Tuesday, October 3, 2017

मेरी आत्मकथा- 12 (जीवन के रंग मेरे संग) काम ही पूजा

मेरी आत्मकथा- 12 (जीवन के रंग मेरे संग) काम ही पूजा

खजाने की किताबों में मेरे द्वारा लिखित लिखाई कों मोती पिरोने की संज्ञा दी जाती थी | उसको देखते हुए खजाने से बाहर आने पर मुझे शाखा का जनरल लेजर लिखने का काम सौंप दिया गया था जिसको मैंने पांच साल तक बखूबी निभाया |
विदेश व्यापार शाखा में उस समय स्टेशनरी, पानी, दवाई तथा आने जाने इत्यादि के भत्तों के बिल बनाने वाले लिपिक से सभी ग्राहक परेशान थे | उसे ग्राहकों से खाने पीने की बुरी लत थी | जब तक उसकी जेब गरम नहीं हो जाती थी वह किसी के काम की तरफ देखता भी नहीं था | वास्तविकता तो यह थी कि अपनी स्वार्थ सिद्धी के साथ साथ अपनी सीट बचाने के लिए, वह नेताओं की भूख को शांत करने के लिए, ऐसा करने पर मजबूर था | इसके बावजूद वह अपने मन के मुताबिक़ उनके काम को अंजाम देता था | इस तरह वह कई कई दिन लोगों को यूं ही टिरकाता रहता था |  
इन्हीं दिनों कंसल नाम का एक व्यक्ति उस सैक्शन का नया अधिकारी नियुक्त हुआ | थोड़े दिनों में ही कंसल ने अपनी सैक्शन के बारे में सब कुछ जान लिया कि किस सीट पर कौन कैसे काम करता है | वह एक ईमानदार व्यक्ति था | उसने भांप लिया कि बिल वाली सीट वाला लिपिक भ्रष्टाचार में लिप्त है | इस कृतय पर लगाम लगाने की सोच कंसल ने एक दिन मुझे बुलाया, मैं आपको बिल बनाने का कार्य सौंपना चाहता हूँ |
साहब मुझे कोई एतराज नहीं है परन्तु..........?
परंतु क्या ?
साहब मुझे इस सीट पर कोई टिकने नहीं देगा |
कंसल ने कुछ कहने से पहले मेरी और आश्चर्य से ऐसे निहारा जैसे कहना चाहता हो कि क्या तुम जानते नहीं कि मैं इस सैक्शन का अधिकारी हूँ और मेरे फैसले के खिलाफ कोई कुछ नहीं कह सकता, आप उसकी चिंता न करें, मैं हूँ न |
अगले दिन सुबह मुझे बिल वाली सीट पर काम करते देख विदेश व्यापार शाखा के नेता तथा उसके साथी निकलते बड़ते ऐसे निहार रहे थे जैसे आज कोई अजीब जानवर शाखा में घुसकर उस स्थान पर बैठ गया था |
मैनें निश्चिन्तता से अपना काम शुरू कर दिया तथा बिना किसी अधिक परिश्रम किए चार पांच दिनों में ही सारे बकाया बिलों का भुगतान कर दिया | इसके बाद नए आने वाले बिलों का भुगतान अगले दिन ही किया जाने लगा था | अब ग्राहक जब भी आते उनके भुगतान के चैक तैयार मिलते थे | इस परिवर्तन को देखकर वे सभी बहुत खुश एवं आश्चर्य चकित थे क्योंकि इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था कि उनके बिल जमा करने के अगले दिन ही उन्हें भुगतान किया गया हो | उनको तो जेब गर्म करने के बावजूद कई कई दिनों तक मिन्नतें करनी पड़ती थी जब कहीं जाकर उनकी सुनवाई होती थी | उनको तो अभी तक यह भी पता नहीं चल पाया था कि उनका काम करने वाला शख्स कौन था | उनको महसूस हुआ कि उनके साथ तो वैसा ही कुछ हो रहा है जैसा एक मोची के साथ हुआ था | 
एक उच्च कोटि के जूते बनाने वाला मोची था | समय के साथ वह बूढा हो चला | अब उससे अधिक काम नहीं होता था | इसलिए वह रात को जूतों की कटाई करके रख देता था तथा सुबह जल्दी उठकर बड़ी लगन से उनकी सिलाई करने में लग जाता था फिर भी उससे काम पूरा नहीं होता था | एक दिन जब वह सुबह उठा तो यह देखकर उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि उसके रात की कटाई वाले सारे जूते सिले सिलाए रखे हैं | यह सिलसिला तीन चार दिनों तक चलता रहा | अगली रात मोची ने छुपकर यह राज जानने की कोशिश की तो पाया कि कुछ बौने रात को उनके सो जाने के बाद यह काम करते थे |
इसी तरह बैंक के ग्राहकों ने यह पता करने के लिए कि उनका काम इतना जल्दी क्यों और कैसे होने लगा था वे सभी मिलकर एक दिन सुबह ही विदेश व्यापार शाखा में आ धमके | उन्होंने देखा कि एक अजनबी व्यक्ति(मैं)बड़ी तल्लीनता से उनके बिलों के भुगतान करने में मशगूल था | थोड़ी ही देर में मैनें काम निबटाया और अपना थैला उठाकर बाहर जाने लगा |
असल में मेरा काम करने का तरीका इतना तरतीब से था कि मैं उसे दोपहर के खाने से पहले ही पूरा कर लेता था परन्तु मेरे आफिसर खुराना के लिए वह काम बोझल बन जाता था | क्योंकि उन बिलों को पास करना उसके लिए जी का जंजाल बन जाता था | इसलिए मेरी काम करने की चाल को धीमी तथा अपना बोझा हल्का करने के लिए खुराना ने एक दिन मुझे कहा, इस सीट पर बैठ कर तुम केवल दोपहर तक ही काम किया करो तथा उसके बाद आपकी जो मर्जी किया करो | 
मुझे बाहर जाते देख बैंक में आए सभी ग्राहक मेरा रास्ता रोककर खड़े हो गए और हाथ जोडकर मेरा धन्यवाद करते हुए बोले, हम आपको कुछ देना चाहते हैं |
अनजान व्यक्तियों के समूह को अपने सामने पाकर मैं सकते में आ गया और सवाल किया, क्या मतलब ?
मतलब कुछ तोहफा |
तोहफा ! परन्तु आप हैं कौन ?
हम आपके बैंक के ग्राहक हैं |
तो |
वे सब एक साथ बोले, हमें अपना काम कराने के लिए पहले बहुत गिड़गिड़ाना पड़ता था ऊपर से भेट पूजा भी करनी पड़ती थी परन्तु अब तो बिना कुछ किए ही हमारा काम समय से पहले ही पूरा मिलता जाता है |
तो ?
सभी ग्राहक एक साथ, कम से कम हमारे तोहफे तो स्वीकार करें |
देखो आपका काम करना मेरी ड्यूटी है तथा उसके लिए बैंक मुझे तनखा देता है |
यह हम अपनी खुशी से करना चाहते हैं |
परन्तु मुझे आपके तोहफे कबूल कर लेने से खुशी नहीं होगी, कहकर मैं उनकी आँखों से ओझल हो गया |
जैसा कि मुझे पहले से ही अंदेशा था, मुझे उस सीट पर पन्द्रह दिनों से अधिक टिकने नहीं दिया गया | उस सैक्शन का अधिकारी कंसल भी इस तबादले को रोक नहीं पाया |
फन पिटे सांप की तरह पटनी को मुझे फंसाने के लिए मौके की तलाश थी | शाखा में सभी कर्मचारियों की डिविजन बदलने का समय आ गया था | वित्त प्रयोजना शाखा का मुख्य अधिकारी बहुत ही खङूसं किस्म का इंसान माना जाता था | उसकी डिविजन में तबादले को एक सजा की संज्ञा दी जाती थी | पटनी ने कोई मौक़ा नहीं गवांया और मेरा नाम उस डिविजन के लिए भेज दिया | जब बैंक के और कर्मचारियों को इस बात का पता चला तो वे मुझे उकसा कर इस तबादले का विरोध करने की सलाह देने लगे |
सिंघल बोला, आप उस डिविजन में जाने से मना कर दो |
क्यों |
भाटिया आगे आया, क्योंकि उस डिविजन का प्रबंधक बहुत शख्त है |
मैंने सवाल किया, यह तो कोई ठोस कारण नहीं हुआ फिर किसी को तो उस डिविजन में जाना ही पडेगा ?
शर्मा ने अपनी कही, पर आप ही क्यों जाओ और भी तो बहुत हैं इस शाखा में ?
और मैं कहूँ कि आप तीनों भी उसी शाखा के कर्मचारी हो तो, मैंने तीनो की तरफ देखकर उनके चेहरों को पढ़ना चाहा |
वे तीनों एक साथ टेढा मुहं बनाकर बोले, पटनी में इतनी हिम्मत नहीं कि हमें वह दोबारा उस डिविजन में भेज सके |
इसका मतलब आप भुगत भोगी हो | आप उस डिविजन का स्वाद चख चुके हो |
फिर मैंने मजाक के तौर पर उनको कहा, जैसे शुरू शुरू में आम खट्टे होते हैं परन्तु ज्यो ज्यो वे पकते जाते हैं तो मीठे होते जाते हैं उसी प्रकार हो सकता है  जब आप उस डिविजन में गए होंगे तो उस समय उस डिविजन के  आम पके नहीं होंगे इसलिए आपको वहाँ सब कुछ खट्टा खट्टा लगा होगा |
तो तुम वहाँ के आम चखकर ही हमारी बात मानोगे ?”, और सभी ने जोर का ठहाका लगाया |
उनकी हंसी रूकने पर मैंने बड़े शयम से उन्हें समझाया, देखों भाईयो मैं आपकी तरह बैंक का एक कर्मचारी हूँ और बैंक के किसी भी काम के लिए मुहं नहीं मोडता, चाहे वह कैसा भी या कहीं भी हो | 
वित्त परियोजना विभाग में काम करते हुए मैंने थोड़े दिनों में ही जान लिया कि उस डिविजन के प्रबंधक का मुख्य ध्येय था ‘पहले काम फिर आराम’ तथा ‘सुबह समय पर आओ और काम पूरा करके छुट्टी पाओ’ | बैंक के कर्मचारियों ने उस डिविजन का हऊवा इस लिए बना रखा था क्योंकि वे उस प्रबंधक की तीन बातों से सहमत न होकर केवल एक ही बात से सहमत हो पाते थे और वह थी केवल ‘आराम’ | यह मुहावरा प्रसिद्ध है कि ‘रोम में वैसा ही करो जैसा रोम के निवासी करते हैं’ इसलिए मैनें भी उस डिविजन के प्रबंधक की मनोइच्छा का मान रखते हुए जल्दी ही अपने को उसके रंग में ढाल लिया |  
अब मैं दूसरी डिवीजनों की भेड़ चाल छोकर सुबह समय पर अपने आफिस पहुँच कर अपने काम में लग जाता तथा दोपहर तक उस दिन का काम समाप्त कर देता था | जैसे बिलों की सीट पर बहुत सारा काम बकाया पड़ा था यहाँ भी वही हाल था | उन दिनों अमरीका इराक युद्ध चल रहा था | इराक में वैसे तो बहुत सारी भारतीय कंपनियों का काम चल रहा होगा परन्तु भारतीय स्टेट बैंक की विदेश व्यापार शाखा के माध्यम से एक बहुत बड़ी कंपनी इमारत बनाने का कार्य कर रही थी | अमरीका इराक का आपस में, दूसरे देशों की मध्यस्ता से, कई बार युद्ध विराम तो हुआ परन्तु वह स्थाई न रह सका | इस वजह से पिछले दस वर्षों से उसके ॠण खातों का कोई हिसाब नहीं हो पाया था | और शायद न ही उसको पूरा रखने की तरफ किसी ने ध्यान दिया था |
दोपहर के बाद अपने खाली समय में बिना किसी से पूछे तथा बताए मैनें उस दस साल से बकाया पड़े खातों पर ब्याज वगैरह लगा कर उनहें पूर्णता तक पहुंचा कर रख लिया | जब उसकी जरूरत पड़ी तो उन खातों को अपने सामने मुक्कमल देखकर उस डिविजन का प्रबंधक बहुत खुश हुआ तथा और कर्मचारियों की तरह का अंकुश मेरे ऊपर से हटा लिया | फिर तो बाकी के तीन साल मैंने उस डिविजन में बहुत आराम से गुजारे | यह बात निम्न घटना से साफ़ जाहिर हो जाती है |               
एक बार मैं अपने आफिस कुछ देरी से पहुंचा | हाजिरी रजिस्टर प्रबंधक के पास पहुंचा दिया गया था | मैं जब प्रबंधक के कमरे में घुसा तो वहाँ पहले से ही एक और कर्मचारी, पांडे जो मेरी तरह देरी से आया था, खड़ा था | उसे प्रबंधक वापिस घर जाने के लिए कह चुका था तथा वह उसके सामने उसे डयूटी पर लेने की गुहार लगा रहा था | मुझे देरी से आया देख थोड़ी देर के लिए प्रबंधक असमंजस में पड़ गया कि अब क्या किया जाए | प्रबंधक जानता था कि मैं कभी भी देरी से नहीं आता था तथा अपना काम हमेंशा पूरा रखता था इसके विपरीत पांडे अमूमन देरी से आफिस आता था और उसका काम हमेशा अधूरा ही रहता था | इतने में प्रबंधक ने अपनी सोच से उभरते हुए मेरी और मुखातिब होकर सवाल किया, गुप्ता जी आज क्या बात हुई वरना आप तो हमेशा समय पर आफिस पहुँच जाते थे ?
साहब आज रास्ते में स्कूटर में पंक्चर हो गया था |
ओ हो, अच्छा जाओ अपना काम करो |
मैं प्रबंधक का धन्यवाद करके बाहर आ गया तथा अपने काम में मशगूल हो गया परन्तु उसने पांडे को डयूटी पर नहीं लिया | इस तरह प्रबंधक ने जता दिया था कि उसकी डिविजन में काम करने वालों की पूजा होती है काम चोरों की नहीं |
वैसे ऐसा कोई बिरला ही व्यक्ति रहा होगा जिसकी वित् परियोजना विभाग में काम करते हुए उसकी उसके प्रबंधक के साथ खटपट न हुई हो | इसलिए विदेश व्यापार शाखा के सभी कर्मचारी आश्चर्य चकित थे कि मैनें उस विभाग में बिना किसी अनबन के खुशी खुशी पांच वर्ष कैसे बिता दिए थे | यही नहीं मेरा उस विभाग से तबादला हो जाने के बावजूद कई बार उनकी समस्या सुलझाने के लिए मुझे बुलाया जाता था |
भारतीय स्टेट बैंक की विदेश व्यापार शाखा में लगभग चार सौ कर्मचारी थे | वित परियोजना विभाग से मेरा तबादला एडमिनिस्ट्रेशन विभाग में हो गया था | यहाँ मुझे शाखा के सभी कर्मचारियों का वेतन एवं इनकम टैक्स बनाने का काम सौंप दिया गया | मैंने अपने तरीके से कम्पयूटर पर सभी कर्मचारियों का पूरा विवरण भर दिया | इससे प्रत्येक कर्मचारी का हर प्रकार का काम करने में बहुत सुविधा हो गयी | अब बिना समय गंवाए तथा हर प्रकार की सूचना समय पर मिल जाने से उनका काम होते देख शाखा के सभी व्यक्ति मेरे काम से बहुत खुश थे | एक बार एडमिनिस्ट्रेशन विभाग के प्रबंधक ने मुझे बुलाया और कहा, न जाने क्यों वित परियोजना विभाग वालों का अभी तक तुम्हारे लिए बुलावा आता रहता है जैसे तुम्हारे बिना उनका काम ही नहीं चल पाता है | परन्तु यहाँ मैं तुम्हारे काम से बिलकुल भी खुश नहीं हूँ |
मैनें बिना किसी झिझक एवं भय के जवाब दिया, साहब मैं जानता हूँ कि इस शाखा के ३९८ व्यक्ति मेरे काम से बहुत खुश हैं | केवल दो व्यक्ति ही ऐसे हैं जो मेरे काम से खुश नहीं हैं |
प्रबंधक ने उतावला होकर प्रशन किया, वे दो व्यक्ति कौन हैं ?
मैनें बिना रुके जवाब दिया, आप और आपका असिस्टेंट |
मेरे साफ़ कहने से प्रबंधक का चेहरा थोड़ा पीला पड़ गया | उसे थोड़ी कपंकपीं आई फिर संभल कर उसने पूछा, क्यों हम दोनों ही क्यों ?
क्योंकि वित्त परियोजना विभाग में काम की पूजा होती है और आपके यहाँ चापलूसी की | इसीलिए मुझे आज भी वहाँ काम के लिए बुलाया जाता है |
तुम्हारा कहने का क्या मतलब है | साफ़ साफ़ कहो ?
मतलब आप अच्छी तरह जानते हैं फिर भी आप पूछ ही रहे है तो बता देता हूँ, आप चाहते हैं कि इस विभाग में काम शुरू करने से पहले हर कर्मचारी को आपके सामने धौक लगानी चाहिए अर्थात चापलूसी | बाद में चाहे वह कुछ काम करे या न करे आपको इससे कोई लेना देना नहीं | परन्तु मेरा नजरिया इससे अलग है | पहले मैं अपना काम निबटाना पसंद करता हूँ तथा धौक तभी जब प्रबंधक के सामने जाने का काम पड़े |
मेरे सटीक एवं निर्भीकता से दिए उत्तर ने प्रबंधक की बोलती बंद कर दी तथा मूक दृष्टि से मेरी और निहारता रह गया | उसका असिस्टेंट भी काठ की मूर्ती बनकर खड़ा रह गया | इसके बाद फिर कभी प्रबंधक ने मुझे मेरे काम के बारे में कुछ नहीं कहा |
मैं अभी भी शाखा के जनरल लेजर के प्रति दिन की बकाया राशी तथा हैड क्वार्टर में शाखा की साप्ताहिक एवं महीने की रिपोर्ट की समीक्षा भी भेजता था | इन रिपोर्टों को बनाने के लिए मैंने अपनी शाखा के दो होनहार व्यक्ति शशिभूषण सिंघल एवं योगेन्द्र पाल गुप्ता की सहायता लेकर इन्हें कम्पयूटर पर बनाना सीख लिया था | इससे बैंक के प्रतिदिन ४८ खातों के बैलेंस निकालने, साप्ताहिक तथा महीने की रिपोर्ट भेजने में बहुत आसानी हो गयी थी | आहिस्ता आहिस्ता मुझे खातों का बैलेंस निकालने में इतनी महारथ हासिल हो गयी कि मैं एक महीने के बैलेंस, बिना कोई गलती किए, एक बार में ही निकाल लेता था |
एक बार मैं बैंक से एक महीने की छूटटी लेकर घुमने चला गया | वापिस आकर पता चला कि पूरी शाखा में हडकंप मचा हुआ था क्योंकि मेरे पीछे से किसी ने भी न तो जनरल लेजर के बैलेंस निकाले और न ही साप्ताहिक तथा महीने वाली रिपोर्ट भेजी थी | भारतीय स्टेट बैंक के हैड क्वार्टर से कई समन आ चुके थे कि जल्दी से जल्दी पूरी रिपोर्टें भेजी जाए |                       
छुट्टियों से वापिस आया जान शाखा के महा प्रबंधक ने मुझे बुला भेजा, आप ही शाखा की साप्ताहिक तथा महीने की रिपोर्ट हैड आफिस भेजते हो ?
हाँ जी |”
आपको पता है कि डेढ़ महीने से ये रिपोर्टें हेडक्वार्टर नहीं पहुँची हैं ?
नहीं साहब |
नहीं साहब ! काम आपका तो इसके भेजने का ख्याल कौन रखेगा | तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे इसका ख्याल  कोई और रखता है |
साहब सभी काम मेरे हैं परन्तु पिछले डेढ़ महीने से मैं छुट्टियों पर था |
आपके पीछे किसी ने यह काम जरूरी नहीं समझा ?
साहब इसके बारे में मैं क्या कह सकता हूँ |
ठीक है ठीक है अब जल्दी से सारी बकाया साप्ताहिक एवं महीने की रिपोर्ट भेज दो |
साहब डेढ़ महीने का काम निबटाने में कुछ तो समय लगेगा ही |
ठीक है, यह काम समाप्त करने के लिए मै आपको दस दिन का समय देता हूँ |
साहब यह काम इतना जल्दी नहीं निबट सकता जितना आप सोच रहे हैं |
तो तुम कितना समय लोगे ?
कम से कम २१ दिन |
ये तो बहुत ज्यादा हो जाएंगे |
मैं अपने महा प्रबंधक से ऐसे कह रहा था जैसे वह मेरा कोई सह कर्मचारी था,  “साहब आप ज्यादा की बात कर रहे हो, काम करने वाले के हिसाब से ये समय कम है अन्यथा आप किसी और से यह करवा कर आजमा कर देख लो |
अच्छा ठीक है काम शुरू करो तथा जितनी जल्दी हो सके खतम करो |
‘साहब एक बात और |
वह क्या ?
जनरल लेजर के बैलेंस तो मैं निकाल दूंगा, हर तीसरे दिन एक साप्ताहिक रिपोर्ट भी भेजा दूंगा परन्तु इस दौरान जनरल लेजर लिखा नहीं जाएगा |    
फिर आप उन्हें कैसे ठीक बैलेंस मुहैया कराओगे जो सैक्शन वाले हर हफ्ते अपने खाते बैलेंस करना चाहेंगे |
साहब उसकी आप चिंता न करें | मैं उनको प्रतिदिन के बिलकुल सही बैलेंस दे दूंगा |
परन्तु आप ऐसा कैसे करोगे |
मैंने हंसते हुए कहा, साहब यह ट्रेड सीक्रेट है |
मेरी बात पर महा प्रबंधक भी हँसे बिना न रह सका क्योंकि मैं उसी से कह रहा था जो उस ट्रेड का शाखा में सर्वोच्च अधिकारी था | परन्तु उसने कुछ कहा नहीं क्योंकि वह भी जानता था कि जो मैनें कहा था वह किसी हद तक सही था तथा मेरे अलावा इतना बकाया काम कोई पूरा कर भी नहीं सकता था | अब महा प्रबंधक के पास यह कहने के अलावा कोई चारा नहीं था, जैसे तुम करो मुझे तो काम चाहिए |
मैनें भी काम पूरा करने में किसी प्रकार की कोई ढिलाई नहीं दिखाई तथा हेड क्वार्टर को दोबारा नोटिस भेजने का मौक़ा नहीं दिया |
जैसे सिखों में कहावत है कि ‘राज करेगा खालसा बाकी रहे न कोय’ उसी तरह मेरा भी ध्येय रहता था कि जिस काम को दूसरे करने से कतराकर दूर भागने की कोशिश करते हैं उनको मैं पूरा करके दिखाऊँ | बैंक की हर शाखा में एक एक्टीविटी एनेलिसिस रजिस्टर होता है | उसको पूरा रखने से सभी मुहं मोते हैं | एक बार शाखा में अचानक निरीक्षक आ गए | आते ही उन्होंने वह रजिस्टर मांग लिया | पूरी सैक्शन वाले परेशान हो गए कि अब क्या होगा ? मैं छुट्टी पर था तथा सभी सोच रहे थे कि वह रजिस्टर पूरा नहीं होगा क्योंकि किसी ने भी मुझे उस रजिस्टर पर कभी काम करते देखा नहीं था | प्रबंधक ने नया रजिस्टर बनवाना शुरू कर दिया | अगले दिन जब मैनें जाकर बताया कि रजिस्टर पूरा है तो प्रबंधक के मुहं से अचानक निकला, अरे गुप्ता जी आपतो बड़े छुपे रूस्तम हो | और शाखा का सारा माहौल खुशनुमा हो गया था |
भारतीय स्टेट बैंक की विदेश व्यापार शाखा से बहुत से कर्मचारियों का तबादला होने वाला था | अमूमन सभी कर्मचारियों को उनकी पसंद की शाखाओं में बदली किया जाता था | परन्तु मेरे जैसे व्यक्तियों को, जो अपने काम से काम रखते थे तथा अधिकारियों की चापलूसी या नेताओं की जेब गर्म करवाने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते थे, उनकी अपनी पसंद को नजर अंदाज कर दिया जाता था | कहना न होगा मेरे साथ भी वही हुआ | मेरा पैतृक मकान नारायणा में था परन्तु अब मैं गुडगांवा के सैक्टर २३-ए में बनाए अपने मकान में रह रहा था | जानबूझ कर मेरी बदली ऐसी जगह कर दी गई जहां रोज गुडगावां से आना जाना मुमकिन नहीं था |
परन्तु जाको राखे साईंया मार सके न कोय बाल न बांका कर सके चाहे जग बैरी होय | अर्थात सच्चे असहाय की सहायता को भगवान कोई न कोई रास्ता निकाल ही देता है | मेरे साथ गुडगावां से विदेश व्यापार शाखा के लिए दो लड़के सुरेश और कोतवाल जाया करते थे | सुरेश बैक में चपरासी था | जब उसे पता चला कि मेरा तबादला मेरे मन मुताबिक़ नहीं हुआ है तो उसने ताल ठोककर कहा, गुप्ता जी मेरे रहते  कोई माई का लाल आपको ऐसी जगह नहीं भेज सकता जहां आप जाना न चाहते हों | बताओ आपको कहाँ जाना है ?
भाई सुरेश, ईस्ट और वैस्ट होम इज द बैस्ट अर्थात जो शुख छज्जू के चौबारे वो बलख न बुखारे |
सुरेश ने हंसकर कहा,  “गुप्ता जी अगर मैं आप जैसी गूढ़ बातें समझने लायक होता तो बैंक में चपरासी न होता | इसलिए अपनी ख्वाहिस मुझे सादे शब्दों में बताओ |
मैनें कुछ सीरियस होते हुए कहा, सुरेश, अगर मनुष्य प्रण ले ले कि उसे कुछ करना ही है तो उसके लिए राहें अपने आप आसान हो जाती हैं |     
क्या मतलब ?
मतलब यह कि जो आपने अभी गूढ़ बातों की कही वे आप भी सीख सकते हैं | और सीखकर मेरे जैसा बन सकते हैं |
सुरेश ने ऐसे कहा जैसे वह भी अपने मन में यह संजोए था कि उसे आगे बढ़ना है, तरक्की करनी है, कोशिश कर रहा हूँ बाकी....  | और उसने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा दिए | खैर अपनी पसंद बताओ ?
नारायणा
विदेश व्यापार शाखा से जब मेरा तबादला नारायणा हो रहा था तो एक अप्रत्याशित आफिसर के.के.कपूर ने मेरी पीठ ठोकते हुए कहा था, गुप्ता जी, बैंक आप जैसे ही व्यक्तियों की बदौलत सुचारू रूप से चल रहा है | आशा है आगे भी आप अपने आस पास ऐसा ही माहौल कायम रखने में कामयाब रहोगे |एक अनजान व्यक्ति द्वारा मेरे बारे में ऐसी टिप्पणी बहुत मायने रखती थी |   


No comments:

Post a Comment