Friday, December 15, 2023

उपन्यास - भगवती (24)

 

स्नातकोत्तर की प्रथम वर्ष की परीक्षा पास करने के बाद मेरा तबादला देहली की एक नई यूनिट, जो दिचाऊँ कला-नजफगढ के खेतों के बीच स्थापित की गई थी, में हो गया | इस नए राडार पर काम करने के लिए सभी को बारी बारी से 6 महीने की ट्रेनिंग लेनी होती थी | इस यूनिट में आते ही उसके कमांडिंग आफिसर स्क्वाड्रन लीडर माथुर ने मेरा नाम कोर्स के लिए भेज दिया तथा मुझे बुलाकर ताकीद करते हुए कहा, "कल से आपको कोर्स की क्लासों में जाना है |"

मै अपने कमांडींग आफिसर को सूचना देते हुए बोला, "सर, मुझे जोधपुर युनिवर्सिटी से एम..फाईनल की परिक्षाएँ देनी हैं |"

शायद माथुर मेरी बात कुछ समझ नहीं सका इसलिए पूछा, "तो इससे क्या ?"

"सर यह कोर्स 6 महीने का है और मेरी परिक्षाएँ तीन महीने के अन्दर कभी भी हो सकती हैं |"

"इससे कोई फर्क नहीं पड़ता |"

"सर मुझे कोर्स में जाने पर कोई एतराज नहीं है |"

"फिर आप कहना क्या चाहते हो, "माथुर ने पूछा ?

इस पर मैनें अपनी बात खुलकर कही, "सर जब भी मेरी एम.. फाईनल परिक्षाओं की सूची जाए तो उसी अनुसार आप मुझे परीक्षा देने की अनुमति दे देना |"

फिर मैनें एक सुझाव भी दिया, "सर, बेहतर होगा अगर आप मेरा नाम अगले कोर्स के लिए निश्चित कर दें |"

कमांडिंग आफिसर माथुर ने मुझे आश्वासन देते हुए कहा, "नहीं नहीं छुट्टियों की परवाह मत करो | जब भी आपकी परिक्षाओं की तिथियाँ होंगी आपको छुट्टियाँ मिल जाएँगी |"

अपने कमांडिंग आफिसर का पक्का आश्वासन पाकर मैं खुशी खुशी राडार का नया कोर्स करने लगा | कोर्स को चलते अभी तीन ही महीने हुए थे कि जोधपुर यूनिवर्सिटी से मेरी स्नातकोत्तर की फाईनल परिक्षाओं की सूची गई | उसको अपने कमांडिंग आफिसर को दिखाते हुए मैं बोला, "सर, मेरी परिक्षाओं की सूची गई है अतः मुझे छुट्टियाँ प्रदान की जाएँ |" 

माथुर जैसे ऐसी किसी बात से अनभिज्ञ था आश्चर्य की मुद्रा दिखाकर, "छुट्टियाँ !"

मैनें अपनी बात पर जोर दर्शाते हुए, "हाँ सर, छुट्टियाँ |"

मेरे कहने की परवाह कर माथुर ने कहा, "परंतु तुम तो कोर्स कर रहे हो ?"

मैनें अपने कमांडिंग आफिसर को याद दिलाने की चेष्टा की, "हाँ सर, परंतु यह कोर्स शुरू होने से पहले ही मैनें आपको इस बारे में अवगत करा दिया था |"

माथुर को जैसे कुछ याद ही हो, "किस बारे में अवगत करा दिया था ?"

"सर, यही कि लगभग तीन महीने बाद मेरी एम.. की परीक्षा होंगी तथा मुझे जोधपुर जाकर परीक्षा देने के लिए छुट्टियाँ चाहिएंगी |"

माथुर के लिए जैसे मेरी एम.. की परीक्षा कोई मायने नहीं रखती पूछा, "परीक्षा देना क्या जरूरी है ?"

मैने अपना दृड़ निश्चय जाहिर किया, "हाँ सर, यह परीक्षा मेरे लिए बहुत जरूरी है क्योंकि मैनें आगे नौकरी करने की मंशा जाहिर कर रखी है |"

माथुर ने भी अपनी मजबूरी जताई, "शायद मैं आपको कोर्स बिना पूरा किए छुट्टियाँ प्रदान कर सकूँ |"

मैनें अपने कमांडिंग आफिसर को एक बार फिर उसका वचन याद दिलाने की कोशिश की, "सर, आपने मुझे वचन दिया था कि आप मुझे मेरी परिक्षाओं के लिए छुट्टियाँ प्रदान कर देंगे |"

"मैं मजबूर हूँ",माथुर ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर अपनी मंशा जाहिर कर दी थी |

मैं किसी किमत पर भी परीक्षा में बैठने का मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहता था | इसके लिए मैनें अपने कमांडिंग अफसर को एक युक्ति सुझाई | इसके तहत मैनें बताया कि मेरी चार परिक्षाएँ होनी हैं जो हर शनिवार को दोपहर दो बजे होनी है | अगर मुझे हर शनिवार को छुट्टी मिल जाए तो मैं अपनी परीक्षा देने में सफल हो सकता हूँ |

"वह कैसे ?"

"सर मैं हर शुक्रवार की शाम को जोधपुर मेल से जाकर, शनिवार को पेपर देकर, वापिस रविवार को सकता हूँ और सोमवार को अपना कोर्स भी कर सकता हूँ अतः मुझे केवल चार दिनों की छुट्टियाँ की ही जरूरत पड़ेगी |"

माथुर को कुछ सोचते देख मुझे लगा था कि शायद वह मेरी युक्ति पर राजी हो जाएगा परंतु मुझे बहुत धक्का सा लगा जब माथुर ने इसके लिए भी मना कर दिया | यह जानते हुए भी कि उसकी फरियाद अगर उसका अपना कमांडिंग अफसर ही नहीं सुनता है तो स्टेशन कमांडर से याचना करना बेकार होगा क्योंकि चोर चोर मौसेरे भाई | फिर भी यह सोचकर कि शायद काम बन जाए मैनें सुझाया, "सर, तो क्या स्टेशन कमांडर से आज्ञा ली जा सकती है ?"

मुझे वैसा ही जवाब मिला जिसकी मुझे आशा थी, "स्टेशन कमांडर मेरी मर्जी के खिलाफ नहीं जाएँगे |"

अपने कमांडिंग आफिसर माथुर के कहने के अन्दाज से साफ जाहिर हो गया था कि उसकी मंशा नहीं थी कि मुझे परीक्षा में बैठने का कोई मौका दिया जाए | उसकी प्रवृति  से साफ पता चल गई थी कि वह एक सैनिक को उन्नति करते नहीं देख सकता था |  

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