Saturday, August 15, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' (भाग VII, VIII, IX)

 VII

अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए बहुत ही खुफिया तरीके से जम्मू के हवाई अड्डे से रात के बारह बजे एक हेलिकोप्टर ने उड़ान भरी | इसमें पायलटों के अलावा केवल कार्पोरल गुलाब सिहं गुप्ता अपने जरूरी सामान के साथ सवार था | हेलिकोप्टर नीची उड़ान भरता हुआ चिनाब नदी को पार कर गया | सामने ऊंची पहाड़ी थी अतः हेलिकोप्टर ने अपने को दुशमनों की नजरों से बचाते हुए पहाड़ी  का चक्कर लगाना शुरू कर दिया | पहाड़ी के दूसरी तरफ एक घना जंगल शुरू हो गया था | यहीं से पाकिस्तान की सीमा शुरू हो जाती थी | हेलिकोप्टर ने गुलाब को इसी घने जंगल में उतार दिया तथा वापिस आ गया | उतरते ही गुलाब ने एक उपयुक्त स्थान खोज कर अपना यंत्र जमाया तथा काम शुरू कर दिया | लगभग दो घंटे की तल्लीनता, मुस्तैदी तथा अपने अथक प्रयास  से वह पाकिस्तान की सभी नई चौकियों की स्थिति की जानकारी हासिल करने में सफल हो गया | अपना काम समाप्त करके उसने पायलट को सन्देशा भेज दिया जिससे हेलिकोप्टर  आकर गुलाब को वापिस ले गया |

कमांडर :-(यूनिट में अगले दिन सुबह) कार्पोरल गुप्ता, क्या काम पूरा हुआ ?

गुलाब :- हाँ, श्री मान जी | काम पूरा हो गया |

कमांडर :- वैरी गुड़| दिखाओ |   

गुलाब ने अपने द्वारा बनाए गये नक्शे को कमांडर की मेज पर बिछा दिया | इसके बाद कमांडर के कहने पर उसने उसके बारे में विस्तार से समझाना शुरू किया |

सर, जम्मु की तरफ से चिनाब नदी पार करते ही हमारे सामने एक  ऊंचा पहाड़ आता है | उसकी बाँई ओर से चलते हुए जब हम पहाड़ के दूसरी तरफ पहुंच जाते हैं तो वहाँ एक बहुत गहरा जंगल आ जाता है | इस जंगल के शुरू होते ही पाकिस्तान की सीमा प्रारम्भ हो जाती है | यहीं से मैनें उनकी चौकियों की स्थिति का पता किया है | जैसा पहाड़ चिनाब नदी के पार है वैसी ही पहाड़ की एक श्रंखला उस बिहड़ जंगल के पार है जो पाकिस्तान में है | इस पहाड़ की श्रंखला में पाकिस्तान की तीन चौकियाँ स्थापित हैं | सर देखिये उनकी यह दाँए हाथ वाली चौकी जो हमारी सबसे बड़ी  चौकी "ध्रुव तारा" है उसके ठीक 30 डिग्री दाऎं पर स्थित है | उसकी समुंद्र तल से ऊंचाई 2400 फीट है | और सर, उनकी बीच वाली चौकी हमारी ध्रुव तारा के ठीक सामने है परंतु उसकी ऊंचाई हमारी चौकी से 500 फीट ऊंची है | उनकी तीसरी चौकी 39 डिग्री बाएं को है | यह चौकी पहाड़ में एक अर्ध गोलाकार कटाव की ढलान पर है | उनकी यह चौकी हमारे देश की खुफिया जानकारी लेने के लिये बहुत ही अहम भुमिका निभाती होगी क्योंकि इस चौकी से हमारा पहाड़ को पार करने का कोई भी कदम आसानी से देखा जा सकता है | यही नहीं यह चौकी हमारे मैदानी इलाके की भी दूर तक निगरानी रख सकती है | यह 2700 फीट की ऊंचाई पर स्थित है |  

कमांडर ने सब कुछ अच्छी तरह समझ कर एक प्लान बनाई तथा सभी पायलटों  को  सम्बोधित करने लगा | आप सभी अच्छी तरह से जान लो कि दुशमन की नई चौकियाँ किन किन स्थानों पर स्थित हैं, कितनी ऊंचाई पर तथा हमारी ध्रुव तारा चौकी से कितनी डिग्रीयों पर हैं | हांलाकि हमारे मार्ग दर्शक ए.टी.सी से सम्पर्क करके समय समय पर आपको रास्ता बताते रहेंगे फिर भी आपकी पहले से रही जानकारी आपको बहुत सहायक सिद्ध  हो सकती है | हम आज रात को ठीक बारह बजे उड़ान भरेंगे तथा कार्पोरल गुलाब सिहं गुप्ता द्वारा अपने नक्शे में दर्शाए गए स्थानों को अपना निशाना बनाएंगे | किसी को कोई शक ?

सभी पायलट :- नो सर |

कमांडर :- तो अब आप सब जाओ तथा अपने अपने जहाजों का मुआईना करके तैयार रहो |

सभी पायलट :- ओ . के. सर |

कमांडर :-(जाते हुए पयलटों से) रात के ठीक बारह बजे | तब तक के लिये अल विदा |                            

भारत पाकिस्तान युद्ध काफी दिनों तक चलता रहा | फौज के किसी भी फौजी को युद्ध के अलावा और कुछ सोचने की फुर्सत ही नहीं थी | सभी चौबीसों घंटे कार्यरत रहते थे | घर के समाचरों को मिले भी कई कई दिन बीत जाते थे | इसी प्रकार फौजी भी अपनी कुशलता का समाचार मुशकिल से ही भेज पाता था |

VIII

गुलाब का कई दिनों तक कोई समाचार न पाकर माला के घर वालों ने उसकी ओर से असमंजस्ता के रहते माला का रिस्ता उत्तर प्रदेश के बुलन्द शहर में पक्का कर दिया | लडका सुन्दर, सुडौल तथा पढा लिखा इंजिनियर था | उनकी शादी की तारीख भी जल्दी तय हो गई |

माला :- (अपने दिल का दर्द  जाहिर करते हुए) संतो मैं क्या करुं ?

संतो :- चुपचाप सहन करना पडेगा |

माला :- वे क्या समझेंगे ?

संतो :- हमारा समाज ही ऐसा है कि लडकी को अपने माता पिता की मर्जी अनुसार चलना पडता है | हमारी व्यथा तो यही है कि इस बारे में हम अपना मुहँ नही खोल सकती |

माला :- उनका पता भी तो नहीं है कि वे आजकल कहाँ पर तैनात हैं | युद्ध जोरों से चल रहा है पता नहीं कब खत्म होगा | (रोते हुए संतो से चिपट कर) मैं क्या करूं संतो |

संतो :- धैर्य रखो | भगवान को शायद यही मंजूर है | उनको अब भुलने की कोशिश करो |

माला :-(तडप कर) ऐसा नहीं हो सकता संतो | वे मेरे दिल में, दिमाग में तथा रोम-रोम में ऐसे रम गये हैं जैसे शरीर में खून | अब वे मेरे दिल से निकल नहीं सकते |

संतो :- भुलने के अलावा दूसरा रास्ता भी तो कोई नजर नहीं आता |

माला :-(रोते-रोते) संतो मेरा एक काम करोगी ?

संतो :- क्या ?

माला :- मैं तो शायद अब उनसे कभी न मिल पाऊँ | अगर वे कभी तुझे मिलें तो उन्हें सारी स्थिति समझा कर उनसे मेरी तरफ से माफी मागं लेना |

माला की बात सुनकर संतो के सारे शरीर में झुरझुरी सी दौड़गई | किसी जवान लडके से बात करना तो दूर वह उसकी परछाई से भी बचती आई है | फिर भी समय की नाजुकता  को समझते हुए उसने माला द्वारा कहे काम करने की हामी भर दी |

देखते ही देखते माला की शादी होने का दिन भी आ गया | माला के घर के द्वार पर बारात आने का शोर उठता है | सभी घर की औरतें बच्चे तथा मौहल्ले पडौस के लोग उतावले होकर गली में दूल्हे को देखने उमड़ पडते हैं | बारात गाजे-बाजे के साथ आ रही थी | आतिश बाजियाँ भी चल रही थी | सब खुश नजर आ रहे थे  | मगर माला का दिल जल रहा था |

दूसरी ओर इन सब बातों से अनभिज्ञ गुलाब राड़ार की टयूब पर बैठा बम वर्षकों को उनकी बमबारी करने की सही पोजिशन समझा रहा था | दुशमनों के अड्डों पर अचूक निशाना लगने से सभी खुशी मनाते हैं | दुशमनों के खेमों में चारों ओर आग ही आग लगी दिखाई देती है |

सभी रस्मों रिवाज के सुचारू रूप से सम्पन्न होने के बाद माला ससुराल के लिये विदा कर दी जाती है | उसकी सुहागरात मनती है तथा सब शांत हो जाता है |

युद्ध में भारत की जीत होती है | भारतीय फौजों द्वारा जीते गये भू भाग पर तिरंगा झंड़ा फहरा दिया जाता है | युद्ध समाप्ती की घोषणा कर दी जाती है | सब शांत हो जाता है |

भारतवर्ष की इस युद्ध में जीत का श्रेय गुलाब द्वारा दी गई दुशमनों की नई चौकियों की बिल्कुल सही स्थिति को दिया जाता है | अतः उसे वीरता के पदक से सम्मानित किया जाता है | देश के सभी समाचार पत्रों द्वारा गुलाब की भूरी भूरी प्रशंसा की जाती है |

 युद्ध की समाप्ती के बाद गुलाब छुट्टियों पर अपने घर के लिये चलता है | रास्ते में वह न जाने क्या -क्या सोचता रहा कितने ही प्रकार के विचार बनाता रहा कि किस से किस तरह से मिलना है | कहाँ कहाँ जाना है | कितने दिन कहाँ रूकना है | बीच बीच में वह अपने बैग को बडे प्यार से सहलाता रहता था जैसे उसने उसमें कोई बड़ी ही कोमल तथा प्यारी वस्तु रख रखी हो | और इस दौरान उसके हाव भाव भी ऐसे दिखने लगते थे जैसे कि वह किसी की याद में आत्मविभोर हो गया हो | खैर अपने मन में हजारों तरह के ताने बाने बुनते हुए वह अपने घर पहुंच गया |

घर के सभी सदस्य नाश्ते के लिये आंगन में मेज के चारों तरफ  बैठे थे | गुलाब ने अन्दर आकर अपने माता-पिता के चरण छुए ही थे कि उसकी छोटी बहनों ने भईया आ गये भईया आ गये का शोर मचाते हुए उसका बैग उससे छीन लिया |

कोमल  :- (बैग को खोलते हुए) मेरे लिये क्या लाए हो भईया ?

आत्मा  :-(बैग में झांकते हुए) और मेरे लिये क्या......?

माँ :- अरे तुम्हारा भाई इतनी दूर से आया है पहले उससे चाय पानी की तो पूछ लो | तुम तो आते ही उसके बैग के पीछे ऐसे पड़ गई जैसे तुम्हारे पास कुछ है ही नहीं | तुम इतना भी नहीं सोचती कि जब तुम्हारा भाई वहाँ रहते हुए भी तुम्हारे लिये कुछ न कुछ भेजता ही रहता है तो अपने साथ तो जरूर लाया होगा |

पिता :- अरे तुम क्यों इतना नाराज हो रही हो | भैया के आने की खुशी के साथ साथ अपने लिये लाए गये तोफे को देखने की लालसा में बच्चे ऐसा ही करते हैं |

गुलाब ने अपनी बहनों से बैग लेकर उसमें से सामान निकाल कर देना शुरु किया |

पिता जी के लिये गर्म जैकेट |

माँ के लिये ऊनी शाल |

बहनों के लिये शूट के कपडे |

तीनों भाईयों के लिये स्वेटर |

भाभियों के लिये साडियाँ |

गुलाब की बड़ी तथा छोटी भाभियाँ अपने पीहर गई हुई थी | उसकी शालू भाभी जी रसोई में सबके लिये नाश्ते का प्रबंध कर रही थी | इसलिये गुलाब एक साड़ी लेकर वहीं चला गया |

“लो भाभी जी |

“यह क्या ? इसकी क्या जरूरत थी ? इतना खर्च मत किया करो | कुछ अपने पास भी बचा कर रखो | अब तुम्हारी शादी होने वाली है | पैसों की जरूरत पडेगी |

“बस भाभी जी बस ! लगता है आपने पैसे की अहमियत पर डिप्लोमा कर रखा है | तभी तो इतना अच्छा खासा लैक्चर दे दिया | (थोड़ा शरमा कर) अच्छा भाभी जी अब आपका पीहर जाना कब होगा ?

गुलाब की बात का आशय समझते हुए परंतु बनते हुए, “क्यों लाला जी क्या बात है ?  अपने आते ही हमारी छुट्टी क्यों करवाना चाहते हो ?           

“नहीं भाभी जी ऐसी बात नहीं है मैं तो बस यूँ ही पूछ रहा था | वैसे आपको अपने घर गये काफी दिन हो गए लगते हैं क्योंकि आपके चेहरे पर वह नूर नहीं दिख रहा जो एक लडकी के चेहरे पर उसके पीहर से लौटने पर रहता है |

“लाला जी ऐसी बात नहीं है | मैं तो अभी 15 दिन पहले ही डिबाई से आई हूँ |

“तो फिर आप ऐसी मुरझाई सी क्यों दिख रही हो ?

भाभी :-(थोड़ा सिरीयस होकर) लाला जी असल में बात यह है कि ....|

गुलाब को किसी आशंका ने आ घेरा | वह असल में क्या को जानने के लिए उतावला हो गया | अतः अपनी भाभी जी से बोला, "असल में क्या भाभी जी ? बोलो न |चुप क्यों हो गई ?

"माला की शादी हो चुकी है" ,भाभी ने धीरे से कहा |

अपनी भाभी जी के शब्द सुनकर गुलाब पर जैसे एकदम पहाड़ सा टूट पड़ा | उसने बिना कुछ बोले अपना बैग उठाया तथा अपने कमरे की और बढ गया | उसे अपने कमरे की और जाता देख उसकी माँ ने कहा, "अरे बेटा नाशता तो कर ले |

गुलाब ने चलते चलते ही माँ को जवाब दिया कि वह अभी बहुत थका हुआ है | थोड़ी  देर सोने के बाद उठकर तथा नहाने-धोने के बाद ही वह कुछ खाएगा |

गुलाब की भूख, प्यास, चैन तथा नीदं उड़ चुकी थी | उसने कमरे में आकर अपना बैग खोला | बैग के कोने में हाथ ड़ालकर सुन्दर से दो कंगन निकाले तथा उन्हें बहुत देर तक निहारता रहा | वह दिल में बडे अरमान लिये आया था कि उन कंगनों को अपनी भाभी जी के हाथों माला के लिये भिजवाएगा | परंतु उसकी सोच के महल तो धराशाही हो चुके थे | खंडरों का आभास करते करते उसकी आंखों से दो मोती टपक गए | एक बार गुलाब के मन में आया कि वह उन कंगनों को खिड्की से बाहर फैंक दे परंतु न जाने क्या सोचकर उसने ऐसा नहीं किया तथा उन कंगनों को अपनी छाती पर रखकर बिस्तर पर लेट गया | विचारों के ताने बाने बुनते बुनते न जाने उसे कब नीदं आ गई तथा वह माला के सपनों में खो गया |           

IX

गुलाब कमरे में प्रवेश करते हुए अपनी भाभी जी (शालू) को एक अटैची में कपडे लगाते हुए देखकर, "भाभी जी कहाँ की तैयारी हो रही हैं ?

“कहीं की भी नहीं |

“मुझे तो लगता है पीहर जाने का विचार बन रहा है |

“आपने कैसे जाना ?

“आपके चेहरे की आभा देखकर |

“अगर मैं कहूँ कि नहीं तो ?

“तो कुछ नहीं |

गुलाब अपनी भाभी जी की ना सुनकर थोड़ा उदास सा हो जाता है | भाभी उसकी मनोदशा समझकर एकदम से दूसरा प्रश्न कर देती है, "लाला जी अगर मैं कहूँ कि हाँ तो?”  

भाभी के मुख से हाँ सुनकर गुलाब का चेहरा खिल उठा | फिर भी उसने अपनी खुशी छिपाते हुए इस बार भी यही कहा, “कुछ नहीं |

ऐसे भी कुछ नहीं वैसे भी कुछ नहीं तो फिर पूछ क्यों रहे हो ? भाभी ने जानना चाहा |

गुलाब को आखिर अपने मन का राज खोलना ही पड़ा | असल में बात यह है कि मैं देवलाली से सभी घर वालों  के लिये कुछ न कुछ लाया था | (कुछ झिझकते हुए) “मा...ला...के लिये भी यह...|

भाभी ने चुटकी ली, “माला कब से इस घर की सदस्य हो गई ?

गुलाब ने बगलें झांकते हुए तथा कुछ सकुचाते हुए केवल इतना ही कहा, “भाभी जी ऐसी कोई बात नहीं है मैं तो बस यूँ ही ले आया था |

“अच्छा ठीक है, दिखाओ क्या लाए हो ?

गुलाब एक छोटा सा बन्द पैकेट अपनी भाभी जी के हाथ में थमा देता है | शालू पहले तो उसे उलट पलट कर देखती है फिर खोलने की कोशिश करती है | इस पर गुलाब उसे ऐसा करने से मना करता है तथा मिन्नत करने के लहजे के तौर से हिदायत देता है कि केवल माला ही उसे खोले |

भाभी ने भी अपने देवर को झकाने के लिये मजाक के तौर पर कह दिया, "ना जी ना यह काम हमसे नहीं होगा |”                           

“मेरी अच्छी भाभी जी मैं आपके पैर.......” ,गुलाब अपनी भाभी जी की तरफ अपने कदम बढाता है |

भाभी अपने देवर से दूर होते हुए, "लाला जी यह क्या कर रहे हो ? अच्छा देखो हम आपका यह काम तो कर नहीं सकते अलबत्ता अगर आप चाहो तो आपको अपने साथ डिबाई अवशय ले जा सकते हैं |

अपनी भाभी जी की बात सुनकर गुलाब की बाछें खिल उठी मन में सोचा नेकी और पूछ - पूछ | उसने, आव देखा न ताव, आगे बढ कर अपनी भाभी जी को दोनों बाहों में उठा कर आत्म विभोर हो नाचने लगा

अचानक उसके कमरे के दरवाजे पर होने वाली दस्तक ने गुलाब की तंद्रा तोड़ी  | उसने देखा कि वह अपनी बाहों में एक मुसन्द को जोर से जकडे हुए था | अपनी हालत देखकर, दिल में पीड़ा का एहसास होते हुए भी, वह मुस्कराए बिना न रह सका |

दोबारा दरवाजे के उपर दस्तक को सुनकर उसने पूछा, "कौन है ?

“मैं हू आपकी भाभी | क्या अब सोते ही रहोगे ? नाशता तो किया नहीं, अब दोपहर का खाना भी नहीं खाना क्या ?

गुलाब ने दरवाजा खोलकर जब बाहर देखा तो अचरज से बोला अरे दोपहर हो गई दिखती है | सामने खड़ी अपनी भाभी जी के चेहरे पर मन मोहक मुस्कान को देखकर उसके मन में इसके राज को जानने की इच्छा प्रबल हुई तो उसने पूछ ही लिया, "भाभी जी क्या बात है, मन्द मन्द मुस्करा रही हो ?

“बात ही कुछ ऐसी है |

“कैसी बात है या फिर मेरा दिल बहलाने को कर रही हो ?

“मै आपको अपनी बहन तो न दिलवा सकी परंतु अगर आप चाहो तो अपनी भतीजी.........|

गुलाब ने अपनी भाभी जी को बीच में ही टोककर तथा शिकायत भरे लहजे में कहा, "भाभी जी माला की शादी भी हो गई और आपने मुझे कोई खबर पहुँचाना भी मुनासिब नहीं समझा | आप तो सब कुछ जानती थी फिर भी आपने यह सब होने दिया | कम से कम एक बार मुझ से या माला से हमारे मन की बात तो पूछ लेती |

“लाला जी पूछना क्या था | मैं तो आप दोनों के मन की दशा अच्छी तरह जानती थी परंतु हालातों के सामने मैं मजबूर थी |

“कैसी मजबूरी ?

“लाला जी मैनें यहाँ आपके लिए माला की बात चलाई थी | मुझे पता चला कि इस घर के मर्द लोगों का एक ही मत था कि एक घर से दो बहुओं का होना अच्छा नहीं रहेगा | दूसरे आप युद्ध में व्यस्त थे | आपका न तो निश्चित पता था जिससे मैं आपको कुछ खबर करती | न यह पता था कि आप घर कब आ सकोगे | इधर माला के लिये उनको दूसरा लडका भी ठीक ठाक मिल गया अतः उसकी शादी कर दी | खैर अब जो हुआ सो हुआ, चलो बाकी बातें बाद में होंगी पहले खाना खा लो ठंड़ा हो रहा है |

“भाभी जी बहुत सुस्ती चढ रही है पहले नहाकर तरोताजा होना चाहता हूँ फिर खाना खाऊँगा कहता हुआ गुलाब अंगड़ाई लेता हुआ घुसलखाने में घुस गया |

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