मेरी आत्मकथा-7 (जीवन के रंग मेरे संग) जहां चाह वहां राह
जोधपुर में मेरा एक
खास मित्र पान सिहँ न्याल रहता था | मैं उसी के घर जाकर ठहर गया था | रात को न्याल की पत्नि की तबियत अचानक गड़बड़ा गई तथा उसे वायु सेना के अस्पताल ले
जाना पड़ा | न्याल अस्पताल के अन्दर अपनी पत्नि के पास बैठा उसकी देखभाल कर रहा था तथा मैं
बाहर आकर अस्पताल के बगीचे में बैठ गया था |
मैं अपने सोच में मग्न था कि देखो किस्मत क्या क्या खेल खिलाती
है | मैं अपनी परिक्षाओं की पूरी तैयारी के साथ जोधपुर में हूँ परंतु सुबह परीक्षा नहीं
दे पाऊँगा | मैं अपने ख्यालों में इस कदर खोया था कि मुझे अपने आसपास होने वाली गतिविधियों
का लेश मात्र भी आभाष नहीं हो रहा था |
एक सफेद पोश जवान इकहरे
बदन का सुन्दर सा लड़का मेरे पास खड़े होकर शायद मुझे चार पाँच आवाजें लगा चुका था | जब मेरी तंद्रा नहीं
टूटी तो कोई चारा न देख मेरी तंद्रा तोड़ने के लिए उसने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया | अचानक किसी के स्पर्श
से मैं होश में आया तथा मैने अपनी गर्दन उठाकर उपर देखा | सामने खड़ा व्यक्ति
चाँद की रोशनी में सफेद कपड़े पहने एक फरिशता जैसा प्रतीत हो रहा था | इससे पहले की मैं कुछ
प्रतिक्रिया दिखाता उस सफेद पोश व्यक्ति ने मुस्कराते हुए पूछा, "कहो क्या बात है, बहुत गहन सोच की मुद्रा में थे ?"
मैने खड़ा होते हुए
कहा, "बस यूँ ही |"
"नहीं नहीं कुछ तो तुम्हारी समस्या का गहन कारण है जिसको सुलझाने में तुम शायद अपने
आप को असमर्थ पा रहे हो ?"
सफेदपोश के पूछने के
अन्दाज मात्र से मैने अन्दाजा लगा लिया था कि लड़का काफी सुलझा हुआ है | हालाँकि मेरा मन नहीं
था कि किसी अंजान व्यक्ति से अपनी समस्या के समाधान के लिए उससे चर्चा की जाए परंतु
सफेदपोश की आँखों की चमक तथा निस्वार्थ भाव से पूछने के लहजे से मैं अपने आपको रोक
न सका तथा उसके सामने अपना दिल खोलना शुरू कर दिया |
"सर, मैं पिछले साल तक यहीं जोधपुर में कार्यरत था |"
"हूँ |"
"मैने यहाँ रहकर पिछले वर्ष एम.ए.प्रथम वर्ष की परीक्षा उतीर्ण कर ली थी |"
"अच्छा |"
"अब कल से मेरे एम.ए.फाईनल के पेपर शुरू हो रहे हैं |"
"तो आप उसके लिए आए हैं ?"
"सर, आया तो हूँ परंतु परीक्षा नहीं दे पाऊँगा |"
सफेदपोश मेरी बात नहीं
समझ्ता था अतः बोला, "क्या अटपटी बातें कर रहे हो | परीक्षा के लिए आए हो और कह रहे हो कि परीक्षा नहीं दे सकता
|"
"मैं ठीक कह रहा हूँ सर |"
"कैसे ?"
"क्योंकि परीक्षा के लिए मुझे छुट्टियाँ नहीं मिल पाई हैं |"
"तुम भारतीय वायु सेना में हो ?"
"हाँ सर |"
"तुम्हारी युनिट कौन सी है ?"
"सर, देहली में 60 स्कवैड्रन |"
मेरे छुट्टियाँ न मिलने
की कहने से शायद सफेदपोश के मन में कुछ संशय उपजा इसलिए उसने कई प्रशन एक साथ पूछे, "छुट्टियाँ क्यों नहीं
मिली ? और हाँ अगर छुट्टियाँ नहीं मिली तो तुम यहाँ कैसे आए हो तथा क्या करने आए हो ?"
सफेदपोश के संशय का
निवारण करते हुए मैने बताया, "सर, मुझे केवल तीन दिनों
की छुट्टियाँ प्रदान की गई हैं |" मैने वह पत्र जो मुझे अपनी यूनिट के कमांडर ने यूनिवर्सिटी में जमा कराने के
लिए दिया था, सफेदपोश की तरफ बढ़ाते हुए कहना जारी रखा, "जिससे मैं यह पत्र यहाँ की युनिवर्सिटी में जमा कर आऊँ |"
सफेदपोश मेरा पत्र
थाम लेता है तथा खोलकर उसे पढ़ने लगता है | पत्र को पढ़कर उसके चेहरे पर एक कटू मुस्कान बिखर जाती है | थोड़ी देर में ही शायद
उसने अपना निर्णय ले लिया था | तभी तो सफेदपोश ने
मेरे से दबंग आव|ज में पूछा, "क्या तैयारी पक्की है ?"
"हाँ सर |"
"कौनसी डिविजन की उम्मीद है ?"
मैनें आत्म विशवास
के साथ कहा, "प्रथम अन्यथा द्वितीय तो कहीं नहीं गई |"
सफेदपोश ने एक बार
फिर मुझे मेरे विशवास की परीक्षा लेने के लिए पूछा, "पक्का ?"
मैने भी बड़े आत्मविशवास
से कहा, "सोलह आने सर |"
मतलब आजकल का 100 परसैंट कहकर सफेदपोश
ने एक जोर का ठहाका लगाया और कहा, "कल सुबह यहाँ आ जाना
और पूछना मि.त्यागी |"
इससे पहले कि मैं आगे
कुछ पूछता वह सफेदपोश, ओ.के. तुम्हें तुम्हारी परिक्षाओं के लिए शुभ कामनाएँ कहता हुआ, अस्पताल के अन्दर चला
गया | और मैं किंकर्तव्यमूढ उसे जाता देखता रह गया |
अगली सुबह अस्पताल
में जाकर पता करने पर मुझे बताया गया कि मि. त्यागी एक डाक्टर हैं तथा कमरा नम्बर 10 में बैठते हैं | मैने कमरे के सामने
जाकर अन्दर झाँका तो पाया कि वही रात वाला सफेदपोश नौजवान था परंतु अब वह भारतीय वायु
सेना की वर्दी धारण किए हुए था |
मैने उसके कमरे का
दरवाजा खटखटा कर अन्दर दाखिल होने
की आज्ञा माँगी, "क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ श्रीमान ?"
अपने काम में मशगूल
आफिसर बिना अपनी गर्दन ऊपर उठाए बोला, "हाँ हाँ आईये |"
इसके साथ ही उसने उसी
अवस्था में रहकर मुझे बैठने के कहने के अन्दाज में एक कुर्सी की तरफ इशारा कर दिया
| जब उसके हाथ का काम
समाप्त हो गया तो वह मेरी और मुखातिब होकर बोला, "आ हा आप हो रात वाले
?"
"हाँ श्रीमान जी |"
उसने मेरी तैयारियों
के लिए अपने को आशवस्त करने के लिहाज से पूछा, "तो तुम्हारी पूरी तैयारी
हैं ?"
"हाँ जी |"
"आशा है मुझे निराश नहीं करोगे ?"
मैनें विशवास दिलाकर
कहा, "नहीं सर, कभी नहीं |"
"100
% ", कहकर आफिसर जोर से हँस पड़ा तथा मैं भी उसकी हँसी में शामिल होए
बिना न रह सका |
ओ.के. आज से आप मेरे
अस्पताल में भर्ती हो तथा आपको परीक्षा में बैठने की छूट है | फिर कुछ सोचकर बोला, "शायद आज आपकी पहली परीक्षा है | जाओ खुशी खुशी पर्चा दो | मेरी शुभ कामनाएँ आपके साथ हैं |"
आफिसर को धन्यवाद कहता
हुआ मैं कमरे से बाहर आया तथा पेपर देने के लिए जोधपुर विशव विद्यालय की और उड़ चला
|
जोधपुर के मिलिट्री
अस्पताल में भर्ती रहकर मैनें बड़े इत्मीनान से अपनी परिक्षाएँ समाप्त की तथा त्यागी
जी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करके अपनी यूनिट को वापिस चल दिया |
मुझे यूनिट में आकर
पता चला कि वहाँ का माहौल मेरी करतूत के कारण बहुत बदल चुका था | चारों और खामोशी थी
जैसी किसी बड़े भयानक तूफान आने से पहले व्याप्त हो जाती है | मेरे से सभी सैनिक
साथी कन्नी काटते से नजर आ रहे थे | कमांडिंग आफिसर माथुर ने मुझे भगौड़ा घोषित कर दिया था | सिविल पुलिस को इसकी
सूचना भेजने की तैयारी चल रही थी |
जैसा कि एक तानाशाह
के राज्य में होता है ठीक उसी प्रकार फौज में भी देखने को मिल जाता है | फर्क इतना होता है
कि एक तानाशाह अपने सैनिक को बागी घोषित करार देकर मौत के घाट उतार सकता है परंतु फौज
में एक यूनिट का कमांडिंग आफिसर इस हद तक न जाकर अपने आधीन सैनिक से रूष्ठ होने पर
उसकी रोजमर्रा की जिन्दगी नरक बना सकता है |
अर्थात यूनिट के कमांडिंग
आफिसर के व्यवहार से उस सैनिक पर चारों और से कहर सा टूट पड़ता है | उस सैनिक के साथी उससे
किनारा करने लगते हैं क्योंकि उसका हर सैनिक साथी इस बात से डर जाता है कि कहीं उस
खास साथी से बात करने पर वह भी अपने कमांडिंग आफिसर की नजरों में न आ जाए और बेवजह से उसके कोप का भाजन बनना पड़े | इसलिए, कारण कुछ भी हो, जो सैनिक अपने कमांडिंग
आफिसर की नजरों में गिर जाता है वह अकेला पड़ जाता है | मेरे साथ भी ऐसा ही
हुआ |
जैसा की फौज में होता
है कि जब कोई सैनिक छुट्टियों के बाद या टैम्परेरी डयूटी से वापिस लौटता है तो उसके
सभी संगी साथी उसे घेर कर उससे पूरी जानकारी लेकर ही दम लेते हैं | हाँलाकि मेरे सभी साथियों ने मुझे यूनिट में देखा जरूर परंतु किसी की भी मेरे नजदीक
आकर यह पूछने कि हिम्मत नहीं हुई कि मैं इतने दिन रहा कहाँ | मुझे अपने साथियों
के ऐसे दयनीय एवं दास्ताँ जैसे व्यवहार पर बहुत रोष तो आया परंतु फौज के वातावरण को
सोचकर अपने में रह गया कि कोई नहीं चाहेगा 'आ बैल मुझे मार' |
सुबह की हाजिरी परेड़
में मुझे उपस्थित देखकर शायद मेरे आफिसर से सहा नहीं जा रहा था | मैं साफ भाँप सकता
था कि मुझे देखकर माथुर का चेहरा एकदम तमतमा गया था | उसके जबड़े भींच गए
थे | हाथ की मुठ्ठियाँ बन्द हो जाने से उसकी नसें फूल गई थी | उसकी जबान कुछ कहना
चाहती थी परंतु दिमाग द्वारा कहने का सही समय न समझ कुछ बोल न सकी | माथुर अपनी व्यग्रता
दबाने पर मजबूर था | मैं महसूस कर रहा था कि मेरे सभी साथी चोर नजरों से कभी माथुर को देख रहे थे तो
कभी मुझे निहार रहे थे | शायद माथुर को मेरी
उपस्थिति बर्दास्त नहीं हो पा रही थी इसीलिए उसने पूरे काम का निपटारा किए बिना ही
परेड़ का विसर्जन कर दिया था | हाजिरी परेड़ के विसर्जन
पर माथुर के फूले नथुने और छाती में चलती धौकनी साफ बता रही थी कि वह कितने गुस्से
में था |
वह केवल इतना कहकर कि चरण सिहँ गुप्ता इसके बाद आप मेरे आफिस
में हाजिर हों, पैर पटकता हुआ, जल्दी जल्दी, अपने आफिस में घुस गया |
पहले से ही मेरे साथी
मेरे बारे में सहमें हुए थे कि माथुर के आज के रवैये को देखकर तो सभी की सिटी-पिटी
गुम हो गई | सभी की मूक नजरें दर्शा रही थी कि जैसे कह रही हो, "गुप्ता आज तो तू गया काम से |"
परंतु मेरा चेहरा देखकर
मेरे सैनिक साथियों को आश्चर्य के साथ साथ सांत्वना मिली होगी क्योंकि वह बयाँ कर रहा
था कि मुझे किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं थी तथा मैंने कोई गल्त काम नहीं किया था
| मैं निर्भिक अपने साथियों
को अपनी चिरपरिचित मुस्कान दिखाते हुए आफिसर कमांडिंग माथुर के आफिस की और बढ़ गया |
मैंने सल्यूट मारकर
अपने कदम अन्दर रखे ही थे कि यूनिट के एडजूटैंट ने सवाल किया, "जानते हो तुम भगौड़े घोषित हो चुके हो ?"
अपनी अनभिज्ञता जताते
हुए मैंने जवाब दिया, "नहीं साहब |"
माथुर जिससे निचलाया
बैठा नहीं जा रहा था चिल्लाया, "यही सत्य है |"
मैंने कोई उत्तेजना
न दिखाई तथा बड़ी सहनशीलता से बोला, "होगा साहब |"
मुझे किसी प्रकार भी
विचलित होते न देख माथुर गुर्राया, "लगता है तुम्हें अपनी
गल्ती की कोई परवाह नहीं है ?"
मैंने अपने अन्दाज
में जवाब दिया, "साहब, जब मैंने कोई गल्ती की ही नहीं है तो मुझे किस बात का डर |"
गुस्से में माथुर से
बोला नहीं जा रहा था | वह बेचैन होता जा रहा था | इसलिए एडजूटैंट ने पूछा, "तुमने कोई गल्ती नहीं की ?"
"नहीं साहब |"
"तुम्हें केवल तीन दिनों की छुट्टियाँ प्रदान की गई थी न ?"
"हाँ साहब |"
"और तुम आज एक महीने बाद आए हो ?"
"हाँ साहब |"
"यह गलती नहीं है तो क्या है, वैसे तुम इतने दिन कहाँ थे ?"
मैने बिना किसी झिझक
के जवाब दिया, “अपनी एम.ए.फाईनल की परिक्षाएँ दे रहा था |"
आफिसर ने आँखे तरेर
कर कहा, "तुम्हें जरा भी डर नहीं लगा कि तुम बिना छुट्टियों की मंजूरी
के ठहर कर परीक्षा दे रहे हो ?"
"साहब मैं फौज से अनुपस्थित नहीं था |"
"क्या पहेलियाँ बुझा रहे हो, साफ साफ बताओ ?"
मैनें सभी को एक जोर
का झटका धीरे से देने के अन्दाज में बताया, "साहब मैं बिमार था
और जोधपुर अस्पताल में भर्ती था |"
वास्तव में ही जैसे
तीनों आफिसरों के सिर पर कोई वज्रपात हो गया हो, "क्या !" कहकर
तीनों के मुहँ खुले के खुले रह गए तथा अपना अपना सिर पकड़ कर एक दूसरे का मुहँ ताकने
लगे |
कमरे में थोड़ी देर
के लिए मौत जैसा सन्नाटा व्याप्त हो गया | फिर मैने अपनी जेब से दो कागज निकालकर एडजूटैंट की तरफ बढ़ाकर मौन तोड़ते हुए कहा, "साहब ये हैं मेरे अस्पताल में भर्ती होने तथा अस्पताल से छुट्टी मिलने के प्रमाण
पत्र |"
मरे हाथों से, जैसे उनमें थोड़ी देर पहले दिखाई देने वाला
जोश समाप्त हो चुका था, आफिसर ने दोनों कागजों को लेकर पढ़ा |
पढ़कर थोड़ी देर के लिए
तीनों आफिसर किंकर्तव्यमूढ़ होकर रह गए | परंतु बाद में माथुर ने कुछ सोचकर पूछा, "हाँ, तो तुम अपनी परिक्षाएँ
कैसे दे पाए क्योंकि अभी तुमने बताया था कि तुमने अपनी एम.ए. की परिक्षाएँ दी हैं ?"
वह बोलता गया, जब तुम अस्पताल में भर्ती थे तो .......?
जब मुझे लगा कि माथुर
आगे नहीं बोलेगा तो मैनें बड़ी बेतकुल्लफी से बताया, "साहब शक्कर खोरे को
शक्कर मिल ही जाती है | मैं नहीं जानता कि मैनें परिक्षाएँ कैसे दी, बस दे दी |"
मेरे कहने का अन्दाज
देखकर तीनों आफिसर जलभुन कर रह गए और आपस में मंत्रणा करने लगे | इसके बाद माथुर गुस्से
में आग बबूला होकर चिल्लाया, "आई विल गेट यौवर एगजाम
कैंसल्ड (मैं तुम्हारी दी हुई परीक्षा को रद्द घोषित करवा दूगाँ)|”
मैं अपने कमांडिंग
आफिसर के गुस्से में अनाप-सनाप बिना सोचे कहने की मूर्खता पर मन ही मन बिना हँसे रह
न सका | फिर अपना संयम बरतते हुए बड़ी नर्मी से निवेदन किया, "साहब जोधपुर यूनिवर्सिटी आपका महकमा नहीं है जहाँ आप जो चाहें कर सकते हैं | मैनें खुद परीक्षा
दी हैं चाहे जैसे भी दी हों | आप मेरी परीक्षा को किसी हालत में भी रद्द नहीं करा सकते अन्यथा कोशिश करके देख
लो |"
मेरी ऐसी वाणी सुनकर
माथुर आपे से बाहर हो गया | वह अपनी कुर्सी से ऐसे उठा जैसे किसी ने नीचे से कील चुभा दी हो तथा दहाड़ा, "यू गेट आउट(तुम बाहर निकल जाओ) |"
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