मेरी आत्मकथा-4, शादी फौजी
की (जीवन के रंग मेरे संग)
मेरी शादी की बात मेरे पिता
जी के एक पत्र से शुरू हुई जो उन्होंने मुझे लिखा था | उन्होंने लिखा:-
शादी फौजी की
बेटा चरण,
प्रसन्न रहो | हम सब यहाँ पर कुशल पूर्वक हैं तथा तुम्हारी कुशलता श्री भगवान जी से नेक चाहते हैं | आगे समाचार है कि तुम तो जानते ही हो कि तुम्हारी दो छोटी बहनों की शादी हो चुकी है | तुम्हारी तीसरी छोटी बहन भी शादी लायक होने जा रही है अतः अब हम चाहते हैं कि उसकी शादी से पहले तुम्हारी शादी कर दी जाए | शायद यह हमारा स्वार्थ ही हो परंतु यथार्थ भी यही है कि अब हम दोनों अपनी बढती उम्र के कारण घर के काम काज को सुचारू रूप से चलाने में समर्थ नहीं हैं | हमने
तुम्हारे लायक एक लड़की पसन्द कर ली है परंतु फैसला तुम्हारे उपर निर्भर है | अतः लिखना कि तुम्हारा आना कब हो सकेगा ? शेष कुशल है | पत्रोतर शीघ्र देना |
तुम्हारा पिता
राम
नारायण
मेरे माता
पिता 70 वर्ष की उम्र पार कर चुके थे | उनका कहना भी ठीक था | पिता के पत्र ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया | मै
महसूस करने लगा कि अब मुझे अपने माता-पिता की इच्छाओं का अनुसरण कर लेना चाहिए | अतः मैनें निश्चय कर लिया कि मैं अपने आफिस में अर्जी दे दूंगा कि उसे शादी करने की अनुमति प्रदान की जाए | मैनें विचार बनाया कि मैं छुट्टी लेकर लड़की देखने घर चला जाऊंगा ओर अगर लड़की पसन्द आ गई तो शादी की तिथि भी पक्की कर आएगा |
मैं फौज की वायु सेना में कार्यरत था तथा
इस समय देवलाली -नासिक में डयूटी पर तैनात था | मैनें अपनी सोच के अनुसार शादी करने की अनुमति माँगने की अर्जी जमा करा दी | तथा छुट्टी लेकर अपने घर नारायणा - देहली चला गया | वहाँ सभी को लड़की पसन्द आ गई अतः रिस्ता पक्का कर दिया गया तथा शादी की तारीख तीन महीने बाद की रख दी गई |
मैं कई तरह के सपनें संजोए खुशी खुशी अपनी युनिट वापिस लौट आया | परंतु वहाँ पहुँच कर मेरे आश्चर्य
का ठिकाना न रहा जब मैनें पाया कि मेरे द्वारा शादी की मंजूरी के लिए दी हुई अर्जी ना मंजूर कर दी गई थी | कारण केवल यह दिया गया था कि "आपकी उम्र अभी 25 वर्ष नहीं हुई है अतः शादी की मंजूरी नहीं दी जाती |"
मैनें जितने सपने संजोए थे सब बिखरते नजर आए | एक साथ कई प्रशन मेरे जहन में उथल पुथल मचाने लगे जिनका कोई उत्तर नहीं मिल पा रहा था | मसलन चाहे फौज का यह नियम हो कि एक फौजी 25 साल की उम्र से पहले शादी नहीं कर सकता परंतु अगर उसके शादी करने से फौज को कोई नुकसान नहीं होता, फौजी
की कार्यक्षमता में कोई कमी नहीं आती, फौजी
किसी खतरे वाली जगह तैनात नहीं है या फिर किसी प्रकार की कोई आपत्तिजनक स्थिति नहीं है तब उसे 25 साल की उम्र पूरी न होने के कारण शादी करने की मंजूरी देने में एक कमांडिगं आफिसर को क्या हिचकिचाहट हो सकती है |
इसके साथ साथ मैं 23
वर्ष पार कर चुका था | भारतीय कानून के तहत 21 वर्ष लड्के की शादी को नियमित माना गया है | यही नहीं उसके माता-पिता मेरी दो छोटी बहनों की शादी भी कर चुके थे | माता-पिता की उम्र भी पक चुकी थी | अतः वे अपने आखिरी बेटे की शादी करके अपने फर्ज के कार्यों से निवृत हो जाना चाहते थे | यह कैसा कानून था जो अपने जन्मदाता की बात एवं फैसले को पूरा करने के लिये उसे बेकार में ही एक अनजान व्यक्ति से मिंन्नत करनी पड़ रही थी |
मैनें एक द्ड निशचय कर लिया कि अपने माता-पिता की जबान रखने के लिए वह शादी करेगा चाहे कुछ भी हो | फिर भी शादी की नियत तिथि पर जाने से पहले मैनें अपने कमांडिगं आफिसर से साक्षातकार करना उचित समझा |
आफिसर ने मुझे अपने
आफिस में बुलाया तथा मेरी अर्जी पर नजरें गड़ाते हुए कहा, “हँ, ! आपने पहले भी इस बारे में अर्जी दी थी ?”
“हाँ, सर |”
“आपको शादी करने की मंजूरी नहीं दी गई थी और न ही अब मिलेगी |”
“माफ करना श्री मानजी, क्या
मैं पूछ सकता हूँ कि मुझे मंजूरी क्यों नहीं मिलेगी ?”
“क्योंकि आपकी अभी 25 वर्ष की आयु नहीं हुई |”
मैनें अपना पक्ष
रखते हुए कहा, “यह तो कोई कारण नहीं हुआ | क्या कोई सर्विस की ऐसी इमर्जेंसी है, साहब ?”
“कोई इमर्जैंसी नहीं है परंतु हम आपको मंजूरी नहीं देंगे |”
“इसकी कोई खास वजह तो होगी सर, कि आप ऐसी जिद कर रहें हैं ?”
आफिसर ने दो टूक
जवाब देकर कहा, “
हमारा फैसला ! बस |”
“और जिन्होने मुझे जन्म दिया उनका फैसला -------?”
आफिसर बीच में ही थोड़ी आवाज ऊँची करके, “ज्यादा बकवास नहीं | अब आप जा सकते हो |”
मैनें अपना संयम खोते हुए बोला, “साहब अपनी जबान पर काबू रखो | मैं बहरा नहीं हूँ ओर न ही आपका घरेलु नौकर | तमीज से बात करना सीख लो अन्यथा कभी कोई सवा सेर टकरा जाएगा |”,
और धन्यवाद कहता हुआ मैं आफिसर कमांडिग के कमरे से बाहर आ गया |
घर पर शादी की तैयारियाँ चल रही थी | मैं छुट्टियों पर घर आ गया था | मुझे अभी तक डिपार्टमेंट की तरफ से शादी की मंजूरी नहीं मिली थी | घर आकर मैंने एक बार फिर कोशिश की तथा अपने कमांडिंग आफिसर के नाम एक टेलिग्राम भेजा, "माता पिता की सेहत एवं मजबूरी को देखते हुए मुझे शादी करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है अतः आप से अनुरोध है कि मुझे शादी करने की मंजूरी दे दी जाए |"
मेरी शादी के ठीक तीन दिन पहले मेरी युनिट से उत्तर मिला, "आपको शादी की मंजूरी नहीं दी जाती |"
इस पर सभी की प्रशन सूचक उठती आखों को मैनें इतना कहकर, "इससे कुछ नहीं होता, सब
काम सुचारू रूप से सम्पन्न करो |"
सब की दुविधा का अंत कर दिया |
मेरी शादी हर्षोल्लास एवं नियत तिथि 20-11-1968 को विधिवत तथा सुचारू रूप से सम्पन्न हो गई | देवलाली एक पहाड़ी इलाका था तथा हनीमून मनाने के लिए एक उपयुक्त स्थान भी | परंतु मैं अपनी पत्नि के साथ अभी वहाँ नहीं जा सकता था क्योंकि मुझे तो अभी शादी की मंजूरी भी नहीं मिली थी | बहुत सोच विचार करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि ओखली में सिर दिया तो धमाकों का क्या डर |
इसी आशय के मद्देनजर मैनें एक और टेलिग्राम अपने कमांडिग आफिसर को भेज दिया, "शादी सम्पन्न हो गई है कृपा पत्नि को साथ रखने की अनुमति प्रदान करें |”
हालाँकि मैनें टेलिग्राम तो दे दिया था परंतु जवाब मुझे वही मिला जिसकी उसे आशा थी, "जब शादी करने की मंजूरी ही नहीं दी गई तो पत्नि रखने की मंजूरी कैसे मिल सकती है | अतः आपकी दोनों मांगे ना मंजूर की जाती हैं |”
उत्तर पाकर मै मन मन ही अपने कमांडिग आफिसर की ना समझी पर बहुत हँसा | क्योंकि उसने टेलिग्राम में लिखा था कि शादी सम्पन्न हो गई है फिर भी मुझे जवाब मिला था कि शादी की मंजूरी नहीं दी जाती |
फौजी लोगों में एक खाशियत होती है| अगर
वे किसी बात पर अड़ जाएँ या किसी बात का निश्चय कर लें तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखते | उन्हें अंजाम की कोई चिंता नहीं रहती | वे अपने लक्ष्य को पूरा करके ही दम लेते हैं | शायद यही कारण था कि मैं अपनी बात पर अडिग था तथा मेरा आफिसर कमांडिग अपनी बात पर | परंतु दोनों की अथोर्टियों में जमीन आसमान का फर्क था | एक यूनिट के कमाडिगं आफिसर के पास पूरी अथोरीटी होती है तथा वह अपनी सूझ्बूझ का खुद मालिक होता है | उसके किए को यूनिट में कोई भी नकार नहीं सकता तथा न ही उसका विरोध कर सकता | परंतु
मैं जानता
था कि हर चीज की कुछ मर्यादा होती है, सीमा
होती है | हर व्यक्ति का शादी करना उसका जन्म सिद्ध अधिकार होता है अतः मैनें शादी करके कोई गुनाह नहीं किया था और न ही अपनी पत्नि को साथ रखना कोई गुनाह है |
हालाँकि फौज के कुछ नियम ऐसे होते हैं
कि यूनिट का कमांडिगं आफिसर किसी भी जवान की अर्जी को नामंजूर कर सकता है परंतु ऐसा
करने के लिए उसे भी कुछ कारण दिखाने पड़ते हैं | इस समय ऐसे कोई कारण नहीं थे कि मुझे शादी के लिए मंजूरी न दी जाए | बस आफिसर कमांडिगं का अहम उसके आड़े आ रहा था | मुझे भी "जिद" एयरफोर्स
की देन थी
अतः वह बिना मंजूरी के अपनी पत्नि को साथ लेकर अपनी यूनिट, देवलाली,
पहूँच गया |
मैं एक अच्छे खाते-पीते घर का था इसलिए मुझे अतिरिक्त भत्ते की कोई खास चिंता नहीं थी जो एक फैमिली के साथ रहने वाले जवान को मिलता है | मैं बिना अनुमति लिए अपनी पत्नि के साथ सिविल इलाके में रहने लगा | मेरे दिन खुशी खुशी व्यतीत होने लगे |
इस दुनिया में हर प्रकार के व्यक्ति होते हैं | कुछ ऐसे ही व्यक्तियों ने जो दूसरों को सुखचैन की जिन्दगी व्यतीत करते हुए नहीं देख सकते, मेरे कमांडिग आफिसर को चुगली कर दी कि मैं अपनी पत्नि के साथ, बिना
मंजूरी हासिल किए, सिविल
इलाके में रह रहा हूँ |
इस पर मेरी पेशी हो गई |
मुझे सामने देख आफिसर
ने सीधा
प्रशन किया, “क्या तुम पत्नि के साथ रह रहे हो ?”
मैनें बिना
किसी झिझक के जवाब दिया, “ हाँ सर |”
“क्या तुमने लिविंग आऊट (पत्नि के साथ बाहर रहने) की मंजूरी ले ली है ?”
मैनें निर्भीकता
से कहा, “नहीं सर | परंतु घर से चलने से पहले मैंने आपको टेलिग्राम देकर सूचित कर दिया था कि मैं अपनी पत्नि के साथ आ रहा हूँ | आपको मेरा टेलिग्राम मिल गया होगा ?”
आफिसर जलभुनकर, “क्या तुम्हारा सुचित करना ही काफी है ? तुम अपने को समझते क्या हो ? मैं चाहूँ तो अभी तुम्हें जेल में डाल सकता हूँ | तुम्हारा रिकार्ड खराब कर सकता हूँ | तुम आज ही अपनी पत्नी को वापिस घर भेज दो क्योंकि मैं तुम्हे टैम्परेरी ड्यूटी पर बाहर भेजना चाहता हूँ |”
मैनें जले पर नमक छिडकने का काम किया, “साहब मेरी इस वर्ष की सारी छुट्टियाँ समाप्त हो चुकी हैं |”
आफिसर शायद अपनी जिद को पूरा करने के लिए, “इसके लिए मैं तुम्हें 10 दिनों की स्पेशल छुट्टियाँ प्रदान कर देता हूँ |”
यह
जानते हुए कि आगे बहस करना बेकार है, मैं धन्यवाद कहता हुआ आफिसर के कमरे से बाहर निकल आया |
मैनें घर
आकर अपनी पत्नि से विचार विमर्श किया तथा निश्चय किया कि वह 10 दिनों की छुट्टियाँ ,जो उसे अपनी पत्नि को घर छोड़ आने के लिए मिली थी, वहीं
रहकर आराम से बिताएगा |
10 दिनों बाद
जब मैं छुट्टियाँ बिताकर
वापिस अपनी
ड्यूटी पर आया तो आफिसर ने मुझ से पूछा, “ क्या अपनी पत्नि को घर छोड़ आए ?”
मैनें झूठ बोला, “हाँ
साहब |”
आफिसर जैसे मेरी हाँ
सुनाने की इंतज़ार में था बिना कुछ सोचे समझे एकदम हुक्म देकर बोला, “अब मेरे हुक्म , शादी की मंजूरी न लेने, की अवहेलना करने के जुर्म में मै तुम्हे सजा देता हूँ | तुम्हें रोज सुबह बन्दूक को सिर के ऊपर उठाकर तथा कमर पर पिट्ठू लादकर दो मील दौड़ लगानी होगी | जाओ |”
अपने आफिसर की भूल
को सुधारने के लिहाज से अस्सिटैंट ने धीरे से उसके कान में कहा, “सर माफ करना, यह्(चरण ) एक कर्पोरल है सर | इसे कानून के अनुसार शारीरिक यातनाएँ नहीं दी जा सकती | केवल इसकी रिकार्ड बुक में ही दर्ज किया जा सकता है सर |”
आफिसर ऐसी बात सुनकर गुस्से में मेज पर जोर से मुक्का मारते हुए तथा मेरी ओर इशारा करते हुए, “गेट आऊट ( बाहर निकल जाओ) |”
मैं कमांडिंग आफिसर के कमरे से बाहर तो आ गया परंतु मुझे चिंता होने लगी कि अब मेरी हर चाल पर सख्त निगरानी रखी जा सकती है अतः उसे अधिक सतर्कता से रहना होगा | कहते हैं जहाँ चाह वहाँ राह | मेरी सहायता के लिए एयरफोर्स देवलाली के सरकारी मकान आवँटन करने वाले महकमें का एक क्लर्क ,महेंद्र यादव , बहुत सहायक सिद्ध हुआ| उसने
मुझे एयरफोर्स
में एक सिविल अधिकारी के मकान में एक कमरा किराए पर दिलवा दिया | मुझे केवल एक एतियात बरतनी थी कि मैं भूल कर भी उस इलाके में यूनिफार्म पहन कर न जाऊँ | महेंद्र
यादव की वजह से मैनें एक साल बहुत सुखमय जिवन व्यतीत किया |
इसके बाद 23 जनवरी 1970 को मेरे पिताजी श्री राम नारायण गुप्ता का स्वर्गवास हो गया | मैं जब अपने पिता की क्रिया के लिए घर आया हुआ था तो मेरे कमांडिंग आफिसर ने इसकी जाँच के आदेश दे दिए |
अपने कमांडिगं आफिसर की नीचता की सोच को मह्सूस करते हुए मेरा मन उसके प्रति घृणा से भर गया | हालाँकि मैं मन बनाकर आया था कि अपनी पत्नि को कुछ दिनों के लिए घर छोड़ आऊँगा परंतु मेरे कमांडिगं
आफिसर के व्यवहार ने मुझे अपना इरादा बदलने पर मजबूर कर दिया क्योंकि मैं भी हार मानने वालों में से नहीं था | मैनें अपने कमांडिगं आफिसर के नाम एक ओर पत्र डाल दिया जिसमें मैनें अपनी
यूनिट में पत्नि
के साथ रहने की अनुमति प्रदान करने की आज्ञा मागी | जवाब की प्रतिक्षा का समय समाप्त होने के बाद मैं अपनी पत्नि को साथ लेकर एक बार फिर देवलाली पहूँच गया | यूनिट पहूँचने पर, जैसी
उसे आशा थी, उसे खबर मिली कि उसे पत्नि के साथ रहने की अनुमती नहीं दी गई थी | मैं फिर पहले की तरह चोरी छुपे अपनी पत्नि के साथ रहने लगा | इस तरह रहने में काफी खतरा था अतः इस का अंत करने के लिए मैनें एक प्लान बनाई | मैनें अपनी पत्नि के हाथ से एक पत्र लिखवाया |
प्रियतम,
पूज्य पिताजी के स्वर्गवास के उपरांत मुझे यहाँ सूना सूना सा प्रतीत होता है | आपके तीनों बड़े भाई अपने अपने परिवार की देखभाल में ही व्यस्त रहते हैं | पूज्य माता जी भी अपना समय अपने बेटों के यहाँ थोड़ा-थोड़ा समय बैठकर काट लेती हैं परंतु मेरे लिए यहाँ क्या है ? दिन किसी तरह काट लेती हूँ तो रात का सन्नाटा एवं सुनापन काटने को दौड्ता है| अब
मैं यहाँ अकेली नहीं रह सकती | अतः आपसे निवेदन है कि फरवरी के अंत तक आप मुझे लेने आ जाओ अन्यथा 2 मार्च को आप मुझे देवलाली स्टेशन पर लेने आ जाना | मैं पंजाब मेल से पहुँच जाऊँगी |
आपकी
संतोष
यह पत्र मैनें अपने एक साथी को दे दिया, जो छुट्टी जा रहा था | मैनें अपने दोस्त को हिदायत दी कि वह उस पत्र को देहली जाकर पोस्ट कर दे | पत्र मिलने पर मैनें वह पत्र ले जाकर अपने कमांडिंग आफिसर की मेज पर रख दिया |
आफिसर ने पात्र को देखकर पूछा, “यह क्या है ?”
“सर,एक
पत्र |”
“किसका है?”
“मेरी पत्नि का |”
“तब मुझे क्यों दे रहे हो ?”
“क्योंकि इस में जो लिखा है उसके बारे में मैं कुछ नहीं कर सकता |”
“ऐसा इस
पत्र में क्या लिखा है ?”
“खुद पढ लिजिए, सर |”
“आप कह रहे हो कि यह पत्र तुम्हारी पत्नी
ने लिखा है तो भला मैं तुम्हारी
पत्नि का पत्र क्यों कर पढ सकता हूँ ?”
मैनें बात साफ़ करते हुए कहा, “क्योंकि जो इस पत्र में लिखा है वह समस्या केवल आप ही सुलझा सकते हैं |”
आफिसर पत्र खोलकर पढता है | पत्र समाप्त होने पर वह मन ही मन बड़बड़ाता है ( सी-इन-सी के आगमन पर यह कहीं कोई बखेडा न खड़ा कर दे | अगर उनके आगमन पर इसने उनके साथ साक्षात्कार के लिए अर्जी डाल दी तो मेरी मुसीबत आ जाएगी )
यह सब सोचकर वह अचानक उछलकर खड़ा हो जाता है जैसे उसे कोई करंट लग गया हो | “नहीं नहीं ! अपनी पत्नि को लिख दो कि वह यहाँ न आए | मैं तुम्हे उसके साथ रहने की अनुमति नहीं दूँगा |”
मैं पहले से ही जानता था
परन्तु बनते हुए, “मैं जानता हूँ कि आप मुझे मेरी पत्नि के साथ रहने की अनुमति नहीं देंगे इसीलिए तो ये पत्र मैं आपके पास लाया हूँ | क्योंकि अब आप ही इस बारे में कुछ कर सकते हैं |”
आफिसर ने मेरे कहने से
महसूस किया कि वह अपनी जिम्मेदारी उसके सिर पर लाद रहा है तो वह हडबडा कर अपनी
कुर्सी से उठ कर खड़ा होते हुए बोला, “क्यों
क्यों ! मैं इस बारे में क्या कर सकता हूँ ?”
मैं बड़ी मासूमियत से, “सर, मैं आपको बताने वाला कौन होता हूँ कि
आपको क्या करना है या आप क्या कर सकते हैं | आप तो अपनी मर्जी के मालिक हैं| मैं
तो बस इतना बताना चाहता हूँ कि मैं
अपनी पत्नि को स्टेशन पर लेने नहीं जा रहा | इस पत्र के अनुसार वह 02 मार्च को पंजाब मेल से देवलाली पहुँच रही है | मैं आपको केवल सूचना देने आया हूँ | अब उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी आपकी है | (बाहर जाने को मुड़ता है )
आफिसर अपने हाथ का
इशारा करके, “रूको रूको ! यह क्या ड्रामा है ?”
मैं अपने दोनों हाथ
खड़े करके बोला, “साहब जी, मैं इसका पात्र नहीं हूँ | अगर आप इसे मात्र एक ड्रामा समझते हैं तो निश्चिंत बैठे रहें |”
“आखिर तुम चाहते क्या हो ?”
“सर, मेरी
चाहत को तो दिमक कभी का चट कर चुकी है | अतः अब मेरी कोई चाहना नहीं रह गई है | अब तो आपको सोचना है कि आपको क्या करना है |”
आफिसर हताश होकर समर्पण के लहजे में
बोला, “अब मेरे लिए सोचकर करने को बचा ही क्या है | तुमने मेरे इर्द गिर्द मकड़ी की तरह ऐसा जाला बुन दिया है कि उससे बाहर निकलने का केवल एक ही रास्ता बचा है | अर्थात अपना समर्पण | अब मेरे पास तुम्हे अपनी पत्नि के साथ रहने की अनुमति देने के अलावा कोई चारा नहीं है | अतः जाओ और फेमिली के साथ सुखमय जीवन व्यतीत करो |”
मैं धन्यवाद कहता हुआ कमरे से बाहर आ गया | आज दो वर्ष बाद मेरे मन से एक भारी बोझ हटा था | चलते हुए मैं इतना हल्का महसूस कर रहा था जैसे वह उड़ रहा हूँ |
हालाँकि मेरी शादी हुए दो वर्ष बीत चुके थे परंतु मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे आज रात को ही पहली बार वह अपनी सुहागरात का आन्नद प्राप्त करेगा | और अगली सुबह उसने महसूस किया कि
जैसे वास्तव में ही अब हुई है ‘फौजी की शादी’ |
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