Monday, October 30, 2017

मेरी आत्मकथा- 24 (जीवन के रंग मेरे संग) छोटी बहू


पवन का रिश्ता पक्का होने के बाद तो मनोज जी के परिवार का अधिकतर समय ससुराल में ही व्यतीत होने लगा | रोजाना रात के डेढ़ दो बजे तक अगले दिन के कार्यक्रम का प्रोग्राम बनाया जाता | उसी अनुसार अगला सारा दिन बाजार में बितता | इससे सबसे ज्यादा थकावट पवन एवं प्रवीण को होती थी क्योंकि उनका काम ही ऐसा था कि सुबह जल्दी उठना पड़ता था | केवल मनोज जी सुबह आराम से उठते थे क्योंकि उन्हें अपने स्कूल जाने की कोई जल्दी नहीं होती थी | मेरा आफिस भी देर से खुलता था | अत:मनोज जी के सुबह उठने के बाद मेरे तथा उनके बीच कुछ इस तरह की बातें होती थी |
(क) “पिता जी, हमने प्रवीण की शादी के लिए जहां से कपड़ा खरीदा था अबकी बार भी वहीं से खरीद लेंगे |”
“चांदनी चौक बाजार के मेन रोड़ पर ही तो था ?”
“नहीं नहीं परांठे वाली गली के अंदर था |”
“हाँ याद आया साडियां-ब्लाऊज वगैरह सारा वहीं से खरीदा था | बाकी पैंट-कमीज इत्यादि का कहीं और से लिया था |”
“बिल्कुल ठीक |”
मनोज जी को जैसे अपने मन की सी बात सुनने को मिल गई अत: वे तपाक से बोले, “चांदनी चौक की परांठे वाली गली में वह महावीर मल-संत राम की फर्म है | मेरी जान पहचान वाला एक व्यक्ति उसमें काम करता है | १५-२०% तो हम अपनी तरफ से कम करा लेंगे बाकी ५-७% उससे कहकर कम करा लेंगे |”
हाँ में हाँ मिलाते हुए मैंने  ने भी कह दिया, “ठीक है बाजार जाएंगे तो देख लेंगे | जहां से अच्छा लगेगा वहीं से खरीदेंगे |”
अचानक जैसे मुझे कुछ याद आया | मैं उठा और मनोज से कहा, “आप शादी के कार्ड का मजबून बना लो तब तक मैं अपने पंडित जी से शादी की तिथियाँ सुजवा लाता हूँ |
(ख) मनोज:पिताजी चीज-बस्त गहने खरीदने के लिए मैंने एक बहुत बढ़िया थोक की दुकान ढूंढ ली है |
“कैसे तथा कहाँ ?”
“मेरी बहन महरौली वाली के लड़के की जब शादी थी तो उनको वहीं से सारे गहने दिलवाए थे |”
“ठीक है पर यह दुकान है कहाँ ?”
“मालिक का शोरूम चांदनी चौक की मुख्य सड़क पर स्थित है | आपने हल्दी राम वाले की दुकान तो देखी होगी ? बस उससे तीन चार दुकाने छोड़कर घंटा घर की तरफ है |”
संतोष:अगर सामान सही रेट तथा मन पसंद मिलता है तो हमें वहाँ से खरीदने में क्या एतराज हो सकता है | वहीं से ले लेंगे |    
मैंने भी अपनी पत्नी की हाँ में हाँ मिलाई, “ठीक है वहीं से ले लेंगे |”
मनोज : सबसे बड़ी बात है कि वह हमें ७% स्पेशल छूट देगा जो किसी को नहीं मिलती |
संतोष:गहनों पर ७% तो काफी है |
(ग) “पिता जी अब हमें लेने देने के लिए जोड़े, साडियां तथा सूट आदि के कपड़े भी तो चाहिएँगे ?”
“बिलकुल ये सब भी जरूरी हैं |”
“चांदनी चौक में घंटा घर का जो चौक है वहाँ मेरा एक रिश्तेदार श्याम लाल जी का रेडीमेट गारमेंट का काम है | उनकी अंदर कटरे वालों से, जहां जोड़े वगैरह के कपड़े मिलते हैं, अच्छी जान पहचान है | उससे पूछकर उसकी बताई दुकान से ही खरीदारी कर लेंगे | १०-१२% का फ़ायदा हो जाएगा |”
मैंने सलाह दी, “देख लो अगर बात बनती है तो कोई बुराई नहीं है |”
(घ) मनोज:पिता जी बैंड बाजे में क्या क्या करना है ?
“बैंड-बाजा तो होना ही है | बाकी आप बच्चों से सलाह करलो कि और क्या करना है | क्योंकि उछल कूद तो उन्हें तथा आप जैसों को ही करनी है |”
“आपकी और का क्या मतलब है ?”
“अजी जैसे शहनाई, नपीरी, ढोल, ताशे इत्यादि |”
“पिता जी शहनाई तो केवल लग्न पर ही ठीक रहेगी |” इसके बाद जैसे अचानक मनोज जी को कुछ याद आया हो वे बोले, “और हाँ लग्न का प्रोग्राम भी तो बनाना है ?”
“हाँ उसके लिए रिंग रोड़ पर शिव मंदिर वाली धर्मशाला बुक करा देंगे |”
शायद मनोज जी अभी लग्न की जगह के बारे में बात करने के मूढ़ में नहीं थे अत:इस बात की तरफ ध्यान न देकर वे बोले, “पिता जी, भोगल में श्याम बैंड एक अच्छा बैंड वाला है | वह बनिया है | उसके पास, नपीरी, ताशे, शहनाई, डंडे वाले, लेजियम वाले तथा घोड़ी-बग्गी का भी प्रबंध है |”
“आप तो जानते हैं कि एक मेरे बैंक के कर्मचारी का भी डूंडाहेड़ा में स्याम बैंड है | वह आश लगाए बैठा है | फिर भी अगर उसके पास सारा इंतजाम न हुआ तो भोगल वाले को ही देख लेंगे |”
“परन्तु पहले यह तो सोच लो कि करना क्या क्या है |”
“मैनें पहले ही कह दिया है कि यह काम नौजवानों का है जो कूदते फांदते हैं |”
(ड़) मनोज:पिता जी शादी के कार्ड नई सडक से खरीद लेंगे |
“हाँ शादी वगैरह के कार्डों की वही थोक मंडी है |”
“वो तो है ही इसके अलावा वहाँ मैंने  एक दोस्त का इनका ही थोक का काम है | वहीं से जुगाड़ बिठाएंगे |”
“मनोज  जी इस छोटे से काम के लिए क्या जुगाड़ बिठाना | कहीं से भी खरीद लेंगे |”
“क्यों पिता जी आपके इस छोटे से काम में अगर ६००-७०० रूपये का फ़ायदा हो जाए तो क्यों नहीं किया जाए | फिर छपाई भी सस्ते रेट में वहीं हो जाएगी |”
“वैसे पिता जी इस बार कार्ड कैसे छपवाओगे ?”
“शादी के कार्ड तो पहले जैसे ही छपवा लेंगे |”
“पिता जी, प्रवीण की शादी में हमने लम्बे कार्ड छपवाए थे परन्तु अब तो चौड़े कार्डों का ज़माना है |”
“क्या फर्क पड़ता है चौड़े ही छपवा लेना परन्तु मजबून वही प्रवीण की शादी वाला रखना |”
“हाँ ठीक है, पिता जी, उसमें नाम तथा तारीख बदल देंगे |”
“वह तो करना ही पडेगा |”, कहकर मैंने अपने बेटे प्रवीण  से उसकी शादी का एक कार्ड लाने को कहा | और जब प्रवीण निमंत्रण कार्ड ले आया तो उसे मनोज जी को देकर कहा, “लो मनोज जी इसमें नाम और तिथि वगैरह बदल दो |”    
कार्ड हाथ में लेकर मनोज जी ने एक अजीब ही प्रश्न किया, “पिता जी क्या ‘बाबा जी’ का नाम भी आना चाहिए ?”
मैंने मनोज जी की तरफ ऐसे देखा जैसे कह रहे हो कि यह कैसा बेहूदा सवाल है | यह भी कोई पूछने की बात है | फिर अपने को संयम में रखते हुए केवल इतना ही कहा, “बिलकुल उनका नाम तो आना चाहिए और जरूर  आएगा |”
 मनोज जी कुछ सकुचाकर धीरे से बोले, “परन्तु...?” और उनकी जबान अटक गई |
मैं उनके परन्तु के कारण से अनभिज्ञ, “परन्तु क्या, मनोज जी ?”
“प्रवीण की शादी के कार्ड में तो उनका नाम ही नहीं था |”,मनोज  ने फ़टाफ़ट ऐसे कहा जैसे धीरे धीरे कहने से उनसे पूरा वाक्य कहा नहीं जाएगा और मैं सुन नहीं पाऊंगा |
मुझे मनोज की इस बात पर विश्वास न होना लाजमी था | अत: कहा, “आप क्या बात करते हो मनोज जी | मेरे    लड़के की शादी के कार्ड में उसके पिता जी का नाम न हो यह हो ही नहीं सकता |”
“आपको पक्का विशवास है कि कार्ड में बाबा जी का नाम है ?”
“विशवास हो भी क्यों न | देखो न इस डायरी में उस कार्ड का मजबून लिखा है जो हमने छपवाए थे |”
“पिता जी इसमें तो बाबा जी का नाम लिखा है परन्तु छपे हुए कार्डों में नहीं था |”
मुझे मनोज जी की बात पर अभी भी विशवास नहीं हुआ, “क्यों मजाक करते हो ?”
मनोज इस बार थोड़ा सीरियस होकर, “पिता जी यह मजाक नहीं हकीकत है कि प्रवीण की शादी के निमंत्रण कार्ड में आपके पिता जी का नाम नहीं था |”
इस बार मनोज जी की बातों का असर मेरे चेहरे पर साफ़ दिखाई दिया | मैंने जल्दी से अपने लड़के प्रवीण को कहा, “प्रवीण लाना तो अपनी शादी का कार्ड |”
प्रवीण ने अपनी शादी का एक कार्ड लाकर मुझे पकड़ा दिया | मैं जल्दी से उसे खोलने की चेष्टा करने लगा | मुझे  अपने शरीर में कुछ अजीब सी कम्पन्न महसूस हो रही थी | कार्ड को खोलते हुए मेरे हाथ भी काँप रहे थे | हालाँकि मुझे पक्का विश्वास था कि प्रवीण की शादी के कार्ड में मेरे पिता जी का नाम अवश्य होगा परन्तु मनोज   जी के कहने ने मेरे मन में आशंका ने घर कर लिया था | मैंने कार्ड खोलकर ऊपर से नीचे तथा फिर नीचे से ऊपर पूरा देखा परन्तु मुझे वह नाम कहीं लिखा हुआ नहीं दिखाई दिया जो मेरी नजरें खोज रहीं थी | मेरा सारा शरीर सुन्न सा हो गया | मैं मूक नज़रों से मनोज जी की तरफ एकटक देखने लगा | मनोज जी के चेहरे पर धीमी मुस्कान जो कभी मेरे ह्रदय को मन्त्र मुग्ध करके खुशियों से भर देती थी आज बहुत कटु प्रतीत हो रही थी | मुझे  ऐसा लग रहा था कि मेरे ऊपर व्रजपात किया जा रहा है | मेरे मुहं से केवल इतना निकला कि यह कैसे हो गया और अपना माथा पकड़ कर बैठ गया |
थोड़ी देर की चुप्पी के बाद मनोज ने कहा, “देख लिया | कार्ड में आपके पिता जी का नाम नहीं है |”
“परन्तु कार्ड का जो मजबून हमने बनाया था उसमें तो पिता जी का नाम था फिर उनका नाम क्योंकर छपाई में नहीं आया ?”
“अब जब मैंने देखा तो मैं हैरत में आ गया था परन्तु तब तक ठीक कराने के लिए देरी हो चुकी थी |”
“आपको यह कब पता चल गया था |”
“पिता जी अब छोड़ो इन बातों की चिंता और लग जाओ नए विवाह की तैयारियों में |”
मुझे मनोज जी का ऐसा कहना कुछ अटपटा सा लगा | वे तो ऐसे कह गए जैसे नाम से कुछ नहीं होता | परन्तु मेरा दिल रो रहा था | लाला नारायण का नाम नजफगढ में बड़े से बड़े आढती से लेकर छोटे से छोटा मजदूर भी जानता था और आज जब उनके पोते की शादी नजफगढ में हो रही है तो कोई नहीं जानता कि दुल्हे से लाला राम नारायण का कोई रिश्ता है |
आज छ: वर्ष बाद हालाँकि यह ‘अब पछताय क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत’ की कहावत को चरितार्थ करने वाली बात थी फिर भी मेरे मन में कई प्रश्न घुमने लगे कि आखिर यह हुआ कैसे |
यहाँ तक कि मेरी इस त्रुटि के बारे में न तो मेरे किसी भाई ने टोका और न ही किसी रिश्तेदार ने | मैं जितना सोच रहा था उतना ही उलझ रहा था | मैं किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाया कि किसी का क्या मकसद हो सकता था तथा यह त्रुटि कैसे हो गई |
इस त्रुटि को मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल मानता हूँ | जो त्रुटि मुझे छ: वर्ष बाद पता चली | मैंने प्रवीण  की शादी के समय हुई इस भूल को अपने छोटे बेटे पवन की शादी के कार्ड में ठीक करके अपने स्वर्गीय पिता जी से माफी मांगकर प्रायश्चित पूरा किया | 
शादी के लिए खरीद फरोक्त के सारे कार्यक्रम लगभग इसी प्रकार के वार्तालापों के बीच बने तथा मनोज जी की देख रेख में पूरे भी हो गए | मैं शादी की तिथियाँ सुजवा लाया | ६ फरवरी का लग्न तथा १० मार्च २००२  की शादी तय कर दी गई |
शादी के कार्ड का मजबून सभी को पसंद आया तथा वह छपाई के लिए भेज दिया गया | जब कार्ड छपकर आए तो इस बार मैंने अच्छी तरह मुआईना करके उन्हें अपने बच्चों से कह दिया कि मेरे द्वारा बनाई गयी मेहमानों की सूची के अनुसार सभी को निमंत्रण कार्ड भेज दें | कुछ ही दिनों में शादी के सारे कार्ड बाँट दिए गए |
पवन  की शादी सुचारू रूप से सम्पन्न हो गई और अंजना/अंजू दुल्हन बनकर ससुराल आ गई | अगले दो साल का समय गुजर तो गया परन्तु घर में सौहार्द वातावरण का हमेशा अभाव ही रहा |
30 जुलाई, गर्मी पूरे जोरों पर थी | 973 गुडगांवा पर मेरा परिवार एयर कंड़ीशनर चला कर सुख की नीन्द सो रहा था | सोते सोते पहले थोड़ी गर्मी महसूस हुई फिर पसीने आने शुरू हुए तो नींद खुल गयी | सुबह के तीन बजे थे | घर की बिजली गुम हो गई थी | काफी लम्बे इंतजार के बाद भी जब बिजली नहीं आई तो मैंने बाहर जाकर देखा तो केवल उसके घर की बिजली ही नदारद थी |
रात के सन्नाटे में मैं  बिजली घर से लाईन मैन को बुलाकर लाया तो पता चला कि बिजली की अंडर ग्राऊंड तार कहीं से कट गई थी | एक छोर से दूसरे छोर तक सड़क खुदवाकर नई तार डलवाई गई | इस काम को पूरा होते होते शाम के चार बज गए थे | इसी बीच महावीर एनकलेव से चुन्नी लाल जी का फोन आया, "मुझे आप से मिलना  है |"
एक तो मैं पूरा थक चुका था दूसरे मुझे अपनी बहन जी के यहाँ एक समारोह में जाना था इसलिए मैंने  चुन्नी लाल को कह दिया, "आप किसी और दिन का प्रोग्राम बना लो |"
पूरे दिन की भाग दौड की थकावट के कारण मैंने अपनी कमर सीधी करने के लिए थोड़ा आराम करना उचित समझा तथा बिस्तर पर कटे पेड़ की तरह गिर पड़ा | मेरी  झपकी लग गई | अभी मुझे सोते हुए लगभग आधा घंटा ही हुआ होगा कि साथ वाले कमरे में उठते शोर के कारण मेरी  निंद्रा भंग हो गई | चिल्लाती हुई आवाजों को पहचानकर पता चला कि पवन तथा उसकी पत्नि अंजू आपस में झगड़ रहे थे | यह जानने के लिए कि माजरा क्या है मैं  अपने बिस्तर से उठकर साथ वाले कमरे में गया तो वहाँ का नजारा देखकर दंग रह गया तथा बोला, "पवन नहीं हाथ नहीं उठाते |"
अंजू सिर उघाडे, बाल बखेरे तथा बिना किसी शर्म लिहाज के चिल्लाते हुए कह रही थी, "हाँ हाँ मारो, और मारो |"
वहाँ का दृश्य देखकर मैंने वहाँ खड़ा रहना मुनासिब नहीं समझा तथा पवन को यह कहता हुआ वापिस लौट आया, "चल रे पवन बाहर आकर मुझे बता कि क्या बात है ?"
हमारे बुजुर्ग लोग अपने बच्चों को, जब वे घर से बाहर जाते हैं तो यही सलाह देते हैं कि आराम तथा सावधानी से जाना | बच्चे अधिकतर अपने बुजुर्गों के कहे का पालन भी करते हैं परन्तु दूसरे चलने वालों की आप कैसे कह सकते हैं कि वह सावधानी बरतेगा ही | दूसरे की असावधानी और ना-समझी आपके लिए जी का जंजाल बन सकती है |
मैंने भी अपने लड़के की बहू को शर्म हया त्यागते पाया तो खुद ही शर्म महसूस करते हुए तथा अंजू की नासमझी को भांपते हुए अपने आप को ही उसके सामने से हटाना उचित समझा |
पवन तो बाहर नहीं आया अपितू अंजू उसी हालत में दाँत किटकिटाती हुई मेरी चारपाई के पास खड़ी होकर तथा अपनी ऊंगली को हिलाते हुए चिल्लाई, "तुम मुझे पिटवा रहे हो | यहाँ चुपचाप पड़े हो | मैं अब इस घर में नहीं रहूँगी | मैं जा रही हूँ |"
फिर अपनी सास संतोष की तरफ मुड़कर उसी अन्दाज में, "तूने मुझे अपने भाई की शादी में नहीं जाने दिया | अब मैं तुझे देखूंगी तथा दिखाऊँगी और मजा चखाऊँगी |" इसके बाद पैर पटकते हुए तथा अनाप सनाप बकते हुए घर से बाहर निकल गई |
अंजूँ को वास्तव में ही बाहर निकलते देख मैंने अपने लड़के पवन को कहा, "देख अंजूँ बाहर चली गई हैं तू जा और समझा बुझा कर ले आ |"
मुझे यकीन था कि उन दोनों की थोड़ी देर में ही सुलह हो जाएगी तथा दोनों वापिस आ जाएँगे |  
अचानक पचास साल पहले मेरे फूफा जी द्वारा कासन की लड़कियों के बारे में दी टिप्पणी की बातों का ध्यान आने से मेरे मन के एक कोने में एक शंका ने घर कर लिया | वैसे घर में रोजमर्रा के व्यवहार से मैं  कई बार महसूस कर चुका था कि अंजूँ का रहन सहन कुछ ठीक नहीं है | सभी का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए वह उल्टे सीधे ड्रामें करने में भी नहीं चूकती थी | कभी अपनी जबाड़ी भीच लेती थी तो कभी गश खाकर गिरने का नाटक करने लगती थी | उसकी ऐसी हालत देखकर घर की बाकी औरतों के हाथ पैर फूल जाते थे तथा वे उसकी सेवा सुश्रा में लग जाती थी |
इसी तरह एक बार जब अंजूँ ने दाँत भीच कर गिरने का नाटक किया तो मैं  घर पर ही था | उसके गिरते ही घर की औरतों की भाग दौड़ शुरू हो गई | मैंने सबको शांत रहने के लिए कहकर एक बच्चे को सम्बोधित करते हुए कहा, "जाओ जल्दी से बाहर कूड़ी से एक टूटी चप्पल या टूटा जूता उठा ला |"
सभी औरतें जो अंजूँ को घेरे खड़ी थी एक साथ बोल उठी, "टूटी चप्पल या टूटा जूता क्यों ?"
उसे गरम करके ऐसे मरीज को सुंघाने से वह ठीक हो जाता है |
मेरे ऐसे वचन सुनकर अंजूँ में एकदम चेतना आनी शुरू हो गई तथा चप्पल आने से पहले ही वह उठ कर ऐसे बैठ गई जैसे उसे कुछ हुआ ही न था | इसके बाद अंजूँ की कभी जबाड़ी न भींची न उसे गश आया | वह हमेशा के लिए इस रोग से मुक्ति पा गयी थी | 
इन सभी बातों को अंजाम देने के लिए उसके पीहर वालों का बहुत बड़ा योग दान था | उनमें अंजूँ की माँ, मौसी तथा दादी जी तो माशा अल्लाह उसको गल्त शिक्षा देने में सबसे आगे प्रतीत होती थी | एक दिन संतोष ने अंजू की मौसी को तो फोन पर अच्छी तरह सुना कर उसका मुहँ हमेशा के लिए बन्द करवा दिया था |
आज अंजूँ के घर से बाहर निकल जाने से मैं सोचने पर मजबूर हो गया था कि हो सकता है कि उसे डराने का कासन वालों की लड़की अंजूँ का यह एक और पैंतरा है |
रात के आठ बजे होंगे कि अंजूँ तथा पवन दोनों वापिस घर आ गए | परंतु मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब मैंने देखा कि उनके पीछे पीछे अंजूँ के पिता जी, भाई हेमंत, ताऊ महेश, चाचा, मामा बबले तथा वेद, नरेश(दूर का चाचा) तथा तीन चार जवान लड़के भी घर में घुसते चले आए | बुजूर्ग लोग तो बैठ गए तथा जवान चारों और ऐसे खड़े हो गए जैसे फौजी लोग दुशमन को चारों और से घेर कर उसे समर्पण कराने को मजबूर करने की कोशिश करते हैं | जवान लोगों के हाथों की माश पेशियाँ पानी से बाहर निकाली गई मछली की तरह फड़फड़ाती नजर आ रही थी | उन सबकी घूरती आँखो का एकमात्र केन्द्र बिंदु मैं ही था |
उनकी तरफ से मैंने नजरें घुमाई तो अपने दामाद मनोज जी तथा बेटी प्रभा को एक कोने में खड़ा देख कर दंग रह गया | उन दोनों के उदास चेहरे से साफ जाहिर हो रहा था कि उनके मन में कोई भारी कसक है | मैंने उन दोनों को बैठने का स्थान दिया तथा खुद अपने समधी के पास बैठने की सोच उसकी तरफ बढ गया |
मैं तो अपने मन में श्रद्धा भाव लेकर ऐसा कर रहा था परंतु ज्यों ही मैं चुन्नी लाल के पास पहुँचा तो उसने अपनी कड़वी जबान से मेरा स्वागत करते हुए कहा, "अब तो पड़ गई तेरे दिल में ठंडक ?"
मुझे चुन्नी लाल जी से ऐसी आशा न थी अत: एकदम सकते में आ गया तथा पूछा, "आपका ऐसा कहने का मतलब क्या है ?"
चुन्नी लाल उसी अन्दाज में बोला, "अंजूँ को पिटवा कर अब तो दिल खुश हो गया होगा तेरा ?"
मैं सभी के तेवर भाँप कर समझ गया कि कहीं न कहीं दाल में कुछ काला है |    
मैंने समझ लिया कि समय एवं स्थिति की नाजुकता को देखते हुए अपने को निडर साबित करना जरूरी था अतः थोड़ा रौब दिखाते हुए अपने संबंधी को उसी की जबान में जवाब दिया, "तमीज से बात करो |"
इस पर सामने से नरेश उठ्ते हुए गुर्राया, "तमीज तो हम तुझे सिखाएँगे |"
इतने में हेमंत भी अपनी खाल में से बाहर आते हुए, जैसे एक कुत्ता अपने मालिक की शय पाकर किसी आदमी पर झपटने में देर नहीं लगाता, कमीने पन की हद को पार करते हुए बोला, "बूढे, अब थोड़े ही बोला जाएगा तेरे से |"
मुझे इन दोनों की बातें सहन न हुई अतः उठकर गुस्से में कहने लगा, तुम सब इस भूल में मत रहना कि मैं तुम सबको एक साथ देखकर डर गया हूँ | अगर कुछ करने की नौबत आई तो वैसे तो मैं अकेला ही बहुत हूँ फिर भी बताए देता हूँ कि मेरी एक आवाज से तुम सब इस कालोनी से बाहर अपने पैरों पर चलकर जाने लायक नहीं रहोगे | और आप सबके बीच अपने को सुरक्षित समझ ये जो जनानिया, हेमंत, अपनी औकात भूल कर ज्यादा बोल रहा है इस जैसे दो को तो अब भी मैं अपनी काँख में दबाकर, जैसे बाली ने रावण के साथ किया था, भागता रहूँ और किसी को पता भी न चले | फिर नरेश की तरफ देखकर, "और तुम कौन हो ?"
"यही तो हम तुझे बताने आए हैं कि हम हैं कौन" ,इसके बाद वह अपनी कुर्सी से उठकर बोला, "हम फैसला करने आए हैं |"
"और फैसला अभी चाहते हैं, चुन्नी लाल ने बात को पूरा करते हुए कहा |
मुझे किसी बात का कोई ज्ञान नहीं था इसलिए मैंने दंग होकर पूछा, "फैसला करने आए हो ! फैसला अभी चाहते हो ! परंतु किस चीज का फैसला चाहते हो यह भी तो पता चले ?"
इस बार महेश बोला, "अंजू के बारे में |"
यह भी तो पता चले कि अंजूँ के बारे में किस चीज का फैसला चाहते हो ?
इस बार वेद ने कहा, "यही कि अंजूँ को आप ठीक से रखोगे |"
मैंने उल्टा प्रशन किया, "कौन कहता है कि तुम्हारी अंजूँ को हम ठीक से नहीं रख रहे ?"
चुन्नी लाल भी अपने बेटे हेमंत की तरह सभी रिस्ते नातों को ताक पर रखते हुए गुर्राया, "अगर तू ठीक से रखता तो इसे थाने जाने की नौबत नहीं आती ?"
थाने का नाम सुनकर मैं स्तब्ध रह गया | मेरे मुहँ से केवल इतना ही निकला, "थाने |"
हाँ थाने |
थाने का नाम सुनकर मैं सोच में पड़ गया | मैं अपने मन में स्थिति का जायजा लेते हुए समझ गया कि मामला कुछ ज्यादा ही गम्भीर हो गया लगता है |
मुझे अपने फूफा जी की कही बातें घटित होती नजर आने लगी | उनके अनुसार कासन की लड़कियाँ अपने ससुराल वालों की नाक में दम करने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाती हैं तथा उसके पीहर वाले वैसे तो शादी के बाद अपनी लड़की की सुध नहीं लेते परंतु ऐसे कार्यों में वे उसका पूरा सहयोग देते हैं |
मैंने मामले की तह तक जाए बिना उनसे बात करना उचित नहीं समझा अतः कहा, "देखो आप सब अंजूँ के चाचा, ताऊ, मामा, भाई और जो भी हो मुझे पहले से बताकर तो आए नहीं कि आप कुछ फैसला करने आ रहे हो अन्यथा मैं भी अपने कुछ रिस्तेदारों को बुला लेता | अतः इस समय तो कोई फैसला हो नहीं सकता |
मैंने अभी अपना कथन पूरा किया भी नहीं था कि नरेश अपनी जगह से उठकर मेरी और आते हुए चेतावनी देते हुए बोला, "ये मत सोचना कि हम तूझे छोड़ देंगे | हम तो लड़की को भी अपने साथ लेजाकर उसके भरण पोषण का माद्दा भी रखते हैं |"
इसके बाद मेरे सामने रखी मेज को थपथपा कर तथा फिर पटक कर बोला, "बुला लेना जिसे बुलाना चाहता है | हम किसी से डरते नहीं |"
डरने की बात तो यह है कि तू तो अभी से डरा पड़ा है तभी तो अपने दस गुंडों के बीच घिरा हुआ भौंक रहा है | इस बात को भूल जा कि मैं डरने वालों में से हूँ | और सुन जब फैसले के लिए बैठेंगे जब तूझे सही जवाब दूंगा कि मेरे सामने इस मेज थपथपाने एवं पटकने का मतलब क्या होता है | आ जाना भूलना नहीं ,मैंने नरेश को न्यौता दिया|  

इसके बाद अंजूँ के सभी रिस्तेदार उठे और चले गए |

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