Wednesday, October 11, 2017

मेरी आत्मकथा- 17 (जीवन के रंग मेरे संग) खुशहाल-दुखिया

मेरी आत्मकथा- 17  (जीवन के रंग मेरे संग) खुशहाल-दुखिया
टर्न टर्न मेरे घर के टेलीफोन की घंटी बज उठी | मैंने चोगा अपने कान पर लगाया और बोला, हैलो कौन |
दूसरे छोर से आवाज आई, मैं बोल रहा हूँ, युसूफ सराय से |
मैंने आवाज पहचान कर, नमस्ते मौसा जी |
मौसा जी, चन्द्र भान, जो मेरी सबसे छोटी बहन के ससुर थे सीधे अपने मुद्दे पर बोले, क्या तुम बसंत वालों की बारात में नहीं गए |
नहीं मौसा जी मैंने अपने दोनों लड़के भेज दिए हैं |
मौसा जी कुछ उतावलेपन से बोले, ऐसा कर तू भी चला जा |
मैं उनकी मनोभावना से अनजान कुछ सोचकर, मैं, मौसा जी इस शादी में मेरा जाना क्या जरूरी है ? जीजा जी के भाई की शादी है | बच्चे चले ही गए हैं | बहुत है |
कह तो तुम ठीक ही रहे हो परन्तु मैं भी तुम्हें बेकार ही नहीं कह रहा | मेरे अनुभव के अनुसार लड़का ढूंढते-ढूँढते जूतों की एडियाँ घिस जाती हैं फिर भी ढंग का लड़का नहीं मिलता | इसलिए कह रहा हूँ कि शुरूआत तो करो | और सुनो, वहाँ तेरा बहनोई जय प्रकाश (मेरा लड़का) मिलेगा | वह तुम्हें, तुम्हारी लड़की प्रभा के लिए, एक लड़का दिखाएगा | पसंद हो तो बात चला लेना |
मौसा जी की बात सुनकर जाने के अलावा मेरे पास कोई चारा न बचा था अत कहा, अच्छा मौसा जी मैं भी चला जाता हूँ |
मेरी लड़की अभी १९ वर्ष में लगी ही थी तथा अभी उसकी शादी करने के बारे में गुमान भी नहीं था | फिर भी मौसा जी के कहे शब्दों ‘लड़का ढूढते ढूँढते जूतों की एडिया घिस जाती हैं फिर भी ढंग का लड़का नहीं मिलता’ ने मेरी रगों में खून का प्रवाह बढ़ा दिया | मैं जल्दी से तैयार हुआ, अपने माता पिता की तस्वीर के सामने नतमस्तक हुआ और निकल पड़ा अपनी लड़की के लिए लड़का देखने की शुरूआत करने |
जब मैं अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचा तो बरात लड़की के दरवाजे पर पहुँच चुकी थी | पांडाल में, जैसा कि शादी के माहौल में होता है कोई खा रहा था, कोई नाच रहा था, कोई गा रहा था तो कोई गप्प हांक रहा था | मैनें पांडाल में नजर दौडाई तो पाया कि मेरे जीजा जी अपने साथियों के साथ कौने में खड़े दही पापडी का स्वाद ले रहे थे |   
अपना फर्ज निभाते हुए मैं उनके पास गया और संबोधित किया, जीजा जी नमस्ते |”
अपनी आदतन अनुसार उन्होंने धीरे से जवाब दिया, नमस्ते, कब आए ?
अभी-अभी आ रहा हूँ |
मैं भी काफी देर से आपका इंतज़ार कर रहा था |
असल में मेरा आने का कोई प्रोग्राम नहीं था | मैनें तो दोनों बच्चों को भेज दिया था | बाद में मौसा जी ने फोन पर कहा कि मैं भी जाकर आप से मिलूँ | इसलिए आने में देरी हो गई |
मेरे जीजा जी अपने स्थान से उठे, मेरा हाथ पकड़ कर एक तरफ ले गए फिर हाथ के इशारे से एक झुण्ड में कुछ खड़े लोगों की और इशारा करके बताया, उनमें वह नीले रंग का कोट पहने हुए लंबा सा लड़का |        
उस झुण्ड में उपस्थित लोगों का दूर से ही जायजा लेकर मैनें पूछा, वे जहां राधे श्याम जी खड़े हैं ?
हाँ हाँ वहीं, राधे श्याम जी उसके जीजा जी हैं |
मैंने इस बारे में अनभिज्ञता जताते हुए कहा, अच्छा, मैं नहीं जानता था | परन्तु राधे श्यामजी को तो मैं अच्छी तरह जानता हूँ |
तो जाओ और उनसे लड़के के बारे में सारी जानकारी ले लो |
मैनें अपने जीजा जी को अपने साथ चलने का आग्रह किया, आप भी साथ चलो |
इस पर उन्होंने साथ चलने के लिए मना करते हुए बताया, मैं अपने पिता जी के साथ अपनी बहन के लिए इनके घर गया था | मेरी बहन आंठवी पास है और ये पढ़ी लिखी लड़की चाहते हैं | इसलिए हमारी बात नहीं बन सकी | आप राधे श्यामको तो अच्छी तरह जानते ही हैं | बस उनके मार्फ़त बात कर लेना |
मैं उन खड़े लोगों के पास जाकर राधे श्याम जी से बोला, नमस्ते जीजा जी | क्योंकिं रिश्ते में वे मेरे जीजा जी श्री नन्द किशोर जी के छोटे भाई थे |     
राधे श्यामजी जो अपनों को देखकर मुस्कराए बिना नहीं रह पाते हैं गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाते हुए बोले, नमस्ते भाई साहब नमस्ते, आने में बहुत देर कर दी ?
बस किसी कारण वश जल्दी न आ सका |
चलो कोई बात नहीं | देर आए पर दुरूस्त आए |इस पर सभी सुनने वालों ने जोरका ठहाका लगाया |
मैं बिना समय गवाएं अपने मुद्दे पर आया | दो जवान लड़कों की तरफ इशारा करके पूछा, ये दोनों कौन हैं ?
ये दोनों मेरे साले हैं ये बड़ा दिनेश शादी शुदा है और ये छोटा मनोज अभी कुआंरा है |
अपने सालों की आखों में प्रश्न चिन्ह देखकर राधे श्यामजी ने उनकी दुविधा दूर करने के लिए मेरी और इशारा करके  उन्हें बताया, ये मेरे बड़े भाई नन्द किशोर जी के साले हैं |
दिनेश एवम मनोज सम्मानवश मेरे सामने हाथ जोड़कर बोले, नमस्ते |  
नमस्ते का जवाब देते हुए मैनें मनोज की तरफ ध्यान से निहारा तो पाया कि वह सेहत के साथ साथ लम्बाई में भी मुझे मात दे रहा है | नयन नक्श भी अच्छे एवं लुभावाने हैं | रंग के लिहाज से भी ठीक है | उसका चेहरा भी जवानी की एक चमकदार आभा लिए था | उसको देखते ही वह मुझे एक नजर में ही भा गया | अब उसके बोलचाल के लहजे को परखने के लिए मैनें मनोज से पूछा, आपका नाम क्या है |       
अपने से बड़े एक अजनबी को अपना नाम पूछते हुए जानकर मनोज कुछ सकुचाया परन्तु इसे अपने व्यवसाय के प्रतिकूल समझ उसने सम्भल कर जवाब दिया, जी, मनोज |
आजकल क्या कर रहे हो ?
जी, प्राईमरी स्कूल में एक अध्यापक हूँ |
मनोज का उत्तर सुनकर मैं प्रभावित हुए बिना न रह सका क्योंकि उसने केवल अध्यापक न कहकर उसके साथ विशेषण ‘प्राईमरी’ लगाकर अपने स्पष्ट वादी एवम सत्य वादी होने का प्रमाण दे दिया था | मनोज की तरफ से हर प्रकार से संतुष्ट होकर मैनें श्री राधे श्याम जी से उनके घर की और बातों के बारे में तसल्ली करने के लिए उन्हें एक तरफ ले जाकर पूछा, आपकी नजर में मनोज कैसा लड़का है ?
मेरी नजर में लड़का हर मायने में ठीक है | इसमें बीडी, सिगरेट, शराब, तम्बाकू इत्यादी की कोई बुरी लत नहीं है | सबसे बड़ी बात यह कि पैसे को पैसा समझ कर चलता है |
क्या इनका अपना मकान है ?
हाँ अपना दो मंजिला मकान है |
कहाँ ?
शास्त्री नगर में जो मालवीय नगर के पास है |
ये कितने भाई बहन हैं ?
ये चार बहनें तथा दो भाई हैं | यह घर में सबसे छोटा है तथा शादी के लिए तैयार है |
बड़ा भाई क्या करता है ?
वह कूंचा नीलकंठ दरियागंज से स्कूलों तथा लेबोरेटरीज में साईंटिफिक सामान देने का काम करता है |
मैंने अपने मन में यह ध्येय बना रखा था कि अपनी लड़की की शादी ऐसे लड़के से करूँगा जो सेहत में अच्छा हो, उसमें किसी प्रकार का कोई व्यषन या बुरी लत न हो, दिल्ली में अपना मकान हो तथा नौकरी शुदा हो | मनोज मेरी चारों शर्तों पर खरा उतर रहा था | हालांकि मेरे दोनों लड़के इस बारे में सलाह देने लायक नहीं थे फिर भी मैनें उन दोनों को मनोज के बारे में अपनी राय वहीं जता दी | मैंने मन में ठान ली कि बात आगे बढ़ा दूंगा |
जब घर आकर मैनें अपने मन की बात अपनी पत्नी को बताई तो वे आश्चर्य से ऐसे बोली जैसे मैं कोई अनहोनी बात कर रहा हूँ | उनको विश्वास ही नहीं हो रहा था कि पहली बार में ही कोई ऐसे नाजुक कार्य के किए कैसे निर्णय ले सकता है क्योंकि उन्होंने अपने पिता जी की मेहनत को देख रखा था कि अपनी लड़की के लिए अच्छा सा रिश्ता आसानी से नहीं मिलता |
अगले दिन मैं अपने बड़े भाई साहब जी के पास गया और जो कल हुआ था उसके बारे में पूरा वृतांत सुना दिया | तथा यह भी बता दिया कि यूसुफ़ सराय वाले मौसा जी ने कहा था कि अपने जीजा जी नन्द किशोर जी को साथ ले जाएं क्योंकि उनके छोटे भाई राधे श्याम के साथ मनोज की बहन ब्याही है | मेरी सारी बातेब सुनकर मेरे बड़े भाई साहब ने पूछा, राधे कहाँ ब्याहा है ?
मालवीय नगर |
मालवीय नगर, किसके यहाँ |
कोई भजन लाल हैं |
अपने दिमाग में कुछ सोचकर मेरे बड़े भाई ने पूछा, तुमने अभी बताया था न कि भजन लाल का एक लड़का साईंटिफिक सामान का काम करता है ?
हाँ भाई साहब वह दरिया गंज से अपना व्यापार करता है |
मेरे भाई साहब अपने मन में बुदबुदाए ‘भजन लाल दरियागंज से, कहीं ये वही तो नहीं’ और फिर उन्होंने मौसा जी को फोन मिलाकर पूछा, मौसा जी ये मालवीय नगर वाले भजन लाल पुराने दरिया गंज वाले तो नहीं ?
हाँ ,हाँ वही है | अब उन्होंने अपना मकान बना लिया है |
मौसा जी की बात सुनकर मेरे भाई साहब के चेहरे पर मुझे एक विजयी मुस्कान उभरती दिखाई दी | उन्होंने टेलीफोन का चोगा रखते हुए कहा, अब हमें किसी को अपने साथ ले जाने की जरूरत नहीं | कल हम दोनों ही चलेंगे |   
मेरे भाई साहब के हावभाव दर्शाने लगे थे जैसे उन्हें कोई गड़े, भूले-बिसरे खजाने का राज मिल गया हो | उनकी तंद्रा को तोड़ते हुए मैंने पूछ, मौसा जी तो कह रहे थे.........|
अपने हाथ के इशारे से मुझे आगे कहने से रोक कर कहा, हमें किसी को साथ ले जाने की जरूरत नहीं है |
अगले दिन मैं अपने भाई साहब के साथ ज्यों ही भजन लाल जी के घर के अंदर दाखिल हुआ तो उनकी पत्नी को सामने देख मेरे भाई साहब बोले, चाची जी नमस्ते |
उन्होंने भी बड़े सम्मान से मेरे भाई साहब का अभिवादन किया और हमें अंदर ले जाकर पोछा, आज कैसे आना हो गया जी |
भाई साहब ने मेरी और इशारा करके कहा, ये मेरा छोटा भाई है, चरण सिहँ | इसकी लड़की, प्रभा के रिश्ते के लिए आपके मनोज के संग करने का प्रस्ताव लेकर आए हैं |
मेरे भाई साहब को इज्जत देते हुए उन्होंने हसंकर कहा, आपका प्रस्ताव भला हम कैसे ठुकरा सकते हैं |
यह तो आपका बड़प्पन है तो बताओ कैसे करना है ?
मनोज के घर वालों ने आपस में सलाह मशवरा करके कहा, देखो जी कल से नवरात्रे शुरू हो रहे हैं इसलिए परसों बिरला मंदिर में देखने दिखाने का प्रोग्राम कैसा रहेगा |
मैं इतनी जल्दी के हक में नहीं था परन्तु मेरे भाई साहब मौक़ा हाथ से जाने के हक में नहीं थे इसलिए जवाब दिया, हमें मंजूर है |
जब मनोज जी के घर वालों की तरफ से और कोई प्रश्न नहीं उठा तो हमने उठकर विदा लेते हुए कहा, तो ठीक है परसों दोपहर दो बजे बिरला मंदिर में मिलेंगे |
हम निश्चित समय से एक घंटा पहले तय स्थान पर पहुँच गए | देखा दिखाई का काम शुरू हुआ | मनोज के घर वाले तो सभी रजामंद थे परन्तु मनोज के मन में कुछ दुविधा जान पड़ रही थी | वे न हाँ कर रहे थे तथा न ना ही | उनकी मन स्थिति को भांपकर मेरे बड़े भाई साहब ने मनोज जी से एक प्रश्न किया, मास्टर जी आपके हिसाब से हमारी लड़की आपके द्वारा सोचे गए दस मानकों में से कितने पास करती है ?
मनोज के मुहं से अचानक निकला, आठ |
इसका मतलब हमारी लड़की आपकी नज़रों में फर्स्ट डिविजन से पास है |
मेरे भाई साहब के कहने का मनोज ने हंसकर समर्थन किया और रिश्ता पक्का करने की औपचारिकताएं पूरी कर दी गई | फिर सब कुछ सपने की तरह इतना जल्दी हो गया कि तीन महीने के अंदर जून १९९१ में शादी भी सम्पन्न हो गई | माँ बाप की इकलौती लाडली और दो भाईयों की प्यारी बहन बाबुल का आँगन सूना करके सभी को रोता बिलखता छोड़कर ससुराल के लिए विदा हो गई | घर में चहकने वाली ‘चिड़िया’ न रहने से घर का सूनापन माँ बाप को रूलाता तो जरूर था परन्तु उनके आंसू उन्हें एक सुखद अनुभव का आभाष भी कराते थे |
सुखद समय की गति बहुत तेज होती है | देखते ही देखते ६ वर्ष गुजर गए | इस बीच प्रभा दो बच्चों की माँ बन गई | इस दौरान उन लोगों ने जो भजन लाल के परिवार के नजदीकी थे, मुझ से अलग अलग तरह से प्रभा की सास के व्यवहार के बारे में पता करना चाहा परन्तु मेरे मुहं से उनकी तारीफ़ सुन कर सभी चुप्पी साध लेते थे | मैं उनकी तारीफ़ करता भी क्यों नहीं क्योंकि मेरी लड़की प्रभा ने कभी मुझे ऐसा जाहिर नहीं होने दिया कि उसे अपने प्रति अपनी सास के व्यवहार से कोई शिकायत है | इसके अलावा मनोज भी, प्रभा के अनुसार, उसका बहुत ख्याल रखता था | अत मैं तथा मेरी पत्नी अपनी लड़की की तरफ से बहुत संतुष्ट एवम सुख का अनुभव करते थे क्योंकि कहावत है कि जिसकी बेटी ससुराल में सुखी उसका जहान सुखी |
मनोज की माँ ने एक गुरू बना रखा था | वह जब मन चाहे आकर उनके घर ठहर जाया करता था | मनोज की माँ अपने गुरू से बहुत प्रभावित थी | गुरू जी शादी में भी शरीक हुए थे | घोड़ी के आगे नाचने एवम उनके व्यवहार से कतई नहीं लगता था कि वे एक पहूंचे हुए संत थे | प्रभा की सास उनसे अपने घर की सुख शांती के लिए चर्चा एवम उपचार कराती रहती थी | मुझे हमेशा यह शंका लगी रहती थी कि कहीं वह गुरू मेरी लड़की के बारे में कुछ अनाप सनाप व्यक्तव्य न दे दे | जिससे घर में कलह कराकर वह अपना उल्लू सीधा करता रहे |
एक दिन मैं तथा मेरी पत्नी अपनी बेटी की ससुराल उसके ममिया ससुर एवम ममिया सास के निधन पर उनके घर होने गए | वहाँ प्रभा की सास ने अपनी समधन के सामने प्रभा के प्रति लावा उगलना शुरू करते हुए कहा, देखो जी प्रभा का व्यवहार हमें बिलकुल पसंद नहीं है |
संतोष हतभ्रत होकर,क्यों जी क्या हुआ ?
वह हमारे लड़के को बहका कर रखती है |
कैसा बहकाना ?
मनोज घर खर्च के लिए पैसा नहीं देता | देखो हमारा सम्मिलित परिवार है इसलिए उसका कुछ तो देने का फर्ज बनता है ?           
संतोष ने साफ़ जवाब दिया, इस बारे में मेरी बेटी या मैं क्या कर सकती हैं | यह आप जाने या आपका लड़का |
प्रभा की सास ने बात पलटते हुए कहा, प्रभा मुझे तथा मेरे गुरू को खाने को भी नहीं पूछती है |
अगर प्रभा आपको खाने के लिए नहीं पूछती है तो उसकी गल्ती है | इसके लिए मैं उसे समझाऊँगी | रही गुरू जी की बात तो उसके लिए आपको कहना चाहिए तभी तो प्रभा उन्हें खाना देगी |
यहाँ भी बात बनते न देख मनोज की माँ ने एक और इल्जाम लगाते हुए कहा, आपकी लड़की हद की ईर्षालू है | पता नहीं ईर्षा कहाँ से सीख कर आई है |
देखो जी यह मेरे घर में अकेली लड़की है | न उसके कोई भाभी है जिससे ईर्षा सीखती | फिर भी आपके कहने से मैं इस बारे में पता करने की कोशिश करूंगी”,कहकर संतोष ने अपनी समधिन को सांत्वना देने का प्रयास किया |
प्रभा की सास हार मानने वालों में से नहीं थी इसलिए और कई शिकायतें संतोष के सामने रख दी मसलन, यह आपकी बेटी अपने बच्चों को भी मेरे पास नहीं आने देती, मनोज के कहे बिना समय पर मुझे खाना नहीं परोसती, मेरे दुःख दर्द का कोई ख्याल नहीं रखती, मेरे गुरू जी का बिलकुल आदर सत्कार नहीं करती, इत्यादि |
घर आकर संतोष से जब मुझे इस चर्चा के बारे में पता चला तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मैं एकदम आसमान से जमीन पर आ गिरा | मैं इतना विचलित हो गया कि अपने पैरों पर खड़ा न रह सका और अपना सिर पकड़ कर जमीन पर बैठना पड़ा | मुझे ऐसे तुषारपात की किंचित भी आशा न थी |
मैं अपनी बेटी द्वारा बताए गए अपनी ससुराल के सभी सदस्यों के अब तक के व्यवहार से खुश था कि वह खुशहाल जीवन व्यतीत कर रही है | परन्तु मुझे आज ६ वर्ष बाद पता चल रहा था कि मेरी बेटी मन में कितनी दुविधा लिए जीवन व्यतीत कर रही थी | प्रभा ने आज तक हमें इस बात का आभाष भी नहीं होने दिया था कि वह वास्तव में एक खुशहाल-दुखिया है |


क्रमशः

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