Wednesday, December 13, 2023

उपन्यास - भगवती (23)

 

जब मैं रजिस्ट्रार के आफिस पहुँचा तो रजिस्ट्रार श्री .के. चक्रवर्ती खाली बैठे थे | अच्छा मौका देख मैं दरवाजे पर दस्तक देकर उनके आफिस में सीधा घुस्ता चला गया | तथा अनजाने में अपनी आदत के अनुसार अपने सामने बैठे रजिस्ट्रार को फौजी अन्दाज में एक सल्यूट ठोक दी | रजिस्ट्रार मुस्कराए बिना रह सका | उसने मुझे उपर से नीचे तक देखकर पूछा, "कहो जवान कैसे आना हुआ | मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ ?"

एक बार तो मैं अपनी मुद्रा पर झिझक गया परंतु रजिस्ट्रार द्वारा  पूछे गए प्रेम भाव से भरे शब्दों को सुनकर सम्भल गया और अपनी आगे पढ़ने की इच्छा जाहिर कर दी | मेरी बात सुनकर एक बार तो रजिस्ट्रार ने भी मना कर दिया कि मैं उनकी यूनिवर्सिटी से  द्वितिय वर्ष की परीक्षा में नहीं बैठ सकता परंतु फिर जाने क्या सोचकर उन्होने मेरे से पूछा, "क्या तुम्हारे पास एक अंतर्देशीय पत्र है ?"

मुझे रजिस्ट्रार का वह प्रश्न कुछ अटपटा सा लगा फिर भी कहा, "अभी तो नहीं है साहब जी, कहो तो ला देता हूँ ?"

"हाँ एक अंतर्देशीय पत्र ले आओ |"

मैनें रजिस्ट्रार को एक अंतर्देशीय पत्र लाकर तो दे दिया परंतु यह मेरी समझ के बाहर था कि आखिर वह उसका करेगा क्या ? पत्र लेकर रजिस्ट्रार ने उस पर कुछ लिखा तथा वापिस मुझे थमाते हुए हिदायत दी, "बाहर जाकर इसे अभी डाक बक्से में डाल दो |" और हाँ भगवान से प्रार्थना करो कि तुम्हारे लिए आगे पढ़ने का मार्ग प्रशस्त करे | मैं अपनी तरफ से कोशिश कर रहा हूँ आगे उसी की कृपा पर निर्भर रहेगा | आप 15 दिनों बाद आकर पता कर लेना कि आपकी किस्मत में क्या है |    

रजिस्ट्रार ने शायद जानबूझकर अपने खत को चिपकाकर बन्द नहीं किया था | इसलिए डाक बक्से में डालने से पहले मैनें उसका मजबून पढ़ लिया, लिखा था :-

श्री मान,

रजिस्ट्रार जी

जम्मू युनिवर्सिटी

सविन्य निवेदन है कि मेरी जोधपुर युनिवर्सिटी से एक सैनिक, जिसने 1964 में आपकी युनिवर्सिटी से बी.. प्रथम वर्ष पास किया था, बी.. द्वितिय वर्ष की परीक्षा में बैठना चाहता है | इस दौरान फौज की जिम्मेदारियों को निभाते रहने की वजह से इसे परीक्षा देने का कहीं मौका नहीं मिला | इस सैनिक की आगे पढ़ने की रूचि को जानकर ही मैं आपसे अनुरोध करने पर बाध्य हुआ हूँ | आशा है आप इसे अनुमति प्रदान करेंगे |

धन्यवाद |

आपका

.के.चक्रवर्ती

रजिस्ट्रार जोधपुर युनिवर्सिटी

पंद्रह दिनों बाद मैं जब रजिस्ट्रार से मिला तो उन्होने मुझे बधाई देते हुए बी.. द्वितीय वर्ष में दाखिला लेने की अनुमति दे दी | मेरी खुशी का पारावार रहा | जितना जल्दी हो सका मैनें कालिज में दाखिला ले लिया |

अब तक मैं दो बच्चों का बाप बन चुका था | मैने जोधपुर युनिवर्सिटी से स्नातक तथा स्नातकोत्तर की प्रथम वर्ष की परीक्षा पास कर ली | इन परिक्षाओं को पास कराने में मेरी पत्नि संतोष का बहुत बडा योगदान रहा | पहले तो उन्होने  पढ़ाई करने के लिए मुझे प्रेरित किया तथा फिर रात रात भर मेरे साथ जागकर मेरा हौसला बढ़ाया | रात को अगर किसी वस्तु मसलन चाय, पानी या कुछ खाने की जरूरत पडती तो वह हाजिर रहती थी |  वे अगर ऐसा व्यवहार करती तो शायद मैं आगे पढ़ पाता |

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