी की संपत्ति का बंटवारा कर दिया था |
शिव चरण  के पास इसका कोई जवाब नहीं था | उन्होंने इतना ही कहा, हमारी बात और थी आगे वैसा समय नहीं रहेगा |
चरण सिंह ने अपने भाई को आश्वासन दिया, भाई साहब मुझे इसमें कोई एतराज नहीं है |
इतना सुनते ही शिव चरण  ने पैन चरण सिंह के हाथ में थमाते हुए बताया, यहाँ दस्तखत करदो |’
उस पत्र के अनुसार शिव चरण  सभी भाईयों से उस मकान का मालिकाना हक चाहते थे जिसमें वे रह रहे थे | हालाँकि उस मकान पर चरण सिंह का हक था क्योंकि राम  नारायण ने यही सोचकर वह मकान खरीदा था | फिर भी चरण सिंह ने उनके पत्र पर चुपचाप दस्तखत कर दिए थे |
चरण सिंह से दस्तखत कराने के बाद शिव चरण  ने औम प्रकाश  से भी राजीनामा लेना चाहा तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया था | बल्कि उन्होंने शिव चरण  पर बहुत से इल्जाम लगा कर यहाँ तक कह दिया कि वह पंचायत बुलाकर पूरा फैसला कराएगा |
औम प्रकाश  के एतराज ने शिव चरण  की रातों की नींद उडा  दी | शिव चरण  परेशान रहने लगा कि उस समस्या से कैसे पार पाया जाए | उनके दिमाग ने या किसी की सलाह से उन्होंने औम प्रकाश  का भरोसा हासिल करने के लिए अपने ईमानदार भाई से ईर्षा करने का नाटक करने का फैसला ले लिया | इन्हीं विचारों के चलते शिव चरण  ने अपने दिल पर पत्थर रख कर चरण सिंह को बेईमान कहने से कोई गुरेज नहीं किया था |
चरण सिंह को अपने प्रति शिव चरण  की बेरूखी का राज पता चल गया था | इसके कारण ही जब भी चरण सिंह उनसे लक्षमन की कोई शिकायत करता था तो शिव चरण  चुप्पी साध लेते थे | वास्तव में अपने बड़े भाई की बेबसी और संतान मोह को भांपकर चरण सिंह खुलकर रोए बिना न रह सका था क्योंकि वह भी अपने आप को उनके बेटे के सामान ही समझता था | यही वजह रही कि शिव चरण  द्वारा अपना तिरस्कार सहने के बाद भी चरण सिंह ने उनके प्रति अपनी इंसानियत व श्रधा कायम रखी और अपने भाई शिव चरण  के प्रति मन में कोई गिलानी नहीं लाया |
एक छोटे से प्रलोभन के लिए अपने बेटे तुल्य भाई से ईर्षा करने का नाटक भी शिव चरण  को अपनी मंजिल तक नहीं पहुंचा पाया क्योंकि औम प्रकाश  ने उनके पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए | इससे शिव चरण  को बहुत पश्चाताप हुआ और एक दिन खाने के समय वह आकर चरण सिंह के घर बैठ गया और चुपचाप खाना खाकर चला गया | उनके इस व्यवहार से चरण सिंह समझ गया कि असलियत में उनकी वह ईर्षा नहीं थी बल्कि उनकी बुद्धि पर कलियुग के कारण अपनी वास्तविक संतान मोह का असर था |