Thursday, September 14, 2023

उपन्यास - भगवती (1)

 

भगवती

 

भारत की राजधानी दिल्ली की सीमा के साथ मिलते राज्यों के सड़क से जुड़े कई बार्डर हैं जैसे गाजीपुर, लोनी, बदरपुर, कापसहेड़ा और टीकरी बार्डर | टीकरी बार्डर के पास स्थित है गाँव ढांसा | दिल्ली का एक हिस्सा होने के बावजूद यहाँ ऐसा कुछ नहीं लगता कि यह भारत की राजधानी का भाग है | यह इलाका हर मायने में पिछडा हुआ है और यहाँ मरूस्थल न होने के बावजूद यहाँ राजस्थान के रेगिस्तान के किसी दूर दराज गाँव सा माहौल दिखाई देता है |

नजफगढ एक कस्बा तथा प्रसिद्द अनाज मंडी है जो आसपास के ढांसा जैसे गावों की जरूरतों को पूरा करता है | नजफगढ से ढांसा दस किलोमीटर दूर है | सन १९८० के दशक की बात है | राकेश को वहाँ अपने एक रिश्तेदार की अंतिम यात्रा में जाना पड़ा था | यहाँ आने जाने के साधन न के मात्र थे | लोग पैदल या साईकिल पर ही निर्भर थे | सामान लाने ले जाने के लिए बैल गाड़ी या टाँगे का प्रयोग करते थे | एक पतली सी आधी कच्ची आधी पक्की सड़क ढांसा को नजफगढ से जोड़ती थी | सफर कठिन महसूस होता था फिर भी सड़क के दोनों तरफ लहलाते खेतों की हरियाली, फसल के पौधों को छूकर बहती पंकज की सरसराहट, शुद्ध ताजा हवा, बैलों के गले में बंधी घंटियों की टनटनाहट, हरट के चलने की चरमराहट, खेतों में काम करते मजदूरों व किसानों की गुनगुनाहट, अनाज और सब्जियों के ढेर इत्यादि चलते यात्री का मन मुग्ध कर लेती थी तथा उसे पता ही नहीं चलता था कि कब उसने इतना लम्बा रास्ता तय कर लिया था |

ढांसा गाँव एक टीले पर बसा था | दूर से ही दिखाई देने लगता था जैसे बहुत नजदीक है परन्तु था तो दूर | रास्ते में अगर किसी से पूछ लिया जाता कि ढांसा कितनी दूर है तो प्रत्येक अपनी ऊंगली ढांसा कि तरफ उठाकर यही कहता, अरे देखो, युर्रो | अर्थात देखो वह रहा, जैसे बहुत नजदीक था | ऊँचाई पर होने की वजह से दूर से वह एक किला नुमा लगता था | गाँव की गालियाँ कच्ची थी | नालियां नाम के लिए थी | घरों में इस्तेमाल किया गया पानी बेतरतीब गलियों में बहता था इसलिए बड़ा संभल कर चलना पड़ता था | बिजली न होने की वजह से घुप अँधेरे में किसी अनजान का उन गलियों में सही सलामत चलना ना मुमकिन था | कोई भी मकान पूरा पक्का नहीं था | हर मकान का कोई न कोई हिस्सा कच्चा जरूर था |

घर में पानी की पूर्ति के लिए औरतें गाँव से बाहर बने कुओं से पानी अपने सिर पर ढोकर लाने के लिए मजबूर थी | घूँघट निकाले, सिर पर मटके या टोकनियाँ लिए दिन के हर पहर कुंए की तरफ जाती इन औरतों की कतार दिखाई दे जाती थी | पनघट पर उनकी आपस की हंसी ठिठोली को सुनकर ऐसा महसूस होता था जैसे कुंए से पानी खींचकर, बर्तनों में भरकर, सिर पर लादकर घर ले जाना उनके लिए कोई कठिन काम नहीं था | मर्दों का नहाना तथा औरतों का कपड़े धोना अधिकतर जोहड, तालाब या खेतों के कुँओं पर होता था | शौच के लिए सभी को खुले में जाना पड़ता था | मनुष्य के पार्थिव शरीर को अग्नि देने के लिए भी कोई उचित स्थान व अंतिम क्रियाकर्म करवाने की व्यवस्था नहीं थी |

शिक्षा के नाम पर गाँव में महज एक सरकारी प्राईमरी स्कूल था | नजफगढ जहां उच्च शिक्षा का प्रबंध था, ढांसा से आने जाने की उचित व्यवस्था न होने के कारण अधिकतर बच्चे अनपढ़  ही रह जाते थे | कुछ कुछ सम्पन्न घर के लड़के तो नजफगढ आने जाने का प्रबंध कर लेते थे परन्तु लड़कियों के लिए तो यह अभिशाप साबित होता था | ऊपर से गाँव में पसरा रूढ़िवाद, अंध विश्वास तथा प्रचलित कहावत कि लडकियां तो पराया धन होती है उनके पैरों की बेडियाँ बन जाती थी | इसलिए कोई बिरली लड़की ही ऐसी सौभाग्यवती होती थी जो उच्च शिक्षा ग्रहण कर पाती थी |

राकेश जब ढांसा पहुँचा तो घर के अधिकतर बच्चे अपने बड़ों का अनुशरण करके विलाप करते हुए रो रहे थे | उन बच्चों में एक तीन चार वर्ष की लड़की भी थी | जहां तक राकेश की जानकारी का सवाल था उस लड़की का मृतक के परिवार से कोई सम्बन्ध नहीं था | उसे आसूंओं से भीगा देख राकेश को आश्चर्य हुआ तथा सोचने लगा कि आखिर वह लड़की है कौन ? अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए उसने उसके सिर पर सांतवना का हाथ रखकर उससे पूछा, गुड़िया तुम रो क्यों रही हो ?

उसने सुबकते हुए बड़े सरल भाव से बताया, क्योंकि मेरी सहेली रो रही है |

राकेश ने अगला प्रशन किया, क्या आपको पता है कि आपकी सहेली क्यों रो रही है ?

राकेश की बात का जवाब न देकर उसने कहा, मेरी सहेली की माँ भी रो रही है |

हाँ बेटा, आप का कहना ठीक है परन्तु क्या आपको उनके रोने का कारण पता है ?
इस पर गुड़िया किंकर्तव्य मूढ़ होकर राकेश को निहारती हुई बोली, पता नहीं |

अगर ऐसी बात कोई व्यसक व्यक्ती कहता तो राकेश समझ सकता था कि वह मूर्खता भरी बातें कर रहा है | क्योंकि बिना कारण जाने ग़मगीन होकर अपनी शांति भंग करना मूर्खता नहीं तो और क्या है | बचपन में पढ़ी एक कहानी राकेश को याद आ गई |

झुलसा देने वाली गर्मी के दिन थे | वर्षा का नामों निशान न था | प्रत्येक प्राणी त्रस्त था | बहुत से पक्षी, राहगीर, पशु इत्यादी एक पेड़ की शरण लिए हुए थे | एक खरगोश भी पेड़ के नीचे सोया हुआ था | इतने में बादलों की गडगडाहट के साथ तेज हवा चलने लगी और उसी समय पेड़ का एक फल खरगोश के पास आकर गिरा | खरगोश हडबडाहट में उठा और यह कहते हुए दौड़ पड़ा कि भागो आसमान गिर रहा है | दूसरे जानवर भी बिना सोचे समझे, यह कहते हुए कि भागो आसमान गिर रहा है, एक दूसरे के पीछे भागने लगे | हजारों को भागते देख एक बुद्धिमान व्यक्ति ने उनसे पूछा, आप से किसने कहा कि आसमान गिर रहा है ?

जवाब मिला , पता नहीं |

तो फिर आप भाग क्यों रहे हैं ?

क्योंकि सभी भाग रहे हैं |

कहने का तात्पर्य है कि बिना किसी का कारण जाने किसी का अनुशरण करना मूर्खता कहलाती है | परन्तु एक अबोध बालक में इतनी क्षमता नहीं होती कि वह किसी गूढ़ रहस्य का विशलेषण कर सके | अत: वह उसी चीज का अनुशरण करता है जो उसके आसपास घटित हो रही है | यही वजह रही कि राकेश को उस बालिका के कथन से कि पता नहीं वह क्यों रो रही हैउसकी मूर्खता दिखाई नहीं दी बल्कि राकेश उसकी मासूमियत से बहुत आश्चर्य चकित तथा प्रभावित हुआ | राकेश ने सोचा कि देखो इतनी छोटी लड़की अपनी सहेली के दुःख को भांपकर खुद भी कितनी दुखी हो रही है | इसे अभी से दूसरों से इतना लगाव है तो बड़ी होकर यह अवश्य ही माँ टेरेसा की तरह प्रसिद्द होगी |

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