Wednesday, August 12, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' भाग (VI)

 

VI

गुलाब का घर

शालू :-(अपनी सास से) माता जी आपने मेरी छोटी बहन तो देखी होगी ?

सास :-कौन सी ?

शालू :- मेरी एक ही तो छोटी बहन है, माला |

सास :-(अपने दिमाग पर कुछ जोर देते हुए)  हाँ देखी है | पर क्यों ?

शालू :- मेरे पिता जी कह रहे थे कि छोटे लाला जी (गुलाब) के रिस्ते के लिये उसकी बात चलाऊँ |

सास :- लडकी तो अच्छी है | रंग, रूप, कद, सेहत तथा काम करने में पूरी दक्ष है | दोनों की जोड़ी  भी ठीक बैठती है | अच्छा रात को जब तेरे पिता जी (ससुर) दुकान बन्द करके आएंगे तो मैं उनसे बात करूंगी |

सास (लीला वती ) :-(रात को अपने पति नारायण से) आपकी बहू(शालू) पूछ रही थी कि हमारे गुलाब के लिये उसकी छोटी बहन माला कैसी रहेगी ?

नारायण  :- भई मैनें तो कभी ध्यान नहीं दिया कि माला कौन है तथा कैसी दिखती है |

लीलावती :- मैनें देखा है | माला हर प्रकार से हमारे गुलाब के लायक है | सुन्दर है, सुशील है, कमेरी है ओर कद-काठी में भी हमारे लडके से मेल खाती है |

नारायण :- जब तुम्हे पसन्द है तो ठीक है | मुझे भी कोई एतराज नहीं है | फिर भी अपने बडे लडके शिव से एक बार राय लेना ठीक रहेगा |

लीलावती :- ठीक है कल उससे भी उसके विचार जान लेंगे |

             अगली सुबह - नाश्ते के बाद

नारायण :- बेटा शिव, तुम्हारा छोटा भाई गुलाब नौकरी तो लगा ही है | उसकी उम्र भी शादी लायक है तथा उसके लिये एक अच्छा रिस्ता भी आया है | उसकी शादी के बारे में तुम्हारा क्या विचार है ?

शिव :- पिता जी रिस्ता कहाँ से आया है ?

नारायण :- डिबाई से | हमारी बहू शालू की छोटी बहन माला का |

सुनकर शिव कुछ सोचने लगता है | वह जवाब नहीं देता |

नारायण :- क्यों किस सोच में पड् गए ?

शिव :- पिता जी वैसे तो लडकी हर मायने में हमारे गुलाब के अनुकूल है परंतु मेरे विचार से एक घर से दो बहुएँ लेना ठीक नहीं रहता | आगे आपकी मर्जी | वैसे गुलाब भी अभी यहाँ नहीं है | हमारे देश का पाकिस्तान से युद्ध चल रहा है अतः गुलाब को घर आने में न जाने कितने दिन लग जाएँ | जब वह आ जाएगा तो उसकी इच्छा भी जान लेंगे | इसलिये तब तक इस बारे में कोई बात न की जाए तो अच्छा रहेगा |

नारायण :- (अपनी पत्नि से) शिव ठीक कहता है | इस बारे में गुलाब की मर्जी जान लेना भी जरूरी है | अतः जब तक गुलाब घर न आ जाए तब तक कोई आश्वासन नहीं दिया जा सकता |

अपनी ससुराल वालों कि तरफ से सारी स्थिति जान लेने के बाद शालू ने अपने पिता जी को एक पत्र लिखकर उनको भी सारी बातों से अवगत करा दिया |

पूज्य पिता जी ,

         सादर प्रणाम | अत्र कुशलम तत्रास्तु | आपके कहे अनुसार मैनें माला के रिस्ते के बारे में बात छेड़ी  थी | इन सबकी राय यही है कि गुलाब के आने से पहले कोई बात नहीं की जा सकती | आप तो जानते ही हैं कि भारत पाकिस्तान युद्ध चल रहा है तथा सभी फौजियों को अपनी अपनी युनिटों में रहना आवश्यक हैं | इसलिए लाला जी(गुलाब) के घर आने का अभी कोई निश्चित नहीं है क्योंकि न जाने यह लड़ाई कितने दिनों तक चलेगी | हालाँकि मुझे पूरा यकीन है कि लाला जी माला से अपने रिस्ते को कभी भी मना नहीं करेंगे फिर भी मुझे अपने जेठजी की तरफ से इसमें थोड़ी  अडचन पडने की आशंका लगती है | क्योंकि मैनें उनको कहते सुना है कि एक घर से दो बहूओं का होना ठीक नहीं रहता  | अतः मेरे विचार से आप माला के रिस्ते के लिये दूसरी जगहों से भी कोशिश करते रहना | अगर बात बन जाती है तो ठीक है अन्यथा लाला जी के आने के बाद यहाँ बात कर ली जाएगी |

                              आपकी पुत्री

                                 शालू

अपनी बहन द्वारा लिखे गये पत्र का मजबून जब माला को पता चलता है तो वह बहुत उदास तथा गमगीन हो जाती है |  अपने व्यथित मन को कुछ सहारा देने के लिये वह विरह का एक गाना गाने लगती है |

छोड़गये बालम मुझे हाय अकेला छोड़गए |

माला की इस उदासीनता, गमगीनता तथा विरह की तडपन को उसकी बचपन की सहेली तथा भतीजी संतो ने भाँप लिया | संतो, माला की हम उम्र थी इसलिये वह माला की भतीजी होते हुए भी उसकी पक्की सहेली थी | आज माला के इस रूप को देखकर संतो हैरान थी क्योंकि वह उसके इस कारनामें से अभी तक अनभिज्ञ थी | वह सोच रही थी कि ऐसा वह कौन सा समय था जब वह माला से अलग रही हो | वे तो दोनों उठती साथ थी, खाती साथ थी यहाँ तक की नहाती भी साथ ही साथ थी फिर भला माला किसी के प्रेमपास में कब बंध गई | वह खड़ी  खड़ी  सोचती रही तथा माला की निष्प्राण जैसी एकाग्रता को बहुत देर तक निहारती रही | आखिर उससे जब रहा न गया तो उसने चुपचाप माला के पीछे आकर उसकी तंद्रा तोडने की सोची | अतः वह अपने दोनों हाथों से माला की आंखे बन्द कर लेती है |

माला :- (चौंककर) कौन ?

संतो :- लगता है कहीं दिल लगा बैठी है |

संतो के केवल इतना कहने भर से ही माला के सब्र का बांध टूट गया | वह अचानक संतो से चिपट कर सुबक सुबक कर रोने लगी | थोड़ी  देर तक संतो उसको ढांढस देती रही और जब माला कुछ सम्भली तो उसने उससे बडे प्यार से पूछा, "अच्छा बताओ क्या बात है जो इतना सुबक रही हो ? 

माला :- आज देहली से शालू बहन जी का पत्र आया है |

संतो :- क्यों उनकी ससुराल में ऐसा क्या हो गया जो तुम इतनी परेशान हो ?

माला :- न उनकी ससुराल में कुछ हुआ है न उन्हें कुछ हुआ है |

संतो :- तो फिर तुम क्यों इतनी गमगीन दिख रही हो ?

माला :- तू नहीं जानती बात ही कुछ ऐसी है |

संतो :- (कुछ ऐसे अन्दाज में जैसे कह रही हो कि माला मैं तेरी रग रग से वाकिफ हूँ तो भला वह कौन सी बात हो सकती है जिसे मैं नही जानती) अच्छा बता तो सही कि वह क्या बात है, बुआ जी ने पत्र में क्या लिखा है ? 

माला :- यही कि उनके छोटे देवर का अभी कुछ पता नहीं कि वे कब तक छुट्टियों पर घर आएंगे | क्योंकि भारत पाकिस्तान युद्ध चल रहा है तथा कुछ पता नहीं कब समाप्त होगा |

संतों :- तो तुम्हे इससे क्या फर्क पडता है ? तुम्हारी जान क्यों निकली जा रही है ?

माला :- इसीलिये तो मैनें कहा था कि तू इस बात को नहीं समझेगी |

संतो :- समझ गई सब अच्छी तरह समझ गई कि वो महाशय जी कौन हैं जो अपना इंतजार करवा कर हमारी बुआ जी को इतना सता रहे हैं |

माला :- तुझे मजाक सूझ रही है और मेरी जान निकल रही है |

संतो :- कहते हैं इंतजार में जो मजा है इकरार में नहीं | तो मजा लेती रहो जब तक लेने को मिल रहा है |

माला :- तभी तो मैं कह रही थी कि तू कुछ नहीं जानती | अरी बुद्धु मेरी बहन ने लिखा है कि वहाँ रिस्ते की बात अभी नहीं हो सकती जब तक गुलाब घर न आ जाए | अतः इस बीच अगर यहाँ किसी से बात बन जाती है तो वही पक्का करलो |(रोने लगती है)

संतो :-(कुछ दर्द भरी आवाज में) इन रिस्तों के बारे में हम तुम कर भी क्या सकती हैं |

जहाँ माँ-बाप ने ठीक समझा हमें वहाँ बंधना ही पडता है |

माला :- तुम नहीं जानती संतो कि वे कितने भोले, सज्जन, सुशील, गुणी तथा लंगोट के पक्के हैं | मैं उन्हें खोना नहीं चाहती |  संतो क्या तू जानती है कि मेरी मुलाकात उनसे कैसे हुई तथा फिर यह कशिश इस हद तक कैसे पहूंची ? शायद नहीं | तो सुन मैं तूझे आज अपने तथा उनके मिलन की पूरी दस्तान सुनाती हूँ | जिससे मेरे दिल का बोझ कुछ ह्ल्का हो जाए | इसके बाद माला वह सब वर्णन करने लगती है कि कैसे उसने गुलाब को गलत समझा था जब वह अपने भाई के साथ पहली बार हमारे घर आया था | फिर कर्णवास पर आमोद -प्रमोद के गंगा चढाने के बाद कैसे वे सबसे अलग गंगा किनारे पेडों के एक झुरमुट के नीचे बैठे बातें करते रहे थे | और कैसे कछुओं से डरकर वह गुलाब से लिपट गई थी | उस समय का मेरा यह लगाव न जाने कब उनके प्रति मेरे भाई साहब की शादी के समय प्यार में तबदील हो गया | मैं अनजाने में अपने आप को उनको समर्पित   .............|

माला अभी अपने मन की पूरी व्यथा निकाल नहीं पाई थी कि संतो के पिताजी की आवाज ने उसकी बातों पर विराम लगा दिया | संतो माला को उसकी उदासीनता तथा तडप के साथ खुद समझौता करने के लिये छोड़कर अपने पिताजी के साथ अपने घर चली गई | अतः गुलाब की माला के साथ मुलाकतों का संतो का ज्ञान अधूरा ही रह गया | जैसे कहते है कि जब अभिमन्यू द्रौपदी के गर्भ में था तो कृष्ण जी उसे(द्रौपदी को) कौरवों द्वारा रचित चक्रव्यूह में घुसने का रास्ता समझा रहे थे परंतु जब कृष्ण जी ने चक्रव्यूह से बाहर निकलने के रास्ते के बारे में बताना शुरू किया तो द्रौपदी को नीदं आ गई इसलिए गर्भ में पल रहे अभिमन्यू को इसका ज्ञान न हो सका तथा महाभारत के युद्ध में उसे अपनी जान गवानीं पड़ी  थी |

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' भाग (V)

 

V

पाकिस्तान ने अचानक ही भारत की सीमा पर गोलाबारी शुरू कर दी थी | इसके साथ साथ पाकिस्तान के जंगी जहाज भी भारत में स्थित अन्दरूनी ठिकानों पर बम वर्षा करने के लिये उड़ान भरने लगे | इस नाजुक स्थिति से निपटने के लिये भारत सरकार की तरफ से ऐलान किया गया कि सभी फौजी जवानों की छुट्टियाँ रद्द कर दी गई हैं अतः सभी जवान जितनी जल्दी हो सके अपनी अपनी युनिट में रिपोर्ट करें | गुलाब इन दिनों भारतीय वायु वायु सेना में कार्यरत था | वह अपने  घर छुटियों पर आया हुआ था | अतः सरकार के ऐलान के अनुसार वह भी अपनी युनिट, जो जम्मू में थी, के लिये चला गया | गुलाब भारतीय वायु सेना में अब एक कार्पोरल था तथा रड़ार मैकेनिक के पद पर काम कर रहा था | युद्ध एक भीषण रूप ले चुका था | गुलाब जब अपनी युनिट पहूंचा तो वहाँ अफरा तफरी मची हुई थी | कमांडर तथा जंगी जहाजों के चालकों के हौसले कुछ पस्त से नजर आ रहे थे तभी तो हर हमले के बाद उनकी मिटिंग होती थी कि क्यों वे अपने लक्ष्य को निशाना नहीं बना पा रहे हैं |

कमांडर :- हमने अभी तक जितनी बमबारी की है उसमें हम ज्यादा सफल नहीं हो पाए हैं | क्योंकि दुशमन का हमला पहले की तरह पूरे जोरों से चल रहा है | इसका यही कारण हो सकता है कि दुशमन ने अपने ठिकाने बदल लिये हैं तथा हमारे पास जो इंफार्मेशन है वह पुरानी तथा गल्त है |

एक पायलट :- सर यह बात बिल्कुल ठीक लगती है क्योंकि कल रात जो हमने बमबारी की थी उससे उनकी दक्षिण की चौकी का सफाया हो जाना चाहिये था परंतु पता चला है कि आज सुबह वह दिशा सक्रिय देखी गई है |

कमांडर :- इससे साफ जाहीर होता है कि पाकिस्तान की फौजों ने अपनी चौकियों की जगह बदल ली हैं |

दूसरा पायलट :- सर फिर तो यह जरूरी हो जाता है कि अगले हमले पर जाने से पहले हमें उनकी चौकियों की नई स्थिति का पता लगाने के लिए एक बार फिर सर्वे करवा लेना चाहिए |

तीसरा पायलट :- हाँ सर नहीं तो हमारा बारूद बर्बाद ही होता रहेगा तथा दुशमन का हौसला बढता ही जाएगा |

कमांडर :- ओके ओके (अपने असिस्टैंट से) सर्वे करने के लिये किसको भेजना उचित रहेगा |

असिस्टैंट ;- सर, वैसे तो तीन चार जवान इस काम में दक्ष हैं परंतु समय की नाजुकता और अभाव को देखते हुए "गुलाब" को ही भेजना उचित रहेगा |  

कमांडर :- यह कार्य आज रात को ही पूरा हो जाना चाहिए | अच्छा गुलाब को बुलाओ |

गुलाब अभी घर से युनिट पहूंचा ही था कि कमांडैंट के बुलावे की सुचना पाकर कुछ असमंजस्ता में पड़गया | वह सोचने लगा कि वह तो पाँच और जवानों के साथ आया है इसका मतलब ऐलान के बाद यूनिट में भी देरी से नहीं आया | फिर क्या कारण हो सकता है कि उसे बुलाया गया है | खैर उसने वर्दी पहनी तथा आनन् फानन में अपनी यूनिट पहुँच गया | वह स्लयूट मारकर कमांडैंट के कमरे में दाखिल हो गया |

कमांडर :- गुलाब, हमने आपको एक बहुत ही खास मकसद को पूरा करने के लिये चुना है | और यह काम आपको आज रात को ही पूरा करना होगा |   

गुलाब :- यह मेरी खुशकिस्मती होगी कि मैं अपने देश के लिए कुछ कर सकता हूँ | कहिए मेरे लिये क्या हुक्म है |

कमांडर :- दुशमन ने शायद अपनी चौकियों की पोजिशनें बदल ली हैं इसीलिये हमारे बम वर्षक जहाज उनका कोई नुकसान नहीं कर पा रहे हैं तथा नाकाम होते जा रहे हैं | जब तक उन्हें दुशमनों के अड्डों की सही पोजिशनें नहीं मिल जाती वे उनका सफाया नहीं कर सकते | अतः आज रात तुम्हें दुशमनों की चौकियों की नई पोजिशनों का पता करना है |

गुलाब :- ठीक है सर |

कमांडर :- अब बैरेक में जाकर अपना सारा जरूरी सामान तैयार करलो | मैं ठीक सात बजे तुम्हारे पास एक जीप भेज दूंगा वह तुम्हे एयरपोर्ट छोड़ आएगी | वहाँ पर जहाज का पायलट आपको आगे की सारी कार्यवाही से अवगत करा देगा कि आपको कैसे क्या करना है | ध्यान रहे अपना काम बड़ी मुस्तैदी तथा होशियारी से करना |

गुलाब :- आप बेफिक्र रहें सर |

कमांडर :- (जहाज के पायलट से) आज शाम जब अंधेरा होने लगे तो आप गुलाब को मय उसके जरूरी सामान के साथ लेकर उड़ान भरनी है | आपको मन्दिर वाली पहाड़ी  के साथ साथ उडते हुए चिनाब नदी को पार करना है | इस पहाड़ी  के पीछे एक समतल मैदान है जो घने जंगल से ढका हुआ है परंतु यह पाकिस्तान के बार्डर पर है | आपको नीची उड़ान भरते हुए उस जंगल के उपर पहूँच कर गुलाब को वहाँ ड्राप करना है | 

आप गुलाब के ट्रांसमिटर से अपना रिसीवर सैट कर लेना | रात को जब गुलाब का काम समाप्त हो जाएगा तो वह आपको  सिगनल भेज देगा तब उसको वहाँ से वापिस लेकर आना है |

पायलट :- राईट सर |

कमांडर :- (पायलट ओर गुलाब से) ओ.के.विस यू आल द बैस्ट | सी यू टूमारो | थैंक यू |

Tuesday, August 11, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति" भाग (IV)

 IV

आनन्द प्रकाश की शादी सुचारू रूप से सम्पन्न हो गई बारात वापिस घर आ गई शाम का खाना चल रहा था पंगत में गुलाब की बगल में आगरा के सूरज प्रकाश बैठे थे वे बहुत ही साधारण किस्म के आदमी जान पडते थे हालाँकि उन्होने पैंट कमीज तो पहन रखी थी परंतु सिर पर गांधी टोपी भी पहने थे गुलाब को उनसे अपना रिस्ता भी नहीं पता था कि वे उनके क्या लगते थे |सूरज प्रकाश बिलकुल शांत किस्म के व्यक्ति प्रतीत होते थे क्योंकि गुलाब ने उन्हें बहुत कम बोलते सुना था खाना खाते हुए भी वे न तो कुछ माँग रहे थे तथा न ही जबान से मना कर रहे थे वे हाथ के इशारे से ही समझा कर सब कुछ करवा रहे थे |

खाने में खीर बनी थी परंतु उसमें उन्हें मीठा कुछ कम लगा अतः उन्होने अपनी चुट्की खीर के उपर फिराते हुए इशारा किया कि उन्हें इसमें बूरा डलवानी है उनकी चुट्की का इशारा काफी देर तक शायद किसी ने नहीं देखा परंतु बगल में बैठा गुलाब यह सब देख रहा था उसने उनकी सहायता करने के इरादे से पास में रखी प्याली से दो चम्मच बूरा सूरज प्रकाश की खीर में डाल दी इस पर सूरज प्रकाश का चेहरा गुलाब का धन्यवाद करता नजर आया |

सूरज प्रकाश ने बूरा को अच्छी तरह फेंट कर खीर का एक लम्बा सुडप्पा मारा परंतु यह क्या वे एक दम पंगत से उठे तथा मुहँ में भरी खीर को नाली में पलट दिया खाने पर बैठे सभी जीमने वाले अपने अपने अन्दाजे से पूछने लगे कि क्या मक्खी गिर गई, कोई कंकर आ गई या कोई और बात हो गई |

सूरज प्रकाश वापिस खाने को नहीं बैठे क्योंकि उनका यह मत था कि एक बार खाना खाते से जो उठ गया उसे दोबारा खाने के लिये नहीं बैठना चाहिए |  उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि उनकी खीर में नमक आ गया था खीर में नमक का सुनकर कई तो हंसने लगे तथा कई सोचने लगे कि आखिर केवल उनकी खीर में ही नमक कैसे गिर गया | असल में हुआ क्या था किउनके सामने दो भरी हुई प्यालियाँ रखी थी एक में नमक था तथा दूसरी में बूरा थी गुलाब ने बिना पता किये सूरज प्रकाश के इशारे को समझते हुए नमक को बूरा समझ कर उनकी खीर में डाल दिया था जब सूरज प्रकाश उठकर अचानक भागे थे तो गुलाब भी अपनी हँसी रोक न पाया था परंतु जब वे दोबारा खाने पर न बैठे तो उसे दुखः भी बहुत हुआ था कि उसकी वजह से एक भोला-भाला सादा इंसान भूखा रह गया था |     

बारात से वापिस आकर अधिकतर व्यक्ति अपने को थका-थका सा महसूस कर रहा था अतः रात पड़ते पड़ते सभी ने अपने अपने बिस्तर पकड़ लिये |

इतनी अधिक गर्मी नहीं थी कि दरवाजों को बन्द करके अन्दर सोया जाता अतः सोने के लिये या तो हवा से थोडी सी आड़ काफी थी या एक चादर औढ लेने से काम चल सकता था गुलाब ने अपनी चारपाई कमरे के दरवाजे की आड़ में कर रखी थी तथा एक चादर भी ले रखी थी वह अपनी चारपाई पर अकेला सोया था परंतु रात के एक बजे के लगभग उसे महसूस हुआ कि उसके साथ कोई और भी लेटा हुआ है अंधेरे में पहचानना मुशकिल था इतने में गुलाब के कानों में एक धिमी सी आवाज टकराई,"जीजा जी |

आवाज सुनकर एक बार तो गुलाब का शरीर सुन्न सा हो गया जैसे उसे किसी साँप ने सूंघ लिया हो वह किंकर्तव्यमूढ हो गया परंतु जल्दी ही उसने अपने को सम्भाला वह बिजली की तेजी से उठा फिर सहारा देकर बडे प्यार से माला को उठाया इसके बाद वे दोनों बाहर आकर खुले में परंतु एक आड लेकर बैठ गये गुलाब यह तो समझ चुका था कि उसकी प्रेयसी आपे से बाहर हो गई थी तथा उसके कोमल हृदय को ठेस लगने से बचाने के लिये बहुत ही कोमलता एवं शालिनता से काम लेना होगा गुलाब ने माला को धीरे से अपने बाहुपास में ले लिया तथा समझाने लगा |

माला सुनो हमारा दिल और दिमाग एक अथाह समुंद्र की तरह है जैसे एक समुंद्र की सतह में हीरे मोतियों के साथ साथ अनेक प्रकार के भयंकर जीव जंतु भी वास करते हैं उसी प्रकार हमारे दिल और दिमाग में भी न जाने कितनी ही बातें एवं विचार भरे रहते हैं जिनका कोई पार नहीं पा सकता इनमें प्यार, नफरत, स्नेह, द्वेष, झूठ, सत्य, धोखा और  इंसानियत इत्यादि सभी विद्वमान होते हैं मैं तुम्हें धोखा नहीं देना चाहता तुम्हारा निश्छल प्यार मेरे मन के एक कोने में  हमेशा बसा रहेगा मेरे भीतरविशवास हो तुम मेरा, मुझ से वायदा करोअपने को बिखरने नहीं दोगी चाहे हमारा मिलन हो या न हो क्योंकि हर बार चाहा नहीं मिलता तथा यह भी जरूरी नहीं की केवल मिलकर ही पूर्णता प्राप्त हो सकती है |

देखो अभी हमारी उम्र ऐसी नहीं हुई है कि नाजायज रिश्ते बनाऐं जाएँ आपको पता ही है कि आपकी बहन तथा मेरी भाभी जी हमारे रिस्ते के हक में है ही उनको पूरा विशवास है कि हम ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे हमारे घरों की बदनामी हो इस विशवास के रहते ही उन्होने हम दोनों को अकेले पार्क में मिलने का मौका भी दिया था अपने को सम्भालो तथा उचित समय का इंतजार करो |

गुलाब की बात सुनकर माला कुछ आपे में आई उसने आखें उठाकर गुलाब की तरफ देखा गुलाब की निगाहों में उसकी ईच्छा पूर्ति न कर पाने की बेबसी साफ झलक रही थी साथ ही साथ यह भी सन्देशा दे रही थी कि वह हर प्रकार से समर्थ है परंतु अपने प्यार को वह एक वासना तृप्ति का रूप नहीं देना चाहता था गुलाब ने माला का चेहरा अपने दोनों हाथों में ले लिया तथा धीरे से अपने होठों द्वारा उसके सुर्ख मखमली गाल को छूकर विदा ली |

माला के जाने के बाद उसे नींद तो कैसे आती शायद माला का भी वही हाल रहा होगा क्योंकि सुबह सभी आए हुए मेहमानों के साथ साथ गुलाब को भी विदा लेकर अपने घर जाना था                                

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' भाग-III

 

III

लाला मुंशी राम का मकान एक बार फिर केंद्र बिन्दू बना | इस बार उनके लड़के आनन्द प्रकाश  की शादी है | हर और खुशी का वातावरण है | एक एक करके मेहमान आकर इकट्ठा हो रहे हैं | अगले दिन बारात जानी है | यह खबर डिबाई में पहले से ही फैल चुकी थी कि  इस बार भी दिल्ली से अपने भाई श्री चन्द तथा भाभी शालू के साथ गुलाब ही आने वाला है |

ये तीनों जब घर के दरवाजे पर पहूँचे तो अन्दर औरतों का गाने बजाने का प्रोग्राम चल रहा था |

 

मेरी नैया में लक्ष्मण राम गंगा मैया धीरे बहों,

कौन की गंगा, कौन की नैया, कौन के लक्ष्मण राम?

गंगा मैया धीरे बहों |

भागीरथ की गंगा, केवट की नैया, दशरथ के लक्ष्मण राम,

गंगा मैया धीरे बहों |

क्या करे गंगा, क्या करे नैया, क्या करे लक्ष्मण राम?

गंगा मैया धीरे बहों |

पाप हरे गंगा, पार करे नैया, भक्तों को तारे राम,

गंगा मैया धीरे बहों |

सुनो सुनो ये राम का नारा, कलयुग में है एक सहारा,

बिना भजन नहीं विश्राम, गंगा मैया धीरे बहों |

मेरी नैया में लक्ष्मण राम गंगा मैया धीरे बहों |

 

 माला नाच रही थी | गुलाब ने ज्यों ही अपना कदम घर के अन्दर रखा तो वह नाचने वाली को भौचक्का सा देखता ही रह गया | गौरी चिट्टी लड़की, इकहरा बदन, टमाटर जैसे लाल गाल, कद लम्बा तथा काले काले लम्बे बाल जो जमीन छूना चाह रहे थे, कटीले नयन नक्श उपर से सलीके से किये गये श्रंगार में वह ऐसी लग रही थी जैसे कोई परी जमीन पर उतर आई हो | 

सभी माला को एकटक देखे ही जा रहे थे परंतु वह थी कि इस सबसे बेखबर नाचे ही जा रही थी | आगंतुकों को देखकर औरतों की ढोलक पर थाप कुछ कम हो गई तथा वे एक दूसरे से कुछ कानाफूसी करने लगी | ढोलक की धीमी थाप के कारण माला के नाचने के अन्दाज में भी कुछ धीमापन आ गया |  इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती उसकी निगाहें गुलाब से जा टकराई जो एक बुत की भाँति खडा उसे निहार रहा था | जैसा हाल गुलाब का था वैसा ही माला का हो गया | उसके हाथ नाचने के अन्दाज में उपर ही अटक कर रह गये | सभी देखने वालों को ऐसा जान पड़ता था जैसे वे दोनों बच्चों का खेल "स्टैचू-स्टैचू" खेल रहे हों | 

गुलाब की तंद्रा को उसकी भाभी जी की आवाज ने खंडित कर दिया | वे पानी का गिलास लिए खडी थी तथा उसे लेने के लिये कह रही थी | गुलाब की माला पर से निगाह हटते ही वह भी सपनों की सी दूनिया से बाहर आई तथा झट से अन्दर भाग गई |

दोपहर से शाम ढल गई | गुलाब की आंखे चारों ओर देख देख कर थक गई तथा माला की छवि निहारने को तरस गई | वह न जाने कहाँ छुप कर बैठ गई थी कि उसके बाद नजर ही न आई | उनके घर की बनावट भी कुछ अजीब ही थी | छोटे छोटे दरवाजे तथा छोटी छोटी खिडकियाँ थी | दरवाजे तथा खिडकियों में कुछ अंतर ही नजर नहीं आता था क्योंकि एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने के लिये खिड्की नूमा दरवाजे लगे थे | हालाँकि गुलाब माला के दर्शनों को तरस गया था परंतु उसे अपने अन्दर विशवास हो रहा था कि कहीं न कहीं से माला चोरी छिप्पे उसकी बेबसी को अवशय निहार रही होगी |

रात के खाना खाने का शोर उठा | सब खाना खाने के लिए उठकर नीचे आँगन में पहूँच गए | गुलाब जानबूझकर नीचे जाने में देर लगा रहा था क्योंकि अब माला की अनुपस्थिति उससे बर्दास्त नहीं हो पा रही थी | माला ने भी शायद यह भाँप लिया था तभी तो गुलाब की इंतजार की घडियों को समाप्त करते हुए वह धीरे से पीछे से आई ओर बोली, "जीजा जी, क्या खोज रही हैं आपकी आंखे ?

माला की आवाज सुनकर गुलाब का रोम-रोम पुलकित हो उठा | उसने अपनी आंखे बन्द कर ली तथा माला के कहे एक एक शब्द से आनन्दित महसूस करने लगा | 

माला गुलाब के सामने आकर, क्या अब आंखे बन्द ही रखोगे ?

हाँ |

क्यों भला ?

तुम्हारे कहे शब्दों की आवाज ने ही जब मुझे इतना आनन्द विभोर कर दिया है तो तुम्हे देखकर खुशी का कोई पारावार ही न रहेगा | शायद मेरा दिल इतनी खुशी सहन न कर सके | इसलिये मैनें अपनी आंखे बन्द कर रखी हैं |

दोपहर से तो आंखे एक पल के लिये भी बन्द नहीं हुई थी |

तुम्हें कैसे पता ?

मैं चुपके चुपके छुप कर सब देख रही थी |

तो आपको मुझे तडपाने में मजा आता है |

तडपाने में नहीं आपको खिलाने में मजा आता है |

अच्छा जी, तो हमे आपने एक बच्चा समझ रखा है |

बच्चे हो तभी तो आंखे बन्द किये बैठे हो |(थोडा बनते हुए) अगर अब आंखे नहीं खोली तो हम चले जाएँगे |

अरे ऐसा गजब न करना, अब तक गुलाब का मन शांत हो चुका था, अभी तो शक्ति आई है कि तुम्हारा दिदार कर सकूं |फिर धीरे से आंख खोलकर, माला |

माला चहकते हुए, जीजा जी |

जीजा जी नहीं | वही कहो जो आज से आठ साल पहले कहा था |

शैतान कहीं के |

क्यों क्या हुआ ?

कुछ नहीं, जल्दी नीचे चलो सब खाने पर इंतजार कर रहे हैं”, वह जाने के लिये मुड जाती है |

अचानक गुलाब ने घूमती हुई माला का हाथ पकड लिया | ज्योंही माला का हाथ उसके हाथ में आया वह एडी से चोटी तक झनझना गया | माला के हाथ मखमल की तरह मुलायम थे और फिर उसने पहली बार किसी हम उम्र लडकी का हाथ पकडा था | वह अपने को काबू में न रख पाया अतः एक झटका देकर माला को अपनी ओर खींच लिया | माला एक नाजूक लता की तरह झूमती हुई गुलाब से तथा माला के मखमली सुनहरी गाल गुलाब के होठों से जा टकराए |

इतने में नीचे से माला की बहन तथा गुलाब की भाभी जी, शालू, की आवाज सुनाई दी, सभी नीचे आ जाओ खाना लग चुका है |

इस पर माला ने अपना हाथ छुडाया तथा जल्दी से नीचे की ओर भागी | नीचे आकर वह खाने की पंगत में एक कोने में बैठ गई तथा दबी निगाहों से गुलाब के नीचे आने का इंतजार करने लगी | गुलाब भी चोर निगाहों से माला को देखता हुआ खाने के लिये पंगत में बैठ गया |  

खाने की पंगत में गुलाब की बगल में माला के बडे भाई राम रतन जी (माला के चाचा जी के लडके) बैठे थे | खाना खाने के दौरान राम रतन ने गुलाब से बात छेड़ दी, आपका नाम क्या है ?

गुलाब |

पूरा नाम ?

गुलाब सिहं गुप्ता |

यह "सिहं" कैसे जुड गया ?

स्कूल वालों की गल्ती से अन्यथा मेरा "दास" था |

अभी पढ रहे हो ?

जी पढ भी रहा हूँ तथा सर्विस भी कर रहा हूँ |

नौकरी कहाँ करते हो ?

भारतीय वायु सेना में |

आजकल ड्यूटी कहाँ पर है ?

अभी तो बैंगलौर में है परंतु यहाँ से जाने के बाद जम्मू जाना है |

क्या तनखा पाते हो ?

तीन हजार के लगभग मिल जाते हैं |

और कुछ ?

और कुछ का क्या मतलब ?

मेरा मतलब है कि ऊपर से क्या पड़ता होगा ?”,लाला राम रतन के कान उपर से इतना पड़ता होगा सुन सुन कर पक गए थे | अतः अबकी बार उन्होंने पहले ही खुद पूछ लिया था |

गुलाब एक भोला भाला, सादा, ईमानदार और एक वफादार सैनिक था | राम रतन के प्रशन का आशय वह समझ गया था | उसको उपर से कुछ भी आमदनी नहीं थी | अतः उसने बडी सादगी से आसमान की ओर देखते हुए जवाब दिया, लाला जी उपर से तो बम ही गिरेंगे |

गुलाब का उत्तर सुनकर लाला राम रतन के साथ साथ वहाँ बैठे सभी लोग हँसे बिना न रह सके | राम रतन को लडके का उत्तर बहुत सटीक एवं मन को छू जाने वाला लगा | वे अपने मन में बहुत संतुष्ट हुए तथा सोचने लगे कि जैसा लड़का वे अपनी लड़की के लिये चाहते थे वह यह है | परंतु लाला जी को क्या पता था कि वह लडका आज ही किसी और को नहीं बल्कि उनकी चचेरी बहन को अपना दिल दे बैठा था |

लाला राम रतन ओर गुलाब के बीच जब ये वार्तालाप चल रहा था तो बीच बीच में माला एवं गुलाब चोरी चोरी आपस में एक दूसरे को देख लेते थे | इसके अलावा जब शालू ने माला को खाने के लिये जल्दी आने को आवाज दी थी तो केवल वे ही दोनों उपर से उतरे थे| इससे गुलाब की भाभी शालू ने यह भाँप लिया था कि उनके बीच कुछ खिंचाव शुरू हो चुका था |

खाना समाप्त होने के बाद जब सब लोग आराम फरमा रहे थे तो मुनासिब समय तथा एकांत जान कर शालू ने अपने देवर गुलाब से सवाल किया, "देवर जी, कुछ बदले बदले नजर आ रहे हो ?

क्यों भला ? भाभी जी आपने क्या देख लिया जो आप ऐसा कह रही हो ?

देखा तो हमने बहुत कुछ है |

कुछ तो बताओ,कुछ तो पता चले |

आप लोगों की लुका छिपी और क्या |

कैसी लुका छिपी ?

ज्यादा बनो मत |(सीधे बात पर आते हुए) अच्छा साफ साफ बताओ कि क्या माला तुम्हें पसन्द है ?

भाभी जी ...वो ......”, गुलाब शर्मा कर इधर उधर बगलें झाकने लगता है |

तो बात आगे बढाऊँ | बात करूँ अपने पिता जी से ?”

इस बारे में मैं क्या कह सकता हूँ | ये तो बडे लोगों की बातें होती हैं | फिर अभी तो हम दोनों बहुत छोटे हैं |

अपने को छोटे कहते हो तथा खेलते हो आंख मिचौनी |

वैसे भाभी जी अभी तो हमें एक दूसरे को समझना भी तो होगा |

क्या मतलब ?

गुलाब कुछ सकुचाते हुए, भाभी जी एक बार ...एकांत में ....हम दोनों मिलकर बात तो करलें |

अच्छा ऐसा करो | थोडी देर बाद मैं माला को किसी काम से बाहर भेजूंगी | तुम दोनों बाहर से ही साथ वाले पार्क में चले जाना तथा एक घंटे बाद वापिस आ जाना | याद रहे अपनी सीमा में ही रहना |

गुलाब एकदम हवा से बातें करता हुआ पलक झपकते ही घर से बाहर हो गया तथा पार्क के बाहर माला के आने का इंतजार करने लगा | कुछ देर बाद वह भी वहाँ आ गई तथा दोनों अन्दर चले गये |

तुम्हे यहाँ किसने भेजा है ?

जिसने तुम्हे भेजा है |

गुलाब थोडा बनते हुए, क्यों भला ?

मैं क्या जानूँ |

मैं बताऊँ मुझे समझने के लिए |

मैं आपको क्या समझूंगी ?

गुलाब बे-झिझक, यही कि वास्तव में मैं आपका "जी" बन सकता हूँ या नहीं |

माला शर्मा कर गुलाब की छाती से लगकर कहती है, तुम बडे वो हो जी | मेरे मुहं से साफ़ साफ़ कहलवाना चाहते हो तो जानलो कि मैं गुलाब की माला हूँ |

गुलाब माला को अपनी बाहों में भर लेता है | वह अपनी बाजूओं की जकड तेज करना ही चाहता है कि माला उसकी बाहों से फिसल जाती है तथा दूर भागने का प्रयास करती है गुलाब उसे पकडने को उसके पीछे दौडता है |