मेरी आत्मकथा-5 (जीवन के
रंग मेरे संग) कुछ यादें
हर स्थान पर अजीब प्रवर्ति के व्यक्ति
मिल जाते हैं | बैंगलौर में ट्रैनिंग के दौरान एक बैरक में 30 रंगरूटों के ठहरने
का प्रबंध रहता था | हमारे साथियों में एक रावत नाम का लड़का था | वह देखने में बहुत
ही भोला, मिलनसार, व्यवहार में कुशल एवं ईमानदार था |
परंतु कहते हैं कि
विनाश काले विपरीत बुद्धि | एक बार न जाने उसे क्या सूझी कि अपने एक साथी विध्यार्थी की
कमीज गेन्द की तरह गोल करके अपनी सन्दूक में रख ली | ढूढने पर वह रंगे हाथों
पकड़ा गया | किसी तरह सभी ने मिलकर मामले को रफा दफा करवा दिया अन्यथा उसे जेल जरूर हो जाती
| उसके बाद रावत कई साल हमारे साथ रहा तथा उसने हमें विशवास दिला दिया कि वास्तव
में ही वह हर मायने में एक भद्र पुरूष था |
बैंगलोर में ट्रेनिंग के बाद मैं जब
जम्मू पहुंचा तो मेरी मुलाक़ात मेरे ही गाँव के रहने वाले
एक लडके रघुनाथ सिंह तंवर से हुई | वह वहां चार साल से रह रहा था |
उससे मिलकर बहुत
प्रसन्नता हुई | वह रोज शाम को बन ठनकर पास ही गांधी नगर में
स्थित ईशवरीय ब्रम्ह कुमारी आश्रम में जाया करता था | अपने गांव का होने की वजह से मैं भी उसके साथ जाने लगा | वहां मेरी मुलाक़ात मेरी ही यूनिट के एक लडके वर्मा से हो गयी | वर्मा उस आश्रम
में एक नेक, उच्च प्रवक्ता एवं निष्ठा वान व्यक्ति माना जाता था |
वर्मा बोलचाल में बहुत ही सज्जन एवं
सुशील लगा |
एक दिन हम अपनी यूनिट की कैंटीन में बैठे थे कि उसने दो पीस डबल रोटी के बीच कीमा लगा हुआ
मंगाया और एक पीस
खाने के लिए मेरी और बढ़ा दिया | मुझे पता नहीं था
कि कीमा क्या होता है | मैंने वह खा लिया |
बाद में मुझे इसका
पता चला कि वर्मा ईशवरीय
विद्यालय के अशूल, शराब न पीना, मांस का सेवन न करना, ब्रम्हचर्य का
पालन करना, सादा जीवन व्यतीत करना, प्रजापिता परमात्मा में लीन रहना इत्यादि
कार्यों से कोसों दूर था तो मुझे बहुत पछतावा हुआ | परन्तु इससे वर्मा कि कलई खुल गयी कि एक ईश्वरीय ब्रम्ह कुमारी आश्रम में आस्था रखने वाले व्यक्ति का चलन कैसा है |
इतना ही नहीं आगे चलकर वर्मा ने उसी
आश्रम की परिचालिका की एक लडकी से शादी कर ली तथा अपनी
जिन्दगी नरक बना ली | उसी प्रकार रघुनाथ ने भी एक ब्रम्ह कुमारी से शादी
करली और सुख न पा सका | इससे साबित होता है कि अधिकतर जवान व्यक्तियों के लिए
ब्रम्हचर्य निभाना मुमकिन नहीं होता |
यह कुछ उम्र के बाद तो मुमकिन हो सकता है
परन्तु जवानी में जवान आदमी और औरत के बीच में
आपस के प्राकृतिक आकर्षण को दबाए रखना असंभव सा प्रतीत होता है | इसी लिए इस संस्था
का मुख्य ध्येय ' चालचलन खो गया तो सब कुछ खो गया ' की कसौटी पर खरा
उतरना लोहे के चने चबाना जैसा होता है | क्योंकि मेरे विचार से इस
संस्था के जवान सदस्य ब्रम्हचर्य का पालन करने में अमूमन नाकामयाब रहते हैं
| वर्मा और रघुनाथ की हरकतों तथा अपने को उस वातावरण में ढालने में
असमर्थ समझ मैनें आश्रम जाना ही छोड़ दिया |
जम्मू में हमारे साथ भेंटे नाम का एक
लड़का था | शिफ्ट डयूटी के कारण वह कभी शाम को डयूटी जाता था तो कभी रात को |
जब भी उसकी ऐसी
डयूटी होती थी वह सुबह पांच बजे ही अपना मग अपनी चारपाई के
पाए पर रख देता था तथा खुद मुंह ढके सोया रहता था | जिन लोंगो को ड्यूटी पर जाना होता था वे मेस से नाशता करके लौटते वक्त
अपने मग में चाय भर लाते थे और उसके मग में उड़ेल देते थे |
वह थोड़ी थोड़ी देर
में धीरे से अपनी रजाई से अपना हाथ ऐसे बाहर
निकालता था जैसे एक कछुआ खाने के लिए अपनी गर्दन
अपने खोल से बाहर निकालता है और चाय से भरा मग रजाई के अन्दर लेकर गटागट
पीकर फिर उसे यथा स्थान रख देता था जिससे मग को फिर कोई चाय से भर दे |
उसका यह क्रम तब
तक चलता रहता था जब तक कि मेस में चाय मिलनी बंद नहीं हो
जाती थी |
फ़ौज में फारवर्ड एरिया कहे जाने वाले इलाकों में शराब पीने का प्रचलन बहुत अधिक होता है | वहां होने वाली पार्टियों में अक्सर कोकटेल की पार्टी फ्री होती है | ऐसे मौकों पर अधिकतर सैनिक जरूरत से ज्यादा पीकर बहक जाते हैं और बेसुध होकर औंधे मुंह इधर उधर गिर जाते हैं | मुझे याद है कि इन लोंगो में हमारे साथियों में एक सूरी नाम का लड़का हुआ करता था जो कोकटेल की पार्टी के बाद हमेशा ही लुढ़का मिलता था और उसके साथियों को उसे उसके गंतव्य स्थान तक पहुंचाना पड़ता था | ऐसे लोग उस प्रवर्ति के लोगों में आते हैं जो घी बटंता देख, अंजाम से बेखर उसे लेने के लिए, अपनी झोली ही आगे बढ़ा देते हैं | और फिर घी को संभालने के लिए अपने आप तो मुसीबत में पड़ते ही हैं औरों को भी परेशानियों में डाल देते हैं |
फ़ौज में फारवर्ड एरिया कहे जाने वाले इलाकों में शराब पीने का प्रचलन बहुत अधिक होता है | वहां होने वाली पार्टियों में अक्सर कोकटेल की पार्टी फ्री होती है | ऐसे मौकों पर अधिकतर सैनिक जरूरत से ज्यादा पीकर बहक जाते हैं और बेसुध होकर औंधे मुंह इधर उधर गिर जाते हैं | मुझे याद है कि इन लोंगो में हमारे साथियों में एक सूरी नाम का लड़का हुआ करता था जो कोकटेल की पार्टी के बाद हमेशा ही लुढ़का मिलता था और उसके साथियों को उसे उसके गंतव्य स्थान तक पहुंचाना पड़ता था | ऐसे लोग उस प्रवर्ति के लोगों में आते हैं जो घी बटंता देख, अंजाम से बेखर उसे लेने के लिए, अपनी झोली ही आगे बढ़ा देते हैं | और फिर घी को संभालने के लिए अपने आप तो मुसीबत में पड़ते ही हैं औरों को भी परेशानियों में डाल देते हैं |
मुझे एक बार फिर यालाहंका- बैंगलोर जाना पड़ा | बैगलोर में इस बार मेरी नियुक्ति
डेकोटा हवाई जहाज के स्क्वाड्रन में हुई थी |
यहाँ मुझे पहली बार हवाई
जहाज में बैठकर उड़ने का मौका मिला था |
एक बार आगरा वायु स्टेशन
पर मिलट्री के पैराशूट से कूदने वालों को ट्रेनिंग दी जानी थी | उसके लिए हम कई सैनिक डेकोटा जहाजों से आगरा आए थे | वहाँ पर पैकेट, दो तीन तरह के हेलिकोप्टर तथा अन्य
जहाजों में उड़ने का मौका मिला क्योंकि जहाज से पैराशूट लेकर कूदने वालों की सहायता के लिए प्रत्येक जहाज में
दो चार सैनिकों का होना आवशयक होता है |
छतरी लेकर कूदने वाले कभी कभी तो हृदय विदारक महौल बना देते
हैं | उनको कूदने से डर लगता है परंतु
जब जबर्दस्ती उनको जहाज से धक्का देकर बाहर ढ़केलना पड़ता है तो बेदर्दी
से काफी मस्सकत करनी पड़ जाती है |
सेहत कमजोर होने की वजह से इस बार मैं बैंगलोर का मौसम बर्दास्त न कर पाया और मुझे दमा हो गया |दमें की तीव्रता इतनी अधिक होती थी की मुझे हफ्तों तक आक्सीजन का सहारा लेना पड़ता था | यहाँ मेरा परिवार भी मेरे साथ ही
था जिसमें एक लड़की, प्रभा तथा दूसरा लड़का, प्रवीण था | एक बार प्रभा गिर गई तो उसका होठ फट गया था | हम उसे लेकर वहाँ के सेना के हस्पताल में ले गए | डयूटी पर तैनात कम्पाउडर ने डाक्टर को बुलाने की खबर भेज
दी | फिर कम्पाउडर ने बड़े ही अपनेपन
से मुझे कहा, "आपकी लड़की का मामला है | अगर आप कहो तो डाक्टर के आने से पहले मैं इसके होठ की
सिलाई कर देता हूँ वरना इसके होठ पर हमेशा के लिए निशान रह जाएगा |"
उसके बोलने के विशवास को भाँपते हुए मैनें उसे अनुमती दे दी
| और वह अपने विशवास में खरा उतरा | मेरी लड़की के होठ देखकर यह पता ही नहीं चलता कि कभी उस
पर चोट लगी थी |
मैं तो दमे की वजह से बैंगलोर में नकारा सा ही रहता था अतः सब
मुसीबतों को मेरी पत्नी को ही अकेले झेलना पड़ता था | उन्होने
बच्चों की, घर की तथा मेरी देखभाल में कभी
कोई कमी नहीं रखी | हर काम उन्होने बखूबी निभाया तथा
कभी ऊफ तक नहीं की थी |
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