IV
आनन्द प्रकाश की शादी सुचारू रूप से सम्पन्न हो गई | बारात वापिस घर आ गई | शाम का खाना चल रहा था | पंगत में गुलाब की बगल में आगरा के सूरज प्रकाश बैठे थे | वे बहुत ही साधारण किस्म के आदमी जान पडते थे | हालाँकि उन्होने पैंट कमीज तो पहन रखी थी परंतु सिर पर गांधी टोपी भी पहने थे | गुलाब को उनसे अपना रिस्ता भी नहीं पता था कि वे उनके क्या लगते थे |सूरज प्रकाश बिलकुल शांत किस्म के व्यक्ति प्रतीत होते थे क्योंकि गुलाब ने उन्हें बहुत कम बोलते सुना था | खाना खाते हुए भी वे न तो कुछ माँग रहे थे तथा न ही जबान से मना कर रहे थे | वे हाथ के इशारे से ही समझा कर सब कुछ करवा रहे थे |
खाने में खीर बनी थी परंतु उसमें उन्हें मीठा कुछ कम लगा अतः उन्होने अपनी चुट्की खीर के उपर फिराते हुए इशारा किया कि उन्हें इसमें बूरा डलवानी है | उनकी चुट्की का इशारा काफी देर तक शायद किसी ने नहीं देखा परंतु बगल में बैठा गुलाब यह सब देख रहा था | उसने उनकी सहायता करने के इरादे से पास में रखी प्याली से दो चम्मच बूरा सूरज प्रकाश की खीर में डाल दी | इस पर सूरज प्रकाश का चेहरा गुलाब का धन्यवाद करता नजर आया |
सूरज प्रकाश ने बूरा को अच्छी तरह फेंट कर खीर का एक लम्बा सुडप्पा मारा | परंतु यह क्या वे एक दम पंगत से उठे तथा मुहँ में भरी खीर को नाली में पलट दिया | खाने पर बैठे सभी जीमने वाले अपने अपने अन्दाजे से पूछने लगे कि क्या मक्खी गिर गई, कोई कंकर आ गई या कोई और बात हो गई |
सूरज प्रकाश वापिस खाने को नहीं बैठे क्योंकि उनका यह मत था कि एक बार खाना खाते से जो उठ गया उसे दोबारा खाने के लिये नहीं बैठना चाहिए | उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि उनकी खीर में नमक आ गया था | खीर में नमक का सुनकर कई तो हंसने लगे तथा कई सोचने लगे कि आखिर केवल उनकी खीर में ही नमक कैसे गिर गया | असल में हुआ क्या था किउनके सामने दो भरी हुई प्यालियाँ रखी थी | एक में नमक था तथा दूसरी में बूरा थी | गुलाब ने बिना पता किये सूरज प्रकाश के इशारे को समझते हुए नमक को बूरा समझ कर उनकी खीर में डाल दिया था | जब सूरज प्रकाश उठकर अचानक भागे थे तो गुलाब भी अपनी हँसी रोक न पाया था परंतु जब वे दोबारा खाने पर न बैठे तो उसे दुखः भी बहुत हुआ था कि उसकी वजह से एक भोला-भाला सादा इंसान भूखा रह गया था |
बारात से वापिस आकर अधिकतर व्यक्ति अपने को थका-थका सा महसूस कर रहा था अतः रात पड़ते पड़ते सभी ने अपने अपने बिस्तर पकड़ लिये |
इतनी अधिक गर्मी नहीं थी कि दरवाजों को बन्द करके अन्दर सोया जाता अतः सोने के लिये या तो हवा से थोडी सी आड़ काफी थी या एक चादर औढ लेने से काम चल सकता था | गुलाब ने अपनी चारपाई कमरे के दरवाजे की आड़ में कर रखी थी तथा एक चादर भी ले रखी थी | वह अपनी चारपाई पर अकेला सोया था परंतु रात के एक बजे के लगभग उसे महसूस हुआ कि उसके साथ कोई और भी लेटा हुआ है | अंधेरे में पहचानना मुशकिल था | इतने में गुलाब के कानों में एक धिमी सी आवाज टकराई,"जीजा जी |”
आवाज सुनकर एक बार तो गुलाब का शरीर सुन्न सा हो गया जैसे उसे किसी साँप ने सूंघ लिया हो | वह किंकर्तव्यमूढ हो गया | परंतु जल्दी ही उसने अपने को सम्भाला | वह बिजली की तेजी से उठा फिर सहारा देकर बडे प्यार से माला को उठाया | इसके बाद वे दोनों बाहर आकर खुले में परंतु एक आड लेकर बैठ गये | गुलाब यह तो समझ चुका था कि उसकी प्रेयसी आपे से बाहर हो गई थी तथा उसके कोमल हृदय को ठेस लगने से बचाने के लिये बहुत ही कोमलता एवं शालिनता से काम लेना होगा | गुलाब ने माला को धीरे से अपने बाहुपास में ले लिया तथा समझाने लगा |
“माला सुनो हमारा दिल और दिमाग एक अथाह समुंद्र की तरह है | जैसे एक समुंद्र की सतह में हीरे मोतियों के साथ साथ अनेक प्रकार के भयंकर जीव जंतु भी वास करते हैं उसी प्रकार हमारे दिल और दिमाग में भी न जाने कितनी ही बातें एवं विचार भरे रहते हैं जिनका कोई पार नहीं पा सकता | इनमें प्यार, नफरत, स्नेह, द्वेष, झूठ, सत्य, धोखा और इंसानियत इत्यादि सभी विद्वमान होते हैं | मैं तुम्हें धोखा नहीं देना चाहता | तुम्हारा निश्छल प्यार मेरे मन के एक कोने में हमेशा बसा रहेगा | मेरे भीतर, विशवास हो तुम मेरा, मुझ से वायदा करो, अपने को बिखरने नहीं दोगी चाहे हमारा मिलन हो या न हो | क्योंकि हर बार चाहा नहीं मिलता तथा यह भी जरूरी नहीं की केवल मिलकर ही पूर्णता प्राप्त हो सकती है |”
“देखो अभी हमारी उम्र ऐसी नहीं हुई है कि नाजायज रिश्ते बनाऐं जाएँ | आपको पता ही है कि आपकी बहन तथा मेरी भाभी जी हमारे रिस्ते के हक में है ही | उनको पूरा विशवास है कि हम ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे हमारे घरों की बदनामी हो | इस विशवास के रहते ही उन्होने हम दोनों को अकेले पार्क में मिलने का मौका भी दिया था | अपने को सम्भालो तथा उचित समय का इंतजार करो |”
गुलाब की बात सुनकर माला कुछ आपे में आई | उसने आखें उठाकर गुलाब की तरफ देखा | गुलाब की निगाहों में उसकी ईच्छा पूर्ति न कर पाने की बेबसी साफ झलक रही थी | साथ ही साथ यह भी सन्देशा दे रही थी कि वह हर प्रकार से समर्थ है परंतु अपने प्यार को वह एक वासना तृप्ति का रूप नहीं देना चाहता था | गुलाब ने माला का चेहरा अपने दोनों हाथों में ले लिया तथा धीरे से अपने होठों द्वारा उसके सुर्ख मखमली गाल को छूकर विदा ली |
माला के जाने के बाद उसे नींद तो कैसे आती शायद माला का भी वही हाल रहा होगा क्योंकि सुबह सभी आए हुए मेहमानों के साथ साथ गुलाब को भी विदा लेकर अपने घर जाना था |
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