मुझे यूनिट में आकर पता चला कि वहाँ का माहौल मेरी करतूत के कारण बहुत बदल चुका था | चारों और खामोशी थी जैसी किसी बड़े भयानक तूफान आने से पहले व्याप्त हो जाती है | मेरे से सभी सैनिक साथी कन्नी काटते से नजर आ रहे थे | कमांडिंग आफिसर माथुर ने मुझे भगौड़ा घोषित कर दिया था | सिविल पुलिस को इसकी सूचना भेजने की तैयारी चल रही थी |
जैसा कि एक तानाशाह के राज्य में होता है ठीक उसी प्रकार फौज में भी देखने को मिल जाता है | फर्क इतना होता है कि एक तानाशाह अपने सैनिक को बागी घोषित करार देकर मौत के घाट उतार सकता है परंतु फौज में एक यूनिट का कमांडिंग आफिसर इस हद तक न जाकर अपने आधीन सैनिक से रूष्ठ होने पर उसकी रोजमर्रा की जिन्दगी नरक बना सकता है |
अर्थात यूनित के कमांडिंग आफिसर के व्यवहार से उस सैनिक पर चारों और से कहर सा टूट पड़ता है | उस सैनिक के साथी उससे किनारा करने लगते हैं क्योंकि उसका हर सैनिक साथी इस बात से डर जाता है कि कहीं उस खास साथी से बात करने पर वह भी अपने कमांडिंग आफिसर की नजरों में न आ जाए और बेवजह से उसके कोप का भाजन बनना पड़े | इसलिए, कारण कुछ भी हो, जो सैनिक अपने कमांडिंग आफिसर की नजरों में गिर जाता है वह अकेला पड़ जाता है | मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ |
जैसा की फौज में होता है कि जब कोई सैनिक छुट्टियों के बाद या टैम्परेरी डयूटी से वापिस लौटता है तो उसके सभी संगी साथी उसे घेर कर उससे पूरी जानकारी लेकर ही दम लेते हैं | हाँलाकि मेरे सभी साथियों ने मुझे यूनिट में देखा जरूर परंतु किसी की भी मेरे नजदीक आकर यह पूछने कि हिम्मत नहीं हुई कि मैं इतने दिन रहा कहाँ | मुझे अपने साथियों के ऐसे दयनीय एवं दास्ताँ जैसे व्यवहार पर बहुत रोष तो आया परंतु फौज के वातावरण को सोचकर अपने में रह गया कि कोई नहीं चाहेगा 'आ बैल मुझे मार' |
सुबह की हाजिरी परेड़ में मुझे उपस्थित देखकर शायद मेरे आफिसर से सहा नहीं जा रहा था | मैं साफ भाँप सकता था कि मुझे देखकर माथुर का चेहरा एकदम तमतमा गया था | उसके जबड़े भींच गए थे | हाथ की मुठ्ठियाँ बन्द हो जाने से उसकी नसें फूल गई थी | उसकी जबान कुछ कहना चाहती थी परंतु दिमाग द्वारा कहने का सही समय न समझ कुछ बोल न सकी | माथुर अपनी व्यग्रता दबाने पर मजबूर था | मैं महसूस कर रहा था कि मेरे सभी साथी चोर नजरों से कभी माथुर को देख रहे थे तो कभी मुझे निहार रहे थे | शायद माथुर को मेरी उपस्थिति बर्दास्त नहीं हो पा रही थी इसीलिए उसने पूरे काम का निपटारा किए बिना ही परेड़ का विसर्जन कर दिया था |
हाजिरी परेड़ के विसर्जन पर माथुर के फूले नथुने और छाती में चलती धौकनी साफ बता रही थी कि वह कितने गुस्से में था | वह केवल इतना कहकर कि इसके बाद आप मेरे आफिस में हाजिर हों, पैर पटकता हुआ, जल्दी जल्दी, अपने आफिस में घुस गया |
पहले से ही मेरे साथी मेरे बारे में सहमें हुए थे, कि माथुर के आज के रवैये को देखकर तो सभी की सिटी-पिटी गुम हो गई | सभी की मूक नजरें दर्शा रही थी कि जैसे कह रही हो," गुप्ता आज तो तू गया काम से |" परंतु मेरा चेहरा देखकर मेरे सैनिक साथियों को आश्चर्य के साथ साथ सांत्वना मिली होगी क्योंकि वह बयाँ कर रहा था कि मुझे किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं थी तथा मैंने कोई गल्त काम नहीं किया था | मैं निर्भिक अपने साथियों को अपनी चिरपरिचित मुस्कान दिखाते हुए आफिसर कमांडिंग माथुर के आफिस की और बढ़ गया |
मैंने सल्यूट मारकर अपने कदम अन्दर रखे ही थे कि यूनिट के एडजूटैंट ने सवाल किया,"
जानते हो तुम भगौड़े घोषित हो चुके हो ?"
अपनी अनभिज्ञता जताते हुए मैंने जवाब दिया,"नहीं साहब |"
माथुर जिससे निचलाया बैठा नहीं जा रहा था चिल्लाया,"यही सत्य है |"
मैंने कोई उत्तेजना न दिखाई तथा बड़ी सहनशीलता से बोला,"होगा साहब |"
मुझे किसी प्रकार भी विचलित होते न देख माथुर गुर्राया,"लगता है तुम्हें अपनी गल्ती की कोई परवाह नहीं है ?"
मैंने अपने अन्दाज में जवाब दिया,"साहब, जब मैंने कोई गल्ती की ही नहीं है तो मुझे किस बात का डर |"
गुस्से में माथुर से बोला नहीं जा रहा था | वह बेचैन होता जा रहा था | इसलिए एडजूटैंट ने पूछा, "तुमने कोई गल्ती नहीं की ?"
"नहीं साहब |"
"तुम्हें केवल तीन दिनों की छुट्टियाँ प्रदान की गई थी न ?"
"हाँ साहब |"
"और तुम आज एक महीने बाद आए हो ?"
"हाँ साहब |"
"यह गलती नहीं है तो क्या है, वैसे तुम इतने दिन कहाँ थे ?"
मैने बिना किसी झिझक के जवाब दिया, “अपनी एम.ए.फाईनल की परिक्षाएँ दे रहा था |"
आफिसर ने आँखे तरेर कर कहा, "तुम्हें जरा भी डर नहीं लगा कि तुम बिना छुट्टियों की मंजूरी के ठहर कर परीक्षा दे रहे हो ?"
"साहब मैं फौज से अनुपस्थित नहीं था |"
"क्या पहेलियाँ बुझा रहे हो, साफ साफ बताओ ?"
मैनें सभी को एक जोर का झटका धीरे से देने के अन्दाज में बताया, "साहब मैं बिमार था और जोधपुर अस्पताल में भर्ती था |"
वास्तव में ही जैसे तीनों आफिसरों के सिर पर कोई वज्रपात हो गया हो, "क्या !"
कहकर तीनों के मुहँ खुले के खुले रह गए तथा अपना अपना सिर पकड़ कर एक दूसरे का मुहँ ताकने लगे |
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