Saturday, November 4, 2017

मेरी आत्मकथा- 25 (जीवन के रंग मेरे संग) छोटी बहू



अंजू के रिश्तेदारों के जाने के बाद मैंने मनोज जी से पूछा, यह क्या माजरा है जो ये सब इतनी जल्दी यहाँ इकट्ठा होकर आ गए | वैसे आपके चेहरे की हवाईयाँ भी उड़ी दिखाई दे रही हैं | आप अचानक यहाँ इनके साथ कैसे आ गए ?
मनोज जी तो चुप रहे परंतु पवन ने कहना शुरू कर दिया पापा जी, जब अंजूँ घर से बाहर निकल रही थी तो आपने मुझे इसके पीछे भेज दिया था | यह घर से निकलते हुए चीख चिल्ला रही थी, मुझे जानते नहीं हैं मैं तो इनकी ईंट से ईंट बजवा दूंगी | मेरे घर वालों को तो इन्होने अभी जाना ही नहीं है | ना सभी को जेल की चक्की पिसवा दी तो मैं भी कासन की बेटी नहीं | 
इंजिनियरिंग कालेज तक इसका वही रवैया रहा | सभी सैक्टर वाले देख सुन रहे थे | मैनें इसे चुप रहने की बहुत कहा परंतु इसने मेरी एक न सुनी | मेन रोड़ पर जाकर इसने एक रिक्शे वाले को रोका और उसमें बैठ गई तथा उसे थाने चलने की कह दी | रास्ते में मैने भाई प्रवीण को सारी स्थिति से अवगत करा दिया कि अंजूँ जबरदस्ती थाने जा रही है |
लड़ाई झगडे तथा थाने कचहरी के मामले में प्रवीण का दिल बहुत कच्चा है इसलिए उसने खुद कोई कार्य वाही करने के बजाय अपने जीजा जी मनोज कुमार को सारी स्थिति से अवगत करा दिया तथा कहा कि वे समझा बुझाकर अँजू को थाने से वापिस ले आएँ |
इधर पवन ने प्रवीण को फोन करने के बाद अपने साढू को भी फोन कर दिया कि वे अंजूँ की बहन को ले आए तथा उसे समझा कर घर जाने को कहें | परंतु न जाने कैसे आनन फानन में महावीर एंकलेव वालों के साथ साथ गुड़गाँवा से भी सभी थाने में इकट्ठे हो गए | जब मनोज जी थाने में पहुंचे तो अंजू के सभी रिस्तदार वहाँ मौजूद थे |
मनोज जी जैसे ही अपनी गाड़ी से नीचे उतरे तो अंजू के चाचा ने आव देखा न ताव, यह कहते हुए कि सारी मुसीबत की जड़ यही है, मनोज जी के गाल पर दो थप्पड़ रसीद कर दिए |
मुझे भी नरेश ने थप्पड़ मार दिया था | वह कह रहा था कि बहुत दम दिखाता है | मैं निकालूंगा तेरा दम |
सारी बातें ध्यान से सुनकर मैंने गुस्से में दाँत पीसते हुए कहा, "तुम लोगों ने मुझे यह सब तभी क्यों नहीं बताया कि उन्होने तुम्हारे साथ ऐसा सलूक किया था, जब वे यहाँ थे | यहीं सबका खून खराबा करा देता |"
इतने में घर के दरवाजे की घंटी बजी | थाने से कोई पुलिस वाला आया था तथा कहा कि मुझे पुलिस थाने बुलाया था | थाने में जाकर मैंने देखा कि वे सभी व्यक्ति वहाँ मौजूद थे जो उसके घर आए थे | इंसपैक्टर भीम सिहँ ने सभी को अन्दर बुलाकर एक कमरे में बैठा दिया | पवन एवं अंजूँ एक तरफ खड़े  हो गए फिर इंसपैक्टर ने मेरी और मुखातिब होकर अपनी बात शुरू करते हुए कहा, "गुप्ता जी आपकी बहू का कहना है कि वह परेशान रहती है | वैसे उसने आपके उपर दहेज वगैरह का कोई इल्जाम नहीं लगाया है |"
इंसपैक्टर साहब क्या इसने आपको बताया है कि वह परेशान क्यों रहती है, मैंने पूछा |
यह तो कह रही है कि यह अपने आपसी झगडों से दुखी है | वैसे मैनें इसके रिस्तेदारों को आपके पास भेजा था कि आपस में सुलह सफाई कर लो परंतु इनका कहना है कि आप इनसे झगड़ने लगे |
मैंने इस पर चुटकी लेते हुए कहा, "साहब आप तो गवाँरू भाषा में जानते होंगे कि 'दो तो चून के भी बुरे होते हैं' फिर भला इन आठ नौ के सामने मैं अकेला लड़ने की भूल कैसे कर सकता था |
इंसपैक्टर कुछ मुस्कराया और बोला, "खैर अब आपस में बैठकर इस बात को निपटा लो |"
इतने में वेद, अंजू का मामा, मेरे सामने अकड़ कर बोला, "हमें लिख कर दो कि आईन्दा से ऐसी बात नहीं होगी |"
मैंने भी उसी अन्दाज में पूछा, "ऐसी कैसी बात की बात कर रहे हो ?"
इस बार नरेश गुर्राया, "यही कि ये आईन्दा लडेंगे नहीं |"
"लगता है तुम्हारे शरीर की तरह तुम्हारी अक्ल भी मोटी है | झगडें आपस में ये दोनों और लिख कर मुझ से माँग रहे हो ?"
इंसपैक्टर बीच में नरेश से बोला, "लाला जी से लिखवाने का क्या औचित्य है ?"
अब की बार चुन्नी लाल आगे आया, "इसके रहते हुए ही तो ये दोनों लड़ते हैं |"
मैंने साफ़ शब्दों में कहा, "आपका मतलब है कि हम अपने मकान में रहना छॉड़ दें | सभी कान खोल कर सुनलो गुड़गाँवा का मकान मेरा है | अगर अंजू हमारे साथ रहना नहीं चाहती तो नारायणा जाकर रह सकती है | वैसे अधिकतर मैं नारायणा ही रहता हूँ | मुझे पता है कि मेरे यहाँ न रहने पर भी ये आपस में खूब झगड़ते हैं | तब बताओ मेरे से आप क्योंकर लिखवाना चाहते हो ?"
महेश जो सबका मुखिया बन कर आया था बोला, "आप लिख कर देने में क्यों हिचकिचा रहे हो ?"
लगता है आप सब अपनी लड़की की तरफदारी तथा गल्तियों को नजर अन्दाज करके सारा दोष मुझ पर थोपना चाहते हो | आप उल्टा चोर कोतवाल को डाँटने वाली कहावत को चरितार्थ करने की कोशिश कर रहे हो | अरे मूर्खो अपनी लड़की का बेकायदा पक्ष लेकर आप उसको शय दे रहे हो | अगर आप चाहते हो कि उसकी जिन्दगी खुशी से भरी रहे तो अपनी दखलन्दाजी बन्द करो |
मेरी बात सुनकर एवं समझकर इंसपैक्टर ने बात खत्म करने के लिहाज से कहा, "सुनो गुप्ता जी ठीक कह रहे हैं | उनसे लिखवाने का कोई औचित्य नहीं है | लड़की दहेज का मामला भी नहीं बता रही | तो फिर आपस में बातचीत करके इस झगडे को सुलझा लेना |"
"हम तो इसीलिए आए हैं, चुन्नी लाल बोला |
"परंतु आप मुझे बताकर तो नहीं आए | इस बारे में मेरी तरफ से मेरे भाई, बहन्, चाचा, ताऊ वगैरह भी तो होने चाहिएँ जैसे तुम सब मुझे अकेला देखकर यहाँ डराने आए हो |"
गुप्ता जी ठीक कह रहे हैं | आप लोग आगे की कोई तिथि रख लो और इसको निपटालो”, कहते हुए इंसपैक्टर ने अपना मत प्रकट कर दिया |
इंसपैक्टर के कहने से सभी थाने से बाहर आ गए | मुझे जब से पता चला था कि उन्होने मनोज जी को थप्पड़ मारे थे तभी से मेरे मन में ज्वाला धधक रही थी | थाने के बाहर निकलते ही मैं अंजू के रिस्तेदारों की टोली की तरफ बढने वाला ही था कि मेरा आशय समझते हुए मनोज ने मुझे किसी प्रकार का फिसाद करने से रोकते हुए कहा, "पापा जी अभी यहाँ बात बढाने से कोई फायदा नहीं है | घर चलो, समय आने पर पूरा हिसाब किया जाएगा |
ज्यों ही सब चलने को हुए तो इंसपैक्टर ने मुझे बुलाया तथा कहा, "गुप्ता जी ये आपके रिस्तेदार बड़े  कमीने हैं | ये अपने को बड़ी पहुचँ वाले तथा पैसे वाले समझते हैं | मेरे से कह रहे थे कि जब आप थाने में आऔ तो आपके चूतडों पर चार डंडे लगाकर आपको अन्दर बन्द कर दूँ | परंतु इनकी बातों से ही मैने जान लिया था कि ये सब लड़की की गल्त हिमायत ले रहे हैं | आप समझदार हो इसे निपटा लेना | इसके बाद इंसपैक्टर ने बड़ी असमंजस्ता से पूछा, "गुप्ता जी मेरी एक बात समझ नहीं आई कि आपके लड़के के साथ होते हुए भी उसकी बहू थाने कैसे तथा क्यों आ गई |
इंसपैक्टर साहब इस बात का मुझे गुमान भी नहीं था कि बात थाने तक पहुँच जाएगी | मैं तो इनके आपस के लड़ने झगड़ने का विचार कर रहा था कि घर में थोड़ा बहुत तो चलता ही रहता है | परंतु ये थाने आए क्यों यह रहस्य भी मेरी समझ से बाहर है |
इंसपैक्टर ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए जैसे कह रहा हो कि मेरी तुम्हारे से हमदर्दी हैं, "चलो अब नर्मी से इस समस्या की जड़ पता करके समाधान कर लेना |"
घर आने पर पवन ने और भी बहुत सी बातों का खुलासा किया | मसलन, अंजू के चाचा के लड़के ने बहन जी को बहुत गन्दी गन्दी गालियाँ दी थी, मुझे भी अंजू के पापा ने कई उल्टी सीधी गल्त बातें कही थी कि मैं बिठाऊँगा तुझे ए.सी. गाड़ी में, शक्ल और औकात  भी है तेरी ऐसी गाड़ी में बैठने की इत्यादि |
ये सब बातें अपने भाईयों को बताना उचित समझ मैं  नारायणा चला आया | मैंने अपने तीनों भाईयों के घर जाकर सब बातें साफ साफ बता दी | शाम को मनोज जी भी अपने भाई दिनेश को लेकर नारायणा आ गए | मनोज जी बहुत उदास थे तथा उनके भाई बहुत गुस्से में थे | मेरे भाई औम प्रकाश के यहाँ बैठकर यह निर्णय लिया गया कि सभी की एक बैठक बुलाई जाएगी तथा उस बैठक में उनसे बदला लिया जाएगा जिन्होने गालियाँ दी थी तथा जिन्होने मनोज जी पर हाथ उठाया था |                                         
भाई औमप्रकाश, राकेश, सुनील, अनील, राजेश, लक्षमण तथा प्रवीण सभी ऐसा जाहिर कर रहे थे जैसे उनके सामने आते ही ये सब उन पर झपट पडेंगे | परंतु मैं  सभी की एक एक रग से वाकिफ था | मैं जानता था कि मुझे यह निर्णय खुद ही लेना पड़ेगा कि उसे कैसे क्या करना है |
मेरे परिवार से सम्बंधित इस आग में कूदने वाला कोई नहीं है यह मैं अच्छी तरह जानता था | मेरे भाईयों का भरा पूरा परिवार था परंतु महावीर एंक्लेव वालों की तरह एक जूट होकर आगे बढने वाला उनमें कोई नहीं था |
तय हुआ कि तीन अगस्त 2005 को मेरे मकान नम्बर 973 सैक्टर 23-ए पर दोनों पक्षों के बीच वार्तालाप होगा | परंतु मनोज जी जो मन से बहुत दुखी थे उठकर चलते हुए एक गल्ती कर गए | उन्होने सभी के सामने अपने मन के पत्ते खोलते हुए कह दिया, " अब वो(अंजू) इस घर में नहीं रहेगी अर्थात अब तलाक ही होगा |" 
पहले तो औम प्रकाश ने असमंजस से जाते हुए मनोज को देखा फिर उसने मेरी तरफ सन्देहास्पद आश्य से देखा जैसे पूछ रहे हों, "क्या वैसा ही होना है जैसा अभी मनोज ने उठते हुए कहा था ?"
मैंने इस बारे में अपनी कोई राय जाहिर न करते हुए अपने भाई से तीन अगस्त को चलने को तैयार रहने की कहकर उनसे विदा ले ली |
इसके बाद तो मेरे घर में उठते बैठते बस एक यही किस्सा रह गया कि अंजू के साथ कैसा वर्ताव किया जाए | संतोष, प्रवीण, मनोज तथा प्रभा का पक्का विचार था कि पवन तथा अंजू का तलाक ही होना चाहिए | चेतना डाँवाडोल स्थिति में थी | मेरा विचार था कि अभी ज्ल्दी में ऐसा कोई कदम उठाना उचित नहीं रहेगा जिससे बाद में पछताना पड़े |  
मेरा मानना था कि एक गृहस्थी एक आश्रम के समान होती है | आश्रम का गुरु उसमें रहने वाले प्रत्येक शिष्य को एक समान विद्या देने की कोशिश करता है | परंतु कोई जल्दी ग्रहण कर लेता है तो किसी को थोड़ा ज्यादा समय लग जाता है | इसके साथ साथ जहाँ अधिकतर शिष्य उचित मार्ग अपना कर अपना ध्येय पूरा कर लेते हैं वहीं कुछ गल्त विचार धारा पाल लेते हैं और दूसरों की नजरों में गिर जाते हैं |
ऐसे ही एक आश्रम में बहुत से शिष्य पढते थे | उनमें से एक शिष्य को चोरी की लत लग गई | दूसरे शिष्यों ने इसकी शिकायत गुरू जी को कर दी | गुरू जी ने चोर शिष्य को सादा स्वभाव कहकर पढाई ठीक से करने को कह दिया | दूसरे शिष्यों ने एक बार फिर गुरू जी को खबर देकर कहा कि अगर अबकी बार उन्होने चोर लड़के को आश्रम से बाहर नहीं निकाला तो वे सब आश्रम छोड़कर चले जाएँगे | इस पर गुरू जी ने अपने उत्तेजित शिष्यों को जवाब दिया, "मैं समझ गया हूँ कि आप सब अपनी शिक्षा पूर्ण कर चुके हो क्योंकि आपको ज्ञान हो गया है कि अच्छा आचरण क्या होता है और बुरा क्या | इसलिए अगर आप सब अब मेरा आश्रम छोड़ भी दोगे तो मुझे गम नहीं होगा | परंतु इस लड़के की शिक्षा अभी अधूरी है अतः मैं इसे अभी नहीं छोड़ सकता |"
गुरू जी की वाणी सुनकर सभी उत्तेजित शिष्यों को जैसे काठ मार गया | उन्हें अपनी गल्ती का एहसास हो गया तथा उसके बाद गुरू जी के साथ मिलकर उन्होने भी हर सम्भव कोशिश करके उस लड़के को अपने जैसा बना दिया | उसी तरह मेरी मनोकामना थी कि अगर अंजू के स्वभाव में समय के साथ बदलाव आकर समस्या सुलझ जाए तो बेहतर होगा |
पवन घर के सभी सदस्यों के सामने उनकी हाँ में हाँ मिलाता था परंतु मैंने अपने बेटे के मनोभाव से महसूस किया कि उसके दिल के किसी कौने में अंजू को तलाक न देने की इच्छा छिपी थी | मजबूरी वश, वह अकेला पड़ रहा था तथा किसी से अपने मन की कह नहीं पाता था | वैसे इस बीच मैंने, मनोज एवं पवन ने अपनी सुरक्षा के लिए एक वकील से सलाह मशवरा भी कर लिया था कि अगर नौबत तलाक की आ ही जाए तो उन्हें किस तरह से तैयारी करके रखनी चहिए |
दो अगस्त को पवन पालम विहार पुलिस स्टेशन में एतियात के तौर पर निम्न लिखित एक अर्जी दे आया
पवन कुमार मंगल
973-सैक्टर 23
हुडा गुड़गाँवा
सेवा में
श्री मान ऐस एच ओ साहब
पुलिस चौकी पालम विहार
गुड़गाँवा |
सविन्य निवेदन है कि 01-08-04 को मेरी पत्नि अंजू मंगल एवं मेरे बीच मन मुटाव के कारण आपकी चौकी पर मेरे घर वाले तथा मेरी पत्नि के घर वालों के बीच एक जबानी फैसला हुआ था कि आगे से हमारे कारण ऐसी कोई वारदात नहीं होगी जिससे तनाव बढे | हालाँकि उस दिन अंजू के एक दो रिस्तेदारों ने बदतमिजी की थी तथा मेरे और मेरे जीजा जी श्री मनोज कुमार पर हाथ भी छोड़ दिया था |
जबानी फैसले के बावजूद मेरे पास कई धमकी भरे टेलिफोन भी आए परंतु कल शाम उनमें अचानक कुछ परिवर्तन दिखाई दिया | अंजू पक्ष के दो व्यक्ति आए तथा 3 अगस्त को एक मीटींग का प्रस्ताव रखा | मैनें यह स्वीकार कर लिया | अब दोनों पक्षों के रिस्तेदारों की मीटींग मेरे पिता जी श्री चरण सिहँ गुप्ता के मकान नम्बर 973 सैक्टर 23ए गुड़गाँवा में 03-08-04 को दोपहर दो बजे होनी निश्चित हुई है | अतः आपको सूचित कर रहा हूँ कि कहीं पहले की तरह वे गल्त व्यवहार न करने लगें | कृप्या आवशयक कार्यवाही करें |
धन्यवाद |

भवदीय
पवन मंगल

तीन अगस्त को सुबह मैंने अपने भाईयों से गुड़गाँवा चलने के लिए कहा तो औम प्रकाश अकेले ही चलने को तैयार हो गए | ज्ञान चन्द अपने साँसों को जोर जोर से चलाकर बोले, "मुझे तो अस्पताल चैक कराने जाना है |"
राकेश एवं राजेश अपने काम पर जाने को तैयार थे | मैं सहायता के नाम पर अपने घर वालों के व्यवहार से अच्छी तरह परिचित था | मैं जानता था कि वे मेरा साथ न देने के लिए कुछ न कुछ बहाना बनाएंगे इसलिए मैंने अपनी और से समर्थन दिखाने के लिए अपने जीजा जी श्री कृष्ण कुमार जी एवं श्री भीम सैन जी को पहले से ही नियत समय पर आने के लिए निमंत्रण दे दिया था | मेरे काफी जोर देने से मेरे घर वालों से केवल औम प्रकाश, लक्ष्मण, राकेश तथा सुनील ही आया | श्री कृष्ण कुमार जी के साथ मेरी बहन शांती और छोटा लड़का बॉबी भी आया | श्री भीम सैन जी अपने साथ अपने बडे भाई श्री चन्दू लाल जी को भी ले आए | मेरी बहन पिस्ता भी उनके संग थी | श्री मनोज जी के साथ उनके बडे भाई दिनेश जी, जीजा जी विज्य, मामा का लड़का एवं चाचा आए | पवन के दोस्त के नाते मेरी छोटी बहन सुशीला का लड़का वरुण अपने दो दोस्तों के साथ भी आया था |
अंजू के घर वालों की तरफ से बहुत से आए परंतु महेश के अलावा उनमें ऐसा कोई नहीं था जो उस दिन थाने में थे | मैंने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि बातचीत तभी शुरू की जाएगी जब वे सभी व्यक्ति उपस्थित होंगे जो उस रात को थाने में थे | इस पर महेश ने फोन करके उन सभी को बुला लिया परंतु नरेश फिर भी नहीं आया | नरेश की तरफ से उसका बड़ा भाई आया था | मैंने नरेश के लिए भी बहुत अड़ लगाई परंतु मुझे अपने मेहमानों की मान कर वार्तालाप शुरू करना पड़ा  
श्री मद भगवद गीता के अनुसार महाभारत की रण भूमि कुरूक्षेत्र में अपने सामने अपने सगे सम्बंधियों को डटे देखकर अर्जून हतोत्साहित हो गया | उसने अपने हथियार डालते हुए श्री कृष्ण जी से कहा कि अपनों को मारने का पाप उससे सहन नहीं होगा | उनको मारने की बजाय वह खुद ही अपने प्राण त्याग दे तो बेहतर होगा | इस पर श्री कृष्ण जी ने उसे उपदेश देते हुए समझाया था कि वह सामने युद्ध् में डटे लोगों को मारकर कोई पाप नहीं करेगा क्योंकि अगर वह उन्हे नहीं मारेगा तो वे तूझे मार देंगे | असुर प्रवृति वाले दुर्योधन का साथ देने से वे सब लोग भी उसी प्रवृति से लिप्त हो गए हैं | और असुर लोग कब, किस प्रकार, किस कर्म में, किस अंश तक प्रवृत होना चाहिए और कब, किस कर्म से, किस प्रकार निवृत हो जाना चाहिए यह कुछ नहीं जानते | न उनमें सत्य है, न सफाई है, और न आचार के कोई नियम हैं | अपनी अकड़ में फूले हुए, तने हुए, धन और मान के मद में चूर वे लोग दिखावे के कारण विधि की भी परवाह न करके इस प्रकार के कर्म करते हैं जिससे उनकी वाह वाह सुनने की वासना तृप्त हो | अतः समाज क्ल्याण के लिए इनका सहांर करके तू किसी पाप का भागीदार नहीं बनेगा बल्कि तूझे पूण्य ही मिलेगा |
थाने की वारदात के दिन से अपने दामाद के उपर अंजू के घर वालों द्वारा किए गए घोर अत्याचार को मैं  पचा नहीं पा रहा था | मेरा अंतर्मन मुझे रह रह कर प्रेरित कर रहा था कि श्री मद भागवत गीता के अनुसार उन अधर्मी, अहंकारी तथा एक तरह से असुर प्रवृति वाले कासन के रिस्तेदारों को सबक सिखाना जरूरी है | इस दौरान अपने फूफा जी द्वारा कही बातों को भी मैंने जाँच लिया था तथा वे सही थी | इसके साथ साथ कासन वासियों के बारे में मुझे और भी कई ऐसी घटनाओं का पता चला था | यही नहीं पवन के साढू ने भी बताया था कि मेरी  ससुराल वालों ने उसके साथ भी वही सलूक किया था परंतु वह कुछ कर न सका था | अतः चुपचाप गर्दन झुका कर आना जाना शुरू कर दिया था |
श्री मद भगवद गीता के उपदेश तथा फौज की ललकार "जो डर गया वो मर गया" को ध्यान में रखकर मैंने अपनी राह चुन ली कि मुझे क्या करना है |
अपनी राह में मुझे एक रोड़ा खटकने लगा | मेरा ऊपरी मन इस बात की गवाही नहीं दे रहा था कि मुझे  घर आए मेहमानों के साथ ऐसा सलूक करने को बाध्य होना होगा जो समाज में निन्दनीय हो | परंतु मेरे अन्दरूनी मन ने गवाही दी कि अगर किसी ऐसे कार्य के करने से जिससे समाज का और खासकर मेरे लड़के की गृहस्थी का भला हो तथा एक अत्याचारी तथा अहंकारी सतमार्ग को अपना ले तो वह निन्दनीय कार्य भी एक प्रशंसनीय कार्य की संज्ञा पा लेता है | मैंने पक्की ठान ली कि वह वही करेगा जो उसका अन्दरूनी मन उसे सलाह दे रहा है |
सबसे पहले महेश ने अपनी भलमानसियत दिखाने के लिहाज से उठकर, मेरी तरफ से आए बैठे हुए मेहमानों को देखकर ताज्जुब जताया कि वह नहीं जानता था कि इनकी रिस्तेदारी बिरादरी के इतने बडे जाने माने सभ्य व्यक्तियों से है, फिर अपना पल्ला फैलाते हुए कहा, "जो हो गया सो हो गया | अब मैं अंजू की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेता हूँ |"  
महेश की बात सुनकर मैंने कहा, "भाईयो महेश जी का यह बड़प्पन है कि वे इस पेचिदा मामले को इतनी सरलता से सुलझाने की इच्छा रखते हैं | उनका यह कदम प्रशंसा के काबिल होता अगर ये इसको नेक नियति से करते | इसके विपरीत इन्होने मुहँ में राम राम और बगल में छुरी वाली कहावत को चरितार्थ करने की कोशिश की है | थाने के इंसपैक्टर भीम सिहँ को इन्होने अपनी सिफारिश का रौब दिखाते हुए सलाह दी थी कि जब मैं थाने पहुंचुँ तो मेरे चुतडों पर दो डंडे मारकर हवालात में बन्द कर दें |" अब आप ही बताईये कि क्या ये व्यक्ति भरोसा करने लायक है ?
मेरे खोले गए राज से सभी आए व्यक्तियों की प्रशनात्मक नजरें एक बार महेश पर केंद्रित हो गई जिनको शायद महेश सहन न कर सका और चुपचाप अपने स्थान पर बैठ गया |  
इसके बाद बहुत सी और चर्चाएँ हुई | बीच में एक बार फिर महेश ने अपना रौब जमाने की कोशिश करते हुए कहा, "यहाँ का ए.सी.पी. मेरा जान पहचान का है ......|"
महेश ने अपनी बात पूरी भी न की थी कि उसका आशय समझते हुए मेरे भांजे बॉबी ने उसे आड़े हाथों ले लिया, "आप क्या ए.सी.पी. का रौब देना चाहते हो कहो तो यहाँ डी.आई.जी की लाईन लगवा दूँ ?"
अभी वह कुछ और बोलना चाहता था कि उसके पिता जी श्री कृष्ण कुमार जी ने उसे रोक दिया | महेश समझ गया कि आज ऊँट पहाड़ के नीचे आया है अर्थात मेरी  यहाँ कुछ चलने वाली नहीं है | इसके बाद पूरी कार्यवाही के दौरान वह कुछ न बोला जैसे उसके मुहँ पर ताला पड़ गया था या जबान मुहं में धंस कर रह गयी थी |
सभी ने मेरा पक्ष लेते हुए अंजू के पक्ष में बैठे लोगों के व्यवहार की कड़ी आलोचना की | अंत में मैंने अपना मत देते हुए कहा, "अब उनकी भी बात सुन ली जाए जिनके दिल में थाने की वारदात की क्सक अभी तक कसक रही है |"
"हाँ हाँ क्यों नहीं उन्हें भी तो सांत्वना मिलनी ही चाहिए," चन्दू लाल जी ने कहा | जिसे बतानी है सब अपनी अपनी आप बीती बता दें कि उनके साथ कैसा व्यवहार हुआ था |
मनोज जी ने वयाँ करना शुरू किया, मैं ज्यों ही थाने में गाड़ी से उतरा तो अंजू के पक्ष वालों ने मुझे चारों और से घेर लिया | प्रभा उतर कर दूर खड़ी हो गई थी | इतने में उस लड़के(मनोज जी ने एक 14-15 वर्ष के लड़के की तरफ इशारा करते हुए जो वास्तव में अंजू के चाचा का बेटा था, ने प्रभा को बहुत गन्दी गन्दी गालियाँ देते हुए कहा, इसे तो जब पता चलेगा जब मैं इस पर चढूंगा |"
मनोज जी के ऐसे वचन सुनते ही प्रवीण ने, जो पहले से ही उस लड़के के पास जा खड़ा  हुआ था, ताबड़ तोड़ कई थप्पड़ उसके मुहँ पर रसीद करते हुए कहा, "बोल क्या कहता है ?"
प्रवीण ने उसे तभी छोड़ा जब उसकी तरफ से उसके बाप ने माफी माँग ली |
फिर मनोज जी ने अंजू के पिता चुनी लाल की शर्मनाक एवं असुरात्मक रवैये की बात का खुलासा करते हुए बताया, "उन्होने मेरे चुतडों में भूसा भरने की कहकर अपनी जबान गन्दी होने का प्रमाण दे दिया था |" हालाँकि चुनी लाल ने नहीं नहीं कहकर अपनी कही बात को झुठलाने की कोशिश तो की थी परंतु उनका चेहरा साफ बता रहा था कि उन्होने यह हिमाकत की थी |
अपनी बातों को जारी रखते हुए मनोज जी ने अंजू के एक और चाचा जी की तरफ इशारा करते हुए कहा, "उन्होने बिना कुछ जाने समझे यह कहते हुए कि यही तो सब फिसाद की जड़ है मेरे गाल पर दो थप्पड़ रसीद कर दिए थे |"
अब की बार मैंने आव देखा न ताव, अपने दामाद के दिल के दर्द को मरहम लगाने के मर्म से, अंजू के चाचा के दोनों गालों को छेत दिया |
सभा में बैठे सभी व्यक्ति चिल्ला उठे कि यह गल्त है, मेरे मन का भी मानता था कि वह गल्त करेगा परंतु अपने अंतर्मन की आवाज सुनकर कि यही एक रास्ता बचा था जिससे अहंकारियों का अहंकार समाप्त हो सकता है और उसके दामाद एवम उनके घर वालों को इज्जत मिल सकती थी, मैंने अपने आप को रोका नहीं |
मेरा कारनामा देख कर कासन वाले सकते में आ गए | जिनकी एक जुटता के सामने सभी नतमस्तक हो जाते थे आज उन्हे पता चल गया था कि सेर को सवा सेर मिल गया था | अतः चुन्नी लाल दबी आवाज में बोला, "मनोज तो हमारा छोटा भाई है अगर उसे मार दिया था तो क्या हो गया था ?"
छोटा भाई था तो आज तक तो आपने किसी बारे में भी उसे पूछा नहीं अब मेरा मेहमान बन गया है तो मार दिया | इनके साथ आपने पहले क्या किया मुझे इससे कोई मतलब नहीं परंतु अब मेरे सामने उनके साथ किसी की भी बदतमीजी मुझे गवाँरा नहीं होगी | और हाँ अब एक नरेश रह गया है उसे भी कभी देखूंगा”, मैंने चेतावनी दे दी |
इस पर नरेश का भाई मेरे सामने आकर हाथ जोड़ते हुए बोला, "वह तो नालायक है उसकी तरफ से मैं आपसे माफी माँगता हूँ |"
खैर वह होता तो आज ही फैसला कर देता वैसे यह तो अब चुन्नी लाल पर निर्भर करता है कि वह मेरी तरह अपने मेहमान की मन की पीड़ा को कैसे निकाल सकता है”, मैंने अपने समधी कों जैसे याद दिलाना चाहा हो कि जैसे मैंने अपने दामाद का बदला लिया है वह भी वैसा ही करे तो जानूं | |     


                  

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