Sunday, August 9, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' भूमिका

 


भूमिका

आत्म तृप्ति उपन्यास विश्वास पर आधारित उपन्यास है | विश्वास एक ऐसा शब्द है जिसमें सभी सम्बन्ध समाए हुए हैं अर्थात पिता-पुत्र, माँ-बेटी, शिक्षक-शिष्य, व्यापारी-ग्राहक, पति-पत्नी इत्यादि सभी एक दूसरे के साथ विश्वास रूपी डोर से बंधे रहते हैं | जहां ये डोर ज़रा कमजोर हुई नहीं कि आपसी संबंधों में शिथिलता और दरार आने लगती है | 

एक मनुष्य के जन्म लेने से मृत्यु तक उसके जीवन में न जाने कितने उतार-चढ़ाव व बदलाव आते हैं | बचपन से जवानी तक उसका स्वजन प्रेम अपने उच्चतम शिखर पर होता है | इस अवस्था के चलते उसके मन में अपने माता-पिता, भाई-बहन एवं सगे सम्बन्धियों इत्यादि के प्रति प्रभावशाली प्रेम बना रहता है | व्यक्ति की शादी के बंधन में बंधने के साथ ही उसके मन में बसी स्वजन प्रेम की धुरी की दिशा में झुकाव दिखने लगता है | अब स्वजन प्रेम का बिंदु पहले उसकी पत्नी तथा फिर उसके बच्चे बन जाते हैं जो जीवन के अंत तक कायम रहता है | यह प्रेम एक देह का दूसरी देह में विश्वास के प्रतिरूप से पनपता है | पति का पत्नी के ऊपर विश्वास और पत्नी का पति के ऊपर विश्वास सबसे महत्त्व पूर्ण होता है जो न होने पर गृहस्थी में कलह का कारण बना रहता है |

जहां मनुष्य का शरीर पांच तत्वों से बना है तथा नश्वर है इसलिए उसका स्वजन प्रेम भी उसकी देह की समाप्ति के बाद समाप्त हो जाता है | वहीं मनुष्य के शरीर में बसी आत्मा एक अजर, अमर, अनंत, अनादि, अविनाशी, नित्य तथा देह को बदल बदल कर वास करने वाली होती है |

मनुष्य का मन एवं उसकी इन्द्रियाँ अस्थिर, चंचल और चलायमान होती हैं | कभी कभी उनके  इन्हीं गुणों के कारण मनुष्य वासना वशीभूत कलंक व चरित्रहीनता इत्यादि का भागीदार बन जाता है | अत: यह जरूरी रहता है कि मन की चंचलता को निर्विकार आत्मा के वश में रखा जाए | 

सामाजिक बंधन एवं सृष्टि के अनुसार पति पत्नी का आपसी प्रेम वासना रहित नहीं रह सकता इसलिए उन्हें जीवात्मा कहा गया है | परन्तु दो शुद्ध आत्माओं का प्रेम मिलन निश्छल, नि:स्वार्थ, निष्कपट, एवं वासना रहित रहता है | उदहारण के तौर पर जैसा प्रेम सबरी और केवट का श्री राम चन्द्र के प्रति और गोपियों का श्री कृष्ण जी के प्रति था | ऐसा ही कुछ इस उपन्यास आत्मतृप्ति में दर्शाया गया है | जिसमें दो नश्वर देह का मिलन न होते हुए भी दो शुद्ध 

आत्माओं के प्रेम मिलन की चाहत अंत तक बरकरार रही |                                                         लेखक      


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