राकेश के घर में आज खुशी का माहौल था | घर में राकेश के परिवार के सदस्यों के
साथ राकेश का दामाद और राकेश की लड़की भी मौजूद थी | थोड़ी देर पहले ही वे प्रभात का रिश्ता पक्का करके लौटे थे | बैठते ही लड़की किस को कैसी लगी तथा आगे
के क्या कार्यक्रम होगें पर वार्तालाप शुरू हो गया |
संतोष:-लड़की तो सुन्दर है |
प्रतिभा:-हाँ नयन नक्श के साथ रंग भी गोरा है |
मुकेश:-प्रभात के हिसाब से पढ़ी लिखी भी ठीक ही
है |
राकेश ने अपना मत प्रकट किया, “वैसे तो आप लोगों की बातें सही हैं
परन्तु लड़की की चाल एवं बोल पर भी किसी ने ध्यान दिया या नहीं ?”
संतोष:-चाल
ढाल और बोली में अगर कुछ फर्क है भी तो वह हमारे यहाँ रहने से अपने आप सुधर जाएगा |
मुकेश
ने इस बार कटाक्ष करते हुए पूछा, “पापा जी दस में से आप
कितने नंबर देते हो ?”
राकेश
मुकेश जी के कटाक्ष को समझ कर हँसे बिना न रह सका | राकेश
की इस हंसी में मुकेश को तो सम्मिलित होना ही था परन्तु और सब हमें हंसते देख
भौचक्के से रह गए | शायद वे मुकेश जी के इस कटाक्ष के कारण
से अनजान थे | हुआ यूं था कि राकेश की लड़की प्रतिभा की
देखा दिखाई में उनकी ना-नुक्कड़ को भांपकर राकेश के बड़े भाई साहब
जी ने भी मुकेश जी से यही प्रश्न पूछकर उन्हे निरूत्तर कर दिया था |
फिर भी राकेश ने जवाब दिया, “मुकेश जी आपने यह प्रश्न
पूछने में बहुत देरी कर दी |”
मुकेश
जी राकेश की पत्नी संतोष की तरफ देखकर बोले, “अब
तो हाँ हो ही गई है | अब आगे का सोचो की शादी कब की रखनी है |”
संतोष
राकेश की और निहार कर बोली, “इसके बारे में तो ये ही
जानें |”
मुकेश:-पिताजी
शादी के लिए पंडित जी से दो तीन तिथियाँ निकलवा लेना | उनमें
से जो हमें ठीक रहेगी उसे पक्का कर लेंगे |”
राकेश
ने सोच विचार कर पूछा, “तारीखें तो निकलवा लूंगा
परन्तु पहले इस बात का फैसला तो कर लो कि बिरादरी के लोगों को लग्न पर दावत देनी
है या रिस्पशन का प्रोग्राम रखना है |”
“बिलकुल
यह तो पहले तय करना पडेगा,”प्रतिभा ने अपनी राय दी |
पंकज:-रिस्पशन का प्रोग्राम तो बहुत बेकार
तथा उबाऊ लगता है | क्योकि दुल्हा दुल्हन को घंटो मूर्ति बनकर बैठना पड़ता है ऊपर से उठक
बैठक अलग करनी पड़ती है |
संतोष ने चुटकी ली, “बेबी
(प्रतिभा) जब
पंकज की शादी हो तो इस बात को ध्यान में रखना कि इसकी शादी होने पर लग्न पर ही
दावत देनी है |”
“मम्मी
जी आपने बिलकुल ठीक फरमाया है | पंकज ने अपनी इच्छा पहले ही जाहिर कर दी
है |
इसकी
शादी पर हमें ध्यान रखना होगा कि लग्न ही हो रिस्पशन नहीं |”
सब
जोर से ठहाका लगाकर हंसते हैं और पंकज कुछ झेंप जाता है | इसके
बाद मुकेश जी ने कहा, “पिता जी, अब
हमारे पास समय कम है और काम ज्यादा | क्योंकि शादी के साए केवल २९ फरवरी तक
ही हैं | अत: जितना
जल्दी हो सके आप पंडित जी से शादी की तिथियाँ सुजवा लाओ | जिससे
हम आगे के प्रोग्राम बना सकें |”
राकेश
घड़ी देखकर बोला, “ठीक है अब तो देर हो गई
हैराकेश सुबह ही पंडित जी से मिल लूंगा |”
संतोष:-पहले
सामने वाले इस मौहल्ले के मंदिर के पंडित जी से सुजवा लेना |”
“राकेश
सामने वाले मंदिर तथा बुधराम पंडित जी से पूछ आऊँगा तुम(संतोष) कृष्ण
मंदिर में पूछ आना |”
संतोष:-ठीक
है |
मुकेश:-सभी
काम फ़टाफ़ट करने होंगे क्योंकि समय कम है | चीज-बस्त, कपड़े-लत्ते, कार्ड, खाना-पीना, बैंड-बाजा इत्यादि बहुत सी वस्तुओं का इंतजाम करने में
दिन यूं ही निकल जाएंगे पता भी नहीं चलेगा कि कब तय तिथि आ धमकी |
राकेश
ने याद कराया, “हाँ कार्ड का मजबून भी तो
बनाना होगा |
मुकेश:-कार्ड
के तीन चार मजबून बनाकरराकेश आपको दिखा दूंगा | जो
सभी को पसंद आएगा वह छपवा लेंगे |
राकेश
ने हामी भरते बातों को विराम देने के लिए कहा, “अब
रात काफी हो गई है | सब सो जाओ | बाकी
बातें सुबह करेंगे |
मुकेश:-पिता
जी अब सोने से काम नहीं चलेगा | अब तो हमारे पास केवल्र रात ही है विचार
विमर्श करने के लिए क्योंकि दिन में तो हमें बाजार का काम निपटाने से ही फुर्सत
नहीं मिलेगी |
राकेश
ने अपना पक्ष रखा, “देखो जी ‘साफ़
कहना सुखी रहना’ आप लोग जो ठीक समझो उतनी देर तक जागो | मुझे
तो सुबह बता दिया करना कि दिन भर का क्या प्रोग्राम बनाया हैराकेश उसी अनुसार चला
करूँगा | परन्तु मैं समय पर सो जाना चाहता हूँ
|”
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