चाँदनी के उच्चशिक्षा ग्रहण करने के आग्रह ने राकेश
को अपने वे दिन याद दिला दिए जब राकेश को भी ऐसा करने के लिए कितने कठिन पापड
बेलने पड़े थे | परन्तु हर बाधाओं को निडरता एवम साहस से पार करता हुआ अपना लक्ष्य
प्राप्त कर लिया था |
नौवीं-दसवीं तक मैं एक होनहार विद्यार्थी
माना जाता था परन्तु इसके बाद गलत संगत, अहंकार, अपने पर अधिक विश्वास और बेफिक्री ने मुझे हायर सैकेंडरी अच्छे
नंबरों से पास न करने दी | मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई | इन्हीं दिनों भारत और चीन का युद्ध चल
रहा था |
चीन के आक्रमण को देखते हुए भारत सरकार ने अपने सभी मिलिट्री के जवानों की छुट्टियां रद्द कर दी थी | सभी जवान चाहे कैसी भी या किसी भी स्थिति में क्यों न हो अपने बीबी,बच्चे, माता-पिता तथा सभी काम त्याग कर अपनी अपनी यूनिटों को जाने लगे | रेलवे ने जवानों की सहूलियत के लिए हर रेलगाड़ी में उनके लिए स्पेशल बोगियां लगा दी थी | उस दौरान मैनें देखा था कि भारत के हर वर्ग, हर उम्र तथा हर वर्ण के लोगों ने एक जुट होकर सीमा पर जाने वाले जवानों की किस प्रकार हौसलाफजाई की थी | सभी बच्चे, बूढ़े, जवान, किशोरी, तथा औरतों ने अपने अपने तरीकों से हर जवान को उत्साहित किया था |
अपने घरवालों तथा देशवासियों द्वारा भावभीनी विदाई देने को महसूस करके जवानों की चौड़ी छाती फूलकर दोगुनी हो जाती थी तथा वे अपना कर्तव्य निभाने खुशी खुशी आगे बढ़ जाते थे | सफ़र के दौरान हर स्टेशन पर लोगों ने जवानों के खाने के लिए बिस्कुट, टॉफी, फल, यहां तक की होटल वालों ने खाना भी बिना कीमत लिए दिया था | मतलब हर तरफ से जवानों की होसलाफजाई करते हुए ऐसा माहौल बनाया जा रहा था जैसे भारत की सारी जनता कहना चाहती हो कि जवानों आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं | फिल्म जगत के साथ साथ भारत की कोकिला कहे जाने वाली लता मंगेशकर ने 'खुश रहना देश के लोगो अब हम तो सफ़र करते हैं ' का गाना जवानों को सुनाकर उनको अदम्य साहसी बनाने में अमूल्य योग दान दिया था | मैनें सुना था
कि फ़ौज में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के काफी अवसर मिलते है अत:मन में आगे पढ़ने की लगन तथा जवानों के प्रति देशवासियों का लगाव देखकर ही मैं भारतीय वायु सेना में भर्ती हो गया |
बैंगलोर से ट्रेनिंग पास करने पर मुझे
जम्मू राडार यूनिट पर तैनात कर दिया गया | वहाँ शिफ्ट डयूटी में काम करने से मुझे काफी खाली समय मिलता था | बिना समय गवाएं और समय का सदुपयोग करते
हुए मैंने जम्मू विश्व विद्यालय से स्नातक की प्रथम वर्ष की परीक्षा के लिए फ़ार्म
भर दिया और उतीर्ण भी हो गया | अब १९६५ में पाकिस्तान ने
अचानक भारत के खिलाफ जंग छेड़ दिया जिससे मेरी आगे की पढाई पर रोक लग गई | इसके बाद बैंगलोर, देवलाली, यलहंका, पूना इत्यादि स्थानों पर सेवा करने के
बाद १९७२ में मेरा तबादला जोधपुर हो गया |
जोधपुर मेरे लिए बहुत ही भाग्यवान सिद्ध हुआ तथा वहाँ का मौसम वास्तव में ही मेरे लिए बहुत खुशियाँ लेकर आया | एक तो वहाँ जाकर मेरा स्वास्थय ठीक रहने लगा दूसरे मेरे आगे पढ़ने की मन की मुराद मुझे पूरी होती नजर आई |
जम्मू के बाद पिछले आठ वर्षों में मुझे ऐसा कहीं भी कोई मौका नहीं मिला था कि मैं कोई परीक्षा दे पाता | जोधपुर का ऐसा माहौल था कि मुझे पढ़ाई करने का बहुत समय मिल सकता था | इसलिए बिना समय गवाँए मैं आगे पढ़ने की इच्छा लिए जोधपुर यूनिवर्सिटी के आफिस पहुँच गया तथा पूछताछ वाली खिड़की पर जाकर पूछा, "भाई साहब मैनें जम्मू यूनिवर्सिटी से 1964 मेँ बी.ए. प्रथम वर्ष की परीक्षा पास की थी क्या मैँ अब(1972 में) आपकी यूनिवर्सिटी से द्वितिय वर्ष की परीक्षा दे सकता हूँ |"
जवाब मिला, "नहीँ आप यहाँ से द्वितिय वर्ष की परीक्षा में नहीं बैठ सकते |"
कानून से अनभिज्ञ मैनें उस कलर्क से पूछा, “ क्यों भाई साहब |"
खिड़की पर बैठे व्यक्ति ने बताया, "क्योंकि यह कानून है कि जहाँ से प्रथम वर्ष की परीक्षा पास की गई है उसी यूनिवर्सिटी से द्वितिय वर्ष की परीक्षा पास करना अनिवार्य है |"
मैनें अपनी दलील देते हुए कहा, "परंतु फौज में रहने के कारण 1964 के बाद मुझे कोई मौका ही नहीं मिला कि मैं आगे परीक्षा दे पाता |"
"मुझे तो इतना ही पता है बाकी आप हमारे रजिस्ट्रार के आफिस से पूछताछ कर लो", खिड़की पर बैठे लिपिक ने नेक सलाह दी |
लिपिक की बात सुनकर एक बार तो मैं मायूस हो गया था तथा दोबारा प्रथम वर्ष पास करने से राजी न होकर आगे पढ़ना ही छोड देता | परंतु फिर यह बात सोचकर कि शायद रजिस्ट्रार कोई रास्ता सुझा दें मेरे कदम उनके आफिस की तरफ बढ गए |
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