VI
गुलाब
का घर
शालू :-(अपनी सास से)
माता जी आपने मेरी छोटी बहन तो देखी होगी ?
सास :-कौन सी ?
शालू :- मेरी एक ही तो
छोटी बहन है, माला |
सास :-(अपने दिमाग पर
कुछ जोर देते हुए) हाँ देखी है | पर
क्यों ?
शालू :- मेरे पिता जी
कह रहे थे कि छोटे लाला जी (गुलाब) के रिस्ते के लिये उसकी बात चलाऊँ |
सास :- लडकी तो अच्छी
है | रंग, रूप, कद, सेहत तथा काम करने में पूरी दक्ष है | दोनों की जोड़ी भी ठीक बैठती है | अच्छा रात को जब तेरे
पिता जी (ससुर) दुकान बन्द करके आएंगे तो मैं उनसे बात करूंगी |
सास (लीला वती )
:-(रात को अपने पति नारायण से) आपकी बहू(शालू) पूछ रही थी कि हमारे गुलाब के लिये
उसकी छोटी बहन माला कैसी रहेगी ?
नारायण :- भई मैनें तो कभी ध्यान नहीं दिया कि माला कौन
है तथा कैसी दिखती है |
लीलावती :- मैनें देखा
है | माला हर प्रकार से हमारे गुलाब के लायक है | सुन्दर है, सुशील
है, कमेरी है ओर कद-काठी में भी हमारे लडके से मेल खाती है |
नारायण :- जब तुम्हे
पसन्द है तो ठीक है |
मुझे भी कोई एतराज नहीं है | फिर भी अपने बडे लडके
शिव से एक बार राय लेना ठीक रहेगा |
लीलावती :- ठीक है कल
उससे भी उसके विचार जान लेंगे |
अगली सुबह - नाश्ते के बाद
नारायण :- बेटा शिव, तुम्हारा
छोटा भाई गुलाब नौकरी तो लगा ही है | उसकी उम्र भी शादी लायक है
तथा उसके लिये एक अच्छा रिस्ता भी आया है | उसकी शादी के बारे में
तुम्हारा क्या विचार है ?
शिव :- पिता जी रिस्ता
कहाँ से आया है ?
नारायण :- डिबाई से | हमारी
बहू शालू की छोटी बहन माला का |
सुनकर शिव कुछ सोचने
लगता है | वह जवाब नहीं देता |
नारायण :- क्यों किस
सोच में पड् गए ?
शिव :- पिता जी वैसे
तो लडकी हर मायने में हमारे गुलाब के अनुकूल है परंतु मेरे विचार से एक घर से दो
बहुएँ लेना ठीक नहीं रहता |
आगे आपकी मर्जी | वैसे गुलाब भी अभी यहाँ नहीं
है | हमारे देश का पाकिस्तान से युद्ध चल रहा है अतः गुलाब को घर आने में न जाने
कितने दिन लग जाएँ |
जब वह आ जाएगा तो उसकी इच्छा भी जान लेंगे | इसलिये
तब तक इस बारे में कोई बात न की जाए तो अच्छा रहेगा |
नारायण :- (अपनी पत्नि
से) शिव ठीक कहता है |
इस बारे में गुलाब की मर्जी जान लेना भी जरूरी है | अतः
जब तक गुलाब घर न आ जाए तब तक कोई आश्वासन नहीं दिया जा सकता |
अपनी ससुराल वालों कि
तरफ से सारी स्थिति जान लेने के बाद शालू ने अपने पिता जी को एक पत्र लिखकर उनको भी
सारी बातों से अवगत करा दिया |
पूज्य पिता जी ,
सादर प्रणाम | अत्र
कुशलम तत्रास्तु |
आपके कहे अनुसार मैनें माला के रिस्ते के बारे में बात छेड़ी
थी | इन सबकी राय यही है कि गुलाब के
आने से पहले कोई बात नहीं की जा सकती | आप तो जानते ही हैं कि भारत पाकिस्तान
युद्ध चल रहा है तथा सभी फौजियों को अपनी अपनी युनिटों में रहना आवश्यक हैं | इसलिए
लाला जी(गुलाब) के घर आने का अभी कोई निश्चित नहीं है क्योंकि न जाने यह लड़ाई
कितने दिनों तक चलेगी |
हालाँकि मुझे पूरा यकीन है कि लाला जी माला से अपने रिस्ते
को कभी भी मना नहीं करेंगे फिर भी मुझे अपने जेठजी की तरफ से इसमें थोड़ी अडचन पडने की आशंका लगती है | क्योंकि
मैनें उनको कहते सुना है कि एक घर से दो बहूओं का होना ठीक नहीं रहता | अतः मेरे विचार से आप माला के
रिस्ते के लिये दूसरी जगहों से भी कोशिश करते रहना | अगर बात बन जाती है तो
ठीक है अन्यथा लाला जी के आने के बाद यहाँ बात कर ली जाएगी |
आपकी पुत्री
शालू
अपनी बहन द्वारा लिखे
गये पत्र का मजबून जब माला को पता चलता है तो वह बहुत उदास तथा गमगीन हो जाती है | अपने व्यथित मन को कुछ सहारा
देने के लिये वह विरह का एक गाना गाने लगती है |
छोड़गये बालम मुझे हाय
अकेला छोड़गए |
माला की इस उदासीनता, गमगीनता
तथा विरह की तडपन को उसकी बचपन की सहेली तथा भतीजी संतो ने भाँप लिया | संतो, माला
की हम उम्र थी इसलिये वह माला की भतीजी होते हुए भी उसकी पक्की सहेली थी | आज
माला के इस रूप को देखकर संतो हैरान थी क्योंकि वह उसके इस कारनामें से अभी तक
अनभिज्ञ थी |
वह सोच रही थी कि ऐसा वह कौन सा समय था जब वह माला से अलग
रही हो | वे तो दोनों उठती साथ थी, खाती साथ थी यहाँ तक की नहाती भी साथ ही
साथ थी फिर भला माला किसी के प्रेमपास में कब बंध गई | वह खड़ी
खड़ी सोचती रही तथा माला की निष्प्राण जैसी एकाग्रता
को बहुत देर तक निहारती रही | आखिर उससे जब रहा न गया तो उसने चुपचाप
माला के पीछे आकर उसकी तंद्रा तोडने की सोची | अतः वह अपने दोनों हाथों से
माला की आंखे बन्द कर लेती है |
माला :- (चौंककर) कौन ?
संतो :- लगता है कहीं
दिल लगा बैठी है |
संतो के केवल इतना
कहने भर से ही माला के सब्र का बांध टूट गया | वह अचानक संतो से चिपट कर
सुबक सुबक कर रोने लगी |
थोड़ी देर तक संतो
उसको ढांढस देती रही और जब माला कुछ सम्भली तो उसने उससे बडे प्यार से पूछा, "अच्छा बताओ क्या बात है जो इतना सुबक रही हो ?”
माला :- आज देहली से
शालू बहन जी का पत्र आया है |
संतो :- क्यों उनकी
ससुराल में ऐसा क्या हो गया जो तुम इतनी परेशान हो ?
माला :- न उनकी ससुराल
में कुछ हुआ है न उन्हें कुछ हुआ है |
संतो :- तो फिर तुम
क्यों इतनी गमगीन दिख रही हो ?
माला :- तू नहीं जानती
बात ही कुछ ऐसी है |
संतो :- (कुछ ऐसे
अन्दाज में जैसे कह रही हो कि माला मैं तेरी रग रग से वाकिफ हूँ तो भला वह कौन सी
बात हो सकती है जिसे मैं नही जानती) अच्छा बता तो सही कि वह क्या बात है, बुआ जी
ने पत्र में क्या लिखा है ?
माला :- यही कि उनके
छोटे देवर का अभी कुछ पता नहीं कि वे कब तक छुट्टियों पर घर आएंगे | क्योंकि
भारत पाकिस्तान युद्ध चल रहा है तथा कुछ पता नहीं कब समाप्त होगा |
संतों :- तो तुम्हे
इससे क्या फर्क पडता है ?
तुम्हारी जान क्यों निकली जा रही है ?
माला :- इसीलिये तो
मैनें कहा था कि तू इस बात को नहीं समझेगी |
संतो :- समझ गई सब
अच्छी तरह समझ गई कि वो महाशय जी कौन हैं जो अपना इंतजार करवा कर हमारी बुआ जी को
इतना सता रहे हैं |
माला :- तुझे मजाक सूझ
रही है और मेरी जान निकल रही है |
संतो :- कहते हैं
इंतजार में जो मजा है इकरार में नहीं | तो मजा लेती रहो जब तक लेने
को मिल रहा है |
माला :- तभी तो मैं कह
रही थी कि तू कुछ नहीं जानती | अरी बुद्धु मेरी बहन ने लिखा है कि वहाँ
रिस्ते की बात अभी नहीं हो सकती जब तक गुलाब घर न आ जाए | अतः
इस बीच अगर यहाँ किसी से बात बन जाती है तो वही पक्का करलो |(रोने
लगती है)
संतो :-(कुछ दर्द भरी
आवाज में) इन रिस्तों के बारे में हम तुम कर भी क्या सकती हैं |
जहाँ माँ-बाप ने ठीक
समझा हमें वहाँ बंधना ही पडता है |
माला :- तुम नहीं
जानती संतो कि वे कितने भोले, सज्जन, सुशील, गुणी
तथा लंगोट के पक्के हैं |
मैं उन्हें खोना नहीं चाहती | संतो क्या तू जानती है कि मेरी मुलाकात उनसे कैसे हुई तथा फिर यह कशिश इस हद
तक कैसे पहूंची ?
शायद नहीं | तो सुन मैं तूझे आज अपने तथा
उनके मिलन की पूरी दस्तान सुनाती हूँ | जिससे मेरे दिल का बोझ कुछ
ह्ल्का हो जाए |
इसके बाद माला वह सब वर्णन करने लगती है कि कैसे उसने गुलाब
को गलत समझा था जब वह अपने भाई के साथ पहली बार हमारे घर आया था | फिर
कर्णवास पर आमोद -प्रमोद के गंगा चढाने के बाद कैसे वे सबसे अलग गंगा किनारे पेडों
के एक झुरमुट के नीचे बैठे बातें करते रहे थे | और कैसे कछुओं से डरकर वह गुलाब
से लिपट गई थी |
उस समय का मेरा यह लगाव न जाने कब उनके प्रति मेरे भाई साहब
की शादी के समय प्यार में तबदील हो गया | मैं अनजाने में अपने आप को
उनको समर्पित .............|
माला अभी अपने मन की
पूरी व्यथा निकाल नहीं पाई थी कि संतो के पिताजी की आवाज ने उसकी बातों पर विराम लगा
दिया | संतो माला को उसकी उदासीनता तथा तडप के साथ खुद समझौता करने के लिये छोड़कर
अपने पिताजी के साथ अपने घर चली गई | अतः गुलाब की माला के साथ
मुलाकतों का संतो का ज्ञान अधूरा ही रह गया | जैसे कहते है कि जब अभिमन्यू
द्रौपदी के गर्भ में था तो कृष्ण जी उसे(द्रौपदी को) कौरवों द्वारा रचित चक्रव्यूह
में घुसने का रास्ता समझा रहे थे परंतु जब कृष्ण जी ने चक्रव्यूह से बाहर निकलने
के रास्ते के बारे में बताना शुरू किया तो द्रौपदी को नीदं आ गई इसलिए गर्भ में पल
रहे अभिमन्यू को इसका ज्ञान न हो सका तथा महाभारत के युद्ध में उसे अपनी जान
गवानीं पड़ी थी |
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