Friday, November 10, 2017

मेरी आत्मकथा- 26 (जीवन के रंग मेरे संग) छोटी बहू (बखेड़े की जड़ – 1)

पापा जी |”
हाँ, बोल भाई पवन ?”
पापा जी अंजू के भाई का रिस्ता पक्का हो गया है |”
कब, किसने कहा?”
अंजू बता रही है |”
"बडी खुशी की बात है".कहकर मैं अपने आफिस में जाने की तैयारी में लग गया |
तीन चार दिनों बाद पवन ने फिर एक बार अपने पापा को सम्बोधित करके कहा, "पापा जी |"
हाँ क्या बात है ?”
अंजू के भाई का रिस्ता नजफगढ से हुआ है |”
नजफगढ में किसके यहाँ से ?”
ये तो पता नहीं परंतु वे माकडौला गाँव के रहने वाले हैं |”
किसने बताया ?”
अंजू बता रही थी |”
ठीक है”,कहकर मैं अपने काम में लग गया | इसके तीन चार दिन बाद एक बार फिर पवन ने कहा, "पापा जी |"
कहो क्या बात है ?”
अंजू के भाई मंतोष की शादी 22 जून की पक्की हो गई है |”
इस बार मैंने यह पूछने की बजाय कि उसे यह बात किसने बताई है खुद ही कह दिया, "यह भी तुम्हे अंजू से ही पता चली होगी ?"
अपने पापा के प्रशन से पवन कुछ झेंप गया तथा हामी भरने के लिए सिर्फ अपनी गर्दन हिला कर रह गया |  
मेरे साथ साथ मेरे सारे परिवार वालों को आश्चर्य था कि पवन के साले का रिस्ता पक्का हो गया, उसकी शादी की तारीख भी पक्की हो गई परंतु अभी तक महावीर एंकलेव वालों ने अंजू के सिवाय किसी को कोई खबर नहीं दी थी | उन्होंने तो अपने दामाद को भी दर्किनार कर रखा था | क्योंकि अभी तक जो भी सूचना मिली थी वह केवल अंजू की मार्फत ही मिली थी | फिर भी शादी तो थी |
पवन के मन में अपने साले की शादी का चाव, मेरे तथा मेरी पत्नि को समधाने में  जाने की खुशी तथा अंजू के जेठ जिठानी का अपना लहजा उनके चेहरों पर साफ नजर आ रहा था |
शादी में सरीक होने की बात छिड़  जाने पर मेरी पत्नि संतोष बोली, "देखो जी अपने लिए दो सफारी सूट बनवा लेना | कपड़ा मेरे पास रखा है |"
संतोष ने अपनी सन्दूक से दो सफारी सूट के टुकड़े निकाल कर मुझे थमाते हुए कहा, "लो इनको सिलवा लेना |"
मुझे उनमें से एक टुकड़ा तो पसन्द आ गया दूसरा संतोष को वापिस लौटाते हुए कहा, "एक नया कपड़ा खरीद कर बनवा लूँगा |" 
इसके बाद मैंने अपनी पत्नी से पूछा, मेरा तो इंतजाम हो गया अब अपना बताओ कि तुम कैसे करोगी ?
मेरे पास दो नई साड़ियाँ हैं उनके फाल लगवा लूंगी तथा ब्लाऊज सिलवा लूंगी |
दिखाना जरा कैसी साडियाँ हैं ,फिर मजाकिया बनते हुए, "समधाने में ऐसी वैसी साडियाँ पहन कर मेरी नाक मत कटवा देना |"
संतोष तुनक कर, "अच्छा जी, आपने यह नहीं सोचा कि मैने आपसे दो बढिया से सुपारी सूट सिलवाने की क्यों कही थी ?"
क्यों कही थी ?
क्योंकि मुझे ड़र था कि कहीं मेरी साडी एवं मेरे मेकअप के सामने आप फीके न दिखाई दो | 
मैंने संतोष की बात समझकर एक जोर का ठहाका लगाया तथा बोला, "तो ये बात है | चुपके चुपके तुम्हारी तैयारी पूरी जोर शोर से चल रही है |"
पवन अपने मम्मी-पापा की ये सब बातें सुन रहा था | उसे भी शादी में जाने की बहुत सी तैयारियाँ करनी थी परंतु उसकी समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे तथा कैसे करे | उसने अपने माता पिता को बीच में ही टोककर पूछा, "मम्मी जी आप अपनी तैयारी में तो लग गए पर मुझे भी तो कुछ बताओ कि मैं क्या करूँ ? मुझे अपने साले की शादी में क्या करना होगा ?
पवन की बात सुनकर उसके माता पिता दोनों अपनी खुशी से बाहर आए तथा आपस में एक दूसरे को देखकर खूब हँसे | ठीक ही तो था | वह उनके बेटे के साले की शादी का मामला था न कि उनके अपने लड़के की शादी का | उनकी अपनी तैयारी से ज्यादा पवन की तैयारी अधिक मायने रखती थी
इसलिए अपनी गल्ती को भाँपते हुए मैंने अपने लड़के पवन से कहा, "हाँ पवन तेरी क्या दुविधा है, बता ?"
मुझे मनतोष की शादी मे क्या कुछ करना होगा ? कुछ बाँटना भी तो पड़ेगा ?
हाँ कोई गिफ्ट बाँटना तो बनता है | वैसे इसके लिए तू अपने साढू से विचार विमर्ष करले कि उसकी इस बारे में क्या मंशा है |
ठीक है | मैं उससे बात करके जल्दी ही इस काम को निबटा लूंगा |
पवन के जाने के बाद मैंने अपने मन का संशय अपनी पत्नि को बताते हुए कहा," तोषी मेरे मन में एक ख्याल आ रहा है |"
कैसा ख्याल ?
देखो अंजू के भाई का रिस्ता पक्का हुआ तो महावीर एंकलेव वालों ने केवल अंजू को ही बताया | शादी की तारीख पक्की हुई तब भी अंजू के द्वारा ही हमें पता चली | यहाँ तक की पवन को भी उन्होने कोई सूचना नहीं दी | चुन्नी लाल को कम से कम अपने दामाद पवन को तो फोन पर बता देना चाहिए था | अब जब उसे ही नहीं बताया तो मैं कहाँ आता हूँ | इसलिए विचार आया कि हम तो अपने में इतना खुश हो रहे हैं परंतु अगर उनके मन में ही न हो हमें अपने लड़के की शादी का निमंत्रण देने की तब क्या होगा ?
बात तो आपकी दुरूस्त लगती है कि रिस्ते की बात को भी उन्हें आपको बता देनी चाहिए थी परंतु मेरा मन नहीं मानता कि वे इतना गिर जाएँगे कि आपको शादी का निमंत्रण ही न दें |
भगवान करे कि यह मेरे मन का बहम मात्र ही रह जाए | परंतु उनके अब तक के व्यवहार को भाँप कर ऐसी सम्भावना पूरी है |
मुझे इस तरह की एक घटना याद आ रही है |
कैसी घटना ?
सुनो ! एक बार एक बुढिया के पोते की सगाई का अवसर था | बुढिया का बेटा पढ लिख कर बड़ा  आफिसर बन गया था  परंतु उसकी माँ ठेठ गवाँर थी | सगाई के अवसर पर उच्च पदाधिकारी आने वाले थे | अतः बेटे ने अपनी माँ को हिदायत दे दी कि जब तक सगाई का समारोह सम्पन्न न हो जाए वह अपने कमरे से बाहर न निकले तथा  मेहमानों की विदाई के बाद उसका खाना उसके कमरे में ही पहुँचा दिया जाएगा | अपने बेटे की बात सुनकर बुढिया का मन बहुत रोया परंतु लाचार बेबस कर भी क्या सकती थी | जब खाना पकने लगा तो विभिन्न प्रकार की सुगंध उसके नथुनों में समा कर उसे विचलित करने लगी | उसने अन्दाजे से पता कर लिया कि समारोह में मखनी दाल, शाही पनीर, रायता, छोले, इमरती और पुलाव तो बना ही है | मेहमानों ने खाना शुरू कर दिया परंतु उसके मुहँ में पानी आ आकर सूखने लगा | बुढिया आश लगाए बैठी रही कि खाना अब आया कि खाना तब आया परंतु व्यर्थ | सारे मेहमान विदा हो गए | घर के सारे सदस्य थक हारकर सो गए | किसी को याद न रहा कि बुढिया अभी भूखी थी | रात के दो बजे होंगे | चारों और सन्नाटा छाया था | भूख के मारे बुढिया का दम निकला जा रहा था | जब उससे सहन न हुआ तो धीरे से बुढिया दरवाजा खोल कर बाहर आ गई | सामने झूठी पत्तलों के अलावा कुछ न था | बुढिया अपने को रोक न सकी और झूठी पत्तलों में बचा खाना ही खाने लगी | पत्तलों की खड़बड़ाहट से बेटे की आँख खुल गई | सामने का नजारा देख कर वह शर्मसार तो हुआ परंतु अब पछताने को रह ही क्या गया था | मेरी कहानी का आश्य तो तुम समझ ही गई होगी कि हो सकता है हम बुलावे का इंतजार ही करते रह जाएँ |
एक जून को मैं नारायणा गया हुआ था | पवन भी अपने काम से देहली गया हुआ था | शाम को तीन बजे के लगभग पवन ने मुझे फोन किया, "पापा जी अंजू का फोन आया है कि उसके चाचा महेश का छोटा भाई राकेश गुजर गया है |"
अचानक ऐसी खबर सुनकर मैं अवाक कुछ देर के लिए कुछ बोल न सका | फिर थोड़ा  शास्वत होकर पूछा, "क्यों अचानक क्या हो गया ?"
शायद दिल का दौरा पड़ा था |
ऐसा कर तू यहाँ आजा मैं तेरे साथ चल दूंगा | और हाँ घर गुड़गाँवा फोन कर दे जिससे तेरी मम्मी और अंजू भी वहाँ जाने के लिए तैयार रहें |
मैं पवन के साथ गुड़गाँवा से संतोष एवं अंजू को लेते हुए महेश के घर पहुंचे | वहाँ से जनाजा जा चुका था | जब मैं शमशान घाट पहुंचा तो दाग दिया जा चुका था | लोग वहाँ से वापिस घर जाने की तैयारी कर रहे थे | चुन्नी लाल और उनके बड़े लड़के हेमंत को एक तरफ खड़ा देख मैं उनकी तरफ चल दिया | अभी मैं चुन्नी लाल के पास पहुंचा ही था कि हेमंत बोला, "पापा जी चलो न सब जा रहे हैं |"
मेरे एवं पवन के वहाँ पहुचते ही हेमंत के कहे शब्द हम दोनों को कुछ अटपटे से लगे | यहाँ तक की चुल्नी लाल ने भी अपने लड़के की तरफ कुछ ऐसी निगाहों से देखा जैसे कह रहा हो कि कुछ सोच समझ कर तो बोला कर | खैर फिर वे दोनों मेरे साथ ही महेश के घर तक वापिस आए |
महेश के घर के दरवाजे का नजारा देखकर बाहर से आए अधिकतर लोग एवं मेहमान कुछ असमंजस्ता की स्थिति में नजर आ रहे थे | वहाँ आस पडौस एवं बाहर से संवेदना प्रकट करने आई सभी औरतें नंगी जमीन पर ही बैठी थी | किसी प्रकार का कोई कपड़ा  या दरी वगैरह नहीं बिछाई गई थी | ऐसे ही मर्दों के बैठने के लिए भी दरी वगैरह का कोई इंतजाम नहीं था | लगभग दो घंटे तक मर्द खड़े रहे तथा औरतें नंगी जमीन पर ही बैठे रहने को विवश थी | इसके बाद सब विदा हो गए |
रास्ते में पवन ने अपने मन की शंका मिटाने के लिए पूछा, "मैनें वहाँ महेश तथा उनके भाईयों की किसी लड़की को नहीं देखा |"
संतोष ने अपना मत प्रकट किया, "सभी की दूर शादी हुई होगी | शायद इस वजह से नहीं पहुंच पाई होंगी |"
पवन ने अपनी जानकारी अनुसार बताया, नहीं शादियाँ तो सबकी नजदीक नजदीक ही हुई हैं |
फिर इन्होने दाग देने में इतनी जल्दी क्यों की ? लड़कियों के आने का इंतजार क्यों नहीं किया ?
अंजू जो सब वार्तालाप सुन रही थी बोली, "असल में हमारे यहाँ यह रिवाज है कि ऐसे में लड़कियाँ नहीं आती |"
कैसा अजीब रिवाज है | संतोष कुछ सोचकर, फिर तुम क्यों गई ? तुमने पहले बताया भी नहीं कि तुम्हारे यहाँ ऐसा रिवाज है |
मैं भी मन ही मन सोचने लगा कि इनके यहाँ कैसे कैसे अजीब रिवाज हैं | शोक जताने आई औरतों को दो दो घंटे नंगी जमीन पर बैठाया जाता है | चाचा के मरने पर भतिजियाँ नहीं आती |
पिछले दिनों की ही तो बात है जब अंजू के पीहर से बायना आने की बाट जोही जा रही थी | वहाँ से खबर मिली कि उनके यहाँ पहले कभी उस दिन कोई हादसा हो गया था अतः बायना नहीं भेजा जाता | इसी प्रकार सिन्दारा भेजना भी वर्जित था | ये कैसे लोग हैं जो अपने यहाँ अपशकुन होने पर दूसरे के शकुन का कोई आदर नहीं करते |    
अगले दिन जब पवन महेश के यहाँ होकर आया तो बोला, "पापा जी, महावीर एन्कलेव वालों का मंतोष की शादी अभी करने का विचार नहीं है |"
तुम तो कह रहे थे कि उनके घर में दो टेहले और भी हैं एक कुआँ पूजन तथा एक और शादी |
हाँ हैं तो सही |
तो क्या ये सारे प्रोग्राम रद्द करने का इरादा है ?”
उनका तो पता नहीं परंतु आज सुबह जब मैं महेश जी के घर गया था तो अंजू के पिता जी को कहते सुना था कि मंतोष की शादी की तारीख बदल देंगे |
मैं अपने मन में हिसाब लगाकर अपने आप से ही कहने लगा कि वैसे उनकी शादी की तिथि तो राकेश की तेरहँवी के बाद ही पड़ती है | फिर शादी नियत तिथि पर करने में भी कोई हर्ज नहीं है | खैर जैसी उनकी इच्छा | इसमें हम क्या कर सकते हैं |
दो तीन दिन बाद पवन ने फिर खबर दी कि मंतोष की शादी पहले की निश्चित तारीख को ही की जा रही है परंतु उससे पहले लग्न नहीं लिया जा रहा |
इस पर मैंने मजाकिया तौर पर कहा, "सो तो ठीक है परंतु हमारा तो एक टेहला मारा गया | चलो जैसी ऊपर वाले की इच्छा | परंतु तुम्हे अब अपनी तैयारी जल्दी करनी होगी |
मैने अपने साढू से बात की थी तथा दो चार गिफ्ट आईटम हमनें देखे भी थे | शादी में बाँटने के लिए हमें सबसे अच्छा मयूर जग ही पसन्द आया |
ठीक है जो चीज पसन्द आ गई उसी की तैयारी करो |
कितने तैयार करवाने ठीक रहेंगे ?
यह तो महावीर एंक्लेव वालों के मेहमानों की सूची पर निर्भर करता है | वैसे तुम्हारा साढू खुद जानता होगा |
वह तो लगभग सवा सौ का अन्दाजा लगा रहा था |
मैंने अपने अनुभव से बताया, अमूमन 90 से सौ बहुत रहते हैं | तुम ऐसा करो, ले सवा सौ लो परंतु नाम 100 पर ही लिखवाना | सौ से काम चल जाए तो 25 की वपिसी की तय कर लेना |
ठीक है ऐसा ही कर लेंगे |
तीन चार दिन बाद पवन ने मुझे फिर सूचना दी, पापा जी मंतोष के लग्न का प्रोग्राम भी रख लिया गया है |
कब का ?
वही पुरानी बीस तारीख का |
फिर तो पवन जाने की जल्दी तैयारी करनी पड़ेगी | फिर मैं ने कुछ सोचकर जैसे उसे कुछ अन्देशा हो पवन से पूछा, "वैसे तुम्हे अपनी ससुराल से किसी ने खुद कुछ बताया है या अंजू के भरोसे ही गाडी धकेली जा रही है |"
पवन थोड़ा सकुचाते हुए, "अंजू के घर वालों में से किसी ने भी मुझे अभी तक कोई खबर नहीं दी है | मुझे जो अब तक पता चला है वह अंजू के माध्यम से ही पता चला है |
अपने बेटे पवन की बात सुनकर मेरे मन में बहुत से विचार उठने लगे | पवन तो अपने साले की शादी की खुशी में जोर शोर से तैयारी में मशगूल है और उसको ससुराल से अभी तक बताया भी नहीं गया कि शादी है | जब वे अपने दामाद से ऐसा स्लूक कर रहे हैं तो उनके लिए हम भला किस खेत की मूली हैं |
अपने पिता जी को विचार मग्न देख पवन ने पूछ, "क्या हुआ पिता जी, किस सोच में पड़  गए ?"
मैं यह सोचकर कि अपने दिल की हकीकत बात बताने से कहीं कोई बखेड़ा न खड़ा  हो जाए पवन से बोला, "कोई बात नहीं है | अंजू को बताया या तूझे बताया एक ही बात है | वैसे आज 18 तारीख हो गई है और परसों बीस तारीख है | फिर अंजू को लेने तो अभी तक कोई आया नहीं | वह शादी में कब जाएगी ? 

पवन ने अपने कंधे मटकाते हुए कहा, मुझे भी पता नहीं कि उनका इस बारे में क्या विचार है |  
और झगड़े की जड़ जमनी शुरू हो गई थी |

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