Tuesday, November 14, 2017

मेरी आत्मकथा- 28 (जीवन के रंग मेरे संग) छोटी बहू

मेरे यहाँ आए मर्दों के बीच सुलह सफाई के समाप्त होते ही घर के अन्दर से अंजू के जोर जोर से रोने की आवाजें आने लगी | अन्दर बैठी हुई एक दो औरतों ने शायद उसे उकसा दिया था कि जाकर वह भी अपने दिल की बात सभी के सामने कह दे | थोड़ी देर में ही उसने बे सिर पैर की बातें बना बनाकर सारा घर सिर पर उठा लिया |
उसे शांत करते हुए एक बुजूर्ग औरत ने पूछा, "तूझे क्या तकलीफ है ?"
"ये मेरे से झगड़ते रहते हैं |"
"ये कौन ?"
अंजू ने पवन की और इशारा करते हुए, "ये |"
"तो तूझे इससे शिकायत है ?"
"परंतु थाने भी तू इसके साथ ही गई थी, किसलिए ?"
...............................
तूझे अपने सास ससुर से क्या शिकायत है ?"
“- - - - - - - - - -|”
बोल न | अभी तो इतना गाज रही थी |”
दोनों में से कोई भी मेरा पक्ष नहीं लेता |”
कैसा पक्ष ?”
कैसा भी |”
तू साफ साफ बता कि तुझे क्या चाहिए ?”
अंजू रोते रोते, "पता नहीं | मुझे कुछ नहीं चाहिए |"
तो फिर तूने इतना हंगामा क्यों उठाया है ?”
क्या तू अलग रहना चाह्ती है ?”
 “- - - --- - - - - -|”
क्या तेरे ऊपर काम का बोझ कुछ ज्यादा है ?”
“- - - - - - - - - - - |”
क्या तूझे खाने पीने की कोई कमी है ?”
“- - - - - - - - - - - |”
बोलती क्यों नहीं, चुप क्यों है ? कोई तो बात होगी जो थाने पहुँच गई |”
कोई बात नहीं, कहकर रोते रोते अंजू अन्दर अपने कमरे में घुस गई |
राम किशन जो चुन्नी लाल के साथ आया था बोला, "इसे इसका हिस्सा दे दो |"
मेरे मन में अभी तक राम किशन की एक सुलझे हुए व्यक्ति की छवी बनी हुई थी परन्तु उसकी यह राय कुछ अटपटी सी लगी अतः पूछा, "कैसा हिस्सा ?"
अंजू का हिस्सा |”
अंजू का हिस्सा ! अभी से मेरे पास देने को कुछ नहीं है | मेरा पैतृक मकान नरायणा में है | मेरा बड़ा  लड़का वहाँ रह रहा है | यह भी वहाँ जाकर रहने लगे मुझे कोई एतराज नहीं होगा |”
इस मकान में से दे दो ?”
मैंने दो टूक जवाब दिया, मैनें यह मकान अपनी सहुलियत के लिए बनवाया है | मैं अभी इस में किसी  का हक बरदास्त नहीं करूंगा | हाँ अगर अंजू को अलग रहने का इतना ही शौक है तो यह कहीं भी जाकर रहने को मेरी तरफ से आजाद है |
राम किशन जी की बातों से ही मैं समझ गया कि अंजू एवं उसके घर वालों की यह एक कोशिश थी कि किसी तरह उनकी बेटी गुड़गाँवा वाले मकान की मालकिन बन जाए | परंतु मैं यह अन्दाजा न लगा पाया कि क्या उसका लड़का पवन भी उनकी साजिस में सम्मिलित था | क्योंकि उसके साथ होते हुए भी अंजू थाने पहुंच गई थी |
मैं अपना नुकसान सहन कर सकता था परंतु अपनों के खिलाफ कोर्ट कचहरी या थाने के चक्कर लगाना मेरे ऊसूल के खिलाफ था | मैं सोचता था कि अगर अपनों के खिलाफ ही मुकदमें बाजी की तो फिर वे अपने कहाँ रहे | यही कारण था कि अपने जीवन में मैं आज तक कोर्ट तो क्या थाने में भी नहीं गया था |
एक बार मेरे अपने चारों भाईयों में मन मुटाव चल रहा था | उसके चलते मेरे चचेरे भाई ने हमदर्दी दर्शाते हुए मुझ  को सलाह दी, "तुम अपने भाईयों के खिलाफ मुकदमा दायर कर दो | मेरा वकील अपना है तथा बहुत काबिल है |"
मैंने बड़ी मासूमियत से अपने चचेरे भाई से पूछा, "भाई साहब जब आप अपनों को ही अपना नहीं मान रहे तो फिर वह दूसरा आपका अपना कैसे हो गया ?"
"आपके अपने ही तो आपसे बेईमानी कर रहे हैं | उन्हे तो सबक सिखाना ही चाहिए ?"
भाई साहब आपके विचारों से मैं सहमत नहीं हूँ | मेरे भाई मेरे से बेईमानी नहीं कर रहे बल्कि वे अपनी जरूरतों के हिसाब से थोड़ा  ज्यादा हिस्सा लेने का सुझाव दे रहे हैं | अगर मैं उनके खिला कोर्ट कचहरी में जाऊँगा तो मुझे उससे भी ज्यादा नुकसान होगा जितना वे अब मुझ से माँग रहे हैं | इसके साथ साथ मेरे भाईयों को भी कई तकलीफें उठानी पडेंगी | इसलिए अगर मैं उनको वह दे देता हूँ जो उनकी इच्छा है तो किसी का भी नुकसान नहीं होगा और घर का पैसा घर के काम आएगा | भगवान ने चाहा तो मुझे और दे देगा”, मेरी बात सुनकर मेरा चचेरा भाई चुपचाप वहाँ से खिसक गया था |
परंतु आज अपने घर की बहू ने ही बे वजह मुझे थाने में उपस्थित होने को मजबूर कर दिया था |
इसको महसूस करके मेरा अंतर्मन रोने को हो रहा था | भविष्य में यह स्थिति फिर पैदा न हो इसलिए मैंने अंजू तथा उसके हिमातियों के दिमाग के फतूर को निकालने के लिए एक सबक देने की ठान ली | और मैंने सभी के सामने अपना फैसला जाहिर करते हुए कहा, "खैर जो भी हुआ, अब मैंने अपना पक्का मंसूबा बना लिया है कि मैं अंजू को अपने साथ नहीं रखूंगा |"
अपने पिता जी का कड़ा रूख देखकर पवन टुकर टुकर उनकी तरफ देखता रह गया परंतु कुछ कह न सका | अंजू का रोना भी एकदम बन्द हो गया | कासन वालों के चेहरे भी लटक गए | शायद उनमें से किसी को भी आशा नहीं थी कि मैं ऐसा भी निर्णय ले सकता हूँ |
इसके बाद अंजू को यह कहकर पीहर भेज दिया गया कि जब भी आना हो उससे एक सप्ताह पहले सूचित कर देना जिससे पवन उसके रहने का इंतजाम कर सके | अब अंजू को लेकर मेरे घर पर बहुत सी चर्चाएँ होने लगी | समय ने सभी के दिलों में अंजू के प्रति बहुत बड़ा बदलाव ला दिया था |
हालाँकि अंजू को पहली बार देखने पर मैं तथा संतोष इतने प्रभावित नहीं हुए थे कि एकदम रिस्ते को पक्का कर देते | इसीलिए हमने घर जाकर अपनी हाँ, ना की राय देने की इच्छा जाहिर कर दी थी | परंतु मनोज जी तथा प्रभा इस रिस्ते को जल्दी से जल्दी जुड़ता देखने के इच्छुक थे इस रिस्ते की खातिर दोनों इतने प्रभावित थे कि मनोज जी ने अपने साले तथा प्रभा ने अपने भाई पवन को हाँ करने में देरी करने के लिए उल्टा सीधा कहने में कोई कसर नहीं छोड़ी | मैंने पवन से भी इस रिश्ते के बारे में उसकी राय ली तो उसने भी कहा, ठीक है मुझे तो कोई कमी नजर नहीं आती | 
समय के फेर ने आज मनोज जी को अंजू के खिलाफ खड़ा कर दिया था | वे पवन तथा अंजू का तलाक ही चाहते थे | प्रभा के पास मनोज जी की हाँ में हाँ मिलाने के आलावा कोई चारा न था | प्रवीण भी उनके रंग में रंगा था | संतोष के साथ तो अंजू ने बहुत भारी बदतमीजी का प्रदर्शन किया था तो वह उसकी खिलाफत में कैसे पीछे रह सकती थी | चेतना अपने मन के भाव निकालने से डरती थी | मैं पवन के मन की दशा भाँप रहा था |
औरों को पवन के उपर तलाक के लिए दबाव बनाने के अलावा कुछ नहीं दिखता था | सभी उसे तरह तरह की सलाह देते तथा वह मजबूरी में सभी की हाँ में हाँ मिला देता था | उसकी अंतरात्मा उसे ऐसा करने से मना करती थी | मैं अपने लड़के पवन की मनः स्थिति को अच्छी तरह समझ रहा था | पवन अस्मंजसता की स्थिति में था | वह सोच नहीं पा रहा था कि क्या किया जाए | जीवन के इतने अहम फैसले को अकेले लेने में अभी वह असमर्थ था | सभी के दबाव में आकर उनकी इच्छा के अनुसार निर्णय लेना उचित रहेगा या फिर सभी के विपरीत जाना ठीक रहेगा | उसे शायद यह डर भी सता रहा था कि शायद सभी की इच्छाओं के विरूद्ध जाकर वह अकेला पड़ जाएगा | बहुत सोच विचार के बाद पवन ने इस बारे में मुझ से विचार विमर्ष करना उचित समझा
पापा जी क्या किया जाए ?
हालांकि मुझे पवन के मन की इच्छा का अंदाजा था फिर भी आश्वस्त होने के लिए मैंने अपने बेटे से उल्टा प्रशन किया, "तेरे मन में क्या है ?"
ये तो सभी चाहते हैं कि तलाक ले लिया जाए |
इन सबकी बात छोड़ तू अपनी बात बता ?
मैं तो चाहता हूँ कि अंजू को एक बार और मौका दिया जाए |
मैंने अपने बेटे का मन बढाते हुए राय दी, मेरे विचार में भी तलाक तो सबसे आखिरी विक्लप होता है | हमारे यहाँ ब्याह शादी तो जन्म जन्म का बंधन स्वीकार किया जाता है | किसी की लड़की को उसकी छोटी सी ना समझी पर ऐसे नकार देना कहाँ की बुद्धिमानी है |
अपने पिता जी द्वारा अपने मन की सी बात सुनकर पवन का धैर्य बढ़ा और झट से बोला,पापा जी मैं भी आपकी तरह ही सोच रहा था परंतु किसी से कह नहीं पा रहा था |
ठीक है | जब अंजू आएगी तो फिलहाल उसे अलग किराए पर रखा जाएगा | आगे की आगे देखी जाएगी |
3 सितम्बर को खबर आई कि अंजू को उसके घर वाले उसकी ससुराल छोड़ने आ रहे हैं | आनन फानन में अंजू के रहने के लिए पालम विहार में मकान नम्बर 42 किराए पर ले लिया गया | अंजू को छोडने उसके साथ महेश, चुन्नी लाल, हेमंत तथा एक लड़की आई थी | उनका मेरे साथ नमस्ते का आदान प्रदान तो हुआ परंतु उसके अलावा उन्होने मेरे से किसी और प्रकार का कोई जिक्र भी नेहीं किया | मसलन, आप अंजू को अलग क्यों रख रहे हो, हमने उसे समझा दिया है, आईन्दा से वह ऐसी हरकत नहीं करेगी, हम से भी भूल हो गई थी जो उसकी बातों में आकर ऐसा कदम उठा लिया | वे चुपचाप अंजू को छोड़कर चले गए |
अंजू के बल भी शायद अभी तक ढीले नहीं हुए थे तभी तो उसने भी मेरे से एक बार भी नहीं कहा कि पापा जी मैं यहाँ अकेली नहीं रहूंगी मैं आपके साथ ही रहूंगी | आखिर पवन और अंजू को पालम विहार छोड़कर मैं अपने मकान में आ गया | इस तरह मेरा छोटा सा परिवार तीन भागों में बंट गया |   
यह देखकर तथा महसूस करके मेरा मन बहुत उदास था कि उसका छोटा लड़का जिसने अपना पारिवारिक जीवन शुरू ही किया था उसका सारा भार अपने ऊपर लेने पर मजबूर था | उसने अभी गृहस्थ जीवन के बारे में अभी जाना ही क्या था कि माता पिता के होते हुए सारी जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी | घर खर्चे के लिए कम से कम आठ हजार रूपये महीना तो चाहिए ही था | मुझे यह भी संताप था कि इतने बड़े दो मंजिला मकान में अब वे दो मियाँ बीबी ही उस घर में अकेले रहेंगे | सब ग्रह चक्रों का खेल मानकर मैं भी कष्ट सहने को मजबूर था फिर अपने लड़के का भार कुछ कम करने के लिए मैंने उसे साठ हजार रूपये दे दिए जिससे वह अपने काम को सुचारू रूप से चलाने में किसी प्रकार की अड़चन महसूस न करे |
समय व्यतीत होने लगा | पवन रोज रात को मकान नंबर 973 का एक चक्कर लगा जाता था | वैसे उसने अपना वर्कशाप 973 की ऊपरी मंजिल पर बना रखा था परंतु उसका अधिकतर काम बाहर का ही होता था | फिलहाल पवन के अलग रहने से न तो प्रवीण को, न ही मनोज जी को, न ही अंजू को तथा न ही अंजू के घर वालों को कोई फर्क पड़ा  था | ऐसा होने से मेरी जिम्मीदरियाँ और बढ गई थी | पहले मैं पवन के घर पर होने से कभी कभी नारायणा ही रूक जाया करता था परंतु अब 973 वाला मकान रात को अकेला छोड़ना ठीक न समझ मेरा वापिस आना अनिवार्य हो गया था |
दुख सुख उठाते एक वर्ष व्यतीत हो गया | इस दौरान अपने पीहर की आदतन अंजू ने पवन के माध्यम से अपने ससुर से कई प्रशनों के उत्तर जानने चाहे | इनमें मुख्य था कि उसके पापा जी ने आपके पापा जी (मुझे) एक लाख रूपया नकद दिया था उसका उन्होने क्या किया ?
भगवान की मेरे उपर हमेशा से ही दया रही है | ईशवर ने हमेशा मेरा साथ दिया है | रूपये पैसौं के मामले में भी मैं  कभी भी कमजोर नहीं रहा | न ही मैंने कभी लालच किया कि वह दूसरों के पैसौं का मालिक बन बैठे | मैंने तो अपने लड़के पवन की शादी में भी लेन देन के बारे में चुन्नीलाल से कोई बात नहीं की थी | अंजू के ऐसा पूछताछ करने पर मुझे एक बार बहुत अटपटा सा लगा परंतु मैंने इस का एकदम जवाब देना उचित न समझ पवन से केवल इतना ही कहा कि समय आने पर इसका जवाब दूंगा |
अकेले में बैठकर मैंने विचार लगाया कि अंजू का एक लाख रूपये की बात उठाने के दो ही कारण हो सकते हैं | या तो वह फ्रिज, कूलर, वाशिंग मशीन इत्यादि न होने से परेशान है तथा एक हीन भावना से ग्रस्त होगी क्योंकि आस पडौस वाले उसके रहन सहन पर नाक भौं चढाते होंगे | या फिर वह अपने घर वालों का दिया पैसा दूसरे के पास नहीं रहने देना चाहती होगी | जब पवन को ही नहीं पता था कि उसकी ससुराल से कोई ऐसा पैसा आया है तो अंजू को कैसे पता चला | यह शय भी अंजू को उसके घर वालों ने दी होगी |
जब अंजू ने देखा कि उसके प्रशन का कोई जवाब नहीं मिला तो वह एक रात को पवन के साथ 973 पर आ धमकी तथा कहा, "पापा जी अब मैं अलग नहीं रहना चाहती |"
तब कहाँ रहोगी ?
हम सब साथ रहेंगे |
यह तो तुम्हारी तथा तुम्हारे घर वालों की ही कारस्तानी का परिणाम है कि तुम दोनों अलग रह रहे हो |
मेरे साथ मेरे घर वालों से भी भारी गल्ती हो गई जो मुझे ये दिन देखने पड़ रहे हैं |
मुझे तो लगता है कि तुम्हारे तथा तुम्हारे घर वालों के बल अभी भी नहीं उतरे हैं |
अंजू दोनों हाथ जोड़कर, "पापा जी मुझे माफ कर दो |"
मैंने  पहले से ही सोच रखा था कि वह एक लाख की बात खोलकर ही आगे कुछ सुनेगा इसलिए पूछा, सुना है तुम पवन से एक लाख रूपयों का हिसाब माँग रही थी ? क्या तुम्हारे घर वालों ने तुम्हे ऐसा पूछने को कहा था ?
पापा जी हमारे घर बात ऐसे चल रही थी कि मेरे पापा जी पहले दहेज में सैंट्रो कार देने की सोच रहे थे | बाद में यह तय हुआ कि मारूति 800 देकर एक लाख नकद दे देंगे | इसलिए मैनें कहा था कि मेरे पापा जी ने एक लाख नकद दिया था |
"तुमको उन्होने कम रूपया बताया है | उन्होने मुझे एक लाख नहीं बल्कि सवा लाख दिया था", कहकर मैंने  अंजू की तरफ देखा | अंजू का चेहरा खिल उठा था |
थोड़ी देर रूककर मैंने  फिर कहना शुरू किया, उन सवा लाख में 25000/- मिलनी के थे तथा एक लाख पवन के सामान के लिए | जिसमें दो सूट, घडी, अंगूठी, चैन, ब्रस्लेट इत्यादि के थे | वो गाड़ी के नाम में से बचे एक लाख तो मुझे नहीं मिले | फिर पवन की तरफ मुखातिब होकर, "पवन क्या अंजू के पापा ने तुम्हे एक लाख रूपया अलग से दिया था ?"
नहीं मुझे तो नहीं दिए | अंजू को दिए हों तो पता नहीं |
अंजू को जैसे पवन की बात से करंट लग गया हो तपाक से बोली, "नहीं नहीं मुझे नहीं दिए |"
जब तुम दोनों को भी नहीं मिले तो फिर वह एक लाख कहाँ हैं ? अपने पापा जी से खुद ही पूछ कर मुझे भी बता देना | फिर मैंने  बड़े आत्म विश्वास से कहा, अंजू मैं यह बात दावे के साथ कह रहा हूँ कि अगर वह रूपया तुम्हें अभी तक नहीं मिला है तो वह एक लाख अब तुम्हे मिलेंगे भी नहीं |
और मेरी बात यह भी ध्यान से सुन लो तथा अपने दिल से हमेशा के लिए निकाल देना कि मैं पैसे का लालची रहा हूं या हूँ | मैनें तो तुम्हारे पापा जी के कहने के बावजूद लेन देन की कोई बात नहीं की थी | मुझे तो इस एक लाख की कहानी के बारे में भी कुछ नहीं पता था | तुमने ही यह बात खोली है | अब इस बात का पता लगाना तुम्हारा ही फर्ज बनता है | मुझे उस पैसे से कोई मतलब नहीं है | रही बात तुम्हे अपने साथ रखने की सो वह समय अभी आया नहीं है | क्योंकि मुझे लगता है कि अभी तुम्हारे जहन में ऐसे और भी कई संशय भरे होंगे जिनका तुम उत्तर जानना चाहती होंगी |
नहीं पापा जी अब मेरे दिमाग में कोई संशय नहीं रहा |
फिर भी मैं तुम्हे अभी और वक्त देता हूँ कि अगर पूछना चाहो तो पूछ लेना |
इसके बाद पवन और अंजू पालम विहार अपने मकान पर वापिस चले गए |
2 मार्च 2005 को चरण के जन्म दिवस पर पवन ने अपने पापा जी को जो उपहार भेंट किया उस पर दो फूल रखे थे |
दो फूलों को देखकर संतोष ने फबती कसी, "पवन, पापा जी को वश में करने का चक्कर है क्या ?"
इसमें वश में करने की क्या बात है ?
फिर एक उपहार पर दो फूल किस लिए रखे हैं ?
पवन ने बिना किसी झिझक के कहा, "जब समझ ही रही हो तो समझ लो कि दूसरा फूल अंजू की तरफ से है |"
मैंने  मजाक करते हुए तथा एक तरह से अपने मन की बात उजागर करने के लिए चुटकी ली, "पवन तुम समझ नहीं रहे \ तुम्हारी मम्मी जी कहना चाहती हैं कि फूल भेजा है खुद नहीं आ सकती थी क्या ?"
अपने पति की बात सुनकर संतोष एकदम तिलमिला कर, "अच्छा मैं ऐसा कहना चाहूंगी | यह तो मैं सपने में भी नहीं कर सकती |"
क्यों क्या वह तुम्हारी बहू नहीं है ?
संतोष एक लम्बा शवाश भरते हुए, "पवन बेटा, जब थी, जब थी अब तो वह मेरी कुछ नहीं है |"
माँ बेटे की बहस को समाप्त करते हुए मैंने  कहा, "देखो बहू तो बहू ही रहेगी | मानना न मानना तुम्हारे उपर है |"
खैर इस बहस को समाप्त करो | फिर पवन की और देखकर, "मेरी तरफ से अंजू को धन्यवाद कह देना |"
पवन के जाने के बाद संतोष टोंट मारते हुए, "मन में लड्डू फूट रहे होंगे ?"
किस बात के ?
कितने ना समझ बन रहे हैं | बहू का भेजा हुआ फूल जान कर चेहरे पर क्या रौनक आई है |
अरे आज जन्म दिन की खुशी तो है ही.....|
उस फूल ने तो खुशी चार गुनी कर दी है | मैं सब समझती हूँ | यह तुम्हें फसांने की चाल है | कान खोलकर सुनलो | मैं उसे (अंजू को) इस घर में कभी भी घुसने नहीं दूंगी | 
अपनी पत्नी को शांत करने के लिए मैंने  कहा, अरे भाई तुम्हारी मर्जी के बिना तो इस घर में परिन्दा भी पर नहीं मार सकता फिर भला उसकी क्या मजाल कि वह घुस जाए |
मेरे घर में अंजू को लेकर ऐसी बातें अक्सर होती रहती थी | हालाँकि शुरूआत में मैंने  पवन की थोड़ी सी आर्थिक सहायता कर दी थी फिर भी पवन का इतना बड़ा  काम तो था नहीं कि वह अपने घर का पूरा खर्चा सुचारू रूप से चला सकता था | यह बात मैं , पवन के चेहरे से साफ पढ सकता था | इसलिए मैं हमेशा यही सोचता रहता था कि अपनी छोटी सी उम्र में पवन को अंजू की ना समझी के कारण यह सब झेलना पड़ रहा है |
आखिर एक दिन पवन ने शुरूआत कर ही दी, "पापा जी अंजू कह रही थी कि अब हम साथ ही रहेंगे |"
"यह भी अंजू की सलाह है या तेरी मंशा है |"
अपने पापा का आशय समझते हुए कि उसको सारी बातें पहले अंजू ही बताती है पवन ने तपाक से जवाब दिया, "हम दोनों की इच्छा है |"
मैंने  अन्दाजा लगा लिया था कि अंजू अब पूरी तरह से परेशान हो चुकी थी | उसने अपना खर्चा चलाने के लिए अपने कमरे पर लेडिज सूट वगैरह सिलाई करने का काम शुरू किया था परंतु कुछ खास कमाई न हो सकी  थी | अंजू के घर में फ्रिज, कूलर, वाशिंग मशीन, पलंग, कुर्सी तथा मेज इत्यादि कुछ न था | जिससे हीन भावना उसके मन को छेद रही थी | उसने यही सोचकर पवन से अपने पापा से मिलने वाले एक लाख का भेद खुलवाने की कोशिश की थी कि वह मिलने पर घर में जरूरी वह सब वस्तुओं को खरीदा जा सकेगा | परंतु पासा उल्टा पड़ जाने से अंजू हताश हो गई | अंजू के घर वालों ने भी उसकी कुछ सहायता न की बल्कि जब वे उसकी उपेक्षा करते नजर आए तो अंजू को अपनी गल्ति का एहसास होना शुरू हो गया कि नाहक ही उसने भरी थाली में अपने आप ही लात मारी |
मनुष्य अगर मन से कोशिश करे तो उसकी बुरी आदतें छूट सकती हैं | परंतु कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपनी बुरी आदतों से निजात पाना ही नहीं चाहते | अंजू भी उनमें से एक थी | अपने घर में शायद वह एक दबंग लड़की रही होगी | उसने खुद कोई काम न करके दूसरों से ही, बाई हुक और बाई करूक (उल्टे सीधे हथकंडे अपना कर), सारा काम कराने का यत्न किया होगा | वैसे भी एक लड़की अपने माँ बाप के यहाँ रहते अगर कामचोर हो जाए तो  उसकी ससुराल वालों के उसकी हरकतों की वजह से नाक में दम आएगा ही | अंजू भी अपनी ससुराल में भी वही हथकंडे अपनाने के लिए कभी अपना जबाड़ा  भींच कर गिरने का नाटक करने लगी तो कभी चक्कर खाकर गिरने का | अपने ध्येय के अनुसार अंजू अपनी ससुराल में भी सभी को अपनी हरकतों से उनकी सहानुभूति पाकर उनके सिर पर बैठना चाहती थी |
मैं ऐसा कोई काम कभी नहीं करना चाहता था जिससे किसी दूसरे को कोई तकलीफ हो परंतु इसके साथ मैं यह भी बर्दास्त नहीं कर सकता था कि कोई उसके उपर दबाव बनाए | मेरी मनोभावना को पहचान कर अंजू ने समर्पण करना ही उचित समझा था |
मुझे अब जुगत भिड़ानी थी कि वह अपने घर के सभी सदस्यों की खिलाफत के बावजूद पवन एवन अंजू को अपने घर वापिस कैसे लाए साथ साथ अंजू के घर वालों की तरफ से भी वह अपने कदम फूंक फूंक कर रखना चाहता था | क्योंकि वह नहीं चाहता था कि इस बार की बेकार की उलझनों की तरह अंजू तथा उसके घर वाले  फिर परेशानी न खड़ी कर दें |
इन परिस्थितियों से बचने के लिए मैंने  पवन एवं अंजू से एक माफी नामा लिखवाने का विचार किया तथा अपनी मंशा उन दोनों को बताते हुए कहा, "तुम दोनों एक माफी नामा लिखकर दो कि आईन्दा से तुम दोनों हमारे ऊपर कोई इल्जाम नहीं लगाओगे | यह भी लिखना कि अगर तुम्हारे साथ कोई हादसा हो जाता है तो उसके लिए चरण या उसके परिवार के किसी भी सदस्य को दोषी न ठहराया जाए | मैं तो यह भी चाहता हूँ कि उस लिखे हुए माफी नामें पर अंजू के पापा एवं भाईयों के भी दस्तख्त हों जिससे उन के इरादों पर भी अंकुश लग जाए |"
अंजू ने कई बार पवन के माध्यम से तथा कई बार खुद भी याचना की कि जब वह माफी माँग रही है तो लिखित में लेने की क्या जरूरत है ? परंतु मैंने  सबूत पक्का करने के इरादे से उन दोनों की एक न सुनी | आखिर अंजू ने एक दिन लिखकर दे दिया | पवन द्वारा पहुँचाए अंजू के हाथ से लिखे पत्र में लिखा था :
आदरणीय पापा जी एवं मम्मी जी,
सादर प्रणाम,चरण स्पर्श |
आशा करती हूँ कि आप सब कुशल पूर्वक होंगे | हम लोग यहाँ पर आठ नौ महीने से रह रहे हैं | लेकिन मैं चाहती हूँ कि आप मुझे कृपा करके वापिस अपना लें | और अपनी सेवा का मौका दें | मुझसे पहले जो भी गल्तियाँ हुई उन सबके लिए मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ और आप से हाथ जोड़कर माफी माँगती हूँ | और मैं चाहती हूँ कि आप मेरी पिछली सब गल्तियाँ भूलके मुझे वापिस अपना लें | मैं आपको विशवास दिलाती हूँ कि आगे से मुझ से कोई गल्ति नहीं होगी | आशा करती हूँ कि आप मेरी इन बातों पर ध्यान में रखते हुए कृपा कर मुझे जल्द से जल्द वापस बुलाएंगे |
आपकी छोटी बहू अंजू |
चरण स्पर्श |
धन्यवाद |  
पत्र पढकर मैंने  कहा, "यह पत्र तो अधूरा है |"
"कैसे ?"
"इसमें अंजू के माता पिता तथा भाईयों द्वारा तो कोई जिक्र ही नहीं किया गया है |"
"पापा जी अंजू का कहना है कि जब वह माफी माँग रही है तो फिर उनके जिक्र का क्या करना ?"
मैंने  अपना सन्देह जताते हुए, "ठीक है, अंजू माफी माँग रही है परंतु मान लो यहाँ आकर उसके साथ कोई हादसा हो जाता है तो उसके घर वालों को मौका मिल जाएगा और वे हमें कसूरवार ठहराने में नहीं चूकेंगे | अतः यह जरूरी बन जाता है कि उसके घर वाले भी जिक्र करते हुए यह आशवासन दें कि अगर अंजू को हमारे यहाँ कुछ हो जाता है तो वे हमें उस अनहोनी का जिम्मेदार नहीं ठहराएंगे | हमारे उपर कोई दोष नहीं लगाएंगे |
"ठीक है, मैं अंजू से बात करूंगा तथा लिखवा कर ला दूंगा |"
"अंजू से लिखवाकर उस पत्र पर उसके घर वालों से दस्तख्त ही काफी रहेंगे |"
पवन का लाया पत्र तो मैंने  अपने पास रख लिया तथा पवन यह कहकर चला गया कि वह अंजू के घर वालों से दूसरा पत्र लिखवा कर ला देगा |
इसके बाद अंजू तथा पवन रात को एक दो बार और आए परंतु संतोष अपने आचरण पर अडीग रही | उसने नीचे की मंजिल के किवाड़ ही नहीं खोले तथा अंजू को अन्दर ही नहीं घुसने दिया | चरण यदा कदा पवन से दूसरे पत्र के बारे में पूछता रहता था | पवन हर बार यही जवाब देता कि लिखवा रहा हूँ | जब पवन की लिखवा रहा हूँ, लिखवा रहा हूँ सुनते सुनते मेरे कान पक गए तो एक दिन मेरा धैर्य टूट गया अतः मैंने गुस्से से पूछा,  " कितने दिन लगेंगे इसको लिखवाने में ?"
अपने पापा जी को शांत करने के लिहाज से पवन झ्ट से बोला, "मैनें लिखवा लिया है |"
अपने को आस्वशत करने को मैंने  पूछा, "उस पर अंजू के घर वालों के दस्तख्त करवाए ?"
"इसके लिए अंजू वहाँ गई थी परंतु उन्होने दस्तख्त करने से मना कर दिया |"
"तुम दिन में गए थे या रात में ?"
"हम तो हमेशा रात में ही जाते हैं |"
तुम्हारे सारे काम रात में ही होते हैं जिससे तुम्हे कोई देख न ले | अरे भाई तुम्हें ऐसे काम रात की बजाय दिन में करने चाहिएँ जिससे दो चार लोग पहचान सकें कि तुम वहाँ गए थे | फिर कुछ सोचकर, " अच्छा तुम्हें अन्दर बुलाया कि नहीं ?"
अंजू ही अन्दर गई थी | मैं तो कार में ही बैठा रहा | मुझे किसी ने अन्दर बुलाया ही नहीं | बल्कि इसके मम्मी पापा मुझे दुकान के अन्दर से ही देखते रहे किसी ने कहा कुछ नहीं |
 अपने बेटे की बात सुनकर तथा जानकर कि उसके ससुराल वाले अब भी उसके साथ कैसी नीचता का व्यवहार कर रहे हैं उसने सुनाया, ऐसे में तो अंजू को अपने दिल की निकाल लेनी चाहिए थी | वह चुप रही तो जाहिर है कि इसे तुम्हारी इज्जत से ज्याद प्यारी अपने घर वालों की इज्जत है | उसका आचरण भी अपने घर वालों जैसा ही है तभी तो अपने पीहर में अपने आदमी के साथ ऐसा व्यवहार सहन कर लिया |
खैर उन्होने दस्तख्त नहीं किए कोई बात नहीं अब वह पत्र मुझे दे देना |
पवन ने आशवासन दिया,ठीक है वह पत्र मेरे पास रखा है मैं आपको दे दूंगा | 
थोडे दिनों बाद संतोष ने अपने मकान 973 पर श्री सत्य नाराय्ण जी की कथा कराने का प्रोग्राम बना लिया | मुझे यह मौका, अंजू को अपने घर में प्रवेश कराने की शुरूआत के लिए, बहुत उपयुक्त लगा | संतोष ने पवन से कह ही दिया था कि वह भगवान सत्य नारायण जी की कथा करा रही है |
पापा जी कथा किस समय शुरू होगी ?
लगभग 11 बजे | तुम दोनों आ जाना |
हम दोनों ?
हाँ तुम दोनों |
पवन अपनी माम्मी जी के गुस्से से वाकिफ बोला, "फिर मम्मी जी ?"
"देखो ये तो भगवान की कथा एवं पूजा है | इसमें तो कोई भी सम्मिलित हो सकता है |"
ठीक है, फिर भी अपने मन में एक प्रकार का भय लिए हुए पवन बोला, "आप सम्भाल लेना |"
मैंने  अपने बेटे को आशवासन देते हुए कहा, "इसमें तेरे डरने की कोई बात नहीं है |"
नियत दिन तथा समय पर सत्यनारायण भगवान की कथा प्रारम्भ हो गई | पवन पहले ही आ चुका था | अभी कथा का पहला अध्याय समाप्त भी नहीं हुआ था कि अंजू आकर पवन की बगल में बैठ गई | मैंने  चोर नजरों से अपनी पत्नि संतोष की तरफ देखा | थोड़ी देर के लिए संतोष के चेहरे पर तनाव दिखाई दिया परंतु शायद स्थिति की नाजुकता को समझते हुए वे सम्भल गई | कथा समाप्त होने पर सभी आए हुए लोगों को चाय नाशता देकर तथा खुद भी पाकर अंजू वापिस चली गई | फिर जैसा कि होना था संतोष ने पूछा, "इस (अंजू) को किसने बुलाया था ?" 
मैं क्या जानूँ | मुझे क्या पता |फिर संतोष पर ही इलजाम थोपते हुए कहा, तुमने ही पवन से कुछ कहा होगा ?"
"मैनें पवन से कहा था तो वह अंजू को साथ क्यों लाया ?"
मैंने  बात बनाते हुए अपनी पत्नि को समझाने की कोशिश की,देखो तुमने पवन से कहा | अब अगर वह अपनी पत्नि को साथ ले आया तो कोई गल्त तो नहीं किया |
संतोष ने अपना मुँह बिदकाकर, "मेरा अंजू से कोई सरोकार नहीं | मैं नहीं चाहती कि वह मेरे इस घर में पैर भी रखे | मेरे होश तो उसे देखते ही उड़ गए थे | उसे अन्दर बैठे देखकर मेरा दिल कर रहा था कि मैं ही उठकर बाहर चली जाऊँ |
मैं जानता था कि संतोष अपने बाहरी व्यवहार से कठोरपन प्रदर्शित करती थी परंतु उसका दिल बहुत दयालू था | वह दूसरे का कष्ट या उदासीनता सहन नहीं कर सकती थी | तभी तो उसने यह जानकर कि अंजू के पापा उस समय बहुत रोए थे जब चरण अंजू को देखने के बाद यह कह आया था कि घर जाकर अपनी राय बता देंगे, अपनी मंशा न होते हुए भी मुझे रिस्ता करने के लिए मना लिया था |
मुझे अब इंतजार अंजू के गर्भवती होने का था | भगवान की कृपा से वह दिन भी आ गया | एक दिन चरण व संतोष बैठे आपस में बातें कर रहे थे कि संतोष ने कहा, "सुनते हो जी |"
"हाँ सुनाओ जी |"
"आपकी बहू के पैर भारी हैं |"
मैंने जानते हुए भी मजाक में बोला, "इस उम्र में ?"
संतोष ने अपने चेहरे को ऐसा बना लिया जैसे उसका जायका बिगड़ गया हो तथा बोली, "तुम्हें शर्म नहीं आती | इस उम्र में मेरे पैर भारी करना चाहते हो | मैं पवन की बहू की बात कर रही हूँ |"
"अरे वाह यह तो बहुत खुशी की बात है |"
बात तो खुशी की है परंतु ध्यान से सुन लो (अपना अडियल रवैया दर्शाते हुए), मैं साफ कहे देती हूँ कि मैं तो टाईम आने पर कुछ नहीं करूंगी | बुला लेगी जिसे बुलाना होगा |
"कितना समय हो गया है ?"
शायद तीसरा चल रहा है |
मैंने  चुटकी ली, वैसे तो कहती हो कि मुझे अंजू से कोई सरोकार नहीं परन्तु उसकी खबर पूरी रखती हैं |
देखो जी मुझे गुस्सा मत दिलाओ, मुझे तो यह उड़ती उड़ती खबर मिली है |
खैर अभी तो डिलिवरी होने में बहुत समय है | अभी से ना-नुक्कड़ क्यों करती हो | समय पर ही देखा जाएगा कि क्या करना है |   
उस दिन के बाद मैंने  महसूस किया कि संतोष घर में कोई न कोई नई चीज पकाने लगी थी | वह भी हम दोनों की जरुरत से ज्यादा | वह पवन को खाने को तो हमेशा पूछती ही थी परंतु उसका मन करता कि वह किसी तरह अंजू के लिए भी पहुंच जाए | चरण इस बात को बखूबी जानता था कि संतोष के मन में हमेशा चुलबुली लगी रहती थी कि वह(अंजू) भी उसकी पकाई चीज खाले परंतु संतोष अपने आप पवन से यह कभी नहीं कहेगी कि वह अंजू के लिए ले जाए | आखिर मुझे ही संतोष के मन की इच्छा पूर्ति के लिए उसकी सहायता करनी पड़ती थी |
घर में बनी कोई भी वस्तु को अंजू तक पहुचाने के लिए अमूमन मैं पूछता, "पवन दही बड़े कैसे बने हैं ?"
"पापा जी ये तो बहुत स्वादिष्ट हैं |"
मैं रसोई में जाकर, "अरे पवन ये तो अभी बहुत बचे हैं | और खा ले |"
"मेरा पेट तो भर गया है परंतु नियत नहीं भरी | अब कल ही खाऊंगा |"
"अरे फिर भी बचेंगे | ऐसा कर पालम विहार ले जा | दोनों खा लेना |"
मेरी बात सुनकर संतोष झूठे मन से कहती, "मैनें उसके लिए थोड़े ही बनाए हैं | पवन केवल अपने लिए ले जाए तो ले जाए |"

इस पर मैं कहता कि अगर पवन के लिए बनाए हैं तो उसके लिए ही दे दो | संतोष खुशी खुशी पालम विहार ले जाने के लिए बहुत सारा सामान बाँध देती थी | सब जानते थे कि इतना सामान अकेला पवन नहीं खा सकता था |

No comments:

Post a Comment