Monday, December 4, 2023

उपन्यास - भगवती (21)

 

एक दिन अलमारी की सफाई करते हुए चाँदनीको एक फाईल में अपने ससुर के प्रमाण पत्र दिखाई दिए | जिज्ञासावश चाँदनी ने उन्हें जांचा तो पाया कि उन्होंने हायर सैकेंडरी तो १९६३ में कर ली थी परन्तु स्नातकोत्तर की डिग्री १२ वर्ष बाद १९७५ में की थी | कौतुहलवश चाँदनी ने अपनी सास से पूछा, “मम्मी जी आपकी शादी कब हुई थी ?”

सास ने उलटा प्रश्न किया, “क्यों क्या बात है ?”

“नहीं ! ऐसे ही पूछ रही हूँ |”

“अचानक तेरे दिमाग में यह जानने की जिज्ञासा जगी है तो बात जरूर कुछ है ?”

“क्या पापा जी ने नौकरी करते हुए स्नातक व् स्नातकोत्तर की पढाई की थी?”

“हाँ |”

उन्हें पढ़ने के लिए तो बड़ी मेहनत करनी पडी होगी ?”

“हाँ, वे दिन में नौकरी करते थे, शाम को कालिज जाते थे और फिर देर रात तक पढ़ते थे |”

कारण जानने पर पता चला कि उसके ससुर को पढने की बहुत ललक थी | भारतीय वायु सेना की नौकरी में रहते हुए जब भी उन्हें मौक़ा मिलता था, अपनी गृहस्थी को सुचारू रूप से चलाने के साथ साथ, वे पढाई करते रहते थे |

चाँदनी की सास के द्वारा अपने ससुर की ललक की बात ने उसके अंदर एक टानिक का काम किया | उसके तन मन में एक अजीब स्फूर्ति का संचार होने लगा | उसके विचारों को पंख लग गए और अपने अंदर उच्च शिक्षा ग्रहण करने की भूख एकाएक जाग्रत होती हुई महसूस हुई | चाँदनी की अंतरात्मा से आवाज निकली जब मेरे ससुर, अपनी गृहस्थी की सभी पूरी जिम्मेदारी निभाते हुए, दस साल के अंतराल के बाद पढ़ सकते हैं तो मैं क्यों नहीं’ |

अपने ससुर का उदाहरण देकर अपनी उच्च शिक्षा ग्रहण करने की भूख को समाप्त करने के लिए चाँदनी ने अपने पति को तो मना लिया परन्तु गृहस्थी को चलाने के साथ इस उम्र में घर की बहू      को पढने की, सास के साथ किसी भी सगे संबंधी ने उचित न ठहराते हुए इसका विरोध प्रदर्शित कर दिया | ऐसी स्थिति पाकर एक बार को वह  कांपकर रह गई | अपने जीवन के लक्ष्य को पाने में अड़चन को भांपकर उसके मन में डर बैठ गया | उसकी रातों की नींद उड़ गई | चाँदनी हताश थी कि उसे अपने ससुर की व्यवहार कुशलता का ख्याल आया |

सैकड़ों बार सोचने के बाद भी डरते डरते सहमते तथा भगवान का नाम लेते हुए उसने अपनी समस्या एवं मनोइच्छा (अपने ससुर) राकेश के सामने बयान कर दी | चाँदनी ने कहा, पापा जी मैं आगे पढ़ना चाहती हूँ |

राकेश ने चाँदनी को असमंजसता से देखते हुए पूछा, इस उम्र में पढने की कोई खास वजह ?

पापा जी बचपन से ही मुझे पढने का शौक रहा है |

तो तुम पढ़ी क्यों नहीं ?

ढांसा में पांचवी तक पढ़ी फिर नजफगढ में पिता जी के रूढ़िवाद रवैये ने बारहवीं से आगे पढ़ने नहीं दिया |

पढने के बाद तुम्हारा लक्ष्य क्या है ? 

राकेश का प्रश्न सुनकर चाँदनी के चेहरे पर एक ऐसी आभा उभरी जैसे उसे मन की मुराद मिलने वाली है | वह चंचल हो उठी और झट से बोली, टीचर बनना |” 

राकेश, भावभीनी मुस्कराहट लिए उसका चेहरा देखता रह गया | राकेश को अतीत की यादों ने घेर लिया | ऐसी ही खुशी राकेश ने उस लड़की की आखों में पाई थी जो ढांसा में स्कूल के बंद गेट के बाहर अपनी टीचर के आने का इंतज़ार कर रही थी और राकेश के साथ अपने वार्तालाप को बीच में ही छोड़ अपनी टीचर को रास्ते पर आते देखकर उसकी सहायतार्थ भाग खड़ी हुई थी | भागते हुए ही उसने अपना नाम बताया था भगवती’ |

 

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