Saturday, October 28, 2017

मेरी आत्मकथा- 23 (जीवन के रंग मेरे संग) छोटी बहू

मैं अपने बच्चों को भी उच्च शिक्षा देने का पक्षधर था | मेरी लड़की केन्द्रीय विद्यालय में तो बड़ा लड़का भारतीय वायु सेना के सुब्रतो पार्क स्कूल में पढ़ रहा था | पहले तो मैंने अपने छोटे लड़के को एयर फ़ोर्स स्कूल पालम में दाखिला दिला दिया था परन्तु बाद में अपने छोटे लडके पवन को भी उसके बड़े भाई के स्कूल में ही दाखिला दिला दिया | मेरा बड़ा लड़का प्रवीण शांत स्वभाव का था जबकि पवन  साहसी और निडर था | बड़ा लड़का तो स्कूल से साधारण स्थिति में पास होकर निकल गया परन्तु छोटा लड़का एक अजीब स्थिति में फंस गया |
मेरे हिसाब से पवन  पढाई लिखाई में ठीक ही था परन्तु स्कूल की परीक्षाओं में उसके नंबर कम आते थे | इसका मलाल पवन  के चेहरे पर साफ़ दिखाई देता था | वह खीजकर रह जाता परन्तु किसी से कुछ कह नहीं पाता था | उसे आभाष था कि स्कूल में उसके साथ भेदभाव किया जा रहा था | वायु सेना का स्कूल होने की वजह से वहाँ के अध्यापक बड़े बड़े आफिसरों के बच्चों की तरफ ज्यादा तवज्जो देते थे तथा उन्हें ज्यादा अंक भी देते थे | ऐसे बच्चे अपने को बहुत होशियार तथा स्पेशल मानकर अपने सहपाठियों का तिरस्कार करने से भी नहीं चूकते थे | यह पवन को गवांरा नहीं होता था |
एक बार घर आते समय स्कूल की बस में किसी ने पवन  से कुछ गलत कह दिया | उसने गुस्से में उस लड़के को  मारना चाहा तो वह अचानक सामने से हट गया | पवन  का मुक्का एक ऐसे लड़के पर पड़ गया जो बड़े आफिसर का लड़का था | बात इतनी बढ़ गई कि मुझे उसके स्कूल में जाकर मामला सुलझाना पड़ा था | इसके बाद तो जैसे सारे अध्यापक तथा बड़े आफिसरों के लड़के पवन  के खिलाफ हो गए थे | उन सबने मिलकर पवन  के ऊपर एक झूटा आरोप मढ़कर उसे स्कूल से बर्खास्त कर दिया |
पवन  स्कूल तो जाता परन्तु उसकी भूख प्यास उड़ गई, वह उदास रहने लगा, गुमसुम रहनी की मुद्रा अख्तियार कर ली और हमेशा फूल से खिले रहने वाले चेहरे पर मुर्दानगी छा गई | मैंने  ने जब जानना चाहा तो पवन  ने डरते हुए स्कूल से मिला नोटिस मुझे पकड़ा दिया | लिखा था , पवन  को स्कूल से बर्खास्त किया जा रहा है क्योंकि इसने आफिसर के मकानों में पानी को बाधित करने का प्रयास किया है | मैंने नोटिस पढकर पवन  से पूछा, क्या तुम्हें लगता है कि तुम कसूरवार हो |
पापा जी मैं किसी प्रकार भी कसूरवार नहीं हूँ |
क्या स्कूल में तुमने अपना पक्ष रखा था ?
मुझे कोई मौक़ा ही नहीं दिया गया |
अगले दिन मैं पवन  को लेकर उसके स्कूल गया | वहाँ स्कूल के वाईस प्रिंसिपल के सामने अपने लड़के को पूरा किस्सा बयान करने को कहा | उसकी बात सुनकर वाईस प्रिंसिपल भडक उठे तथा ऊंची आवाज में मेरे पर  ही इल्जाम लगाने लगे कि उसने ही अपने लड़के को वह कहानी गढ़ कर दी है जो वह बयाँ कर रहा है |
वाईस प्रिंसिपल के झूठे आरोप से मैं अंदर तक आहत हो गया | मैंने समझ लिया कि इस स्कूल का ढांचा ही ऐसा है जो एक सिपाही के बच्चे को वह अहमियत नहीं देगा जो एक आफिसर के बच्चे को दी जाती है | यहाँ का पूरा स्टाफ दास्ता की बेड़ी में जकडा हुआ गुलाम है | अपने अहम को बरकरार रखने के लिए मैंने अपने मन की भडांस निकालते हुए कहा, आप अपनी जबान पर काबू रखिये | आपके सामने आपका शिष्य नहीं बल्कि उसका बाप बैठा है | अगर उसके सामने मैं भी आपको आपकी जबान में जबाब दे दूं तो आप को जिंदगी भर उसे देख कर मेरा भूत नजर आएगा |
वाईस प्रिंसिपल कुछ संभला और कोमल शब्दों में बोला, परन्तु इसने पहले तो मुझे ये बातें बताई ही नहीं जो यह अब बता रहा है |
मैं भी आज ही आपके सामने सुन रहा हूँ |
आपका मतलब आपने घर पर इससे कोई बात नहीं कही या पूछी ?
आप वजा फरमा रहे हैं |
माफ करना मैं समझा आप अपने लड़के को सिखा पढाकर लाए है.|
मैंने  ने धीरे से वार किया, ऐसी सोच आप के ओहदे को शोभा नहीं देती |
थोड़ी देर के लिए वाईस प्रिंसिपल किंकर्तव्यमूढ़ होने के बाद बोला, आप पवन  की स्कूल से बर्खासतगी का पत्र वापिस कर दीजिए मैं उसे बहाल करता हूँ |
मैंने जवाब में अपना फैसला सुनाया, सर आपका बहुत धन्यवाद परन्तु अब मैं पवन  को इस ऐसे स्कूल में नहीं पढ़ाना चाहता जहां बच्चों के साथ उसके माँ बाप के ओहदे के अनुसार वर्ताव किया जाता हो तथा परीक्षा में नंबर दिए जाते हों न कि बच्चे की अपनी काबलियत के अनुसार |
और मैंने पवन  को उस स्कूल से निकाल कर दूसरे स्कूल में करा दिया जहां वह अच्छे नंबरों से पास होने लगा |
१०+२ के बाद पवन न पढने वालों की संगत में पड़ने के कारण आगे पढाई न कर सका | मैंने भरसक प्रयत्न किया कि वह उच्च सिक्षा ग्रहण करले जिसके लिए मैंने उसे गुडगांवा में भी दाखिला दिलाया | गनीमत रही कि वह जल्दी संभल गया और मालचा मार्ग से हार्ड वेयर कम्पुटर कोर्स में डिप्लोमा करने के बाद अपना खुद का काम करने लग गया |
पवन सुन्दर, सुशील, स्वस्थ, आदर सत्कार करने वाला, नए नए तथा सुन्दर कपड़े पहनने का शौक़ीन तथा साफ़ सुथरा रहना पसंद करता था | वह ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता था जिसके करने से उसके हाथ या कपड़े गंदे होने का अंदेशा रहता हो | मेरा एक पार्ट टाईम जनरल स्टोर था | पवन को अपने साज श्रृंगार पर धब्बा लगने का इतना डर रहता था कि कभी अड़े भिडे में अगर उसे दुकान संभालने के लिए कह दिया जाता तो खुले आटा या तेल इत्यादि के ग्राहक को वह बहाना बना कर लौटा देता था | 
मेरी लड़की और बड़े लड़के प्रवीण की शादी हो चुकी थी | अब पवन के रिस्ते भी आने शुरू हो गए थे |
जब मेरी लड़की के रिस्ते की बात, शास्त्री नगर से मनोज  के साथ, चल रही थी तो मेरे जीजा जी श्री शिव शंकर  ने प्रीतमपुरा से अपनी बुआ के लड़के का सुझाव भी दिया था | लड़के दोनों ठीक थे | दोनों में से एक पसंद करना वाकई टेढी खीर था | मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या किया जाए | इतने में मुझे अपने मामा जी के लड़के विनोद की याद आई जो मेरी अपनी उम्र के समकक्ष था तथा मालवीय नगर और प्रीतमपुरा दोनों के घरों में सम्बन्ध रखता था | यह सोचकर कि वह दोनों लड़कों के बारे में बखूबी जानता होगा एक दिन उससे पूछा, भाई साहब शास्त्री नगर के घरों में आपकी बहन की शादी हुई है ?
हाँ भाई साहब, कहिए क्या बात है ?
मुझे मनोज  के बारे में जानना है |
क्या बिटिया का रिस्ता करने की सोच रहे हो ?
हाँ भाई जी |
भाई साहब, मेरे हिसाब से आज के जमाने में लड़के के तीन गुण देखने आवश्यक हैं ?
कौन कौन से ?
धीरज रखो बता रहा हूँ |
पहला-लड़का स्वस्थ, सुन्दर, और किसी ऐब वाला न हो |
दूसरा-अपनी कमाई कर रहा हो |
तीसरा-घर का मकान हो |
मैंने अपने भाई की हाँ में हाँ मिलाई, भाई साहब आपके विचार मेरे विचारों से मेल खाते हैं |
विनोद ने बताया भाई साहब ये तीनों गुण मनोज  के पास हैं |
मैंने दूसरे लड़के का पूछा, भाई साहब प्रीतम पूरा में आपके मामा जी का जो लड़का है वह कैसा है ?
विनोद झट से बोला, वह भी मेरी तीनों शर्तों पर खरा उतरता है |
तो फिर आपकी द्रष्टि में कौन सा उचित रहेगा ?
इस बार विनोद सोचने पर मजबूर हो गया था | वह थोड़ी देर चुप रहा फिर बोला, आपके लिए दोनों लड़के ठीक हैं रही बात कौन सा बेहतर साबित होगा तो वह तो भविष्य ही बताएगा |
मैंने  ने जोर दिया, भाई साहब आपका तो दोनों के यहाँ आना जाना है | आप तो उनकी रग रग से वाकिफ होंगे |
वह तो है |
फिर आपका तजुर्बा किस को अहमियत देता है ?
विनोद खुला, ऐसा है दोनों में केवल एक फर्क है, प्रीतम पूरा वाले के पास पैसा ज्यादा है परन्तु वह पीने पिलाने का शौक़ीन है परन्तु शास्त्री नगर वाले के पास पैसा कम है तथा कोई ऐसी आदत नहीं है |
तो कौन सा ठीक रहेगा ?
देखो भाई साहब जितना मैं जानता था मैनें दोनों के बारे में आपको पूरी जानकारी दे दी है अब आप अपने घर में सलाह करके तय करलो कि किस्से बात आगे बढ़ानी है |
मेरे जीजा जी शिव शंकर को प्रीतम पूरा रिस्ता कराने की शायद ज्यादा ही जल्दी थी | उनका फोन आया, हाँ, चरण, क्या रहा ?
जीजा जी थोड़ा ठहरो मैं बता दूंगा |
दो दिन बाद मैंने फोन पर ही अपने जीजा जी को खबर कर दी कि उसने शास्त्री नगर से रिस्ता पक्का करने की ठान ली है | शिवशंकर जी ने कोई प्रशन नहीं किया तथा टेलीफोन को धम्म से नीचे रख दिया | शायद उनको मेरा  निर्णय पसंद नहीं आया था |     
अब जब मेरे छोटे लड़के पवन  के रिस्ते की बात चलने लगी थी तो शिवशंकर  जी का फोन आया, मेरे घर के पास एक सुन्दर, सुशील, पढ़ी लिखी, गृहस्थ कार्य एवम व्यवहार कुशल एक लड़की है | कहो तो रिस्ता भिजवाऊँ ?
जीजा जी कहीं न कहीं रिस्ता तो करना ही है | अगर आपकी देखी भाली लड़की है तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है ? 
और आनन् फानन में बिरला मंदिर पर देखा दिखाई का प्रोग्राम बन गया | नियत समय पर दोनों पक्ष निश्चित स्थान पर पहुँच गए | थोड़ी देर की इधर उधर की बातों के बाद अचानक शिवशंकर जी ने कहा, चलो भई चलो काम हो गया |
उनके कहने से लड़की वालों ने अपना सामान समेटा और नौ दो ग्यारह हो गए | साथ में शिवशंकर  भी बिना बताए नदारद हो गए | मेरे परिवार वालों को कुछ समझ नहीं आया कि क्या हुआ | जब सब चले ही गए थे तो हम रुक कर क्या करते |
घर जाकर मैंने शिवशंकरजी को फोन मिलाया, जीजा जी कल क्या हुआ था ?
कुछ नहीं |
तो फिर बिना बताए सब ऐसे क्यों भाग गए जैसे मधु मक्खियों ने आप पर हमला बोल दिया था ?
ऐसी तो कोई बात नहीं थी |
तब कैसी बात थी ?
शिवशंकर  ने थोड़ी हंसी के पुट में बताया, लडकी वालों को रिस्ता पसंद नहीं आया |
अपने जीजा जी की बात सुनकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि बिना कुछ मेरे से बात किये उन्होंने लडकी वालों की बात कैसे मान ली | मुझे तो लडकी के आते ही उसके व्यवहार से ही शंका हो गई थी कि वह असमंजसता की स्थिति में है तथा बात बननी मुश्किल है | मैंने अपना मन बना लिया था कि बात चलने पर वह इस बात का खुलासा करेगा तथा अपनी तरफ से रिस्ते को मंजूरी नहीं देगा | परन्तु यहाँ तो बात शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई थी | अब अपने जीजा जी के हंसी के पुट ने मेरे मन में संदेह उत्पन्न कर दिया था कि हो न हो शिवशंकर  जी ने अपनी उस बात की खुनस निकाली है जब उनके बताए हुए प्रीतम पूरा वाले लड़के को उसने नकार दिया था | खैर किसी की नियत कैसी भी हो भगवान का रहम होना चाहिए और वह मेरे पर था |
अबकी बार पवन का रिस्ता महावीर एन्कलेव से आया | लड़की बी.ए. पास थी | उनका घर मेरे कई रिश्तेदारियों से जुडा था | सभी ने लड़की वालों के घर को अच्छा ही बताया था | मेरा दामाद दूर के रिस्ते में लड़की के पिताजी के भाई लगते थे | उन्होंने भी लड़की की सिफारिस करने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी | लड़की को देखने दिखाने के बाद मैंन असमंजस में था अत: कहा, हम घर जाकर जवाब दे देंगे |
मेरे घर में वार्तालाप हो रहा था | घर में मेरे परिवार के सदस्यों के साथ मेरे दामाद और मेरी लड़की भी मौजूद थी | थोड़ी देर पहले ही वे पवन के लिए लड़की देखकर आए थे परन्तु किसी प्रकार की कोई सहमती प्रकट नहीं की थी | बैठते ही लड़की किस को कैसी लगी तथा आगे के क्या कार्यक्रम होगें पर वार्तालाप शुरू हो गया |
संतोष:-लड़की तो सुन्दर है |
प्रभा:-हाँ नयन नक्श के साथ रंग भी गोरा है |
मनोज :-पवन  के हिसाब से पढ़ी लिखी भी ठीक ही है |
मैंने अपना मत प्रकट किया, वैसे तो आप लोगों की बातें सही हैं परन्तु लड़की की चाल एवं बोल पर भी किसी ने ध्यान दिया या नहीं ?
संतोष:-चाल ढाल और बोली में अगर कुछ फर्क है भी तो वह हमारे यहाँ रहने से अपने आप सुधर जाएगा |
मेरा भी मत था कि कोई भी व्यक्ति हर प्रकार से दूसरे के लिए पूर्ण नहीं होता | यही वह कहलवाना चाहता था | फिर भी रिस्ता पक्का करने की हाँ भरने से पहले वह पवन से उसकी राय जानना चाहता था |
मनोज ने इस बार कटाक्ष करते हुए पूछा, पापा जी दस में से आप कितने नंबर देते हो ?
मैं मनोज जी के कटाक्ष को समझ कर हँसे बिना न रह सका | मेरी इस हंसी में मनोज को तो सम्मिलित होना ही था परन्तु और सब उन्हें हंसते देख भौचक्के से रह गए | शायद वे मनोज जी के इस कटाक्ष के कारण से अनजान थे | हुआ यूं था कि मेरी लड़की प्रभा की देखा दिखाई में उनकी ना-नुक्कड़ को भांपकर मेरे बड़े भाई साहब जी ने मनोज जी से यही प्रश्न पूछकर उन्हे निरूत्तर कर दिया था | फिर भी मैंने जवाब दिया, मनोज  जी आपने यह प्रश्न पूछने में बहुत देरी कर दी |
इतने में मेरी लड़की प्रभा ने अपने पति मनोज तथा चचिया ससुर से प्रभावित हो प्रश्नों की झड़ी लगा दी, पापा जी आपको लड़की पसंद नहीं आई क्या ?
ऐसी तो कोई बात नहीं है | लडकियां तो सब एक सी होती हैं |
तो फिर आपने वहाँ हाँ क्यों नहीं की ?
बस इस लिए कि सब अपनी पक्की राय बता दें |
राय किससे बनानी है | आप, मम्मी जी और पवन  |
क्यों आप भी तो हो |
मैं तो आप से पूछ ही रही हूँ इसका मतलब मैं तो राजी हूँ |
मनोज जी |
वे तो पहले से ही इस रिस्ते के पक्षधर हैं |
ठीक है बात करके बताता हूँ |
अचानक प्रभा कुछ नाराजगी भरे लहजे में बोली, दूसरों को रूलाना जरूरी है क्या ?
क्या मतलब ?
पापा जी महावीर एन्कलेव वालों को लग रहा है कि आप हाँ नहीं करोगे |
इसमें मेरी अकेले की मर्जी थोड़े ही चलेगी | जो सब को मंजूर होगा वही किया जाएगा |
पापा जी इस बारे में अधिक मत सोचो | पवन  की हालत तो आप देख ही रहे हो | शरीर बेडोल होता जा रहा है | ऐसा न हो .........| घर आती लक्ष्मी को मत रोको |
अपनी लड़की के ऐसे वचन सुनकर मैं कुछ असहज सा हो गया | मेरे लड़के की उम्र अभी कुछ ज्यादा तो नहीं हुई थी | उसके बड़े भाई का पवन से बड़ा लड़का भी अभी कवारा था | फिर प्रभा ऐसा क्यों कह रही थी | मुझे महसूस हुआ कि वह किसी दूसरे की जबान से प्रभावित बोल रही थी |
मैंने संयम रखकर कहा, बेटा पवन से पूछना तो जरूरी है ?
हालाँकि मेरी पत्नी ने अपना पूर्ण बहुमत नहीं दिया परन्तु पवन के कहने पर कि ठीक ही है, मैंने रिस्ते की हामी की खबर महावीर एन्कलेव पहुंचा दी |

महावीर एन्कलेव हामी की खबर जाते ही मनोज जी आश्वस्त होकर मेरी पत्नी संतोष की तरफ देखकर बोले, अब हाँ हो ही गई है | अब आगे का सोचो की शादी कब की रखनी है |
संतोष मेरी और निहार कर बोली, इसके बारे में तो ये ही जानें |
मनोज :-पिताजी शादी के लिए पंडित जी से दो तीन तिथियाँ निकलवा लेना | उनमें से जो हमें ठीक रहेगी उसे पक्का कर लेंगे |
मैंने सोच विचार कर पूछा, तारीखें तो निकलवा लूंगा परन्तु पहले इस बात का फैसला तो कर लो कि बिरादरी के लोगों को लग्न पर दावत देनी है या रिस्पशन का प्रोग्राम रखना है |
बिलकुल यह तो पहले तय करना पडेगा,  प्रभा ने अपनी राय दी |
पवन :-रिस्पशन का प्रोग्राम तो बहुत बेकार तथा उबाऊ लगता है | क्योकि दुल्हा दुल्हन को घंटो मूर्ति बनकर बैठना पड़ता है ऊपर से उठक बैठक अलग करनी पड़ती है |
संतोष ने चुटकी ली, सभी ध्यान से सुन लो पवन की शादी पर लग्न पर ही दावत देनी है |
मम्मी जी आपने बिलकुल ठीक फरमाया है | पवन ने अपनी इच्छा पहले ही जाहिर कर दी है | इसकी शादी पर हमें ध्यान रखना होगा कि लग्न ही हो रिस्पशन नहीं |
सब जोर से ठहाका लगाकर हंसते हैं और पवन कुछ झेंप जाता है | इसके बाद मनोज जी ने कहा, पिता जी, अब हमारे पास समय कम है और काम ज्यादा | क्योंकि शादी के साए केवल २९ फरवरी तक ही हैं | अत: जितना जल्दी हो सके आप पंडित जी से शादी की तिथियाँ सुजवा लाओ | जिससे हम आगे के प्रोग्राम बना सकें |
मैंने  घड़ी देखकर बोला, ठीक है अब तो देर हो गई है मैं सुबह ही पंडित जी से मिल लूंगा |
संतोष:-पहले सामने वाले इस मौहल्ले के मंदिर के पंडित जी से सुजवा लेना |
मैं सामने वाले मंदिर तथा अपने पंडित जी से पूछ आऊँगा तुम(संतोष) कृष्ण मंदिर में पूछ आना |
संतोष:-ठीक है |
मनोज :-सभी काम फ़टाफ़ट करने होंगे क्योंकि समय कम है | चीज-बस्त, कपड़े-लत्ते, कार्ड, खाना-पीना, बैंड-बाजा  इत्यादि बहुत सी वस्तुओं का इंतजाम करने में दिन यूं ही निकल जाएंगे पता भी नहीं चलेगा कि कब तय तिथि आ धमकी |
मैंने याद कराया, हाँ कार्ड का मजबून भी तो बनाना होगा |
मनोज :-कार्ड के तीन चार मजबून बनाकर आपको दिखा दूंगा | जो सभी को पसंद आएगा वह छपवा लेंगे |
मैंने ने हामी भरते बातों को विराम देने के लिए कहा, अब रात काफी हो गई है | सब सो जाओ | बाकी बातें सुबह करेंगे |
मनोज :-पिता जी अब सोने से काम नहीं चलेगा | अब तो हमारे पास केवल्र रात ही है विचार विमर्श करने के लिए क्योंकि दिन में तो हमें बाजार का काम निपटाने से ही फुर्सत नहीं मिलेगी |
मैंने अपना पक्ष रखा, देखो जी ‘साफ़ कहना सुखी रहना’ आप लोग जो ठीक समझो उतनी देर तक जागो | मुझे तो सुबह बता दिया करना कि दिन भर का क्या प्रोग्राम बनाया है मैं उसी अनुसार चला करूँगा | परन्तु मैं  समय पर सो जाना चाहता हूँ |


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