Tuesday, December 19, 2023

उपन्यास - भगवती (25)

 

मैं हताश निराश तथा दुखी मन से वापिस घर गया था | रात को आँखो से नीदं गायब थी | बिस्तर पर करवट बदलते हुए सोचने में मशगूल था कि कैसे इस समस्या का निवारण हो | सोच रहा था कि मुझे भारतीय वायु सेना की नौकरी तो छोड़कर जाना ही है अतः एयरफोर्स के इस कोर्स का तो मेरे लिए कोई महत्व है ही एयरफोर्स के लिए मुझे कोर्स करवाना किसी लाभ का है | परंतु स्नातकोत्तर की डिग्री बाहर सिविल में मेरे लिए बहुत महत्व रखेगी | इसी उधेड़ बुन के चलते थक हारकर भगवान के भरोसे छोडकर मैं सो गया था | रात को नीदं में मुझे एक सलाह मिली |

उसी सलाह अनुसार मैं सुबह अपने कमांडिंग आफिसर माथुर से जाकर बोला, "सर, अगर आप मुझे परीक्षा में बैठने की अनुमति देने में असमर्थ हैं तो मेरी फीस के पैसे जो मैनें जोधपुर युनिवर्सिटी में परीक्षा के लिए जमा करवा रखे हैं वे तो बचवा सकते हैं |"  

माथुर आश्चर्य से तथा चेहरे पर मुस्कान लाकर सुनने के लिए अधीर होते हुए, "वह कैसे ?"

" सर आपको मुझे एक सर्टिफिकेट देना होगा |"

" कैसा सर्टिफिकेट ?"

"यही कि फौज की इमरजैंसी डयूटी चलते रहने के कारण सैनिक को उसकी परिक्षाओं के लिए छुट्टियाँ प्रदान नहीं की जा सकती अतः आप से निवेदन है कि उसकी इस वर्ष की भरी हुई फीस अगले वर्ष के लिए मुकर्रर कर दी जाए”, मैं जाकर आपका पत्र युनिवर्सिटी में जमा करवा दूंगा |

"बहुत सुन्दर आपकी यह युक्ति बहुत कारगर रहेगी, मुस्कराकर माथुर ने पूछा," कब जाना होगा ?"

"सर, परसों मेरी परीक्षा का पहला दिन है इसलिए आपका पत्र उससे पहले ही जमा कराना होगा |"

माथुर के मन में जैसे लड्डू फूट रहे हों वह उतावला होकर बोला, "फिर देर किस बात की है छुट्टियों के लिए अर्जी लाओ | मैं अभी मंजूर कर देता हूँ |" 

माथुर की मनः स्थिति को भाँपकर, कि देखो यह माथुर परिक्षाओं में बैठने के लिए मुझे चार दिनों की छुट्टियाँ देने की मनाही कर रहा था जबकि इस काम के लिए तीन दिनों की छुट्टियाँ देते हुए कितना खुश प्रतीत हो रहा है,  मेरे अंतर्मन में एक बार को बहुत भारी गुस्से का संचार हुआ था | क्योंकि माथुर का यह रवैया अपने सैनिकों के प्रति एक घृणात्मक दृष्टिकोण दर्शा रहा था | मैनें इधर उधर की बातों में उलझने से बेहतर अपना काम सिद्ध किया और रात को जोधपुर मेल पकड़ ली |

जोधपुर में मेरा एक खास मित्र पान सिहँ न्याल रहता था | मैं उसी के घर जाकर ठहर गया था | रात को न्याल की पत्नि की तबियत अचानक गड़बड़ा गई तथा उसे वायु सेना के अस्पताल ले जाना पड़ा | न्याल अस्पताल के अन्दर अपनी पत्नि के पास बैठा उसकी देखभाल कर रहा था तथा मैं बाहर आकर अस्पताल के बगीचे में बैठ गया था | मैं अपने सोच में मग्न था कि देखो किस्मत क्या क्या खेल खिलाती है | मैं अपनी परिक्षाओं की पूरी तैयारी के साथ जोधपुर में हूँ परंतु सुबह परीक्षा नहीं दे पाऊँगा | मैं अपने ख्यालों में इस कदर खोया था कि मुझे अपने आसपास होने वाली गतिविधियों का लेश मात्र भी आभाष नहीं हो रहा था |  

एक सफेद पोश जवान इकहरे बदन का सुन्दर सा लड़का मेरे पास खड़े होकर शायद मुझे चार पाँच आवाजें लगा चुका था | जब मेरी तंद्रा नहीं टूटी तो कोई चारा देख मेरी तंद्रा तोड़ने के लिए उसने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया | अचानक किसी के स्पर्श से मैं होश में आया तथा मैने अपनी गर्दन उठाकर उपर देखा | सामने खड़ा व्यक्ति चाँद की रोशनी में सफेद कपड़े पहने एक फरिशता जैसा प्रतीत हो रहा था | इससे पहले की मैं कुछ प्रतिक्रिया दिखाता उस सफेद पोश व्यक्ति ने मुस्कराते हुए पूछा, "कहो क्या बात है, बहुत गहन सोच की मुद्रा में थे ?"

मैने खड़ा होते हुए कहा, "बस यूँ ही |"

"नहीं नहीं कुछ तो समस्या का कारण है जिसको सुलझाने में तुम शायद अपने आप को असमर्थ पा रहे हो |"

सफेदपोश के पूछने के अन्दाज मात्र से मैने अन्दाजा लगा लिया था कि लड़का काफी सुलझा हुआ है | हालाँकि मेरा मन नहीं था कि किसी अंजान व्यक्ति से अपनी समस्या के समाधान के लिए उससे चर्चा की जाए परंतु सफेदपोश की आँखों की चमक तथा निस्वार्थ भाव से पूछने के लहजे से मैं अपने आपको रोक सका तथा उसके सामने अपना दिल खाली करना शुरू कर दिया |

 

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