Saturday, September 23, 2023

उपन्यास - भगवती (4)

 

1990 के दशक की बात है | राकेश के बड़े लड़के प्रभात के रिश्ते आने शुरू हो गए थे |  समय लोगों की जीवन शैली में बड़ी तेजी से परिवर्तन ला रहा था | बेरोजगारी चरम सीमा पर थी | पढ़े लिखे नौजवान हाथों में डिग्रियां लिए नौकरी की तलाश में इधर उधर भटकते रहने पर मजबूर थे | प्राईवेट नौकरियों तो थी और अगर थी भी तो उसे कोइ करना नहीं चाहता था | सरकारी नौकरी थी नहीं और अगर थोड़ी बहुत होती भी थी तो अपनी किस्मत आजमाने उसके लिए लाखों की तादाद में लोग जाते थे | ऐसे में प्रभात को जिसने अभी अभी बी.कोम पास किया था भाग्यवश सरकारी नौकरी पा गया | इसकी गूँज हवा की तरह हमारे सभी रिश्तेदारों में फ़ैल गयी | यही कारण था की उसके रिश्तों की एकदम बाढ़ सी गई | राकेश की पत्नी संतोष वैसे तो किसी भी बातचीत में सामने नहीं आती थी परन्तु छिपकर रिश्ता लेकर आने वालों की हर गतिविधि पर नजर रखती थी | जब कई आने वाले एक दो बार चुके तो संतोष ने अपने मन की इच्छा जाहिर करते हुए कहा, "देखो जी रिश्ता ऐसा लेना जिसका व्यवहार शराफत से भरा हो |"

"शराफत से भरे से तुम्हारा क्या मतलब है ?"

"यही कि भोला भाला हो |"

अपने चहरे पर मुस्कान बखेरते हुए राकेश ने पूछा, "मेरे जैसा भोला ?"

संतोष तुनक कर, "अजी हाँ राम भजो, आप अपने को शरीफ समझते हो ?"

"तो क्या नहीं हूँ ?"

संतोष राकेश से थोड़ा दूर हटकर, "आप तो एक नम्बर के छटे........|" और वह खिलखिलाकर हंस पड़ी |

"रूक क्यों गई पूरा कह दो |"

"जब आप समझ ही गए हो तो पूरा कहना कहना एक ही बराबर है |" खैर, संतोष ने मुस्कराते हुए कहा, "अब तक तो आपने अंदाजा लगा ही लिया होगा कि किससे बात आगे बढानी है |"

"तुम्हारा क्या विचार है ?"

"मुझे तो वह, जो नजफ़गढ़ से आए थे काफी भोले भाले और शरीफ नजर रहे थे |"

"नजफ़गढ़ से तो दो तीन चुके हैं |"

"वही जो अपने को जीजा जी श्याम कुमार जी का भाई बता रहे थे |"

राकेश ने अपनी दुविधा बताई," वे भोले एवं शरीफ तो लग रहे थे परन्तु महा कंजूस और छिपे रूस्तम भी जान पड़ रहे थे |"

वे तो छिपे रूस्तम होंगे परन्तु आप से नीचे नीचे |

अच्छा जी |

संतोष हंसकर, "और क्या | वैसे यह बताओ कि आप ने कैसे जान लिया कि वे कंजूस हैं ?"

"उनके पहनावे से |"

"ऐसा आपने उनके पहनावे में क्या देख लिया ?"

"उनके कपडे तो साफ़ सुथरे थे परन्तु फटी हालत में थे | उनकी पहनी हुई जुराबें भी नीचे से फटी हुई थी |"

"हमें उनकी कंजूसी से क्या लेना देना हमें तो बस लड़की अच्छी मिलनी चाहिए |"

"मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ परन्तु दूसरे के यहाँ जाते समय कुछ तो मर्यादा रखनी चाहिए |"

"पुराने जमाने के लोग ऐसे ही हुआ करते हैं | देखना इनके बच्चों में आपको यह कमी नजर नहीं आएगी |"

"मैं भी तो इनके जमाने का हूँ |"

"हम तो हमेशा बाहर रहे हैं तथा देखा है कि थोड़े में भी सुखमय जीवन कैसे जीते हैं | ये तो बेचारे हमेशा उसी नून तेल लकड़ी में ही लगे रहे |"

"साफ़ क्यों नहीं कहती कि बेचारे रीफ समधी पसंद गए हैं |"

संतोष एकदम हाथ नचाकर बोली, "नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं है | मैं कुछ नहीं जानती | मैंने तो बस अपनी राय बताई है | पक्की तो आप अपनी समझ से करोगे |"

नवरात्रों के शुभ दिन थे | आनन फानन में अच्छा दिन देखकर लड़के लड़की की देखा दिखाई का समय और  स्थान निश्चित कर लिया गया  | संवाद शुरू करते हुए राकेश की लड़की ने अपनी होने वाली भाभी  से पूछा, “आपका नाम क्या है ?”

छोटा सा जवाब तथा बड़ी महीन आवाज उभरी, “चाँदनी|”

“कितनी पढ़ी हो ?”

“बारहवीं |”

“पास या फेल ?”

इस बार वार्तालाप कर रहे दोनों सदस्यों के चेहरों पर मुस्कान फ़ैल गई और जवाब मिला, “पास |”

चाँदनी कद  काठी, लम्बाई, स्वास्थ, रंग, रूप, बोलचाल तथा उठने, बैठने तथा चलने में बिल्कुल ठीक थी | राकेश की लड़की प्रतिभा को चाँदनी अपने भाई के लिए हर मायने में अनुकूल लगी तो उसने  अपनी मम्मी की तरफ मुखातिब होकर अपना निर्णय सुनाया, “मम्मी जी, मेरे विचार से चाँदनी पास है |” 

प्रतिभा की बात सुनकर चाँदनी के पक्ष वालों के चेहरे गुलाब की तरह एक दम खिल उठे | परन्तु वर् पक्ष की तरफ से पक्की हाँ होने के इंतज़ार से उनके चेहरों पर असमंजसता की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थी | इस बीच श्याम कुमार ने अपना मत रखा, “एक बार लड़के लड़की से भी तो पूछ लो कि उनको यह आपसी रिस्ता पसंद है ?”

उन दोनों को भेजने से पहले राकेश ने जब संतोष की तरफ उसकी मर्जी जानने के लिए देखा तो जवाब मिला, “शुभ दिन  हैं | नवरात्रों में भगवती का घर में आगमन हो रहा है और इससे अच्छा क्या होगा ?”

उनकी बात मानते हुए प्रभा के साथ दोनों को आपसी सहमती के लिए पार्क में टहलने के लिए भेज दिया गया | उनकी रजामंदी के बाद  घर के सभी सदस्यों ने एकमत होकर  रिस्ता पक्का कर दिया  |

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