III
लाला मुंशी राम का
मकान एक बार फिर केंद्र बिन्दू बना | इस बार उनके लड़के आनन्द प्रकाश की शादी
है | हर और खुशी का वातावरण है | एक एक करके मेहमान आकर इकट्ठा हो रहे हैं |
अगले दिन बारात जानी है | यह खबर डिबाई में पहले से ही फैल चुकी थी कि इस बार भी दिल्ली से अपने भाई श्री चन्द तथा भाभी
शालू के साथ गुलाब ही आने वाला है |
ये तीनों जब घर के
दरवाजे पर पहूँचे तो अन्दर औरतों का गाने बजाने का प्रोग्राम चल रहा था |
मेरी नैया में लक्ष्मण राम
गंगा मैया धीरे बहों,
कौन की गंगा, कौन की नैया, कौन के
लक्ष्मण राम?
गंगा मैया धीरे बहों |
भागीरथ की गंगा, केवट की नैया, दशरथ
के लक्ष्मण राम,
गंगा मैया धीरे बहों |
क्या करे गंगा, क्या करे नैया, क्या
करे लक्ष्मण राम?
गंगा मैया धीरे बहों |
पाप हरे गंगा, पार करे नैया, भक्तों
को तारे राम,
गंगा मैया धीरे बहों |
सुनो सुनो ये राम का नारा, कलयुग में है एक सहारा,
बिना भजन नहीं विश्राम, गंगा मैया धीरे बहों |
मेरी नैया में लक्ष्मण राम
गंगा मैया धीरे बहों |
माला नाच रही थी | गुलाब ने ज्यों ही
अपना कदम घर के अन्दर रखा तो वह नाचने वाली को भौचक्का सा देखता ही रह गया | गौरी चिट्टी लड़की, इकहरा बदन, टमाटर जैसे लाल गाल, कद लम्बा तथा काले काले लम्बे बाल जो जमीन
छूना चाह रहे थे, कटीले नयन नक्श उपर से सलीके से किये गये श्रंगार में वह ऐसी लग रही थी जैसे कोई
परी जमीन पर उतर आई हो |
सभी माला को एकटक देखे
ही जा रहे थे परंतु वह थी कि इस सबसे बेखबर नाचे ही जा रही थी | आगंतुकों को देखकर औरतों की ढोलक पर थाप कुछ कम हो गई तथा वे एक दूसरे से कुछ कानाफूसी
करने लगी | ढोलक की धीमी थाप के कारण माला के नाचने के अन्दाज में भी कुछ धीमापन आ गया | इससे पहले कि वह कुछ
समझ पाती उसकी निगाहें गुलाब से जा टकराई जो एक बुत की भाँति खडा उसे निहार रहा था
| जैसा हाल गुलाब का था वैसा ही माला का हो गया | उसके हाथ नाचने के
अन्दाज में उपर ही अटक कर रह गये | सभी देखने वालों को
ऐसा जान पड़ता था जैसे वे दोनों बच्चों का खेल "स्टैचू-स्टैचू" खेल रहे हों
|
गुलाब की तंद्रा को
उसकी भाभी जी की आवाज ने खंडित कर दिया | वे पानी का गिलास लिए खडी थी तथा उसे लेने के लिये कह रही थी | गुलाब की माला पर से
निगाह हटते ही वह भी सपनों की सी दूनिया से बाहर आई तथा झट से अन्दर भाग गई |
दोपहर से शाम ढल गई
| गुलाब की आंखे चारों
ओर देख देख कर थक गई तथा माला की छवि निहारने को तरस गई | वह न जाने कहाँ छुप
कर बैठ गई थी कि उसके बाद नजर ही न आई | उनके घर की बनावट भी कुछ अजीब ही थी | छोटे छोटे दरवाजे तथा छोटी छोटी खिडकियाँ थी | दरवाजे तथा खिडकियों में कुछ अंतर ही नजर नहीं आता था क्योंकि
एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने के लिये खिड्की नूमा दरवाजे लगे थे | हालाँकि गुलाब माला
के दर्शनों को तरस गया था परंतु उसे अपने अन्दर विशवास हो रहा था कि कहीं न कहीं से
माला चोरी छिप्पे उसकी बेबसी को अवशय निहार रही होगी |
रात के खाना खाने का
शोर उठा | सब खाना खाने के लिए उठकर नीचे आँगन में पहूँच गए | गुलाब जानबूझकर नीचे
जाने में देर लगा रहा था क्योंकि अब माला की अनुपस्थिति उससे बर्दास्त नहीं हो पा रही
थी | माला ने भी शायद यह भाँप लिया था तभी तो गुलाब की इंतजार की घडियों को समाप्त करते
हुए वह धीरे से पीछे से आई ओर बोली, "जीजा जी, क्या खोज रही हैं आपकी आंखे ?”
माला की आवाज सुनकर
गुलाब का रोम-रोम पुलकित हो उठा | उसने अपनी आंखे बन्द कर ली तथा माला के कहे एक एक शब्द से आनन्दित महसूस करने लगा
|
माला गुलाब के सामने
आकर, “क्या अब आंखे बन्द ही रखोगे ?”
“हाँ |”
“क्यों भला ?”
“तुम्हारे कहे शब्दों
की आवाज ने ही जब मुझे इतना आनन्द विभोर कर दिया है तो तुम्हे देखकर खुशी का कोई पारावार
ही न रहेगा | शायद मेरा दिल इतनी खुशी सहन न कर सके |
इसलिये मैनें अपनी आंखे बन्द कर रखी हैं |”
“दोपहर से तो आंखे एक
पल के लिये भी बन्द नहीं हुई थी |”
“तुम्हें कैसे पता ?”
“मैं चुपके चुपके छुप
कर सब देख रही थी |”
“तो आपको मुझे तडपाने
में मजा आता है |”
“तडपाने में नहीं आपको
खिलाने में मजा आता है |”
“अच्छा जी, तो हमे आपने एक बच्चा
समझ रखा है |”
“बच्चे हो तभी तो आंखे
बन्द किये बैठे हो |(थोडा बनते हुए) अगर अब आंखे नहीं खोली तो हम चले जाएँगे |”
“अरे ऐसा गजब न करना”, अब तक गुलाब का मन शांत हो चुका था, “अभी तो शक्ति आई है
कि तुम्हारा दिदार कर सकूं |”फिर धीरे से आंख खोलकर, “माला |”
माला चहकते हुए, “जीजा जी |”
“जीजा जी नहीं | वही कहो जो आज से आठ
साल पहले कहा था |”
“शैतान कहीं के |”
“क्यों क्या हुआ ?”
“कुछ नहीं, जल्दी नीचे चलो सब
खाने पर इंतजार कर रहे हैं”, वह जाने के लिये मुड
जाती है |
अचानक गुलाब ने घूमती हुई माला का हाथ पकड लिया | ज्योंही माला का हाथ
उसके हाथ में आया वह एडी से चोटी तक झनझना गया | माला के हाथ मखमल की तरह मुलायम थे और फिर उसने पहली बार किसी
हम उम्र लडकी का हाथ पकडा था | वह अपने को काबू में न रख पाया अतः एक झटका देकर माला को अपनी ओर खींच लिया | माला एक नाजूक लता
की तरह झूमती हुई गुलाब से तथा माला के मखमली सुनहरी गाल गुलाब के होठों
से जा टकराए |
इतने में नीचे से माला
की बहन तथा गुलाब की भाभी जी, शालू, की आवाज सुनाई दी, “सभी नीचे आ जाओ खाना लग चुका है |”
इस पर माला ने अपना
हाथ छुडाया तथा जल्दी से नीचे की ओर भागी | नीचे आकर वह खाने की पंगत में एक कोने में बैठ गई तथा दबी निगाहों से गुलाब के
नीचे आने का इंतजार करने लगी | गुलाब भी चोर निगाहों से माला को देखता हुआ खाने के लिये पंगत में बैठ गया |
खाने की पंगत में गुलाब
की बगल में माला के बडे भाई राम रतन जी (माला के चाचा जी के लडके) बैठे थे | खाना खाने के दौरान
राम रतन ने गुलाब से बात छेड़ दी, “आपका नाम क्या है ?”
“गुलाब |”
“पूरा नाम ?”
“गुलाब सिहं गुप्ता
|”
“यह "सिहं"
कैसे जुड गया ?”
“स्कूल वालों की गल्ती
से अन्यथा मेरा "दास" था |”
“अभी पढ रहे हो ?”
“जी पढ भी रहा हूँ तथा
सर्विस भी कर रहा हूँ |”
“नौकरी कहाँ करते हो
?”
“भारतीय वायु सेना में
|”
“आजकल ड्यूटी कहाँ पर
है ?”
“अभी तो बैंगलौर में
है परंतु यहाँ से जाने के बाद जम्मू जाना है |”
“क्या तनखा पाते हो
?”
“तीन हजार के लगभग मिल
जाते हैं |”
“और कुछ ?”
“और कुछ का क्या मतलब
?”
“मेरा मतलब है कि ऊपर
से क्या पड़ता होगा ?”,लाला राम रतन के कान उपर से इतना पड़ता होगा सुन सुन कर पक गए थे | अतः अबकी बार उन्होंने
पहले ही खुद पूछ लिया था |
गुलाब एक भोला भाला, सादा, ईमानदार और एक वफादार सैनिक था | राम रतन के प्रशन का आशय वह समझ गया था |
उसको उपर से कुछ भी आमदनी नहीं थी | अतः उसने बडी सादगी
से आसमान की ओर देखते हुए जवाब दिया, “लाला जी उपर से तो बम ही गिरेंगे |”
गुलाब का उत्तर सुनकर
लाला राम रतन के साथ साथ वहाँ बैठे सभी लोग हँसे बिना न रह सके | राम रतन को लडके का
उत्तर बहुत सटीक एवं मन को छू जाने वाला लगा |
वे अपने मन में बहुत संतुष्ट हुए तथा सोचने लगे कि जैसा लड़का
वे अपनी लड़की के लिये चाहते थे वह यह है | परंतु लाला जी को क्या पता था कि वह लडका आज ही किसी और को नहीं बल्कि उनकी चचेरी
बहन को अपना दिल दे बैठा था |
लाला राम रतन ओर गुलाब
के बीच जब ये वार्तालाप चल रहा था तो बीच बीच में माला एवं गुलाब चोरी चोरी आपस में
एक दूसरे को देख लेते थे | इसके अलावा जब शालू ने माला को खाने के लिये जल्दी आने को आवाज दी थी तो केवल वे
ही दोनों उपर से उतरे थे| इससे गुलाब की भाभी शालू ने यह भाँप लिया था कि उनके बीच कुछ खिंचाव शुरू हो चुका
था |
खाना समाप्त होने के
बाद जब सब लोग आराम फरमा रहे थे तो मुनासिब समय तथा एकांत जान कर शालू ने अपने देवर
गुलाब से सवाल किया, "देवर जी, कुछ बदले बदले नजर आ रहे हो ?”
“क्यों भला ? भाभी जी आपने क्या
देख लिया जो आप ऐसा कह रही हो ?”
“देखा तो हमने बहुत
कुछ है |”
“कुछ तो बताओ,कुछ तो पता चले |”
“आप लोगों की लुका छिपी
और क्या |”
“कैसी लुका छिपी ?”
“ज्यादा बनो मत |(सीधे बात पर आते हुए)
अच्छा साफ साफ बताओ कि क्या माला तुम्हें पसन्द है ?”
“भाभी जी ...वो
......”, गुलाब शर्मा कर इधर उधर बगलें झाकने लगता है |
“तो बात आगे बढाऊँ | बात करूँ अपने पिता
जी से ?”
“इस बारे में मैं क्या
कह सकता हूँ | ये तो बडे लोगों की बातें होती हैं | फिर अभी तो हम दोनों बहुत छोटे हैं |”
“अपने को छोटे कहते
हो तथा खेलते हो आंख मिचौनी |”
“वैसे भाभी जी अभी तो
हमें एक दूसरे को समझना भी तो होगा |”
“क्या मतलब ?”
गुलाब कुछ सकुचाते
हुए, “भाभी जी एक बार ...एकांत में ....हम दोनों मिलकर बात तो करलें |”
“अच्छा ऐसा करो | थोडी देर बाद मैं माला
को किसी काम से बाहर भेजूंगी | तुम दोनों बाहर से ही साथ वाले पार्क में चले जाना तथा एक घंटे बाद वापिस आ जाना
| याद रहे अपनी सीमा
में ही रहना |”
गुलाब एकदम हवा से
बातें करता हुआ पलक झपकते ही घर से बाहर हो गया तथा पार्क के बाहर माला के आने का इंतजार
करने लगा | कुछ देर बाद वह भी वहाँ आ गई तथा दोनों अन्दर चले गये |
“तुम्हे यहाँ किसने
भेजा है ?”
“जिसने तुम्हे भेजा
है |”
गुलाब थोडा बनते हुए,
“क्यों भला ?”
“मैं क्या जानूँ |”
“मैं बताऊँ मुझे समझने
के लिए |”
“मैं आपको क्या समझूंगी
?”
गुलाब बे-झिझक, “यही कि वास्तव में मैं आपका "जी" बन सकता हूँ या नहीं |”
माला शर्मा कर गुलाब
की छाती से लगकर कहती है, “तुम बडे वो हो जी | मेरे मुहं से साफ़ साफ़ कहलवाना चाहते हो
तो जानलो कि मैं गुलाब की माला हूँ |”
गुलाब माला को अपनी बाहों में भर लेता है | वह अपनी बाजूओं की
जकड तेज करना ही चाहता है कि माला उसकी बाहों से फिसल जाती है तथा दूर भागने का प्रयास
करती है गुलाब उसे पकडने को उसके पीछे दौडता है |
No comments:
Post a Comment