Wednesday, September 20, 2023

उपन्यास - भगवती (3)

 अचानक राकेश के मानस पटल पर आज से पाँच साल पहले की बातें उभर आई और राकेश सोचने लगा, भगवती ! क्या यह वही भगवती तो नहीं जिसको मैनें पाँच साल पहले अपनी सहेली के दुख में शरीक होकर बिलख बिलख कर रोते देखा था | अगर यह वही है तो कितना बदलाव आ गया था उसमें | किसी ने ठीक ही कहा है कि लडकियां बहुत जल्दी बड़ी व सयानी हो जाती हैं | पाँच वर्ष पहले की वह मासूम, कमजोर एवम कोमल सी दिखने वाली भगवती में अब चंचलता, सुद्दर्ता एवम सटीक जवाब देने का हुनर आ गया है |

बड़ी तत्परता तथा आतुरता से अपनी टीचर जी के आने की प्रतीक्षा करते देख राकेश को आभाष हो गया था कि वास्तव में ही उसकी वाणी जहां चाह वहाँ राह एक दिन रंग लाएगी और उसके टीचर बनने के सपने को साकार अवश्य करेगी | परन्तु राकेश मन के एक कौने में यह संशय भी पनप रहा था कि आखिर इस दूरदराज के गाँव में जहां केवल प्राईमरी स्कूल है और प्रत्येक मूलभूत सुविधाओं से वंचित है भगवती अपने लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर पाएगी |

खुदा--खास्ता मान लो अगर भगवती किसी तरह नजफगढ पहुँच जाए, जहां बारहवीं तक का स्कूल था, तब भी उसके माता पिता उसे नजफगढ से बाहर जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने की आज्ञा नहीं देंगे | क्योंकि वह इलाका रूढ़िवादी विचारों के लोगों से पटा पड़ा था जो इन ख्यालों के थे कि लड़की पराया धन होती है | उसे दूसरे घर जाकर चूल्हा-चौका ही संभालना है | परिवार बढ़ाना है और ससुराल वालों की सेवा ही करनी है | इसलिए ज्यादा पढाने का कोई फ़ायदा नहीं तथा लड़की की पढाई पर पैसा खर्च करना बेमानी साबित होगा |

परन्तु न जाने क्यों राकेश के मन में भगवती के व्यवहार, चंचलता, उन्मुक्त हंसी, पढने की लगन एवम उसका टीचर बनने के सपने लक्ष्य के आभाष से उसके प्रति राकेश मन में एक सदभावना भर दी तथा अंतर्मन से आवाज निकली, परवरदिगार इस बच्ची के मनोभाव को सफलता प्रदान करना |         

एक वर्ष और बीता होगा | वर्षा ऋतु का आगमन हो चुका था | इस बार किसान लोग बहुत खुश थे कि बरसात समय पर आ गई थी तथा भरपूर मात्रा में हो रही थी | प्रत्येक किसान अपने खेतों में चहकता और गुनगुनाता हल चला कर नई फसल बोने में जुटा था | कुछ दिन तो सब कुछ ठीक चलता रहा परन्तु एक दिन शुक्रवार को पानी  बरसने लगा तो उसने रूकने का नाम ही न लिया | तीन चार दिन की लगातार बारिश ने चारों ओर तहलका मचा दिया | अभी तक किसान जिसे वरदान समझ कर फूले नहीं समा रहे थे वही अब त्राहि त्राहि करने लगे थे | नदी नाले उफान पर आ गए | यमुना नदी ने अपना बाँध तोड़कर माडल टाउन इलाके में अपने पैर पसारने शुरू कर दिए  और पानी ने सब कुछ अपने आगोश में समेट लिया | चंद घंटों में ही हरियाणा के बांधों ने भी अपना दम तोड़ दिया और ढांसा से नजफगढ का पूरा इलाका जलमग्न कर दिया |

इन दिनों भगवती के पिता जी नजफगढ में एक किराने की दुकान चला रहे थे | उनकी रिहाईस ढांसा में ही थी | इसलिए वे रोजाना सुबह ढांसा से नजफगढ आते थे | पूरे इलाके में बाढ़ आ जाने से सब मार्ग अवरुद्ध हो गए थे | लगभग एक सप्ताह तक जो जहाँ फंसा था वहीं का होकर रह गया था | भगवती के पिता श्याम लाल भी अपने घर न जा सके | सूचना पाना तथा पहुचाने का कोई माध्यम नहीं था | अत: एक दूसरे की चिंता करने के अलावा कोई चारा नहीं था | ढांसा गाँव ऊंचाई पर बसे होने के कारण बाढ़ की मार से बच गया परन्तु नजदीक के और गाँवों में जान माल का बहुत नुकसान हुआ | अधिकतर कच्चे बने घर ढह गए | हजारों की तादाद में मवेशी मर गए |लोगों के पास खाने को कुछ बचा नहीं क्योंकि अधिकतर सामान पानी बहा ले गया था | चारों ओर पानी तथा लगातार वर्षा होने की वजह से तथा कच्ची सड़कें टूट जाने की वजह से सरकार द्वारा राहत कार्य में बाधा आ रही थी | चारों और पानी होते हुए भी पीने के पानी की किल्लत लोगों का दम तोडती जा रही थी | धीरे धीरे मवेशियों की लाशें सडने लगी | महामारी फ़ैलने का डर हो गया | पानी जब कम हुआ तो अपनी जान जोखिम में डालकर किसी तरह श्याम लाल अपने बच्चों से जा मिले और उन्होंने निश्चय कर लिया कि अब वे अपने बच्चों को भी अपने साथ नजफगढ ही रखेंगे |

अखबारों के माध्यम से पता चला कि एक नाबालिग लड़की ने इस प्राकृतिक आपदा के समय लोगों की तन, मन और अपने सामर्थ अनुसार धन से बहुत मदद की थी | लिखा था कि वह बहुत अच्छी तैराक होने की वजह से कई डूबते हुए बच्चों को बचाने में सफल रही | इतना ही नहीं उससे जितना बन पड़ा जहां से बन पड़ा उनके खाने, पहनने तथा रहने का प्रबंध करवाया | डाक्टरों के साथ मिलकर उसने अपने स्वास्थ्य की परवाह न करते हुए दिन रात बीमार व्यक्तियों की देखभाल की | भगवती की बहादुरी को देखते हुए भारत सरकार ने उसे वीर बच्चों के सम्मान से विभूषित किया | और अनजान मरीजों की निस्वार्थ सेवा भाव का आदर करके उसे वर्त्तमान मदर टेरेसापुरस्कार से नवाजा गया |

आपदा खत्म होने के बाद भविष्य में अपने परिवार से अलग रहने की चिंता से मुक्त होने के लिए भगवती के पिता जी ने नजफगढ में ही एक मकान बनवा लिया और सुख चैन से रहने लगे | बेटी द्वारा अखबारों की सुर्खिया बटोरने के बाद श्याम लाल पर अपनी बेटी भगवती को आगे पढाने का दबाव बढ़ गया | भगवती को मन की मुराद मिल गई जिसने उसे बखूबी निभाया और अच्छे नंबरों से बारहवी की परीक्षा पास कर ली | इसके बाद श्याम लाल ने भगवती के हाथ पीले करने की ठान ली और किसी कीमत पर भी उसे आगे पढने के लिए बाहर भेजने को राजी नहीं हुआ | इस तरह भगवती की एक टीचर बनने की ख्वाहिस पर फिलहाल विराम लग गया 

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