Wednesday, March 19, 2025

मस्तानी भाग-18

 शादी 

दिनेश अपने छोटे भाई की बात पर भड़क गया | अरे झूठी थाली में भी कोई दूसरा खाना कैसे खा सकता है | क्या मेरे लड़के के रिश्ते आने बंद हो गए हैं जो हम नए रिश्ता आने का इंतज़ार नहीं कर सकते | अभी उसकी उम्र भी तो नहीं निकली जा रही |

इस पर पास बैठी दिनेश की पत्नी बोल पडी, जी पहले छोटे भाई की पूरी बात तो सुन लो कि वह ऐसा प्रस्ताव क्यों लाया है |

अर्जुन का कुछ ढाढस बढ़ा और उसने बताया कि उस दिन लडकी शादी के नाम पर डरी हुई थी इसलिए उसने बचने के लिए मन मनघडंत कहानी बना दी थी |

दिनेश झल्लाया, “नहीं-नहीं मैं इस कहानी को नहीं मानता |”

दिनेश की माँ जो अभी तक सभी का वार्तालाप सुन रही थी ने अपने मन की बात बताई, “देखो बेटा ऐसे समय में लडकी का मन बहुत डरा हुआ होता है | वह सोचती है न जाने दूसरे घर जाकर उस पर क्या बीतेगी | वैसे उससे गलती तो हुई थी परन्तु  यह लडकी सुन्दर, पढी-लिखी, नौकरी लगी हुई, नजदीक की रहने वाली, खानदानी है | मुझे तो वह देखते ही पसंद आ गयी थी और अब भी पसंद है |”     

आखिर में माँ-बाप, दादा-दादी, चाचा-चाची तथा लड़के ने भी रिश्ता जोड़ने की हामी भर ली | देखने-दिखाने का दौर चला | एक तरफ लड़के वालों ने कुछ शर्ते रखी तो दूसरी तरफ लड़के वालों लडकी वालों को भी कुछ शर्तें माननी पड़ी | इसी तरह कुछ बातों में लड़के ने भी अपनी मनमानी चाही तो लडकी कहाँ पीछे रहने वाली थी | उसने साफ़ कर दिया कि वह घूंघट नहीं करेगी, नौकरी नहीं छोड़ेगी, आगे पढाई भी करेगी, सलवार कुर्ता पहनने की मनाई नहीं होगी, यदा-कड़ा पीहर जाने की मनाही नहीं होगी इत्यादि  और रिश्ता पक्का हो गया | 

दोनों ओर शादी की तैयारियां पूरे जोरशोर से प्रारंभ होने लगी | जल्दी ही बाजे, ताशे, नपीरी, ढोल, घोड़ी-बग्गी, कपड़े-लत्ते, चीज-बस्त, विवाह स्थल सब बुक कर दिए गए |

शादी वैसे तो सुचारू रूप से संपन्न हो गई परन्तु जैसा अमूमन होता है रूसा रूसवाई, छोटा – मोटा कहन सुनन, नुक्ता-चीनी से यह शादी भी अछूती न रह सकी | लडकी सही समय पर विदा हो गई और सभी ने सुखचैन की सांस ली |

ससुराल में नव नवेली दुल्हन का भावभीना स्वागत तो हुआ परन्तु मस्तानी को वहां अपनापन महसूस नहीं हुआ | घर के सभी सदस्यों का एक साथ बैठना तो दूर कोई किसी से बात करने को राजी ही नहीं दिखाई देता था | एक-एक करके खाने के समय तो दर्शन हो जाते थे जैसे ईद का चाँद दिखाई देता है वरना कोई अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकलता था | घर में किसी की हंसी तो गूंजती सुनाई ही नहीं पड़ती थी बल्कि हमेशा मुर्दानगी का आभाष होता था |

स्वछंद वातावरण और हंसी खुशी के माहौल में पली बढ़ी मस्तानी का तीन दिनों में ही ससुराल में दम सा घुटने लगा | परन्तु उसने चुपचाप यह सहन कर लिया क्योंकि इसके बाद उन्हें हनीमून के लिए बाली (आस्ट्रेलिया) जाना था और वह इसकी तैयारी में लगी हुई थी |

मस्तानी :- क्यों जी कितने दिन का प्रोग्राम है ?”

“एक हफ्ते का |”

“यहाँ तो गर्मी का मौसम है क्या वहां भी गर्मी होगी ?”

मदन :- हाँ गर्मी के कपड़े ही रखना |

“ठीक है |”

“क्या ठीक है, हम वहां हनीमून के लिए जा रहे हैं | ऐसे यादगार पलों के लिए तुम्हारे पास पहनने के लिए कपड़े है भी |”

मस्तानी :- हाँ-हाँ कई नए बढ़िया सूट व साड़ियाँ हैं |

मदन थोड़ा रोमांचित होकर अरे भई ऐसे मौके पर रोमांस भरा माहौल तो बनना चाहिए |

मस्तानी :- तो फिर क्या करूँ ?”

मदन ने सलाह दी कि तेरे घर चलते हैं | वहां के बाजार से हनीमून के दौरान पहनने लायक कपड़े खरीद कर ले आएँगे | उन्होंने मस्तानी एवं खुद के लिए निक्कर, टी-शर्ट, जूते, बनियान इत्यादि अपनी पसंद का सामान खरीद लिया | मस्तानी ने उसके लिए खरीदी गई निक्कर पहनने पर एतराज भी उठाया परन्तु मदन के आगे उसकी एक न चली |

दोनों बाली में हनीमून मनाकर खुशी-खुशी घर लौट आए | घर में पैर रखते ही मस्तानी की सारी खुशी काफूर हो गई जब उसने देखा कि घर में उपस्थित देवर, नन्द, दादी जी और पापा जी अपने-अपने कमरों की खिडकियों से झांककर उनको आया तो देख रहे है परन्तु कोई भी बाहर आकर उनके आने की खुशी जाहिर नहीं कर रहा | मस्तानी ने भी अपना सामान समेटा और एक अनजान बस्ती की तरह बूझे मन से अपने कमरे में समा गई |

अकेली बैठी मस्तानी चिंतन करने लगी कि आज अगर वह कहीं से भी अपने पीहर आती तो घर के सभी सदस्य उसे घेर कर प्रश्नों की झड़ी लगा देते और बीच –बीच में ऐसे मजाक करते कि हसीं के फव्वारे बंद ही न होते | आया जान आस पडौस के हम उम्र भी अपनी भागीदारी अवश्य निभाते | परन्तु यहाँ तो अपने घर में ही वे अनजान से बनकर रह गए थे | उसका मन विषाद से भर गया | फिर भी थकी हारी होने की वजह से वह जल्दी ही निंद्रा की आगोस में चली गई |   

 

 

Sunday, March 9, 2025

मस्तानी भाग-17

 

शादी की बात

एक बार फिर घर में मस्तानी की शादी की चर्चाएँ होने लगी | कई लड़के तो पहले से ही नजर कर रखे थे जिनमें मदन ही पसंद आया था और उससे रिश्ता पक्का करने का उपक्रम भी किया गया था परन्तु उस समय मस्तानी के ऊपर सम्मोहन के प्रभाव के कारण बात बन न सकी थी | इसलिए अब यह सोचना था कि अबकी बार किस लड़के के घर वालों से बात की जाए |

अपना मन पसंद लड़का मिलना भी एक टेढ़ी खीर होती है | मदन की तरह का लड़का कोई मिल नहीं रहा था या ये कहो कि वह सबकी पहली पसंद था | पूजा भी इस हक़ में थी कि फिर दोबारा उसी के माता-पिता से बात की जाए | दोबारा उसी जगह रिश्ते की बात चलाना, जहां लडकी कह चुकी थी कि वह किसी और को चाहती है, बात चलाना इतना सहज तथा आसान नहीं था जितना पूजा समझती थी |

बहुत गहन सोच विचार कर इस नतीजे पर पहुंचा गया कि इस बार मदन के माता-पिता की बजाय पहले उसके चाचा से बात शुरू की जाए क्योंकि जब पहले देखने दिखाने की बात हुई थी तो मदन के चाचा अर्जुन ने ही सब काम की बागडोर संभाल रखी थी | अर्जुन एक पढा लिखा तथा समझदार आदमी था | महसूस किया गया था कि मदन पर भी उसका बहुत प्रभाव था | यही नहीं पता चला था कि मदन अपने चाचा की किसी बात का विरोध भी नहीं करता था | अर्जुन की खुद की लव मैरीज थी तथा वह जीवन के उतार-चढ़ाव को भली भांती समझता था |

खाट्टू श्याम जी में अटूट आस्था रखने वाला मोहन हिम्मत करके एक दिन अर्जुन के घर पहुँच गया | मोहन को देख अर्जुन ने हैरानी से पूछा. “आप ?”

“हाँ जी |”

मोहन को अन्दर आने को कहकर चलते-चलते ही सवाल किया, “कैसे आना हुआ ?”

थोड़ा झिझक कर परन्तु संयम रखते हुए, “रिश्ते के बारे में बात करनी है |”

“किसके रिश्ते के बारे में |”

“अपनी लडकी के रिश्ते के बारे में |”

“अपनी छोटी लडकी के बारे में ?”

मोहन अपनी शर्मिन्दगी छिपाते हुए धीरे से बोला, “नहीं अपनी बड़ी लडकी के लिए |”

अर्जुन :-किसके साथ ?

“मदन के साथ” कहकर मोहन ने अपनी नजरें अर्जुन के चेहरे पर गडा दी |

अर्जुन आश्चर्य से उछल पडा, यह क्या कह रहे हो, यह कैसे संभव है |

मोहन ने अपना पक्ष रखा, “भाई साहब आस-पडौस में पति-पत्नी की नौक-झोंक को देख-सुनकर मस्तानी के मन में शादी के नाम पर भय सा बैठ गया था | उसके चलते वह शादी के लिए मना करती रहती थी | उस दिन भी सभी को देखकर वह डर गयी थी और बचने के लिए उसने ऐसी बात कह दी थी |”

“परन्तु अब यकीन कैसे किया जाएगा ?”

अर्जुन की पत्नी एक स्वछंद विचारों वाली लडकी थी | वह बैठी हुई दोनों की बातों को सुन रही थी | जब अर्जुन ने यकीन की बात की तो वह बोल पडी, “आपको याद है न आपके चाचा की लडकी शादी कराने से कितनी डर रही थी | जब लड़के वाले देखने आए थे तो उसने अपने को कमरे में बंद कर लिया था | कितनी मुश्किलों से उसे राजी किया था |”

अर्जुन हथियार डालकर, “वह तो है परन्तु...........|”

“परन्तु क्या, मस्तानी की तरह बहुत सी पढी लिखी लडकियां अपने भविष्य को लेकर इसी प्रकार भयभीत तथा आशंकित रहती हैं |” 

अर्जुन ने अपना वाक्य पूरा किया, “परन्तु उसने तो कहा था कि वह किसी और को चाहती है |”

“हो सकता है उसने सिर पर आई बला को टालने के लिए ही ऐसा कहा हो ?”

अर्जुन की पत्नी के पक्ष लेने से मोहन को उसे मनाने में अधिक प्रयास नहीं करना पडा | और अर्जुन ने अपने बड़े भाई दिनेश के सामने मस्तानी के साथ मदन की शादी का प्रस्ताव रखने की कबूल ली |

मौक़ा पाकर एक दिन अर्जुन अपने भाई दिनेश के पास पहुँच गया | वहां सभी बैठे थे | अच्छा अवसर देख अर्जुन बोला, “भाई साहब मदन के लिए एक रिश्ता आया है |”

“कहाँ से |”

अर्जुन थोड़ा झिझकते हुए, “पुराना रिश्ता है |”

“पुराना ! कौन सा पुराना ?”

“उसी का जिसकी पहले देखा दिखाई हुई थी |”

“जिसने कहा था कि वह किसी दूसरे को पसंद करती है ?”

“हाँ भाई साहब उसी की बात कर रहा हूँ |”

 

Tuesday, March 4, 2025

मस्तानी - 16

 

समाधान -2 (16)

पंडित जी के बताए अनुसार मोहन अपनी बेटी मस्तानी के बिना धोए कपड़े लेकर पिलखुआ पहुँच गया | पंडित जी ने कपड़े हाथ में लेते ही बताया कि लडकी वशीकरण से ग्रसित है | फिर थोड़ी देर सोचने के बाद कहा कि यह केवल वशीकरण ही नहीं बल्कि ‘लव जेहाद’ का मामला भी लगता है |

मोहन आश्चर्य से, “पंडित जी साफ़-साफ़ बताईये कि यह क्या है ?”

“देखो बेटा पहले तो इसमें सम्मोहन का प्रयोग किया गया है परन्तु दूसरी तरफ जिस प्रकार से इसको अमल में लाया गया है उससे लड़का मुस्लिम दिखाई पड रहा है अत: यह मामला सम्मोहन के साथ ‘लव जिहाद’ का भी है |”

पंडित जी की बात सुनकर मोहन एकदम विचलित जान पडा, “परन्तु पंडित जी वह तो अपने आप को पंडित बता रहा था |”

‘वह अपने को कुछ भी बताए पर मैंने तुम्हें हकीकत बयान कर दी है ‘

मोहन अपना माथा पकड़ कर बुदबुदाया, “हे भगवान् मैंने पंडित जानकर अगर अपने रिश्तेदारों के कहे अनुसार शादी के लिए अपने कदम बढ़ा दिए होते तो कितना अनर्थ हो जाता |”              

मोहन की नजरें आसमान की ओर उठी, दोनों हाथ जुड़े और मुंह से निकला कि भगवान् आपने मेरी लाज रख ली | हे परवरदिगार वास्तव में ही तू मेरा रखवाला है |

थोड़ी देर बाद पंडित जी ने 15 पुडिया मोहन को थमाकर उनको इस्तमाल करने की विधि समझाई, “रोजआना एक पुडिया लडकी को देनी है |”

“कैसे ?”

“चाय या पानी में तो दी नहीं जा सकती इसलिए आटे में गूँथकर उसकी रोटियाँ सेकना बेहतर होगा |”

“ठीक है पंडित जी |”

“एक बात और, प्रत्येक दिन एक पुडिया लडकी के पहले दिन पहने हुए कपड़ों में थोड़ी देर रख कर ही इस्तेमाल करना |”

“कितनी देर रखें ?”

“यही कोई पन्द्रह मिन्ट के लगभग |”

और हाँ अगर एक सप्ताह बाद आपको उसके आचरण में कोई सुधार महसूस होने लगे तो मुझे सूचित करना तथा पन्द्रह दिनों बाद एक बार आकर फिर दवाई ले जाना |     

पंडित जी की पुडिया ने एक सप्ताह में ही असर दिखाना शुरू कर दिया था | अब मस्तानी का उग्र रूप न रहकर पहले की तरह शांत दिखने लगा था | वह अपने भाई, बहन तथा माँ से शालीनता से बात करने लगी थी | जासूसी से घर के समाचार भेजने भी बंद कर दिए थे | लग रहा था जैसे सम्मोहन का असर कम होता जा रहा था और वह देवेन्द्र को भूलती जा रही थी |

अगली पन्द्रह दिन की दवाई देते हुए पंडित जी ने कहा कि अगर मस्तानी पढ़ रही है तो जब तक दवाई चल रही है उसे बाहर न भेजें | इसके बाद अगले एक महीने उस पर कड़ी निगरानी रखनी होगी | फिर वह सभी वशीकरण के बन्धनों से पूरी तरह मुक्त हो जाएगी और आप भी चिंताओं से पार पा लोगे |

ऐसा हुआ भी | घर का माहौल पहले जैसा खुशनुमा हो गया | थोड़े दिनों में ही ऐसा लगा जैसे इस घर में कोई समस्या आई ही नहीं थी | देवेन्द्र पूरी तरह मस्तानी के दिलो दिमाग से निकल गया था | अब सभी पुरानी व्यथा भरी बातों को पीछे छोड़ सभी अपने अपने काम में व्यस्त हो गए थे |